निर्मला सीतारमण देश की नई रक्षामंत्री बन गई हैं। प्रधानमंत्री ने एक बार फिर ऐसा कदम उठाया है जिससे देश चकित रह गया है पर यह वह निर्णय है जिसका देश में भारी स्वागत किया गया है। इंदिरा गांधी रक्षामंत्री तब बनी थी जब वह प्रधानमंत्री थी। इस प्रकार निर्मला सीतारमण पहली महिला रक्षामंत्री कही जा सकती है। उनकी प्रतिभा, उनकी मेहनत, ईमानदारी तथा विवेक की कदर की गई है। उनके साथ पीयूष गोयल तथा धमेंन्द्र प्रधान जैसों का कद बढ़ा कर प्रधानमंत्री ने भाजपा की नई पीढ़ी को जिम्मेवारी सौंपनी शुरू कर दी है जिस तरह पहले अटल-आडवाणी, वैंकेया नायडू, सुषमा स्वराज, अरुण जेतली जैसे लोगों को आगे लाए थे। सहयोगी पार्टियों की परवाह नहीं की गई।
पर पिछले कुछ सप्ताह इस सरकार तथा भाजपा के लिए बुरे रहे हैं। चिंता यह भी है कि इनका असर आगे भी पड़ेगा। जैसे उड़ान के समय कई बार पायलट घोषणा कर देता है कि ‘टरबुलैंस अहैड’ अर्थात आगे वायुमंडल में अस्थिरता है और कुछ देर के बाद विमान हिचकोले खाने लगता है, ऐसा ही कुछ इस सरकार की स्थिति बन सकती है।
गोरखपुर में लगातार बच्चे मर रहे हैं। फर्रुखाबाद से भी यही खबर है। योगी आदित्यनाथ जो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ही नहीं बल्कि वहां से 17 साल सांसद रहे हैं कि लापरवाह टिप्पणी थी कि “अब इनके बच्चे भी सरकार की जिम्मेवारी है?” गरीबों की गरीबी और लाचारी का इससे बड़ा मज़ाक नहीं हो सकता। उसके बाद डेरा सच्चा सौदा के मुखी को लेकर हरियाणा में उपद्रव हो गया। खट्टर सरकार फिर स्थिति को संभाल नहीं सकी और तीन दर्जन से अधिक लोग मारे गए। अब यह अक्षम सरकार यह ढूंढने में लगी हुई है कि हनीप्रीत कहां गई! पहले उसे हैलिकाप्टर में जाने दिया गया अब उसकी तलाश हो रही है। फिर मुंबई पानी में डूब गया जहां भी भाजपा-शिवसेना सरकार है।
दिल्ली में बवाना के उपचुनाव में भाजपा को भारी धक्का पहुंचा और आप को अच्छी जीत मिली और भाजपा दूर-दूर दूसरे नंबर पर रह गई। पंजाब, गोवा आदि में बुरी तरह पिटी आप को नया जीवन मिल गया। आप की जीत का जवाब दिल्ली भाजपा प्रमुख मनोज तिवारी ने एक और तिरंगा यात्रा निकाल कर दिया। इन लोगों को कब समझ आएगी कि लोग काम को वोट देते हैं। आप देश भक्ति तथा राष्ट्रवाद को बहुत अधिक भुना चुके हो। अरविंद केजरीवाल ने भी कांटा बदल लिया है। उन्होंने गालियां देना बंद कर दिया है और काम पर ध्यान दे रहे हैं और समझौता कर लिया कि वह दिल्ली तक ही सीमित रहेंगे।
लेकिन असली झटका सरकार को अर्थ व्यवस्था के क्षेत्र में लगा है। आर्थिक प्रबंधन डोल रहा लगता है। अब आंकड़े बाहर आ गए हैं कि नोटबंदी भयंकर भूल थी और इसके कारण अर्थ व्यवस्था में भारी गिरावट आई है। जब नोटबंदी की गई तब पुराने अनुभवी अर्थशास्त्री डा. मनमोहन सिंह ने भविष्यवाणी की थी कि इससे विकास की दर में 2 प्रतिशत की गिरावट आएग। डाक्टर साहिब लगभग सही निकले केवल उनका आंकलन थोड़ा कम था। विकास की दर 7.9 प्रतिशत से कम होकर 5.7 प्रतिशत रह गई जो इस सरकार के भविष्य के लिए अत्यंत बुरी खबर है क्योंकि महंगाई, गिरता रोजगार किसी भी सरकार को अस्थिर कर सकता। लोग नाराज़ हो सकते हैं।
अगर इस सरकार के साथ अभी तक यह नहीं हुआ इसके दो कारण है। एक, प्रधानमंत्री मोदी पर लोगों को विश्वास है। चाहे नोटबंदी फेल हुई है पर लोग समझते हैं कि उनका इरादा नेक था पर कहीं गफ़लत हुई। जिनके द्वारा इसे लागू किया जाना था, अर्थात बैंकिंग व्यवस्था, वह पलीता लगा गई। लोग यह भी समझते हैं कि इसे लागू करने में नरेंद्र मोदी का अपना स्वार्थ नहीं था इसलिए उतना विरोध नहीं हुआ जितना इंदिरा गांधी द्वारा एमरजैंसी लागू करने पर हुआ था। दूसरा, सामने कोई विकल्प नहीं। न पार्टी में, न विपक्ष में।
लेकिन चुनाव से डेढ़ साल पहले बड़ा धक्का पहुंचा है। चाहे नौकरियां नहीं बढ़ रही थी जिसे “जॉब लैस ग्रोथ’ अर्थात नौकरियों के बिना विकास कहां जाता है, फिर भी मोदी का विमान ऊंचा उड़ रहा था। डोकलाम में बढ़िया कामयाबी मिली थी। चीन को थूक कर चाटना पड़ रहा है। भारत सरकार ने गज़ब की परिपक्वता तथा मजबूती दिखाई। लेकिन अर्थ व्यवस्था के मामले में यह सरकार असफल नजर आ रही है। इसलिए आगे टरबुलैंस नज़र आती है।
8 नवम्बर को प्रधानमंत्री ने नोटबंदी की घोषणा कर देश को स्तब्ध कर दिया था। उनका कहना था कि यह ब्लैकमनी के खिलाफ एक बड़ा कदम होगा। लोग भी कतार में लगने तथा दैनिक जीवन में खलल सब बर्दाश्त कर गए क्योंकि वह समझते थे कि ब्लैकिए को सजा दी जा रही है। अब देर से रिजर्व बैंक ने स्वीकार किया कि 99 प्रतिशत नोट वापिस बैंकों में आ गए। केवल 16,000 करोड़ के नोट वापिस नहीं आए जबकि अटार्नी जनरल ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि सरकार का अनुमान है कि तीन से चार लाख करोड़ रुपए के नोट वापिस नहीं आएंगे। सरकार का यह गलत आंकलन बहुत महंगा साबित हुआ। रिजर्व बैंक की तो विश्वसनीयता ही तमाम हो गई।
बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने बताया है कि उन्होंने सरकार को कह दिया कि इस कदम का नुकसान होगा। वह लिखते हैं, “चाहे लम्बे समय में इसके फायदे हो सकते हैं, मेरा मानना था कि अल्प समय में आर्थिक कीमत उससे अधिक रहेगी”। उनका अंदाजा है कि दो-अढ़ाई लाख करोड़ रुपए का नुकसान हो गया है। यह बहुत बड़ा नुकसान है क्योंकि हर विकास योजना के लिए पैसा चाहिए। विश्व बैंक के पूर्व मुख्य अर्थशास्त्री कौशक बसु का भी कहना है, “कच्चे तेल के दाम निचले स्तर पर है… ऐसे में हमारी वृद्धि दर 8 प्रतिशत से उपर होनी चाहिए थी। पहली तिमाही में 5.7 प्रतिशत की वृद्धि का मतलब है कि हमने नोटबंदी से 2.3 प्रतिशत गवाया है। यह काफी भारी कीमत है।” हमारी अर्थ व्यवस्था लगातार दूसरी तिमाही में चीन से पिछड़ी है। भारत सबसे तेजी से उभर रही अर्थ व्यवस्था नहीं रही। इस वक्त जीएसटी तथा उसके आडम्बर ने और अनिश्चितता पैदा कर दी है। उद्योगपति असमंजस में हैं। अधिक सलैब बना दिए गए हैं। स्थिति को संभलने में समय लगेगा।
मैं अर्थशास्त्री नहीं हूं लेकिन जितनी जानकारी है उसके मुताबिक मेरा मानना है कि ब्लैकमनी को खत्म करने के लिए बहुत कुछ और करने की जरूरत है। पहले तो राजनेता-अफसरशाही-उद्योगपति-व्यापारी की मिलीभगत खत्म होनी चाहिए। न्यायिक प्रणाली सही और चुस्त होनी चाहिए। बैंकिंग में सुधार चाहिए। जवाबदेही तथा पारदर्शिता होनी चाहिए। अरुण जेतली का कहना है कि वह चुनाव में कालेधन के इस्तेमाल को खत्म करना चाहते हैं। इस कदम का इंतजार रहेगा।
इस बीच सरकार को गिरती अर्थ व्यवस्था के दुष्परिणाम से निबटने के लिए तैयार रहना चाहिए। बहुत ज़ोर लगाने की जरूरत है। पहले ही रोज़ाना 33 किसान आत्महत्या कर रहे हैं। इस देश में हर महीने 10 लाख नए लोग रोजगार की पंक्ति में शामिल होते हैं। इनके लिए रोजगार कहां से आएंगे? अगर हम लगातार 10 प्रतिशत की दर भी प्राप्त कर लें तो देश को 2032 तक ही गरीबी से निकाल सकेंगे। वित्तमंत्री ने खुद स्वीकार किया है कि जीडीपी में गिरावट चिंता का विषय है।
अंत में: गोरखपुर में मारे गए बच्चों पर जहां मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बहुत असंवेदनशील और निष्ठुर टिप्पणी की है, वहां गीतकार तथा लेखक गुलजार ने बहुत मार्मिक पंक्तियां लिखी हैं:
फूल देखे थे जनाज़े पर अक्सर मैंने
कल गोरखपुर में फूलों का जनाज़ा देखा!