कश्मीर छोटा पाकिस्तान बन रहा है (Kashmir Becoming Mini Pakistan)

कुछ दिनों की शांति के बाद कश्मीर में फिर तनाव है, प्रदर्शन शुरू हो गए हैं। देश विरोधियों को नया मुद्दा मिल गया है। उनकी शिकायत है कि कश्मीर की ‘डैमोग्रैफी’ (जनसांख्यिकी) बदलने की साजिश हो रही है और उमर फारुख से लेकर फारुख अब्दुल्ला सब भड़क रहे हैं। मामला देश की आजादी और विभाजन के तत्काल बाद पश्चिम पाकिस्तान से आकर जम्मू-कश्मीर में बसे शरणार्थियों का है। प्रदेश में इनको कोई अधिकार नहीं दिए गए। 70 साल में तीन पीढ़ियां वहां पैदा हो चुकी हैं लेकिन जम्मू-कश्मीर उन्हें मान्यता नहीं देता। वह लोकसभा चुनाव में मतदान कर सकते हैं पर विधानसभा के चुनाव में मतदान का उन्हें अधिकार नहीं है क्योंकि वह ‘स्टेट सबजट’ नहीं हैं। वह भारत के नागरिक हैं और बाकी देश में वह नौकरी कर सकते हैं पर जहां वह 70 वर्ष से रह रहे हैं, जहां कई पैदा हुए हैं वहां उन्हें कोई अधिकार नहीं। इसलिए क्योंकि वह हिन्दू हैं।

अब जम्मू-कश्मीर की सरकार उन्हें आवासीय प्रमाण पत्र देने जा रही है। पूरी नागरिकता भी नहीं मिल रही लेकिन कश्मीरी मुस्लिम नेता इसका भी तीखा विरोध कर रहे हैं। मस्जिदों से फिर विरोध प्रदर्शन की अपीलें शुरू हो गई हैं। फिर कथित ‘आजादी’ के तराने गूंज रहे हैं।

असली समस्या है कि वह कश्मीर के मुस्लिम स्वरूप को तनिक भी हलका करना बर्दाश्त करने को तैयार नहीं। आखिरी निशाना इस्लामी रिपब्लिक ऑफ कश्मीर है। इसकी तरफ पहला कदम उस वक्त उठाया गया जब कश्मीरी पंडितों को बाहर निकाला गया। पश्चिमी पाकिस्तान से आए शरणार्थियों के बारे तो कहा जा रहा है कि वह स्टेट सबजट नहीं हैं पर कश्मीरी पंडित तो स्टेट सबजट हैं। वह कश्मीर में क्यों नहीं हैं? उनके वापिसी के हर प्रयास को सभी मुस्लिम कश्मीरी नेता मिलकर सफल नहीं होने देते।

पश्चिमी पाकिस्तान से विभाजन के समय जो लोग आए और देश के भिन्न हिस्सों में बस गए उन्हें पूर्ण नागरिकता प्राप्त है। इंद्र कुमार गुजराल तथा मनमोहन सिंह तो प्रधानमंत्री भी बन गए। गुजराल साहिब ने मुझे बताया था कि उन्होंने श्रीमती शीला गुजराल से कहा था कि ‘देखो इस देश की खूबसूरती कि जो शरणार्थी बन कर आया था, वह आज पीएम बन रहा है।’

लेकिन जम्मू-कश्मीर में यह अधिकार नहीं दिया जा रहा जबकि यह लोग तो धारा 370 लगने से पहले वहां आए थे। कहा जा रहा है कि जम्मू-कश्मीर का संविधान इसकी इज़ाजत नहीं देता लेकिन सुप्रीम कोर्ट निर्णय दे चुका है कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है उसे प्रभुसत्ता नहीं मिली हुई और इसका संविधान भारत के संविधान के अधीन है। यह भी उल्लेखनीय है कि न केवल हुर्रियत वाले, न केवल नैशनल कांफ्रैंस के फारुख अब्दुल्ला जैसे नेता, बल्कि पाकिस्तान भी पश्चिम पाकिस्तान से आए इन शरणार्थियों को पहचान पत्र दिए जाने का विरोध कर रहा है। सब एक ही बोली बोल रहे हैं जिससे स्पष्ट हो जाना चाहिए कि साजिश क्या है। निश्चित तौर पर अगर यह लोग हिन्दू नहीं बल्कि मुसलमान होते तो सबका सुर दूसरा होता।

अमेरिकी संविधान के अनुसार जो वहां पैदा हुआ है वह वहां का नागरिक है, वह राष्ट्रपति तक बन सकता है चाहे उसका परिवार अफ्रीका से गया हो या भारत से। लेकिन यहां तो जम्मू-कश्मीर में पैदा हुए लोगों को 7 दशकों के बाद भी मूलभूत नागरिक अधिकार प्राप्त नहीं है। भारत सरकार को डट जाना चाहिए। एक न एक दिन तो इस ब्लैकमेल का सामना करना ही है। और क्या हो जाएगा कि अभी तक नहीं हुआ? पहले पाकिस्तान के झंडे लहराए गए फिर आईएस के झंडे लहराए गए और अब तो कुछ जगह चीन के झंडे भी नजर आ रहे हैं।

अब और झुकने की जरूरत नहीं। अच्छी बात है कि बुरहान वानी की मौत के बाद वहां टकराव के बीच भारत सरकार झुकी नहीं। आखिर में अलगाववादी नेताओं ने खुद अपनी हड़ताल वापिस ली। अब अलगाववादी लोगों से कह रहे हैं कि वह ‘जन्नत’ में वापिस आ जाएं आपकी सुरक्षा की गारंटी हम देते हैं।

पर जन्नत में कौन वापिस जाएगा जबकि खुद उन्होंने लगातार हड़तालें करवा और हिंसा करवा उसे बदनाम कर दिया है? टूरिस्ट तथा यात्रियों को ले जा रहे वाहनों पर पथराव हो चुका है। लोग छुट्टियां शांतमय जगह व्यतीत करना चाहते हैं वह पत्थर फैंकने वालों की मेहरबानी पर नहीं रहना चाहते। पर रस्सी जल गई पर बल नहीं गया। टूरिस्ट को वापिस बुलाते हुए भी हुर्रियत कांफ्रैंस का कहना था कि वह सबको सुरक्षा देेंगे चाहे वह ‘भारत सहित दुनिया के किसी भी हिस्से से हो।’ अर्थात वह कश्मीर को भारत के भुगौल से अलग और बाहर रख रहे हैं जबकि वहां 96 प्रतिशत पर्यटक देश के दूसरे हिस्सों से आते हैं।

अर्थात शरारत जारी है। इसका सबसे बड़ा प्रमाण फारुख अब्दुल्ला तथा उनके पुत्र उमर अब्दुला के रवैये में आया परिवर्तन है। दोनों पूर्व मुख्यमंत्री हैं और दोनों अब हताशा में अलगाववादियों की भाषा बोल रहे हैं।

अब्दुल्ला परिवार का सत्ता मेें एक सुर होता है और इससे बाहर अलग। फारुख का अलगाववादियों से कहना है कि ‘आप हमें दुश्मन न समझे, हम भी आजादी के समर्थक हैं। हम तब तक आजाद नहीं हो सकते, जब तक एक जुट नहीं होते।’ यह कौन सी ‘आजादी’ की बात कर रहे हैं फारुख साहिब? हैरानी है कि कभी इस शख्स को ‘रा’ के पूर्व प्रमुख ए.एस. दुल्लत ने ‘सबसे देशभक्त कश्मीरी कहा था।’ वह कभी इन अलगाववादियों को जेहलम में फैंकने की बात कह चुके हैं।

महबूबा मुफ्ती बुरहान वानी के परिवार की वित्तीय सहायता करना चाहती है जिसका सेना तीखा विरोध कर रही है। प्रयास वही है कि अलगाववादी राय को संतुष्ट रखा जाए। फारुख ने तो श्रीनगर की एक पत्रिका में लिखा है कि उनके पिता शेख अब्दुल्ला यह देख कर खुश होते कि कश्मीरी नौजवानों ने आजादी की अपनी मांग के लिए बंदूक उठा ली है।

कश्मीर में भारत के खिलाफ जेहाद की तैयारी हो रही है। वह एक आजाद सार्वभौम इस्लामिक राज्य चाहते हैं। पूर्ण बहुमत प्राप्त केन्द्र सरकार को झुकना नहीं चाहिए। विस्थापित कश्मीरी हिन्दुओं के प्रतिनिधि तथा लेखक सुशील पंडित ने चेतावनी दी है कि ‘कश्मीरी भारत से प्रति क्षण दूर खिसकता जा रहा है।’ इस क्रिया पर तत्काल रोक लगानी चाहिए और शुरूआत इन शरणार्थियों को पूर्ण अधिकार देने तथा कश्मीरी हिन्दुओं की सम्मानजनक वापिसी से होना चाहिए चाहे कश्मीरी नेता इसका कितना भी विरोध करें। वहां विरोध पहले भी हम झेल चुके हैं, आगे भी झेल लेंगे। पर कश्मीर को मिनी पाकिस्तान बनने से बचाना है।

VN:F [1.9.22_1171]
Rating: 10.0/10 (2 votes cast)
VN:F [1.9.22_1171]
Rating: +1 (from 1 vote)
कश्मीर छोटा पाकिस्तान बन रहा है (Kashmir Becoming Mini Pakistan), 10.0 out of 10 based on 2 ratings
About Chander Mohan 732 Articles
Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.