दिल्ली का शर्मनाक पतन (The Shameful Fall of Delhi)

जस वक्त दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल एक पूर्व सैनिक की आत्महत्या को भुनाने में लगे हुए थे दिल्ली में प्रदूषण खतरनाक स्तर से बहुत पार कर गया था। यह पिछले 17 साल में सबसे खतरनाक स्तर पर है। सारा एनसीआर क्षेत्र ही जहरीली चादर से ढका प्रतीत होता है। लोगों का दम घुट रहा है। सुरक्षित से 12 गुणा खतरनाक स्तर तक प्रदूषण है। पहले कहा जा रहा था कि दिल्ली में सांस लेने वालों के अंदर रोजाना 20 सिगरेट के बराबर विषैला धुआं जा रहा है, अब बताया जा रहा है कि यह 40 सिगरेट के बराबर है। हवा इतनी जहरीली बन चुकी है कि घरों के अंदर भी कइयों को सांस लेने में तकलीफ हो रही है। आंखों से पानी बह रहा है। दिल्ली की हालत एक गैस चैम्बर जैसी है जो बात सीएम केजरीवाल ने भी स्वीकार की है। राष्ट्रपति के डाक्टर ने कहा है कि प्रदूषण का स्तर छोटे बच्चों के लिए घातक है। आगे सर्दियां हैं। स्थिति और खराब होगी।
प्रदूषण के हर मापदंड पर देश की राजधानी खतरनाक स्तर पार कर गई है। दिल्ली वालों को तो सितारे देखे अरसा हो गया क्योंकि वायुमंडल में प्रदूषण लटकता रहता है। सीएनजी शुरू कर कुछ फर्क पड़ा था पर पिछले तीन सालों में 5 लाख वाहनों में वृद्धि इस सुधार को तमाम कर गई। 2007 के बाद वाहनों की संख्या तीन गुना बढ़ चुकी है और रोजाना और गाड़ियां सड़कों पर उतर रही हैं। विदेशी अब यहां आने से कतराएंगे और हमारे पर्यटन तथा निवेश को धक्का पहुंचेगा। दिल्ली का इंदिरा गांधी हवाई अड्डा ही बुरी तरह प्रदूषित है। अमेरिका तथा ब्रिटिश स्कूल में आक्सीजन का स्तर देख कर बच्चों को खेलने के लिए बाहर निकाला जाता है नहीं तो क्लासरूम में रखा जाता है जहां एयर प्योरीफायर लगे हुए हैं। लेकिन हर जगह तो ऐसा हो नहीं सकता।
दिल्ली की इस दुर्गति के कई कारण हैं। बड़ा कारण वाहनों की बढ़ती संख्या है। डीजल के वाहन विशेषतौर पर अधिक प्रदूषण फैलाते हैं। जैसे जैसे प्रगति होगी यह समस्या बढ़ेगी। शहरीकरण अपने साथ समस्याएं लेकर आता है। जनसंख्या का दबाव भी प्रदूषण बढ़ाता है। दिल्ली में अवैध कालोनियों का अलग दबाव है। आसपास बहुत निर्माण हो रहा है। इस निर्माण से उठती धूल बहुत प्रदूषण पैदा करती है। मैट्रो बनाने के लिए सैकड़ों पेड़ काटे गए इनकी जगह बराबर पेड़ नहीं लगाए गए। दीवाली के कारण भी समस्या और विकराल हो गई है। ऐसी खुशी मनाने का साल में एक मौका आता है इसलिए लोग परवाह नहीं करते। दिल्ली सरकार का कहना है कि पंजाब-हरियाणा में जलाई जाने वाली पराली के कारण समस्या बढ़ी है पर एनजीटी ने सवाल किया है कि हवा तो चल नहीं रही ऐसे में इन राज्यों से धुआं दिल्ली में नहीं आ सकता। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड तथा आईआईटी कानपुर का निष्कर्ष है कि दिल्ली के प्रदूषण की 80 प्रतिशत समस्या अंदरूनी है।
पर दिल्ली की असली समस्या है कि राजधानी लावारिस है। राम भरोसे है। जिस शहर का प्रबंधन देश में सर्वश्रेष्ठ होना चाहिए वह प्रशासन घटिया और संवेदनहीन है। उपराज्यपाल (एलजी) तथा दिल्ली सरकार की खींचतान के बीच शहर यतीम हो गया है। अरविंद केजरीवाल की सरकार काम नहीं कर रही। जबसे हाईकोर्ट ने कहा है कि दिल्ली के बॉस उपराज्यपाल हैं तब से तो जिम्मेवारी छोड़ दी गई लगती है। अब फिर परेशान दिल्ली को छोड़ कर वह पांच दिन के लिए पंजाब आ रहे हैं। एलजी किसी के प्रति जवाबदेह नहीं। नजीब जंग साहिब वैसे भी पुराने लाट साहिबों की तरह बर्ताव करते हैं। जनता के साथ बिलकुल सम्पर्क नहीं और अधिक परवाह भी नहीं लगती। जिस वक्त दिल्ली में मरीजों की संख्या छलांगें लगा रही थी एलजी साहिब ने सोमवार तक बैठक नहीं रखी। आखिर वीकेंड पर वह कैसे काम कर सकते हैं?
राजधानी अजब स्थिति में फंस गई है। जिन्हें जनप्रतिनिधि बनाया गया उनके पास अधिकार नहीं हैं और जिसके पास अधिकार हैं वह किसी के प्रति जवाबदेह नहीं। जब शहर में डेंगू तथा चिकनगुनिया का प्रकोप था तब भी हमने देखा था कि कोई भी संभालने वाला नहीं था। मुख्यमंत्री केजरीवाल सेहत ठीक करने बाहर गए हुए थे, उपमुख्यमंत्री सिसोदिया दूर फिनलैंड में फोटो खिंचवा रहे थे और उपराज्यपाल अधिक समय उपलब्ध नहीं थे। एक दूसरे पर जिम्मेवारी फेंकी जाती है। चाहे डेंगू और चिकनगुनिया जैसी बीमारी हो या प्रदूषण का मामला हो, इनसे निबटने के लिए कई महीने पहले कदम उठाने चाहिए पर कुछ नहीं किया जाता। इस आपराधिक लापरवाही का ही परिणाम है कि राजधानी दिल्ली रहने लायक नहीं रही।
जब तक शीला दीक्षित की सरकार थी यह तो एहसास था कि कोई संभालने वाला है। अब तो लोगों को यह भी मालूम नहीं कि किस के पास जाकर रोएं। अरविंद केजरीवाल की दूसरे प्रदेशों में राजनीतिक व्यस्तता ने हालत बदतर कर दी है। जब दिल्ली पर पूरा ध्यान लगाने की जरूरत थी वह ह्रक्रह्रक्क मामले में राजनीति करने में व्यस्त थे। फिर जेएनयू के लापता छात्र के मामले में सक्रिय हो गए। इस बीच लोगों के फेफड़े काले होते गए। केन्द्र सरकार अपनी जिम्मेवारी झाड़ कर एक तरफ बैठ गई है पर केजरीवाल तथा आप को फेल करने के लिए दिल्ली को सजा नहीं दी जानी चाहिए। आखिर यह आपकी भी राजधानी है। राजधानी की इस खराब हालत से दुनियाभर में हमारी छवि खराब हो रही है। हम लाख ‘मेक इन इंडिया’ करें पर अगर राजधानी ही गंदी होगी, खतरनाक स्तर तक प्रदूषित और बीमार रहेगी तो कौन दुनिया के ग्यारहवें सबसे प्रदूषित शहर में आएगा?
अगर केजरीवाल समझते हैं कि वर्तमान व्यवस्था में अपना धर्म नहीं निभा सकते तो इस्तीफा देकर एक तरफ बैठ जाना चाहिए। केन्द्र को दिल्ली के उपराज्यपाल को बदलना चाहिए। अगर सारी शक्तियां उनके पास हैं और वह इनका सही निर्वहन नहीं कर रहे तो किसी सक्रिय राजनेता को दिल्ली का उपराज्यपाल बनाया जाना चाहिए जो लोगों की तकलीफ समझ सके और समाधान निकालने का प्रयास करे।
बड़े दुख की बात है कि देश की राजधानी जो शो पीस होना चाहिए थी बीमारी और प्रदूषण का घर बन कर रह गई है। यहां जिन्दगी का दम घुट रहा है। एलजी तथा सीएम अफसरों को बदलने की शतरंज में व्यस्त हैं जबकि यहां एमरजेंसी वाली हालत है। नजीब जंग और अरविंद केजरीवाल दिल्ली के अपराधी हैं। जिस दिल्ली के बारे जौंक ने कभी कहा था कि कौन जाए दिल्ली की गलियां छोड़ कर, उस दिल्ली से अब लोग निकलना चाहते हैं। जिस दिल्ली को मुगलों ने संवारा, अंग्रेजों ने संभाला, उसका आजाद भारत ने सत्यानाश कर दिया। हम अपने इस सबसे महान शहर का शर्मनाक पतन देख रहे हैं।

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Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.