मनमोहन सिंह का रेनकोट (Manmohan Singh’s Raincoat)

अमेरिका के 33वें राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन ने कहा था कि अगर आप ताप नहीं सह सकते तो रसोई में कदम मत रखो। अर्थात् अगर आप राजनीति में हैं तो आलोचना और यहां तक कि अपशब्द भी सहने की ताकत आप में होनी चाहिए। कुछ ऐसी ही बात पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने भी कही थी कि राजनीति में मोटी चमड़ी चाहिए और गालियां तक सहने को तैयार रहना चाहिए। इसलिए प्रधानमंत्री मोदी की पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर की गई टिप्पणी पर कांग्रेस का बवाल समझ नहीं आता।

अपने प्रतिद्वंद्वियों पर हमला सब राजनीतिक दल करते हैं। विदेशों में भी होता है। कई जगह तो हमसे भी अधिक आक्रामकता और निम्न ढंग से होता है। यहां प्रधानमंत्री मोदी को जरूरत से अधिक निशाना बनाया गया है। केजरीवाल उन्हें ‘साईकोपैथ’ अर्थात् मनोरोगी कह चुके हैं। कांग्रेस के नेता उन्हें ‘हिटलर’ सामान्य तौर पर कह चुके हैं। प्रमोद तिवारी ने नोटबंदी पर संसद में कहा था, ‘‘किसी सभ्य देश ने यह नहीं किया। जिसने किया उसका नाम इतिहास में है। पहला गद्दाफी, दूसरा मुसोलिनी, तीसरा हिटलर और चौथा पीएम मोदी।’’

सोनिया गांधी एक बार उन्हें ‘मौत का सौदागर’ कह चुकी हैं। राहुल गांधी सर्जिकल स्ट्राइक के बाद ‘खून की दलाली’ का आरोप लगा चुके हैं। ‘ज़हर की खेती’ की बात कांग्रेस के नेता कर चुके हैं। ममता बैनर्जी देश के प्रधानमंत्री की तुलना तुगलक और हिटलर से कर चुकी हैं। ‘मैं भी हूं’, उद्धव ठाकरे भी तेज हो रहे हैं। पर अगर आप आलोचना कर सकते हो तो जवाब का ताप सहने का मादा भी आप में होना चाहिए।

मामला नोटबंदी को लेकर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की आलोचना से सम्बन्धित है। उन्होंने कहा कि विमुद्रीकरण को जिस तरह लागू किया गया वह ‘ऐतिहासिक कुप्रबंधन’ है और यह ‘संगठित एवं कानूनी लूट’ की मिसाल है। अगर डा. मनमोहन सिंह केवल ‘कुप्रबंधन’ तक ही सीमित रहते तो बात इतनी बिगड़ती नहीं क्योंकि शुरू में कुप्रबंधन की जायज़ शिकायतें थीं लेकिन उन्होंने भी लापरवाही से इसे ‘संगठित एवं कानूनी लूट’ कह दिया। यह बात वैसे भी किसी को समझ नहीं आती कि नोटबंदी में ‘लूट’ कहां है? कुछ बैंक कर्मचारियों के भ्रष्टाचार के अलावा यहां किसी भी स्तर पर न भ्रष्टाचार है न लूट। शुरू में तकलीफ जरूर हुई थी।

डा. मनमोहन सिंह आमतौर पर बहुत सोच समझ कर बात करते हैं फिर ऐसा आरोप कैसे लगा गए जबकि इसका कोई प्रमाण उनके पास नहीं था? वह अनावश्यक उत्तेजना में बह गए। प्रधानमंत्री मोदी ने डा. मनमोहन सिंह का जिक्र करते हुए जवाब दिया कि देश में शायद ही कोई होगा जो पिछले 35 वर्षों से किसी न किसी तरह से आर्थिक निर्णयों से जुड़ा हुआ हो लेकिन हम राजनेता डाक्टर साहिब से सीख सकते हैं कि इतने घोटालों के बावजूद उन पर कोई दाग नहीं है। उसके बाद प्रधानमंत्री की यह टिप्पणी कि ‘बाथरूम में रेनकोट डाल कर नहाना तो कोई इनसे सीखे’, विवादास्पद बन गई।

यह टिप्पणी थी जिसे लेकर कांग्रेस बहिष्कार कर गई। वह माफी की मांग भी कर रहे हैं लेकिन इसकी तो उन्हें उम्मीद ही नहीं करनी चाहिए। राहुल गांधी प्रधानमंत्री की टिप्पणी को ‘शर्मनाक’ बता रहे हैं। उनका कहना है कि मर्यादा भंग हुई है। मर्यादा तो तब भंग हुई थी जब राहुल गांधी ने अपनी सरकार का अध्यादेश उस वक्त फाड़ डाला था जब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह वाशिंगटन में अमेरिका के राष्ट्रपति से मिलने के लिए प्रस्थान करने वाले थे। अफसोस है कि डा. मनमोहन सिंह ने तब इस तुच्छ दखल पर आपत्ति नहीं की।

ठीक है प्रधानमंत्री को पूर्व प्रधानमंत्री पर इस तरह निजी हमला नहीं करना चाहिए था पर पूर्व प्रधानमंत्री को भी ‘संगठित लूट’ जैसा निरर्थक आरोप नहीं लगाना चाहिए था। प्रधानमंत्री मोदी के बारे तो समझ लेना चाहिए कि वह उधार नहीं रखते और लिहाज़ नहीं करते और समय आने पर तगड़ा जवाब देते हैं, किसी को पसंद हो या न हो। वह दूसरी गाल आगे नहीं करेंगे। उन्होंने राहुल गांधी के ‘भूकम्प’ वाली टिप्पणी का भी बराबर जवाब दिया। किसी न किसी दिन केजरीवाल को भी गाली का जवाब मिलेगा। यह प्रधानमंत्री हिसाब बराबर जरूर करेंगे।

चाहे डोनाल्ड ट्रम्प हों या नरेन्द्र मोदी, हम नए किस्म के तीखे राजनेता देख रहे हैं जिन्हें राजनीतिक नखरों की अधिक चिंता नहीं। ऐसे लोग विपरीत परिस्थिति से टक्कर लेकर कामयाब हुए हैं इसलिए बेधड़क हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने तो धक्के के साथ दिल्ली के दरवाजे अपने लिए खोले हैं। नरेन्द्र मोदी अटल बिहारी वाजपेयी नहीं हैं। मोदी को क्या फर्क पड़ता है अगर कांग्रेस उनका बहिष्कार करती है? 45 सांसद क्या बिगाड़ लेंगे?

यह तो मानना पड़ेगा कि मोदी को अपनी बात कहने के लिए किसी से सीख लेने की जरूरत नहीं। वह किसी का लिखा लिखाया या किसी का सुझाया भाषण नहीं देते। हां, यह प्रभाव जरूर मिलता है कि वह हर वक्त चुनावी मूड में रहते हैं। वह लालकिले से पूर्व प्रधानमंत्रियों तथा पूर्व सरकारों की तारीफ जरूर कर चुके हैं। पर यह राजनीति है। कई बार जवाब देना पड़ता है चाहे वह अप्रिय क्यों न लगे।

कई अंग्रेजी के अखबार मोदी की आलोचना करते हुए विलाप कर रहे हैं कि मनमोहन सिंह की ‘डीसेंसी’ अर्थात् भद्रता पर हमला किया गया। लेकिन यह कथित ‘डीसेंसी’ भी देश के किस काम अगर इसकी आड़ में लाखों करोड़ों रुपए की देश को चम्पत लग गई? यह भी दिलचस्प है कि प्रधानमंत्री के कटाक्ष पर सब कांग्रेसी नेता ‘रेनकोट’, ‘रेनकोट’ चिल्ला रहे हैं पर कोई यह नहीं कह रहा है कि उनका आरोप झूठा है और घोटाले नहीं हुए!

एक और अमेरिकी राष्ट्रपति इब्राहिम लिंकन ने कहा था कि ‘जब हमें विरोध करना चाहिए पर हम खामोशी का पाप करते हैं तो आदमी कायर बन जाता है।’ अर्थात् डा. मनमोहन सिंह पर कम से कम कायरता का इल्ज़ाम तो लगता ही है क्योंकि लाखों करोड़ों रुपए के 2जी, कोयला, आगस्ता वैस्टलैंड या राष्ट्रमंडल घोटाले में वह खामोश रहे। चाहे वह व्यक्तिगत तौर पर ईमानदार रहे हों पर देश इस ईमानदारी को चाट नहीं सकता अगर इसके नीचे नापाक राजनीतिक समझौते हुए थे। इतिहास उनसे यह सवाल अवश्य करेगा,

तू इधर उधर की बात न कर, यह बता कि काफिला क्यों लूटा?
मुझे राहजनों से गिला नहीं, तेरी रहबरी का सवाल है।

इसलिए तिलमिलाने की जरूरत नहीं। सवाल जायज़ है कि इस दौरान उन्होंने ऐसा रेनकोट क्यों डाला हुआ था?

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Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.