कैनेडा के रक्षामंत्री हरजीत सिंह सज्जन ने पंजाब के मुख्यमंत्री अमरेंद्र सिंह के इस आरोप का जवाब नहीं दिया कि वह खालिस्तानी समर्थक हैं। कैनेडा की सरकार ने अवश्य अमरेंद्र सिंह के बयान को ‘निराशाजनक’ कहा है जबकि सज्जन का कहना है कि उनका सारा ध्यान भारत तथा कैनेडा के रिश्तों को मज़बूत करने पर ही लगेगा। लेकिन उल्लेखनीय है कि वहां खालिस्तान समर्थकों पर रोक लगाने का कैनेडा की सरकार ने कभी प्रयास नहीं किया।
लेकिन उनकी यात्रा विवाद में तो आ गई है क्योंकि अमरेंद्र सिंह ने सज्जन की पंजाब यात्रा के दौरान उनसे मिलने से इंकार कर दिया है। पंजाब में आमतौर से यह परम्परा रही है कि जो पंजाबी मूल के बड़े लोग अमेरिका या कैनेडा से आते हैं उनका यहां खूब सत्कार किया जाता है। वाईन एंड डाईन में कोई कसर नहीं छोड़ी जाती। बादल सरकार तो मालामाल एनआरआई के आगे-पीछे पुलिस एस्कार्ट भी लगा देती थी।
लेकिन सज्जन अलग श्रेणी में आते हैं। वह पंजाबी होने के बावजूद कैनेडा में रक्षामंत्री बने हैं। हमारे लिए तो यह गर्व का विषय होना चाहिए लेकिन उनका अतीत ऐसा है कि अमरेंद्र सिंह का समर्थन किए बिना नहीं रहा जा सकता। सज्जन तथा उनके पिता का संबंध वलर्ड सिख आरगनाईजेशन के साथ रहा है जो सिख उग्रवाद का समर्थन करती रही है।
जब 2014 में कैनेडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की पार्टी ने सज्जन को टिकट दिया था तब ब्रिटिश कोलम्बिया में 4000 के करीब लिबरल पार्टी के सदस्य पार्टी को छोड़ गए थे कि वलर्ड सिख आरगनाईजेशन ट्रूडो को गलत दिशा में धकेल रही है। उनका आरोप था कि पार्टी उग्रवादियों तथा आतंकवाद समर्थकों को बढ़ावा दे रही है।
कई पश्चिमी देश हैं जो अपने यहां तो उग्रवादी विचारों को बर्दाश्त नहीं करते पर दूसरे देशों के उग्रवादियों को पनाह देते हैं। इंग्लैंड और कैनेडा इनमें प्रमुख हैं। इंग्लैंड ने तो अब इसकी कीमत चुकानी भी शुरू कर दी है। कैनेडा में खुलेआम खालिस्तान का प्रचार किया जाता है। कई गुरुद्वारे हैं जो इन खालिस्तानियों के हाथ हैं। क्या हरजीत सिंह सज्जन अपने देश में भारत विरोधी इन गतिविधियों के बारे अपना स्टैंड स्पष्ट करेंगे? वह तो यह भी बताने को तैयार नहीं कि खालिस्तान के बारे उनका विचार क्या है?
हमें कैप्टन अमरेंद्र सिंह का आभार व्यक्त करना चाहिए कि अब इन तत्वों को स्पष्ट हो गया है कि इस शरारत की कीमत भी चुकानी पड़ सकती है। इनमें से अधिकतर वह है जो देश को छोड़ गए हैं। वापिस यहां बसना नहीं। जब यहां आते हैं तो हर बात पर नाक चढ़ा लेते हैं पर हमारे मामले में दखल देना अपना अधिकार समझते हैं। वहां बहुत ऐसे लोग हैं जिनका शुगल गर्म विचार वालों का समर्थन करना है। यह अब भौचक्के रह गए हैं कि पंजाब के किसी नेता ने उनसे सवाल करने की जुर्रत दिखाई है।
इन गर्म ख्यालियों की पंजाब में जरूरत से अधिक दखल है। इस चुनाव में इन्होंने आम आदमी पार्टी के रास्ते घुसपैठ करने का प्रयास किया था। वह यहां ‘क्रान्ति’ लाना चाहते थे। हर प्रकार की मदद की गई। विदेशों में गुरुद्वारों में आप का खूब प्रचार किया गया पर इनका समर्थन आप को भी ले बैठा। समझदार पंजाबी और विशेषतौर पर हिन्दू आप के खिलाफ हो गए। आप की मदद के लिए विदेशों से जहाज भर भर के यहां आए। लेकिन पंजाब की जनता ने इनकी दखल को रद्द कर दिया। अब केजरीवाल के पास जवाब नहीं कि वह उग्रवादियों के बल पर चुनाव क्यों लड़ रहे थे?
अच्छी बात है कि इन एनआरआई को अपनी सीमा का आभास हो गया है। पंजाब में अब पूर्ण अमन-चैन है। खालिस्तान का कोई मुद्दा नहीं इसलिए हैरानी है कि विदेश में कई तत्व इसे जीवित रखे हुए हैं। सज्जन भी खुदा को ‘प्राऊड कैनेडियन’, अर्थात गर्वित कैनेडावासी कहते हैं। अच्छी बात है। उस देश ने आप को रक्षामंत्री बनाया है। आपको उनके प्रति वफादार होना चाहिए। लेकिन हमें अपने हाल पर छोड़ दीजिए। आप जैसे लोग यहां नकारात्मक दखल क्यों करतें हैं? उन लोगों को समर्थन क्यों हैं, जो पाकिस्तान के इशारे पर हमारे लिए समस्या खड़ी करना चाहता है?
आप कैनेडा की आजीवन सेवा करना चाहते हैं, जैसे आपने कहा, तो यह आपको मुबारिक है पर हमारे यहां सब कुशल मंगल है। आप जैसों की सेवा की जरूरत नहीं। थैंक यू! न्यूटन से सांसद सुख धालीवाल का कहना है कि पंजाब के मुख्यमंत्री के अटपटे बयान से सब विचलित हैं। आप जरूर विचलित होंगे, पर हम तो स्तुंष्ट हैं कि अमरेंद्र सिंह ने लक्ष्मण रेखा दिखा दी।
उधर कश्मीर की हालत चिंताजनक बनी हुई है। उप चुनावों में बहुत कम मतदान हुआ है और दो वीडियो के कारण और अस्थिरता पैदा हो गई है। एक वीडियो है जिसमें कुछ लोग ड्यूटी पर जा रहे सीआरपीएफ के जवानों को गालियां दे रहे हैं और उनके साथ हाथापाई कर रहे हैं। लात तक मारी गई। दूसरा वीडियो है कि पत्थरबाजों को सबक सिखाने के लिए सेना ने अपनी जीप के आगे एक पत्थरबाज को बांध रखा है।
जहां तक पहले वीडियो का सवाल है, यह हमारे जवानों का धैर्य और निष्ठा का बड़ा सबूत है कि इतनी बड़ी उत्तेजना के बावजूद उन्होंने आपा नहीं खोया और गोली नहीं चलाई। मगर और कोई सेना होती तो वहीं जवाब मिल जाता। लेकिन याद रखना चाहिए कि सैनिक का अपमान देश का अपमान है। जहां तक दूसरे वीडियो का सवाल है, निश्चित तौर पर यह सामान्य नहीं है पर कश्मीर में हालात भी तो सामान्य नहीं। हमारे जवानों को एक प्रकार से पीछे हाथ बांध कर युद्ध क्षेत्र में भेज दिया गया है। इसलिए उन्हें स्थिति से निबटने के लिए नए-नए तरीके ईजाद करने पड़ते हैं।
कश्मीरी नेता फिर शरारत में लगे हैं। फारुख अब्दुल्ला का कहना है कि पत्थरबाज अपने ‘वतन’ के लिए लड़ रहे हैं। श्रीनगर से चुनाव जीतने के बाद फारुख अब्दुल्ला का कहना था कि ‘‘इतिहास में यह सबसे बुरा चुनाव था।’’ अगर उन्हें खुद अपने चुनाव के खरेपन पर शक है तो वह इस्तीफा क्यों नहीं दे देते? उन्हें तो एक दिन सांसद नहीं बने रहना चाहिए।
हमारे जवान भारी उत्तेजना का बीच बहुत विपरीत परिस्थिति में काम कर रहे हैं। एक तरफ पाकिस्तान की शरारत बढ़ रही है। कुलभूषण जाधव को मौत की सजा सुनाकर पाकिस्तान ने टकराव का स्तर बहुत ऊंचा कर दिया है। तो दूसरी तरफ राजनीतिक वर्ग सुरक्षा बलों की मदद नहीं कर रहा। हालत यह बन चुकी है कि वहां उपर से नीचे तक अलगाववादियों तथा पाक समर्थकों का नैटवर्क बन चुका है। महबूबा सरकार अशक्त है। लोगों का विश्वास खो बैठी है। केन्द्र की सीधी राजनीतिक तथा प्रशासनिक दखल की जरूरत है। अगर सरकार से स्थिति नियंत्रण में नहीं आती तो गर्वनर शासन लगा देना चाहिए।
वह हमारा सज्जन नहीं (He Not Our 'Sajjan'),