1962 और 2017 (1962 and 2017)

भारत, भूटान तथा चीन के बीच सिक्किम के डोकलम इलाके में टकराव को लेकर चीन अधिक ही आक्रामक हो रहा है। भारत को 1962 की याद दिलवाई जा रही है। उनका मीडिया युद्ध की धमकी दे रहा है। चीन इस अति संवेदनशील क्षेत्र जहां से उत्तर पूर्व के प्रांतों से हमारा सम्पर्क टूट सकता है, पर कब्ज़ा करने की कोशिश कर रहा है। डोकलम जिसे चीन डोंगलाग कहता है, के बीच चीन सड़क बनाने की कोशिश कर रहा है जिसे भारतीय सैनिकों ने रोक दिया है। ऐसी सड़क से भारत के लिए गंभीर सामरिक दुष्परिणाम निकल सकते हैं।

यह 269 वर्ग किलोमीटर का सामरिक महत्व का क्षेत्र है जो भूटान का है पर चीन दावा कर रहा है। चीन का दुर्भाग्य है कि इस क्षेत्र में भारतीय सेना की सामरिक तथा भुगौलिक स्थिति मज़बूत है। यही कारण है कि चीन इतना शोर मचा रहा यहां तक कि इतिहास से सबक लेने की नसीहत भी दे रहा है। अनुभव यही बताता है कि शोर वही मचाता है जो कमज़ोर होता है। उस सारे क्षेत्र में भारतीय सेना पहले से ऊंची जगहों पर तैनात है इसे उखाड़ने के लिए दस गुना ताकत चाहिए। जिस जगह टकराव चल रहा है वह महत्वपूर्ण सिलीगुड़ी गलियारा, जिसे चिक्कनज़ नैक भी कहा जाता है जो उत्तर पूर्व के राज्यों को बाकी देशों से जोड़ता है, से मात्र 50 किलोमीटर की दूरी पर है। भारत ऐसा अहम गलियारा चीन की मेहरबानी पर नहीं छोड़ सकता।

1967 में इसी चुम्बी वादी में झड़प हो चुकी है। जब दोनों तरफ से कई जानें गईं थीं। चीन की सेना ने मशीनगनों का इस्तेमाल किया था लेकिन भारतीय सेना सेबू ला दर्रे पर स्थित थी और चीन का भारी नुकसान हुआ था। आखिर में चीन के प्रधानमंत्री चाऊ इन लाई ने अपनी सेना को यह आदेश दिया था कि वह अगर दूसरी तरफ से गोली ने आए तो वह भी न चलाएं।

अब फिर चीन इस तीन देशों के जंक्शन में निर्माण करने की कोशिश कर रहा है और चिंता है कि यह 1962 जैसा संकट न बन जाए। चीन इस वक्त इतना आक्रामक क्यों है यह अब बताने की जरूरत नहीं रही। ऐशिया की म्यान में वह दूसरी तलवार को बर्दाश्त करने को तैयार नहीं। चीन इस बात से भी चिढ़ा हुआ है कि भारत ने उनके आर्थिक गलियारे का न केवल विरोध ही किया बल्कि उसके उपर असुखद सवाल भी खड़े कर दिए हैं। चीन भी जानता है कि इस क्षेत्र में इस गलियारे की सफलता संदिग्ध है जब तक भारत का सहयोग नहीं मिलता। वह यह जबरदस्ती हासिल करना चाहता है।

लेकिन चीन की उत्तेजना का एक बड़ा कारण और मैं देखता हूं। नरेंद्र मोदी। शी जिनपिंग ऐशिया के सम्राट बनना चाहते हैं इसलिए वह नरेंद्र मोदी के बराबर अभ्युदय को पचा नहीं पा रहे। मोदी की अनूठी कूटनीति ने उन्हें तीन साल में विश्व के महत्वपूर्ण नेताओं में शामिल कर दिया है। हाल ही में वह ट्रंप जैसे पेचीदा इंसान से संबंध बना कर हटें हैं।याद रखना चाहिए कि 1962 के हमले का एक मकसद जहां भारत को सबक सिखाना था वहां चीन जवाहरलाल नेहरू की अंतर्राष्ट्रीय छवि को भी मटियामेट करना चाहता था। इस बार ऐसा ही प्रयास नरेंद्र मोदी के साथ भी किया जा रहा है। पर मोदी नेहरू नहीं, और यह 1962 का भारत नहीं।

1962 की पराजय भारत की चहुमुखी असफलता का परिणाम था। अपनी किताब ‘द गिलटी मॅन ऑफ 1962’ में वरिष्ठ पत्रकार डी आर मानकेकर ने तत्कालीन सरकार, सेना के अधिकारियों तथा विपक्ष तक को उस स्थिति के लिए जिम्मेवार ठहराया था। वह लिखते हैं, ‘‘नेहरू पहले कहते रहे कि ‘युद्ध नहीं होना चाहिए’, फिर ‘युद्ध नहीं हो सकता’ पर उन्होंने अप्रिय हकीकत से आंखें बंद कर ली थी…. कृष्ण मेनन नाजुक सैनिक अनुशासन तथा मनोबल से बंदर की तरह खेल रहे थे… और यह कोई शक नहीं कि विपक्ष ने अपने लापरवाह चालों से प्रधानमंत्री को एक कोने में धकेल दिया था… और आखिर में उन्हें सेना को गलत समय पर गलत जगह लड़ने का आदेश देना पड़ा…. बंदूकें भरने से पहले शूटिंग शुरू कर दी गई थी….।’’

अर्थात पूरी तरह से बेतैयारी से चीन को जवाब देना का आदेश दे दिया गया था। सैनिकों के पास गर्म कपड़े और जूते भी नहीं थे। बर्फीले क्षेत्र में लड़ने की ट्रेनिंग नहीं थी। हमारा नेतृत्व स्वपनलोक में था कि चीन हमला नहीं करेगा।

लै. जनरल बीएम कौल जो 4 कोर के कमांडर थे और जिन्हें हैंडरसन-बु्रक रिपोर्ट में इस त्रासदी का खलनायक माना था का भी स्पष्टीकरण था कि नेहरू को इस युद्ध में धकेला गया। अपनी किताब ‘द अंटोल्ड स्टोरी’ में वह लिखते हैं, ‘‘मेरा मानना है कि अगर कुछ विरोधी नेहरू के पीछे न पड़ जाते … और नेहरू को अकेला छोड़ दिया जाता तो भारत और चीन के बीच टकराव 1962 के बाद आता। तब तक भारत स्थिति से निबटने के लिए बेहतर तैयार होता।’’

इस तरह बीएम कौल भी नेहरू पर दोष मड़ रहे हैं जबकि उनके विचार भी बताते हैं कि देर-सवेर चीन का हमला होना ही था जिसके लिए सेना को तैयार नहीं किया गया।

लेकिन यह 1962 नहीं। 2017 में हम तैयार हैं और चीन भी जानता है। न केवल 1967 बल्कि 1987 में सुंदरम चु में भारत चीन की अंदर घुसने की कोशिश नाकाम कर चुका है। टकराव आठ महीने लम्बा चला था। हमने 1962 से पूरा सबक सीखा है। न केवल सामरिक बल्कि आर्थिक तौर में भी हम मज़बूत हुए हैं। 1962 में ऐयरफोर्स का इस्तेमाल नहीं हुआ था। माना की चीन हमसे बहुत ताकतवर है लेकिन एक दृढ़ संकल्पी वियतनाम जैसे देश ने भी 1979 में चीन को बराबर सबक सिखाया था। श्रीलंका ने भी हमारा पसीना बहा दिया था। कई बार नेपाल को संभालना भी मुश्किल होता है। इसलिए चीन को फालतू की धमकियां नहीं देनी चाहिए। युद्ध बिल्कुल नहीं होना चाहिए यह दोनों के लिए विनाशक होगा। लेकिन सीमित युद्ध में दोनों बराबर रहेंगे। हां, जैसे रक्षा विशेषज्ञ मारुफ रज़ा ने भी कहा है, हम चीन का मुकाबला कर सकते हैं कब्ज़ा नहीं।

लेकिन किसी के क्षेत्र पर कब्ज़ा करना भारत की नीति नहीं रही। चीन 14 देशों से घिरा हुआ है अधिकतर के साथ उसका झगड़ा है। हाल ही में शी जिनपिंग की हांगकांग यात्रा के दौरान वहां व्यापक चीन विरोधी प्रदर्शन हुए हैं। उत्तरी कोरिया तथा दक्षिण चीन समुद्र को लेकर अमेरिका के साथ उनका तनाव बढ़ रहा है। हमारी सेना का मनोबल ऊंचा है। सेना पूरी तरह से प्रशिक्षित है और साधन सम्पन्न हैं। कौल जैसे कमांडर नहीं हैं। अपनी जमीन की हिफाजत हम कर सकते हैं। अमेरिका, जापान, वियतनाम आदि के साथ रिश्ते अच्छे हैं लेकिन जहां तक चीन का सवाल है, हमें खुद इस चुनौती का सामना करना है। हमें चीन के साथ बढ़ते आर्थिक फर्क को भी कम करना है। भारत ने दुनिया को यह संदेश दे ही दिया है कि हम चीन के प्रभुत्व वाली व्यवस्था में शामिल होने के लिए तैयार नहीं। चीन इस बात से चिढ़ा हुआ है कि भारत उनकी महाशक्ति की हठधर्मिता के आगे झुकने को तैयार नहीं। पूर्व विदेश सचिव श्याम सरन ने सही लिखा है कि चीन हमारा उनके ओबीओआर गलियारे में न शामिल होने को गुस्ताखी मानता है। क्योंकि हम ऐसा नहीं कर रहे इसलिए इस हिमाकत के लिए हमें सजा देना चाहता है।

चीन के सामरिक बुद्धिजीवी सुन ज़ू ने कहा था, ‘‘खुद को जानो, अपने दुश्मनों को जानो। सौ युद्ध, सौ विजय।’’ अर्थात चीन चैन से नहीं बैठेगा। जैसे-जैसे भारत का प्रभाव बढ़ेगा चीन की चुनौती भी बढ़ती जाएगी। 2017 का यही संदेश है।

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Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.