“जो राजा न्याय नही देता, अन्याय देख कर चुप रहता है, राजधर्म नहीं निभाता, दंडे की नीति नहीं बनाता, वह राजा शीघ्र अपने राज्य को पतन की ओर ले जाने वाला होता है।”
ईसा पूर्व तीसरी सदी में चंद्रगुप्त मौर्य के प्रधानमंत्री चाणक्य द्वारा दी गई यह चेतावनी आज भी प्रासंगिक है। जिस तरह गुरमीत राम रहीम के मामलों को लेकर हरियाणा की सरकार अपना दायित्व निभाने से भाग उठी उससे सारे उत्तर भारत में अफरातफरी फैल गई। ट्रेनें रद्द, स्कूल-कालेज बंद, इंटरनैट ठप्प और आखिर में 38 लोग मारे गए। सिर्फ इसलिए कि खट्टर सरकार ने राजधर्म निभाने से इंकार कर दिया था।
दुनिया में कहीं भी ऐसी मिसाल नहीं मिलेगी जहां एक बलात्कारी के कारण सेना को बुलाना पड़ा। पंचकूला से एक महिला पत्रकार ने लिखा है कि “यह प्रभाव था कि प्रशासन आपको लावारिस छोड़ भाग उठा है।“ अगर हाईकोर्ट दखल न देता तो हरियाणा उसी तरह जल उठता जैसा जाट आंदोलन के दौरान जला था। हरियाणा सरकार की भूमिका शर्मनाक रही। ठीक है सबने राजनीति करनी है पर अपने शहरों को तबाह कर कोई राजनीति नहीं करता। कानूनी और व्यवस्था को संभालना हर सरकार का पहला कर्त्तव्य है लेकिन यहां तो लाख से उपर लोगों को पंचकूला में इकट्ठा होने दिया। बाबा सौ से उपर वाहनों के काफिले में आया। सरकार डेरे को गुंडों के प्रति नरम थी। ऐसा आभास मिला कि भाजपा की सरकार यह आरोप सहने को तो तैयार है कि उसने कानून और व्यवस्था को संभाला नहीं पर डेरे के समर्थकों को नाराज करने को तैयार नहीं। हाईकोर्ट ने सही कहा कि ‘सांठ-गांठ’ है।
यह नहीं कि चेतावनी नहीं थी। मालूम था कि डेरों के अंदर हथियार इकट्ठे हो रहे हैं। सेना ने भी चेतावनी दी थी पर हमारे भोले बादशाह मनोहर लाल खट्टर चुनाव के दौरान राम रहीम के समर्थन के बोझ के नीचे ऐसे दबे हुए थे कि पंचकूला में एक लाख लोगों को इकट्ठे होने दिया। बाद में जब प्रैस वालों ने सवाल किया तो मासूम जवाब था, “पता नहीं यह कैसे हो गया।“
केवल इस लापरवाही के लिए इस व्यक्ति को बर्खास्त किया जाना चाहिए था। अनुभवहीन प्रचारक जिसने कभी चुनाव नहीं लड़ा, कोई प्रशासनिक अनुभव नहीं उसे वह प्रदेश सौंप दिया जिसने तीन तरफ से राष्ट्रीय राजधानी को घेरा हुआ है। परिणाम यह हुआ कि ग्रहमंत्री को अपनी विदेश यात्रा छोड़ का वापिस लौटना पड़ा।
पंचकूला में हुए आगज़नी पर हाईकोर्ट की बड़ी फटकार थी कि ‘राजनीतिक फायदे के लिए शहर को जलने दिया गया।‘ कोई और मुख्यमंत्री होता तो नैतिक जिम्मेवारी लेते हुए तत्काल इस्तीफा दे देता लेकिन खट्टर का कहना था कि हमने बहुत जल्द स्थिति संभाल ली। बलात्कार के एक मामले में 38 लोगों को मरवाने तथा सेना को तैनात करवाने के बाद कह रहे हैं कि हमने स्थिति को संभाल लिया? हरियाणा पुलिस तो पीठ दिखा कर भाग उठी थी। न पंजाब और न ही चंडीगढ़ में ही कोई घटना हुई इसलिए कि वहां पहले से स्थिति संभालने के कदम उठा लिए गए। खट्टर के शासन में हरियाणा तीसरी बार उपद्रव ग्रस्त हुआ। शहर जलवाने में तो उनका रिकार्ड बनता जा रहा है।
डेरों से समर्थन के मामले में सभी दल, भाजपा, कांग्रेस और यहां तक अकाली दल भी हमाम में नंगे हैं। अकाली नेतृत्व ने शांति की अपील की पर डेरे की आलोचना उन्होंने ने भी नहीं की। कांग्रेस तथा भाजपा तो है ही संलिप्त। सभी राजनीतिक दलों के नेता इन बाबाओं के डेरों में माथा टेकने पहुंचते हैं। आखिर वोट का चक्कर है। इनकी उपस्थिति को डेरे वाले अपनी तरह से खूब भुनाते हैं। अनुयायी संख्या बढ़ती है और उनका पाखंड फैलता है। राम रहीम का फायदा राजनेताओं ने उठाया पर उलटा वह उनका इस्तेमाल कर गया। जो बाबा को पैरी पैना करते रहे वह अब अदृश्य हो गए हैं।
राजनेताओं तथा बाबाओं के इस अपराधिक गठजोड़ के शिकार बेकसूर लोग होते हैं। यह आसाराम बापू का मामला हो या रामपाल का हो या अब राम रहीम का। इन दो बहादुर साध्वियों ने 15 लम्बे साल मामूली साधनों से इस ताकतवर इंसान के साथ टकराव लिया। एक के भाई की हत्या कर दी गई लेकिन फिर भी वह लड़ती रही। देश का इन बहादुर महिलाओं को सलाम। इनका यह भी कहना है कि बहुत से ऐसे और मामले हैं जो मां-बाप न लोक लाज के लिए चुप करवा दिए। पर यह कैसा व्यक्ति है जो उन्हीं का शोषण करता रहा जो अंधी आस्था के साथ उसकी शरण में आती थीं? जो उसे ‘गॉड’ मानती थीं, ‘पिता जी’ कहती थीं?
बहुत अफसोस की बात है कि राजनीतिक समर्थन ने इन डेरों के समानांतर राज्य बनाने की इज़ाजत दे दी गई। इनके अंदर क्या घपले होते हैं इनकी परवाह नहीं की जाती। रुहानियत के नाम पर अरबों रुपए की जायदाद खड़ी की जाती। जब संकट पैदा होता है तो लाखों अनुयायियों को सामने करने से सरकार के हाथ-पैर फूल जाते हैं।
केन्द्र सरकार ने इस मामले में निराश किया है। मनोहर लाल खट्टर को हटा कर तत्काल किसी योग्य प्रशासक के हवाले हरियाणा किया जाना चाहिए था। चाणक्य ने भी कहा है कि मंत्री या सचिव के चयन से पहले उनकी योग्यता की जांच होनी चाहिए। यही नहीं की गई जो न केवल देश तथा पार्टी को बल्कि नेतृत्व को भी महंगी पड़ी। भाजपा की एकमात्र पूंजी नरेंद्र मोदी है पर लगता है कि खट्टर जैसे लोगों के हाथ में प्रधानमंत्री की प्रतिष्ठा सुरक्षित नहीं है। साक्षी महाराज ने राम रहीम पर कार्रवाई को भारतीय संस्कृति पर हमला करार दिया है। क्या भारतीय संस्कृति कहती है कि बलात्कारी को सजा न दी जाए? संघ को भी सोचना चाहिए कि वह कैसे-कैसे लोग सार्वजनिक जीवन में उतार रहे हैं?
लेकिन समाज को भी सोचना चाहिए कि ऐसे लोग इतने शक्तिशाली कैसे बन जाते हैं? यह सरकार तथा संगठित धर्म की बड़ी असफलता है कि बड़ी मात्रा में लोग अब डेरों में जा रहे हैं। विशेष तौर पर जो दलित तथा गरीब वर्ग हैं उसे इन डेरों में न केवल राहत मिलती है बल्कि वहां बराबरी का अहसास होता है जो उसे बाहर नहीं मिलता। गरीबों को मुफ्त या सस्ता खाना, दवाईयां, इलाज सब मिलता है। बाबाओं का जलवा अंधविश्वासी लोगों को प्रभावित कर जाता। चाहे आसाराम बापू हो या राम रहीम सब अपने नाटक से लोगों को प्रभावित करते हैं। पर सभी डेरे ऐसे नहीं। बहुत डेरे हैं जहां अनुयायी इज्जत से रहते हैं। सही शिक्षा दी जाती है। समस्या वह खड़ी करते हैं जो खुद को भगवान का दलाल कहते हैं। और इनकी संख्या मामूली नहीं।
इस सारे मामले में न्यायपालिका की जय जय! अगर हाईकोर्ट दखल न देता और सीबीआई का जज अपनी जिम्मेवारी न निभाता तो हो सकता था कि ‘सबूतों के अभाव में’ राम रहीम अभी भी ‘लव चार्जर’ गाता फिरता। खुशी की बात है कि कानूनी का वैभव कायम रखा गया है। आप कितने भी बड़े हो कानून आपसे उपर है। कैदी नंबर 1997 सजा मिलने पर गिड़गिड़ा था। दुख यह है कि इस एक आदमी के कारण लाखों लोगों को परेशान होना पड़ा। कईयों की जान गई। मालूम था कि उपद्रव होगा। हाईकोर्ट चेतावनी दे रहा था पर हमारे भोले बादशाह हाथ पर हाथ रखे बैठे रहे। राजधर्म की जगह बाबाधर्म निभाते रहे! खट्टर शरीफ और ईमानदार इंसान हैं लेकिन प्रशासनिक तौर पर कायर है और जिम्मेवारी निभाने का उनमें दम नहीं। इस हालत को देखकर रामधारी सिंह दिनकर की यह पंक्तियां याद आती हैं:
समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध
जो तटस्थ है, समय लिखेगा उनके भी अपराध!
राजधर्म या बाबाधर्म? (RajDharma or BabaDharma),