अपनी सरकार की तीसरी वर्षगांठ पर मोदी सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय अदालत में कुलभूषण जाधव मामले में देश को बढ़िया गिफ्ट दिया है। गिफ्ट बनता भी है। जिस तरह देश की जनता नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में लगातार अपना विश्वास प्रकट करती जा रही है, यहां तक कि उन्होंने नोटबंदी का कड़वा घूंट भी अधिक शिकायत किए बिना पी लिया, उसके बाद प्रधानमंत्री मोदी तथा उनकी सरकार की भी जिम्मेवारी बनती है कि वह जनता की आशाओं को पूरा करने में दिन-रात लगा दे। ऐसा आभास भी मिल रहा है।
कुलभूषण मामले में अभी लम्बी लड़ाई नजऱ आती है क्योंकि पाक सेना जिसने यह मुद्दा बनाया है, वह जल्द हार नहीं मानेगी। लेकिन विश्वास जरूर है कि हमारी सरकार उनकी रिहाई के लिए पूरा जोर लगाएगी। हरीश साल्वे जिन्होंने अंतर्राष्ट्रीय अदालत में हमारा केस बहुत बढ़िया ढंग से पेश किया की यह टिप्पणी बहुत महत्वपूर्ण है ‘‘मैं सरकार की तरफ से मिले बिना शर्त समर्थन का अभिवादन करता हूं।’’
यह बहुत बड़ी सराहना है। पर ऐसी इस सरकार से हमें अपेक्षा है कि देश हित में वह निर्णायक और अर्थ पूर्ण शासन देगी। इंदिरा गांधी के बाद देश को निर्णायक नेतृत्व नहीं मिला। राजीव गांधी बोफोर्स तथा शाहबानू मामले में फंस गए। नरसिम्हा राव ने अर्थ व्यवस्था में भारी परिवर्तन किया पर उनके पास अपना बहुमत नहीं था और अपनी पार्टी का प्रभावहीन वर्ग उनकी टांगें खींच रहा था। अटल जी हमारे प्रिय नेता हैं पर उन्होंने भी सरकार चलाई देश बदलने का प्रयास उन्होंने नहीं किया। यूपीए की तो अपनी दूसरी अवधि पूरी करते करते सांस फूल गई थी। आर्थिक स्थिति कमज़ोर हो रही थी, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह लड़खड़ा गए थे और भ्रष्टाचार की दुर्गंध सारे देश में फैल गई थी।
नरेंद्र मोदी का सबसे महत्वपूर्ण योगदान है कि उन्होंने सरकार में लोगों का विश्वास बहाल किया है कि घर को कोई संभाल रहा है। लोगों को वह प्रधानमंत्री मिल गया जो 24 x 7 काम करता है। वह ऐसे राजनेता हैं जिसका कोई परिवार नहीं जो उनकी स्थिति का लाभ उठा सके। हमारी व्यवस्था में यह ही बड़ा अजूबा है। न ही वह उस राजनीतिक पार्टी के नेता हैं जहां राजनीति का ‘बिजऩेस’ एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को संभाला जाता है। तीन साल व्यतीत होने के बाद भी सरकार पर भ्रष्टाचार का छींटा तक नहीं है।
यह सही है कि उनके सभी लक्ष्य अभी प्राप्त नहीं हुए लेकिन कोई नहीं कह सकता कि मोदी ने प्रयास नहीं किया या निष्ठा नहीं है। स्वच्छ भारत जैसे कार्यक्रम अभी सफल नहीं हुए लेकिन संदेश घर कर गया है कि सफाई चाहिए। डिजिटेल इंडिया का लक्ष्य अभी प्राप्त नहीं हुआ पर उस तरफ बहुत प्रगति हुई है। ठीक है अच्छे दिन नहीं आए जैसे विपक्ष भूलने नहीं देता, पर यह वही विपक्षी नेता हैं जिन्होंने दशकों में कोई नया विचार प्रस्तुत नहीं किया। अब तो उनका सैक्यूलरिज़म का ढोल भी फट गया जो तीन तलाक मामले से भी पता भी चलता है।
सरकार के तीन साल पूरे होने पर राहुल गांधी ने ‘निकम्मेपन’ की शिकायत की है, लेकिन आजकल के भारत में राहुल गांधी को गंभीरता से कौन लेता है? यह उनका अपना निम्मापन है कि कांग्रेस इस तरह कमजोर हो रही है। सोनिया गांधी, राहुल गांधी, ममता बैनर्जी, अखिलेश यादव, मायावती, लालू प्रसाद यादव, अरविंद केजरीवाल आदि सब मिल कर भी नरेंद्र मोदी का मुकाबला नहीं कर सकते। नया वीपी सिंह उन्हें मिल नहीं रहा। नीतीश कुमार ने तो कह ही दिया कि वह 2019 में उम्मीदवार नहीं होंगे और मोदी की क्षमता देख कर ही लोगों ने उन्हें पीएम बनाया है।
विपक्ष किस तरह फंसा हुआ है यह केजरीवाल के मुंह पर आजकल लगे ताले से पता चलता है। उन्हें समझ आ गई है कि जितना वह नरेंद्र मोदी की आलोचना करते हैं उतना वह खुद अलोकप्रिय हो रहे हैं। उनका हमला बैक फायर कर रहा है। न ही आप महागठबंधन के प्रति ही अधिक रुचि दिखा रही है। समझ गए कि लोग कहेंगे कि मोदी तो देश बदलने की कोशिश कर रहे हैं और यह जनता के ठुकराए लोग उन्हें बदलने के लिए इकट्ठे हो रहे हैं।
भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थ व्यवस्था बन चुकी है। मुद्रा स्फीति नियंत्रण में है और हमारी विकास की दर 7 प्रतिशत के नजदीक है। जीएसटी लागू हो चुकी है। सड़कें बड़ी तेजी से बन रही हैं। वास्तव में सारा इंफ्रास्ट्रक्चर बदला जा रहा है। प्रदेशों को अधिक अधिकार दिए गए हैं ताकि स्थानीय स्तर पर निर्णय लिए जा सकें। सरकारी मशीनरी को चुस्त बनाने की कोशिश हो रही है। प्रधानमंत्री खुद अफसरों की क्लास ले रहे हैं। पर शिक्षा तथा स्वास्थ्य के क्षेत्र में अभी बहुत कुछ करना बाकी है। शिक्षा के ढांचे से बार-बार खिलवाड़ नहीं होना चाहिए। हर नई सरकार छेड़छाड़ करती है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में दवाईयां सस्ती करने की तरफ ध्यान देने की तत्काल जरूरत है। फारमेसूटिकल कंपनियों, हस्पतालों तथा डाक्टरों की मिलीभगत पर नियंत्रण लगाना होगा। स्वास्थ्य सेवाओं को सही करना तथा दवाईयों को सस्ता करना अगला गिफ्ट होना चाहिए।
नरेंद्र मोदी का सबसे बड़ा योगदान है कि उनके नेतृत्व में दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का विश्वास लौट आया है कि हम फिर विश्व ताकत बन सकते हैं। जिस तरह चीन के कथित आर्थिक गलियारों के मामलों में भारत झुका नहीं उससे देश-विदेश को संदेश दिया गया है कि राष्ट्रीय हित से कोई समझौता नहीं होगा। वीआईपी कलचर समाप्त करने के प्रयास से भी लोग खुश हैं कि धौंस जमाते नेताओं की बत्ती गुल हो रही है।
यह नहीं कि चुनौतियां नहीं हैं। अभी भी करोड़ों लोग हैं जिन्हें दो वक्त की सही रोटी नहीं मिलती। खाने के लिए नहीं है, स्वच्छ पानी नहीं है, टायलेट नहीं है। किसान आत्महत्याएं खत्म नहीं हो रही। बड़ी समस्या है कि रोजगार नहीं बढ़ रहा। जितनी अधिक औटोमेशन होगी, कम्प्यूटर आएंगे उतना इंसान फालतू बनता जाएगा। गौ रक्षा या युवा वाहिनी के नाम पर जो अराजकता फैला रहे हैं उन पर नियंत्रण चाहिए। कश्मीर की हालत नियंत्रण में नहीं आ रही। सुकमा में 25 जवानों की हत्या कर नकस्लवादी अपनी खूनी उपस्थिति दर्ज करवा चुके हैं। हरियाणा जैसे प्रदेश में जाट आंदोलन की अराजकता से सरकार अभी तक उभर नहीं सकी। अफसरशाही की मानसिकता बदलनी है। पाकिस्तान ने हमारे दो सैनिकों के सर कलम कर नई चुनौती दी है। अमेरिका, चीन तथा रूस के बदलते रिश्ते समस्या पैदा कर रहें हैं।
बहुत कम नेता हैं जिन्हें इस तरह जनसमर्थन मिला है जैसा नरेंद्र मोदी को मिला है। इतना आपार समर्थन समस्या भी है क्योंकि हर चुनाव में मोदी के नाम पर ही वोट दिए गए हैं इसलिए लोगों की आशाएं भी उनसे ही हैं। वह भारतीय राजनीति के बाहुबली बन गए हैं। कोई उनके सामने टिक नहीं सकता। उन्हें अब देश को वहां पहुंचाना है जहां हम सबकी कामना है। उनका कहना है कि ‘‘मैं चुनाव के हिसाब-किताब में नहीं रहता। मेरा निशान 2022 है, 2019 नहीं… हमारे पास देश को बदलने के लिए केवल पांच वर्ष हैं।’’ प्रधानमंत्री के इस कथन पर मुझे किसी का कहा यह याद आता है, ‘‘नेतृत्व अगले चुनाव के बारे नहीं होता। नेतृत्व अगली पीढ़ी के बारे होता है।’’
बाहुबली (Bahubali),