जिस तरह महाराष्ट्र की फड़नवीस सरकार ने फिल्म ‘ए दिल है मुश्किल’ के मामले में राज ठाकरे की एमएनएस की गुंडागर्दी के आगे समर्पण किया है वह खेदजनक ही नहीं शर्मनाक भी है। बिना कारण सेना को बीच में घसीट लिया गया जिस कारण वरिष्ठ सैनिक अधिकारी बहुत खफा हैं। एमएनएस का केवल एक विधायक है पर राज ठाकरे के फरमान के आगे फड़नवीस सरकार झुक गई। सवाल सार्थक है कि क्या देशभक्ति की कीमत 5 करोड़ रुपए ही है? 5 करोड़ रुपए देकर सब पाप माफ? प्रायश्चित हो गया? यह निर्माता ‘पाकिस्तानी एजेंट’ नहीं रहे? तब फिल्म में पाक कलाकारों की मौजूदगी पर आपत्ति नहीं होगी? जैसे कारगिल के हीरो ब्रिगेडियर (रिटायर्ड) खुशहाल ठाकुर ने सवाल किया है, ‘अगर कोई बात गलत है तो गलत है। 5 करोड़ रुपए देने से वह सही कैसे हो गई?’
जिस प्रोफैशनलिज्म से सेना ने यह स्ट्राइक की थी उसके उलट कई भाजपा नेता चिंताजनक अपरिपक्वता दिखा रहे हैं। रक्षामंत्री इसके लिए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को श्रेय दे चुके हैं जबकि संघ ने कभी श्रेय लेने का प्रयास नहीं किया। जब आलोचना हुई तो मजाक में कह दिया कि मैं ‘स्ट्राइक’ शब्द का भी इस्तेमाल नहीं करूंगा। सेना की कार्रवाई के प्रति ऐसी अगंभीरता देश के रक्षामंत्री को शोभा नहीं देती। वह गुड़ गोबर कर रहें हैं। यह दावा भी गलत निकल रहा है कि पहले सर्जिकल स्ट्राइक नहीं हुई थी विदेश सचिव ने ही इसका प्रतिवाद कर दिया। और याद रखने की बात तो यह है कि असली सर्जिकल स्ट्राइक तो इंदिरा गांधी और जनरल मानकशा ने की थी जब उन्होंने पाकिस्तान के दो टुकड़े कर दिए थे। सेना को राजनीतिक वार्ता का हिस्सा बनाया ही नहीं जाना चाहिए। खामोशी बेहतर रहती, लोग खुद फैसला करें। जो फिल्म देखना चाहे वह देखे, जो नहीं देखना चाहता वह न देखे।
महाराष्ट्र के कमजोर और अनाड़ी मुख्यमंत्री ने अनावश्यक गुंडागर्दी को सम्मानित कर दिया। फिल्म रोकने की धमकी देकर सेना के नाम पर कनपटी पर पिस्तौल रख जबरन वसूली की गई जो बात सेना को बिलकुल पसंद नहीं आई। फिल्मों में पाकिस्तानी कलाकारों को लिया जाए या न लिया जाए यह अलग मामला है पर जब एक फिल्म सैंसर बोर्ड द्वारा पास हो चुकी हो तो उसे हिंसा की धमकी देकर रोकने का प्रयास क्यों किया जाए? फड़नवीस की जिम्मेवारी थी कि जो धमकियां देते हैं उन्हें पकड़ कर अंदर करते उलटा राज ठाकरे को एक प्रकार का डिकटेटर बना दिया कि वह फैसला करेगा कि कौन सी फिल्म चलेगी कौन सी नहीं?
ऐसी फिरौती अनैतिक है। सेना को यह पैसा बिलकुल स्वीकार नहीं करना चाहिए।
उरी के हमले के बाद देश का माहौल बहुत बदला हुआ है पाकिस्तान के प्रति बर्दाश्त खत्म हो गई है इसलिए पाकिस्तानी कलाकारों का मामला इतना भड़क गया है। इन लोगों ने भी भारत पर हो रहे हमलों के विरुद्ध एक शब्द नहीं बोला। सलमान खान का कहना है कि यह आतंकी नहीं कलाकार हैं पर हकीकत है कि यह कला के लिए नहीं पैसे और शोहरत के लिए यहां आते हैं। इन्हें यहां वह पैसा मिलता है जो पाकिस्तान में कमाने की वह कल्पना भी नहीं कर सकते। लेकिन अब यह सब रुक गया है। लोग सरकार के इशारे का इंतजार नहीं कर रहे, वह अपने फैसले खुद ले रहे हैं। इसी से भयभीत ओम पुरी ने शहीद नितिन यादव के घर जाकर उसके मां-बाप से अपनी बदतमीज़ी के लिए पांव छू कर माफी मांगी और प्रायश्चित के लिए वहां हवन करवाया। चीन का माल खरीदने में कमी आई है क्योंकि लोगों को चीन का हर हालत में पाकिस्तान का पक्ष लेना पसंद नहीं आया।
लोग उस देश के प्रति किसी भी तरह की मेहरबानी के लिए तैयार नहीं हैं जो हमारे सैनिकों को मरवाने के लिए आतंकी भेजता है। करण जौहर ने भी गलती की कि पहले पाक कलाकारों को लेने की वकालत कर दी पर जब बाद में देखा कि देशभर में तूफान उठ गया है तब ‘इंडिया फर्स्ट’ और अपनी देशभक्ति की दुहाई देनी शुरू कर दी। लेकिन जैसे किसी ने ट्विटर पर लिखा है, ‘करण जौहर का पश्चाताप उरी के 30 दिन बाद, सर्जिकल स्ट्राइक के 20 दिन बाद और अपनी फिल्म की रिलीज़ के 10 दिन पहले आया।’ और अगर आईपीएल में पाक खिलाड़ियों के खेलने पर रोक लग सकती है तो पाक कलाकारों पर क्यों नहीं?
कुछ लोग दोनों देशों की सांस्कृतिक सांझ की बात करते हैं। पाकिस्तानी म्यूजिक ग्रुप ‘जुनून’ जो कई बार भारत में अपना कार्यक्रम दे चुका है, के संस्थापक सलमान अहमद ने लिखा है कि ‘धमकी देने वाले भूल जाते हैं कि जिसे राजनीति अपवित्र करती है उसे संस्कृति मानवीय बनाती है।’ यह बात बहुत गलत नहीं। इस संपर्क से हमें भी फायदा है क्योंकि जिसे हमारी सॉफ्ट पावर कहा जाता है वह पाकिस्तान में बहुत प्रभावी है। हमारा सिनेमा तथा टीवी धारावाहिक वहां लोकप्रिय हैं। कई लोग तो वहां शिकायत भी कर रहे हैं कि पाकिस्तान का समाज भारत के ‘सांस्कृतिक हमले’ का शिकार है। वह मानें या न मानें भारत की परछाई उन पर सदा रहेगी और हम उन्हें उस तरह प्रभावित करते रहेंगे जिस तरह चीन कभी नहीं कर सकता। लेकिन इस वक्त असामान्य हालात हैं। जब उधर से आतंकवादी लगातार हमारे लोगों पर हमला कर रहे हैं उस वक्त सामान्य रिश्ता नहीं हो सकता। भारत की जनता माफ करने के मूड में नहीं है।
कुछ लोग फिल्म बिरादरी से खफा हैं कि उन्होंने राज ठाकरे के आगे समर्पण कर दिया। शिकायत है कि वह अभिव्यक्ति की आजादी या कला की आजादी के लिए डटे नहीं। जो लोग फिल्म बिरादरी से ऐसी सैद्धांतिक हिम्मत की अपेक्षा करते हैं वह भूलते हैं कि करण जौहर जैसों की असली आस्था अपने धंधे में है, अभिव्यक्ति की आजादी या कला की आजादी जैसी अवधारणाएं तो वह केवल अपनी सुविधा के लिए इस्तेमाल करते हैं। इसकी आड़ में वह प्रस्तुत कर सकते हैं जिस पर समाज आपत्ति करता है। इसी की आड़ में नग्नता और किसिंग शुरू हो गई है क्योंकि अंदर से तो सब बिजनेस है। लेकिन असली अफसोस है कि इस सारे प्रकरण में देशभक्ति और राष्ट्रीयता की कीमत लगा दी गई है। जिनके पास 5 करोड़ रुपए नहीं हैं वह कम देशभक्त कहलाएंगे?
जब मुम्बई पर 26/11 का हमला हुआ था तो कोई ठाकरे पीड़ितों की मदद करता सड़क पर नज़र नहीं आया था। अगर राज ठाकरे तथा उसकी टोली को पाकिस्तान से इतनी नफरत है तो उन्हें नियंत्रण रेखा पर बीएसएफ की चौकी में भेज देना चाहिए। दूर मुम्बई में बैठक कर बहादुरी दिखाना, ए दिल मुश्किल नहीं।