पूर्व मंत्री कपिल मिश्रा के आरोपों से आप लड़खड़ा गई है। चारों तरफ अफरातफरी का माहौल है। कपिल मिश्रा का आरोप है कि उनके सामने सत्येन्द्र जैन ने केजरीवाल को 2 करोड़ रुपए दिए थे। मुख्यमंत्री के एक रिश्तेदार के लिए 50 करोड़ रुपए का सौदा किया गया था। लेकिन उल्लेखनीय है कि कपिल मिश्रा ने अपने आरोपों का कोई सबूत अभी तक सार्वजनिक नहीं किया। मिश्रा का यह भी आरोप है कि पंजाब चुनाव में शराब, पैसे तथा लड़कियों का इस्तेमाल किया गया लेकिन यहां भी कोई सबूत नहीं दिया गया। लेकिन यह परिपाटी तो खुद केजरीवाल ने कायम की थी। वह भी बिना सबूत के आरोप लगाने में माहिर हैं। ‘मैंने सुना है’, ‘मुझे बताया गया’, ‘पीएमओ से किसी ने सूचना दी’, ‘कोई मुझे मिलने आया था’, के आधार पर वह दुनिया भर पर आरोप लगा चुके हैं। औरों के इलावा प्रधानमंत्री तथा वित्त मंत्री तक का इस्तीफा मांग चुके हैं। आज वही कड़वी दवा उन्हें पिलाई जा रही है, इसलिए छटपटा रहे हैं। दूसरों पर आरोप लगा लगाकर केजरीवाल ने अपना राजनीतिक कैरियर खड़ा किया था। दूसरों से कहा गया कि वह अपनी बेकसूरी का सबूत दें। आज अगर उनसे उनकी बेकसूरी का सबूत मांगा जा रहा है तो यह गलत भी नहीं है। आरोपों पर आधारित अपनी राजनीति के वह खुद शिकार हो गए।
अरविंद केजरीवाल को किसी समय वैकल्पिक स्वच्छ राजनीति का योद्धा समझा जाता था लेकिन केजरीवाल ने दो सालों में सब कुछ गंवा दिया। इसका बड़ा कारण यह है कि उन्होंने छोटी सी दिल्ली में मिली जीत को अखिल भारतीय स्तर पर अपनी लोकप्रियता का प्रमाण समझ लिया। समझ लिया कि जैसे देश लाल गलीचा बिछा कर उनके इंतजार में है। मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने खुद कहा था, ‘‘दोस्तो जब ऐसी जीत मिलती है तो अहंकार दाखिल हो सकता है। और अगर आप अहंकारी बन गए तो सब कुछ तबाह हो जाता है।’’ पर यही खुद केजरीवाल के साथ हुआ। वह इतने अहंकारी बन गए कि खुद को प्रधानमंत्री के बराबर समझने लगे। लेकिन जैसे कहा गया है,
हो जाता है जिन पे अंदाज़े खुदाई पैदा
हमने देखा है वह बुत्त तोड़ दिए जाते हैं
यही हाल आज अरविंद केजरीवाल का हो रहा है। उनका बुत्त तोड़ा जा रहा है। इसमें उनका अपना योगदान बहुत है। पंजाब वह उस दिन हार गए जिस दिन उन्होंने एक पूर्व मिलिटैंट के घर रहने का फैसला किया। गोवा में उनका आधार ही नहीं था फिर पंगा क्यों लिया? और दिल्ली के एमसीडी चुनाव से पहले दिल्ली के लोगों को उन्होंने धमकी दे दी कि अगर आप को वोट नहीं दिया तो उनके बच्चों को डेंगू या चिकनगुण्या हो सकता है। क्या इस शख्स ने अकल से खुद को डिलिंक कर लिया है? फिर कह दिया कि ‘‘यह आंदोलन पवित्र है…. इस आंदोलन को धोखा दिया तो समझना भगवान को धोखा दिया… पार्टी को अगर छोड़ कर गए तो कभी सुखी नहीं रहोगे!’’
यह कैसी मूर्खता है? क्या यह आदमी अपने होशो हवास खो बैठा है कि खुद को भगवान का प्रतिनिधि समझने लगा है?
लोगों का ध्यान आकर्षित करने के उनके प्रयास को मैं सदैव जाली समझता रहा हूं। रात को धरना देना, फुटपाथ पर सोना, मफलर-चप्पल-वैगन ऑर सब ड्रामा था। मैं सदा से इनके खिलाफ लिखता आया हूं। मुझे गालियां भी बहुत पड़ी। पूछा गया कि मैंने नरेंद्र मोदी/सुखबीर बादल से कितना पैसा लिया है? लेकिन मेरा असली मोह भंग उस दिन हुआ जब अरविंद ने देश के प्रधानमंत्री को ‘साईकोपैथ’ अर्थात मनरोगी कह दिया। यह बदतमीज़ी काबिले बर्दाश्त नहीं है। लेकिन अब जिस तरह वह दिल्ली के बच्चों को डेंगू या चिकनगुण्या होने की धमकी दे रहे थे, और वोटर को भगवान का डर दिखा रहे थे इससे तो लगता है कि केजरीवाल को खुद मनोरोग की चिकित्सा की तत्काल जरूरत है। मानसिक संतुलन गड़बड़ है। आखिर कौन सामान्य नेता अपनी करारी हार के लिए ईवीएम को दोषी ठहरा सकता है? चुनाव आयोग हमारी चंद संस्थाओं में से है जिस पर लोगों को भरोसा है। वह हमारी व्यवस्था का एक प्रकार से महात्मा गांधी है पर चुनाव आयोग पर भी आदत के अनुसार केजरीवाल ने कीचड़ उछाल दिया। पर यह कीचड़ खुद पर आकर चिपक गया क्योंकि आप के नेता भी मानते हैं कि लोगों का फतवा उनके खिलाफ गया है, ईवीएम नहीं।
लेकिन ऐसे अरविंद केजरीवाल हैं, उन्होंने नकारात्मक राजनीति को कला में परिवर्तित कर लिया। चारों तरफ मोर्चा खोल लिया है लेकिन सही कहा गया है कि
तमाम शहर गुनहगार है मगर ए मौज
सभी के वास्ते पत्थर कहां से लाओगे?
सब कुछ गवाने के बाद कुछ अकल आ रही लगती है लेकिन यह अवस्था कितने दिन जारी रहेगी कोई नहीं कह सकता। एमसीडी की पराजय तो और भी कष्टदायक रही होगी क्योंकि सारा दिल्ली जानता है कि दिल्ली की एमसीडी सबसे बिकाऊ, भ्रष्ट और अक्षम संस्था है। दिल्ली को गंदा बीमारी का घर बना दिया गया है। भाजपा ने दस साल वहां अत्यन्त गंदा शासन दिया है पर भाजपा फिर जीत गई और अरविंद केजरीवाल विलाप ही करते रहे।
योगेन्द्र यादव, जिन्हें प्रशांत भूषण के साथ पार्टी से बाहर निकाल कर केजरीवाल ने अत्यन्त भारी अहित किया है, का कहना है कि ‘‘आप को खत्म करने की जंग चली हुई है पर वह सफल नहीं होंगे क्योंकि आप का नेतृत्व खुद को खत्म करने की मुद्रा में है।’’ सही बात है कि नकारात्मक राजनीतिक कर आप का नेतृत्व हाराकारी करने पर तुला हुआ है। अन्ना हजारे के आंदोलन से निकली आप अब तीन-चार लोगों के हाथों में सिमट गई है। केजरीवाल उसी तरह सुप्रीमो बन बैठे हैं जैसे ममता है या जयललिता थीं। आदर्श गायब हो गए। अब इस घटिया पिक्चर के निर्माता, निर्देशक, एक्टर, एक्ट्रस, स्पॉट ब्वॉय सब केजरीवाल ही हैं।
अगर पार्टी को बचाना है तो केजरीवाल को एक बार फिर वहां आंतरिक लोकतंत्र स्थापित करना होगा। उन्हें एक पद से इस्तीफा देना होगा। दूसरा, प्रधानमंत्री बनने की महत्वकांक्षा इस छुटभैय्या को अब त्याग देनी चाहिए। दिल्ली के पैसे पर अपनी राष्ट्रीय महत्वकांक्षा को बढ़ावा देना बईमानी है। दिल्ली की जनता से तो यह भी आशा की जा रही है कि वह मुख्यमंत्री के निजी मानहानि के मामलों का बिल भी चुकाएगी। निरन्तर विलाप करने की जगह उन्हें दिल्ली की समस्याओं का समाधान निकालना चाहिए।
सबसे जरूरी है कि उन्हें हकीकत समझनी चाहिए कि वह छोटी सी दिल्ली के सीएम हैं जो उनके खिलाफ फतवा देकर हटी है वह नरेंद्र मोदी और भाजपा की बराबरी नहीं कर सकते। और उन्हें समझना चाहिए कि उनकी स्थिति डांवाडोल है। पंजाब में भगवंत मान को कमान सौंपने पर बगावत की स्थिति पैदा हो गई है। आप के प्रमुख एनआरआई समर्थकों ने भी पत्र लिख मान को बनाने का विरोध किया है। ऐसी स्थिति पहले न होती। कपिल मिश्रा भी पुराने आरोप अब लगा रहे हैं क्योंकि वह समझते हैं कि केजरीवाल ने खुद को कमज़ोर कर लिया है।
उन्हें खुद को सुधारने की कोशिश करनी चाहिए क्योंकि इस वकत तो हालत बन रही है कि,
आता है रहनुमाओ की नीयत में फतूर,
उठता है साहिलों में वह तूफां न पूछिए!