ऐसा आभास मिलता है कि कांग्रेस का संदूक खाली है। जो कुछ है वह पुराना और बेकार है। कोई नई विचारधारा नहीं, नई सोच नहीं, नई प्रतिभा नहीं और नए लोग नहीं। वही चले हुए कारतूसों के बल पर राजनीति की जा रही है। अगर कोई नई सोच होती तो राष्ट्रपति के पद के लिए मीरा कुमार को आगे न किया जाता।
मीरा कुमार उस व्यवस्था की उपज है जिसने अपने विशेषाधिकारों के बल पर देश का खूब दोहन किया है। बाबू जगजीवन राम की बेटी कोई ‘दलित’ नहीं चाहे अब वह दलितों के संघर्ष की बात कह रहीं हैं। वह पीढ़ियों से वंचितों का प्रतिनिधित्व नहीं करती, उलटा उस वशिष्ठ वर्ग से संबंधित है जिसने अपनी स्थिति का फायदा उठा कर खूब मौज की है। खोखले नारों में लोगों को उलझा कर अपना उल्लू सीधा करते रहे हैं। मीरा कुमार ने अपनी सरकारी कोठी का 1.98 करोड़ रुपए का किराया नहीं दिया और बाद में उसे माफ करवा दिया गया। कोठी को 25 साल के लिए उन्हें अलॉट करवा दिया गया। किसी और लोकतांत्रिक देश में ऐसा होता है? किसी ने सही टिप्पणी की है कि खतरा है कि अगर वह जीत गई तो 25 साल के लिए राष्ट्रपति भवन ही अपने नाम न करवा लें!
यह वह व्यवस्था और विशेषाधिकार है जिसे देश बदलने के लिए तड़प रहा है। इस विशेषाधिकार सम्पन्न संस्कृति को हम खत्म करना चाहते हैं। नरेंद्र मोदी के उभार का मतलब भी यही है कि जो चलता रहा वह अब नहीं चल सकता। अफसोस है कांग्रेस तक यह संदेश नहीं पहुंचा। कभी समाजवाद के नाम पर तो कभी सैक्यूलरवाद के नाम पर, तो इस मामले में दलित भावनाओं के नाम पर कब तक दोहन होता रहेगा? क्या कांग्रेस के नेतृत्व को समझ नहीं आई कि देश उनकी ऐसी राजनीतिक जादूगरी को रद्द कर चुका है? वह ही घिसीपिटी राजनीति? वह ही घिसेपिटे नारे? और वह ही घिसेपिटे चेहरे?
कांग्रेस की कार्यकारिणी को संबोधित करते हुए पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी का कहना था कि ‘‘हमें भारत के भाव तथा उसकी अवधारणा जिसे सरकार बुझाना चाहती है, की रक्षा के लिए तैयार रहना चाहिए।’’
मुझे मालूम नहीं कि कितने कांग्रेसजन उनके इस आह्वान से प्रेरित हुए हैं लेकिन समस्या जिसे उन्होंने IDEA OF INDIA कहा है की नहीं है। भारत की अवधारणा संकट में नहीं है। इस देश की संस्कृति में बहुत मज़बूती है। असली समस्या तो IDEA OF CONGRESS की है जो बहुत खतरे में है। भारत की अवधारणा की रक्षा करने से पहले तो उन्हें कांग्रेस की अवधारणा की रक्षा करनी है जो इस पारिवारिक दलदल में फंस कर रह गई है।
कांग्रेस में परिवारवाद आज से नहीं है। इसकी नींव बहुत पहले डाल दी गई थी जब मोतीलाल नेहरू ने अपने बाद पुत्र जवाहर लाल को कांग्रेस अध्यक्ष बनाने का गांधी जी से अनुरोध शुरू कर दिया था। जुलाई 11,1928 को महात्माजी को लिखे अपने पत्र में मोतीलाल नेहरू ने बारदोली में सरदार पटेल के आंदोलन की जीत के बाद लिखा था, ‘‘मैं बिलकुल स्पष्ट हूं कि इस वक्त के हीरो वल्लभभाई हैं और हमें उन्हें ताज सौंप देना चाहिए लेकिन अगर उन्हें नहीं तो मेरा विचार है कि हर तरफ से जवाहर सर्वश्रेष्ठ चुनाव होगा।’’
आखिर में गांधी जी मोतीलाल नेहरू की सिफारिश मान गए थे जबकि पटेल अधिक वरिष्ठ थे। इतिहासकार तथा गांधी जी के पौत्र राजमोहन गांधी ने इसके बारे लिखा है, ‘‘लाहौर कांग्रेस की अध्यक्षता करते हुए जवाहर ने इस बात पर जोर दिया था कि वह गणतंत्रवादी हैं और राजाओं या राजकुमारों में विश्वास नहीं रखते लेकिन इसके बावजूद मोतीलाल तथा जवाहर के प्रशंसक इसे एक राजा द्वारा अपने स्वभाविक उत्तराधिकारी को राजसिंहासन दिया जाना मान रहे थे।’’
और उसके बाद कांग्रेस का सिंहासन अधिकतर इस परिवार में ही रहा। उल्लेखनीय है कि खुद को गणतंत्रवादी कहने वाले नेहरू ने ही अपने जिंदगी में इंदिरा को पार्टी अध्यक्ष बनवा दिया था।
पार्टी में परिवारवाद की असली नींव इंदिरा गांधी ने रखी। सरकार तथा पार्टी दोनों उनके पास थे। जब संजय की हवाई हादसे में मौत हो गई तो इंदिरा ने यह कहते हुए कि ‘‘मेरे पास केवल आप हैं’’, राजीव की नौकरी छुड़वा उन्हें उत्तराधिकारी बना दिया था। इतनी बड़ी कांग्रेस और केवल राजीव ही? एक बार पार्टी की बागडोर हाथ आने के बाद सोनिया गांधी ने भी स्पष्ट कर दिया कि पुत्र राहुल ही उनके उत्तराधिकारी होंगे, पार्टी का कुछ बचे या न बचे।
मोतीलाल नेहरू, जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी से हो कर अब हम राहुल गांधी पर आ गए हैं जिनको जब से नेता बनाया गया है कांग्रेस लगातार चुनाव हारती आ रही है। और कोई पाटी होती तो राहुल गांधी को कब का वीआरएस दे दिया जाता लेकिन यह कांग्रेस है। हर हार से पार्टी कमजोर हुई है राहुल मज़बूत! और अब तो चर्चा है कि उन्हें अपनी बीमार मां की जगह पार्टी अध्यक्ष बनाया जाएगा जिस पर इतिहासकार रामचन्द्र गुहा ने टिप्पणी की है, ‘‘अक्तूबर में अमित शाह दोहरा जश्न मना सकते हैं। एक दीवाली तो दूसरा राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष बनने वाले हैं।’’ दिलचस्प है कि जिस समय पार्टी मध्यप्रदेश में किसान आंदोलन को हवा देने की कोशिश कर रही थी और विपक्ष राष्ट्रपति के पद के लिए अपना उम्मीदवार चुन रहा था, राहुल गांधी फिर छुट्टियां मनाने इटली चले गए। अपनी नानी सबको प्यारी है पर राजनीति एक स्कूल नहीं जहां निर्धारित गर्मियों की छुट्टियां होती हैं।
मोतीलाल नेहरू और जवाहर लाल नेहरू उत्कृष्ट व्यक्तित्व थे। बुद्धिजीवी थे, दोनों बैरिस्टर थे। इंदिरा गांधी ने भी आजादी की लड़ाई देखी थी लेकिन उनके बाद पार्टी की बागडोर उन लोगों के हाथ आ गई जो भारत की ‘‘अवधारणा’’ को समझ ही नहीं सके और पार्टी मुख्यधारा से कटती गई। सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री का पद तो अस्वीकार कर दिया पर पर्दे के पीछे से वह ही सरकार चलाती रहीं जो बात संजय बारू की किताब में भी स्पष्ट है जहां उन्होंने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को यह कहते उद्धत किया है कि ‘‘केवल एक ही सत्ता का केन्द्र हो सकता है।’’ अर्थात लाचार मनमोहन सिंह मान रहे थे कि वह सत्ता का केन्द्र नहीं हैं। सरकार सोनिया चला रही थी और इस दौरान कांग्रेस के सभी सिद्धांतों को रौंद दिया गया और देश को इतिहास में सबसे भ्रष्ट सरकार दी गई।
विपक्षी एकता के प्रयास चल रहे हैं लेकिन यह सफल नहीं होंगे क्योंकि कोई भी पार्टी राहुल को महागठबंधन का नेता मानने को तैयार नहीं। और राहुल पीछे हटेंगे नहीं क्योंकि परिवार बड़ी गद्दी पर अपना विशेषाधिकार समझता है। कांग्रेस मेें और भी प्रतिभाशाली और अनुभवी नेता हैं लेकिन पार्टी में न नया विचार आएगा, न नया नेता। वही पुराने मीरा कुमार जैसे प्रिवलेजड लोग आगे किए जाएंगे। देश को एक मज़बूत विपक्ष की जरूरत है और यह केवल कांग्रेस ही हो सकती है पर पहले इसे लोकतांत्रिक और लोकप्रिय पार्टी बनाने की जरूरत है। आइडिया ऑफ इंडिया की चिंता छोड़ पहले आइडिया ऑफ कांग्रेस को बचाने की जरूरत है।
द आइडिया ऑफ कांग्रेस (The Idea of Congress),