फरवरी 1999 में अपनी लाहौर बस यात्रा के दौरान वहां के गवर्नर हाऊस में दिए गए अपने यादगारी भाषण में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था, ‘‘आप दोस्त बदल सकते हैं पड़ोसी नहीं। इतिहास बदल सकते हैं भूगोल नहीं।’’ इस घटना को 18 वर्ष हो गए। सोमवार की घटना जब हमारे दो जवानों के शव क्षत-विक्षत किए गए और उनके सिर काट कर हमें लौटा दिए, से एक बार फिर सिद्ध होता है कि भारत के भरसक प्रयास के बावजूद हमारा पड़ोसी नहीं बदलेगा। वह गुंडा असभ्य देश था, और ऐसा ही रहेगा।
रक्षामंत्री अरुण जेतली की शिकायत है कि सभ्य देश ऐसा नहीं करते लेकिन पाकिस्तान ‘सभ्य देश’ कब था? याद रखिए कि किस तरह कारगिल युद्ध में पकड़े गए कप्तान सौरभ कालिया को बर्बरता तथा अमानवीय तरीके से मारा गया था। आज उनके पिता एन.के. कालिया कह रहे हैं कि मैं देश को अपील करता हूं कि पाकिस्तान को ‘दुश्मन’ स्वीकार किया जाए।
पिछले छ: महीनों में तीन बार ऐसा हो चुका है कि जब जवानों के क्षत-विक्षत शव हमें लौटाए गए हैं। पहले एक वीडियो सामने आ चुका है जहां भारतीय जवान के कटे सर के साथ वहां फुटबाल खेलते दिखाया गया है। ऐसा किसी अमानवीय कबाईली मानसिकता वाली असभ्य कौम के प्रतिनिधि ही कर सकते हैं। याद रखिए कि जब कारगिल युद्ध के बाद पाकिस्तान अपने सैनिकों के शव चोटियों पर छोड़ भाग गया था तो भारतीय सेना ने उन्हें दफनाया था।
इससे पहले हम कुलभूषण जाधव का किस्सा देख कर हटे हैं जिसका ईरान में चाबहार से अपहरण कर उसे भारतीय जासूस दिखा कर उसे पाकिस्तान की सैनिक अदालत ने मौत की सजा सुना दी। एक दर्जन से अधिक बार मंगाने के बावजूद हमें कोई सबूत नहीं दिया गया। न उसे मिलने ही दिया गया। अपनी सैनेट में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के विदेशी मामलों के सलाहकार सरताज अजीज मान चुके हैं कि जाधव मामले में उनके पास अभी तक अपर्याप्त सबूत ही हैं।
अगर वह सचमुच अपराधी है तो कम से कम पाकिस्तान के अपने मीडिया को तो बताया जाए। और अगर जासूसी की भी है तो भी जासूस को मौत की सजा कब दी जाती है? हर दूतावास में जासूस भरे हुए हैं। इसे जायज़ गतिविधि समझा जाता है।
पाकिस्तान की नीति को कभी भी समझना एक चुनौती से कम नहीं क्योंकि वहां सत्ता के कई केन्द्र हैं। सरकार, सेना और जेहादी अपनी-अपनी नीति पर चलते हैं। जहां तक भारत का सवाल है सेना तथा जेहादी अधिकतर मिल कर काम करते हैं। संभावना यह है कि भारतीय सीमा के 250 मीटर अंदर यह करतूत भी सेना ने लश्कर के आतंकियों के साथ मिलकर की है।
पाकिस्तान इस समय ऐसी उत्तेजना क्यों दे रहा है? इसके कई कारण नजऱ आते हैं। एक, वह कश्मीर में स्थिति को उबलता रखना चाहते हैं। ऐसी घटनाएं कर वहां अपने समर्थकों को संदेश दिया जा रहा है कि पाकिस्तान उनके साथ है और भारत को घेरने के प्रयास हो रहे हैं। सोमवार को ही जम्मू-कश्मीर पुलिस के 5 जवान तथा दो बैंक गार्ड मार दिए गए हैं। यह सब एक ही योजना का हिस्सा है कि कश्मीर को अस्थिर रखो ताकि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी मामला उठाया जा सके।
दूसरा, एक बार फिर पाक की सेना अपनी सरकार को संदेश भेज रही है कि जहां तक भारत का सवाल है, नीति हम तय करेंगे। यह दरिंदगी उस वक्त घटी है जब चर्चा थी कि दोनों देशों के बीच ट्रैक टू वार्ता चल रही है तथा दोनों देशों के प्रधानमंत्री जून में कज़ाकिस्तान में एससीओ शिखर सम्मेलन में मिल सकते हैं।
कराची के अखबार डॉन ने अपने सम्पादकीय में नवाज द्वारा भारत के साथ सहयोग के प्रयासों के बारे लिखा है कि ‘‘अगर पीएम का नजरिया सही है तो इसे लागू करने की रणनीति गायब नजऱ आती है। चार साल से मिस्टर शरीफ यह ही संदेश दे रहे हैं… लेकिन न वह भारत को कायल कर सके और न ही अपनी सुरक्षा व्यवस्था के उग्रवादियों को।’’ यह बात बिल्कुल सही है। नवाज शरीफ के पल्ले कुछ नहीं। वह किसी मर्ज़ की दवा नहीं। पनामा पेपर्स घोटाले के बाद वह और भी कमजोर हो गए हैं। भारत-पाक रिश्तों की हकीकत है कि यह तब सुधरे थे जब वहां सैनिक तानाशाह, जिय़ा उल हक या परवेज मुशर्रफ, सत्तारुढ़ थे।
पाकिस्तान के इतना दबंग होने का तीसरा एक बड़ा चीन का समर्थन है। चीन पाकिस्तान के अंदर आर्थिक गलियारे पर 50 अरब डॉलर खर्च रहा है। इसे सफल करने के लिए उसे दोनों सेना तथा जेहादियों की जरूरत है। इस वक्त तो पाक सेना समझती है कि चीन को गलियारे के कारण तथा अमेरिका को अफगानिस्तान के कारण उनके सहयोग की जरूरत है। इसलिए वह कुछ भी कर सकते हैं।
लेकिन इसका सबसे बड़ा कारण खुद भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी है। पाकिस्तान कश्मीर के अंदर गड़बड़ करवा और अब जवानों के सर काट कर नरेन्द्र मोदी को नीचा दिखाने की कोशिश कर रहे हैं कि अपनी 56 इंच की छाती हमारा कुछ बिगाड़ नहीं सकती। अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञ माईकल कुगलमैन ने भी लिखा है कि ‘पाकिस्तान भारत को सख्त संदेश भेज रहा है।’
यह टिप्पणी कुलभूषण जाधव की गिरफ्तारी के बाद की गई थी। पहले धमकी दी गई पर अब सीधी चुनौती दी जा रही है। भारत के प्रधानमंत्री की स्थिति असुखद की जा रही है। भारत-पाक रिश्ते अब वैंटीलेटर पर लगते हैं। चुनौती सीधी नरेंद्र मोदी को है कि आप जितने मर्जी सर्जिकल स्ट्राईक कर लो हम नहीं सुधरेंगे। यह हमारी नीति की असफलता है कि दक्षिण एशिया में सबसे बड़ी ताकत होने के बावजूद हम इस असफल आतंकी देश को संभाल नहीं सके। ठीक है सेना ने तत्काल प्रतिक्रिया की है। सैनिक कमांडरों को सरकार ने पूरी छूट दी है। अक्तूबर में कुपवाड़ा में सिपाही मंदीप सिंह के शव के साथ दुर्व्यवहार के बाद भी भारत ने उनकी चौकियों को तबाह करने के लिए बोफोर्स तोप इस्तेमाल की थी।
पूर्व विदेश सचिव एम.के. रसगोत्रा याद करते हैं कि उन्होंने जिया उल हक को इंदिरा गांधी का यह संदेश दिया था कि अगर पाकिस्तान भारत के विमानों का अपहरण बंद नहीं करता तो भारत भी ऐसा ही करेगा। उसके बाद यह अपहरण बंद हो गए। लेकिन तब से लेकर अब तक स्थिति बहुत बदल चुकी है। पाकिस्तान के पास परमाणु हथियार हैं और उसे चीन की पूरी मदद है। इसलिए बेपरवाह है।
पूर्व थलेसेनाध्यक्ष जनरल वीपी मलिक ने कहा है कि ‘‘समय आ गया है कि सारा देश यह समझे कि हम युद्ध में हैं। इसे अघोषित युद्ध कहा जाए या कुछ और पर यह बहुत लम्बे समय से चल रहा है’’
जनरल मलिक की बात बिल्कुल सही है। हमारी पाक नीति कलाबाजिय़ां खाती रही है। कभी हम बस में लाहौर जाते हैं तो कभी हम नवाज शरीफ के पारिवारिक समारोह में शामिल होते हैं। हर भारतीय प्रधानमंत्री कोशिश कर हार चुका है। अब फिर गुंडा पड़ोसी ने एक और प्रधानमंत्री को चुनौती दी है। देश की नजऱें अब नरेंद्र मोदी पर है क्योंकि अभी तक इस सरकार की अगर कोई असफलता है तो यह आंतरिक सुरक्षा तथा पाकिस्तान के बारे है। वहां पूंछ सीधी नहीं हो रही। कोसने की नहीं सबक सिखाने की जरूरत है।
हम और हमारा गुंडा पड़ोसी (We And Our Rogue Neighbour),