
नरेन्द्र मोदी और भाजपा की जीत में विपक्ष की बेवकूफियां तथा घिसी पिटी आउटडेटड राजनीति का बड़ा हाथ है। मैंने पहले नरेन्द्र मोदी और फिर भाजपा का नाम इसलिए लिया है क्योंकि भाजपा से अधिक यह नरेन्द्र मोदी की जीत है। मोदी अपने कंधों पर अब पार्टी को उठाए हुए हैं। अगर मणिपुर में भी कमल खिला है तो इसलिए कि कमल मोदी का फूल है। जिन लोगों ने उनकी पार्टी के लिए वोट दिया है उससे अधिक उनकी व्यक्तिगत लोकप्रियता है। जैसे जवाहरलाल नेहरू तथा इंदिरा गांधी की थी क्योंकि दोनों ही कांग्रेस से बड़े थे। लोकप्रियता के साथ जिम्मेवारी भी आती है। विकास का वायदा पूरा करना होगा क्योंकि रुकावट डालने वाला विपक्ष तो रहा नहीं। विशेषतौर पर रोजगार के लिए अधिक करने की जरूरत है। नौकरियों के बिना तेज विकास दर बेमतलब रहेगी।
इसी के साथ हम पुरानी जाति और धर्म पर आधारित राजनीति का अंत देख रहे हैं। जनता ने जाली सैक्युलरिज़्म तथा अल्पसंख्यक तुष्टिकरण को रद्द करते हुए विकास की मोदी की नई गाथा पर मोहर लगा दी। उसने इस बात को भी रद्द कर दिया कि बहुसंख्यकों की बात करना धर्मनिरपेक्षता का अपमान है। जनता का यह संदेश भी है कि वह उनके साथ है जो राष्ट्रवाद की बात करते हैं। दिल्ली का मीडिया, जो मोदी नफरत से भरपूर है, देश की राजनीति में इतने जबरदस्त बदलाव को समझ नहीं सका।
भाजपा की आलोचना हुई है कि उसने मुसलमानों को टिकट नहीं दिया लेकिन अगर उत्तर प्रदेश में इतनी बम्पर जीत मिली है तो इसलिए कि मुसलमानों ने भी भाजपा को वोट डाले हैं। लखनऊ के ठाकुरगंज में मुठभेड़ में मारे गए सैफुल्लाह के वालिद तो उस ‘गद्दार’ का शव वापिस लेने से इन्कार कर रहे हैं पर कई लोग हैं जो इसे ‘बाटला हाउस जैसी नकली मुठभेड़’ बता रहे हैं। सैफुल्लाह के पिता मुहम्मद सरताज ने देश को नई राह दिखाई है। जो कथित उदारवादी राष्ट्रवाद और राष्ट्रभक्ति को दकियानूसी समझते रहे उन्हें मुहम्मद सरताज के विचारों के बाद शर्मिन्दा महसूस करना चाहिए।
जो लोग कन्हैया कुमार या उमर खालिद जैसों को भी सिर पर उठाते रहते हैं उन्हें भी समझना चाहिए कि इसकी प्रतिक्रिया हो रही है। आखिर राहुल गांधी उस रात जेएनयू क्या करने गए थे? क्या यह सोचा भी जा सकता है कि जवाहरलाल नेहरू या इंदिरा गांधी ऐसी मूर्खता करते? राष्ट्रवाद का जज्बा जीवित है। यह देश को जोड़ता है। जेएनयू के बाद विपक्ष ने यह सारा भावनात्मक क्षेत्र भाजपा के लिए छोड़ दिया।
पंजाब में भी आप मारी गई तो इसलिए कि अरविंद केजरीवाल ने सिख उग्रवादियों के साथ इश्कबाज़ी शुरू कर दी थी। जब यह खबर बाहर आई कि अरविंद केजरीवाल ने दो रातें मोगा में खालिस्तान कमांडो फोर्स के पूर्व मुखी के घर बितायी हैं तो चंद घंटों में सारे शहर पलट गए। और इस शेखचिल्ली ने कैसे समझ लिया कि सिख भी उग्रवाद को पसंद करते हैं? पंजाब बादलों से बदलाव चाहता है लेकिन उग्रवादी विकल्प नहीं हो सकते।
आज विपक्ष अस्त व्यस्त है। न नेता है और न ही कोई विचारधारा ही रही। मायावती अपनी जगह विलाप कर रही हैं क्योंकि सपा की ही तरह उन्होंने भी वोट बैंक की राजनीति की है जबकि दलित नरेन्द्र मोदी ले भागे। लेकिन मंडल के 25 वर्ष के बाद अब नया भारत उभर रहा है जिसे नरेन्द्र मोदी पहचान गए हैं। न ही मुस्लिम मतों के लिए मारामारी से ही कुछ मिलने वाला है। मुसलमान भी समझते हैं कि उन्हें अलग डिब्बे में बंद कर इन कथित सैक्युलर पार्टियों ने उनका अहित किया है। अगर आज भी मुसलमान पिछड़े हैं, कटे हुए हैं, जैसे सच्चर कमेटी की रिपोर्ट स्पष्ट कर गई है, तो जिम्मेवारी भी उनकी ही है जो दशकों से उन्हें वोट बैंक ही समझते रहे हैं। जो टोपी डाल कर खुद को सैक्युलर तथा मुसलमान हितैषी प्रस्तुत करते रहे उन्हें बढ़िया सबक दिया गया है।
यह विपक्ष का नैतिक दिवालियापन है जिसने देश में मोदी लहर बनाने में बड़ा योगदान डाला है। सामाजिक न्याय के बहाने जातिवाद परोसा गया। अमर्त्य सेन जैसे लिबरल भी न देश को समझ सके न मोदी की ताकत को। देश में परिवार की राजनीति भी खत्म हो रही है। गांधी परिवार, मुलायम सिंह परिवार और बादल परिवार का जो हश्र हुआ है उसमें भी बड़ा सबक छिपा हुआ है। नई पीढ़ी को पुराने परिवारों से कोई वफादारी नहीं रही। वह दिन लद गए जब कहा जाता था कि कांग्रेस को वोट दो क्योंकि घोड़े पर चढ़ कर नेहरूजी इधर से गुजरे थे! अमेठी और रायबरेली के 10 विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा 6 पर विजयी रही है। राहुल गांधी के अमेठी चुनाव क्षेत्र में कांग्रेस को एक सीट भी नहीं मिली।
लेकिन असली कहानी नरेंद्र मोदी और उनकी जीत की है। आज वह ऐसे नेता बन गए हैं कि जिनकी पार्टी के अंदर और बाहर कोई बराबरी नहीं। ममता, केजरीवाल, राहुल गांधी, नीतीश आदि मिलकर भी उनके बराबर नहीं पहुंचते। वह देश के सबसे विश्वसनीय नेता हैं। जिस नोटबंदी की विपक्ष आलोचना करता रहा उसके द्वारा उन्होंने देश तथा अपनी पार्टी का स्वरूप ही बदल दिया। भाजपा व्यापारियों की बनिया पार्टी नहीं रही उन्होंने ग्रामीण गरीबों और विशेषतौर पर दलितों को साथ जोड़ लिया है। इसी के साथ 2019 का रास्ता साफ हो गया। जब नरेन्द्र मोदी 2022 तक भारत को बदलने की बात कहते हैं तो विपक्ष में तो आपत्ति करने का भी दम नहीं रहा। वह पूरी तरह मूर्छित है।
देश में मोदी ब्रांड पक्का हो रहा है। गोवा भी एक सबक है कि अगर अनाड़ी मुख्तार को सत्ता सौंपी जाएगी तो लोगों की नाराजगी झेलनी पड़ेगी।
आज नरेंद्र मोदी की वही स्थिति है जो कभी जवाहरलाल नेहरू की थी और इंदिरा गांधी की थी। न नेहरू और न ही इंदिरा गांधी ही बहुत अच्छा आर्थिक प्रदर्शन कर सके थे दोनों समाजवाद की विचारधारा में फंस गए थे लेकिन उनके व्यक्तित्व का जादू उनकी पार्टी को धकेलता गया। उनकी विश्वसनीयता थी। करिश्मा था। लोगों के साथ उनका संवाद था। वह पूर्ण बहुमत लाने की क्षमता रखते थे। यही जादू अब नरेंद्र प्रदर्शित कर रहे हैं। अटलजी को भी पूर्ण बहुमत प्राप्त नहीं था।
कुछ लोग इसे भारत का ‘इंदिरा गांधी क्षण’ कह रहे हैं लेकिन मेरा मानना है कि मोदी इंदिरा गांधी से आगे निकल गए हैं क्योंकि वह देश बदलने की उस तरह कोशिश कर रहे हैं जिस तरह इंदिरा ने नहीं की थी। दोनों नेहरू और इंदिरा ‘स्टेटस क्यू’ अर्थात यथा स्थिति में विश्वास रखते थे जबकि नोटबंदी जैसा जोखिम भरा निर्णय लेकर नरेंद्र मोदी बता गए हैं कि वह देश बदलना चाहते हैं और इसके लिए जोखिम उठाने का उनमें दम है।
जवाहरलाल, इंदिरा और मोदी ( Jawaharlal, Indira and Modi),