एक मुख्यमंत्री कितनी गैर जिम्मेवार हो सकती हैं इसका प्रमाण हमें पश्चिम बंगाल से मिल रहा है जहां उन्मत ममता बैनर्जी ने भारतीय सेना की रुटीन कार्रवाई पर ही सवाल उठाते हुए उसे उनका तख्ता पलटने की साजिश तक कह दिया। एक दिन पहले जब उनकी पटना से कोलकाता उड़ान को हवाई अड्डे के आकाश में जमघट के कारण उतरने में देर हो गई तो तृणमृल कांग्रेस ने इसे ममता को खत्म करने की साजिश कह दिया। कोलकाता के एटीसी ने आकाश में विमानों की भीड़ के कारण एक-एक कर सभी विमानों को सुरक्षित उतार लिया लेकिन ममता क्या जो नाटकीय मौका हाथ से जाने दे? सब सुरक्षित उतर गए, फिर इतना चीखना चिल्लाना क्यों?
अपने नए राजनीतिक सखा अरविंद केजरीवाल की ही तरह ममता को भी तथ्यों की चिंता नहीं वह भावनाओं का दोहन करने का प्रयास करती हैं। लेकिन उड़ान के मामले में तथा सेना के कथित ‘कू’ अर्थात् तख्ता पलटने की कोशिश के मामले में वह हर प्रकार की समझदारी की सीमा पार कर गई हैं। शर्म की बात है कि सेना की सामान्य गतिविधि को तृणमूल कांग्रेस ने इतनी बड़ी साजिश बता दिया कि मुख्यमंत्री 36 घंटे सचिवालय मेें बंद हो गईं। क्या उन्हें घबराहट थी कि सेना पश्चिम बंगाल सरकार के सचिवालय पर कब्ज़ा करने जा रही है? सचिवालय के नजदीक एक टोल प्लाज़ा पर सेना की तैनाती को ममता ने उनका तख्ता पलटने की साजिश तक कह दिया। सेना की तरफ से बताया गया कि ऐसा नौ प्रदेशों में किया जा रहा है। आरोप है कि यह कार्रवाई उनकी जानकारी के बिना की गई जबकि सेना ने सबूत दिए कि उन्होंने पश्चिम बंगाल के अफसरों जिसमेें प्रिंसीपल सैक्रेट्री ट्रांसपोर्ट तथा वरिष्ठ पुलिस अफसर शामिल थे, को बाकायदा इस अभ्यास की सूचना दी थी।
टीएमसी के सांसद डैरिक ओ ब्रायन जो आमतौर पर काफी समझदार बात करते हैं, का कहना था कि भाजपा तथा सरकार को सेना को राजनीति के हथियार की तरह इस्तेमाल करना बंद करना चाहिए। इस बात में क्या तुक है? सेना जो बिल्कुल अराजनीतिक है, को राजनीति में तो यह लोग खुद घसीट कर ला रहे हैं। जब से नोटबंदी को लेकर ममता ने उग्र रवैया अपनाया है और उत्तर प्रदेश की एक रैली में ‘नरेंद्र मोदी हाय हाय’ के नारे लगवाए हैं तब से आपसी तनाव अधिक है। पर सेना बीच में किधर से आ गई? क्या कोई राजनीतिक दल सेना का इस्तेमाल कर सकता है और क्या सेना इसकी इज़ाजत देगी? अपने उन्माद में ममता ने न केवल यह शिकायत की कि उनका तख्ता पलटने की कोशिश हो रही है बल्कि यह भी कहा कि ‘सेना संविधान का उल्लंघन कर रही है’, देश में ‘‘गृह युद्ध जैसी स्थिति बन रही है।’’ और वह कानूनी कार्रवाई करने जा रही हैं।
जिस सेना पर वह यह घटिया आरोप लगा रही है वह वही सेना है जो सीमा पर शहादतें दे रही है। और क्या उन्होंने सोचा नहीं कि सेना पश्चिम बंगाल की सरकार का तख्ता पलट कर क्या करेेगी? पूर्व थल सेनाध्यक्ष जनरल वीपी मलिक का सवाल सार्थक है कि अगर सेना ने तख्ता पलटना है तो वह पश्चिम बंगाल में क्यों करेगीे? पूर्व कैबिनेट सचिव टीएसआर सुब्रह्मण्यम ने भी कहा है कि अगर सेना ने तख्ता पलटना है तो ऐसा नई दिल्ली के विजय चौंक पर होगा, कोलकाता में नहीं। लेकिन ममता क्या जो समझदारी की बात सुने। उन्हें तो हर तरफ उनकी हत्या करने की साजिश नजर आती है।
सेना को सारे देश में अपनी गतिविधियां करने की इज़ाजत है उसे किसी सनकी मुख्यमंत्री से इज़ाजत लेने की जरूरत नहीं। यह हमारी सेना है कोई विदेशी सेना नहीं। जैसे जनरल मलिक ने भी कहा है कि सैन्य अभ्यास की जानकारी दी जाती है इज़ाजत नहीं ली जाती। टीएसआर सुब्रह्मण्यम के अनुसार भी यह आजाद देश है सेना एक जगह से दूसरी जगह कभी भी जा सकती है। पश्चिम बंगाल या कोलकाता ऐसे क्षेत्र नहीं जहां सेना का प्रवेश निषेध है।
खैर ममता 36 घंटे सचिवालय की 14वीं मंजिल में गुजारने के बाद घर चली गईं लेकिन इस मुख्यमंत्री की मन: स्थिति चिंता पैदा करती है। झट आपे से बाहर हो जाती हैं। शायद वर्षों कामरेडों के साथ संघर्ष करने के बाद वह तुनक मिज़ाज बन गई हैं। उस संघर्ष के दौरान इन पर हमले भी हुए थे लेकिन वह डटी रहीं। वह ही थीं जो कामरेडों की धौंस तथा अत्याचार का सामना कर सकीं पर अब आंदोलनकारी राजनीति उनकी शैली बन गई है। उन्हें अपने प्रदेश के विकास पर केन्द्रित रहना चाहिए जैसे जयललिता रहीं थीं, बाकी देश खुद को संभाल लेगा। ममता की नजरें 2019 के चुनाव पर हैं चाहे उनके यह तमाशे उन्हें गंभीर नेता स्वीकार करने में बहुत बड़ी बाधा बन रहे हैं।
ममता की समस्या है कि पश्चिम बंगाल में भाजपा का प्रसार बढ़ रहा है जो हाल के उपचुनाव से भी पता चलता है इसीलिए वह भाजपा तथा मोदी पर भड़क रही हैं नहीं तो यह सोचा भी नहीं जा सकता कि कोई मुख्यमंत्री देश के प्रधानमंत्री की हाय! हाय! के नारे लगाएंगी। एक बार उनके साथी केजरीवाल ने देश के प्रधानमंत्री को ‘साइकोपैथ’ अर्थात मनोरोगी कह दिया था। तब से उनका पतन शुरू हो गया क्योंकि लोग मर्यादा का उल्लंघन पसंद नहीं करते। ऐसी ही घटिया भाषा का अब ममता इस्तेमाल कर रही हैं। उनका भी हश्र ऐसा ही होगा।
ममता ने अप्रत्यक्ष तौर पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को ‘गद्दार’ कह दिया क्योंकि नोटबंदी के खिलाफ उनके अभियान में वह शामिल नहीं हुए। ममता का तो रवैया है कि जो उनके साथ नहीं वह या तो गद्दार है या उनके खिलाफ साजिश रच रहा है जबकि शारदा चिटफंड जैसे घोटाले में वह तथा उनकी पार्टी दोनों जवाबदेह हैं।
भारत बंद के दौरान वह कोलकाता की सड़कों पर मार्च का रही थीं लेकिन कांग्रेस इस बंद से अलग रही। नीतीश कुमार तथा नवीन पटनायक वैसे ही अलग हैं लेकिन ममता फूंकारती चल रही हैं और वह समझती हैं कि नोटबंदी ने उन्हें राष्ट्रीय मंच पर दनदनाने का मौका दे दिया है। वह कदम वापिस लेने की मांग कर चुकी हैं यहां तक कि तीन दिन का अलटीमेटम भी दे चुकी हैं। लोगों की परेशानी का दोहन करने की ममता कोशिश कर रही हैं लेकिन इतनी असंतुलित हो गईं कि सेना पर ही ओछे आरोप लगा रही हैं। ऐसा करते हुए वह हर लक्ष्मणरेखा पार कर गईं और नोटबंदी की जगह अपने व्यवहार को मुद्दा बना गईं। इतनी भड़क गईं कि सोचना ही बंद कर दिया कि वह क्या कर रही हैं इसीलिए आज उन्हें सावधान कर रहा हूं कि
कभी खुद जोर में अपने ही गिर जाता है ज़ोरावर
ए मेरे कातिल कहीं तूं अपना ही कातिल न बन जाना!