धीरे-धीरे आगे बढ़ने के बारे घबराने की जरूरत नहीं। घबराहट एक जगह स्थिर खड़े रहने के बारे होनी चाहिए। – चीनी मुहावरा
डोकलाम पर विवाद फिलहाल शांत हो गया है। दोनों भारत तथा चीन की सेनाएं पुरानी जगह पर पहुंंच चुकी हैं। चीन ने सडक़ बनाने का प्रयास छोड़ दिया। चीन का कहना था कि अगर कोई विवाद है तो भूटान के साथ है पर आखिर उन्हें मामला भारत के साथ निबटाना पड़ा।
टाईम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार खुद चीनी अधिकारियों ने वहां स्थित भारतीय राजदूत विजय गोखले से सम्पर्क स्थापित किया था। गोखले उस वक्त हांगकांग में थे। उनसे निवेदन किया गया कि वह तत्काल बीजिंग आ जाएं। उनके सुबह 2 बजे वापिस पहुंचने के बाद बातचीत शुरू हुई और तीन घंटे की ले दे के बाद समझौता हो गया। यह वही चीन था जिसने हमें 1962 का सबक सिखाने की चेतावनी दी थी। कश्मीर में ‘तीसरे देश की सेना’ घुसने की भी धमकी दी गई। उनका मीडिया रोजाना हमें गालियां निकालता रहा लेकिन जब भारत नहीं झुका तो चीन ने खुद मामला शांत करने की पहल कर दी। बीजिंग स्थित दक्षिण एशिया के विशेषज्ञ हू शीशांग ने स्वीकार किया कि चीन के स्टैंड में परिवर्तन आया है। उनका कहना था कि यह समझौता चीन को बहुत महंगा साबित होगा। “यह बहुत बड़ी भूल है जो आने वाले दिनों में चीनी सरकार महसूस करेगी।”
चीन के लिए यह नया अनुभव है क्योंकि अभी तक वह अपने पड़ोसियों पर अपनी धौंस थोपता रहा है लेकिन भारत ने सिद्ध कर दिया कि अगर कोई चीन के आगे डट जाए तो उसे हटने पर मजबूर किया जा सकता है। चीन के रवैये से सताए दूसरे देश वियतनाम, मंगोलिया, सिंगापुर, जापान आदि भी अब डटने की हिम्मत दिखा सकते हैं। इंडोनेशिया ने दक्षिण चीन सागर क्षेत्र में चीन के दावे को चुनौती दे ही दी है। आस्ट्रेलिया के विशेषज्ञ शेरी मैडकाल्फ ने लिखा है, “भारत-प्रशांत महासागर के सारे क्षेत्र में भारत की दृढ़ता तथा कूटनीति का बराबर संतुलन चीन की दादागिरी का मुकाबला करने के लिए मिसाल बन सकते है।”
चीन क्यों पलटा? इसके कई कारण हैं। जिस जगह टकराव था वहां भारतीय सेना का पलड़ा भारी था। चीन जानता था कि टकराव की स्थिति में भारतीय सेना उनके दांत खट्टे कर देगी जिसका असर उनकी कम्युनिस्ट पार्टी की कांग्रेस से पहले राष्ट्रपति शी जिनपिंग की स्थिति पर पड़ेगा। आगे ब्रिक्स सम्मेलन भी था और अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वहां शामिल न होते तो यह सम्मेलन असफल हो जाता जिसकी कीमत भी चीन को अपनी प्रतिष्ठा गंवा कर देनी पड़ी। चीन की अपनी अर्थ व्यवस्था धीमी हो रही है, वह इस स्थिति में नहीं है कि वह अपना पांचवां बड़ा बाजार भारत खो दे। भारत में इस्तेमाल आधे फोन चीन के बने हैं। अगर गोलियां चल पड़ती तो यह बाजार उनके हाथ से निकल जाता।
आम भारतीय अब समझने लगा है कि चीन एक दुश्मन देश है। हमारी पीढ़ी 1962 को नहीं भूली वर्तमान पीढ़ी डोकलाम को नहीं भूलेगी। यह चीन का बड़ा नुकसान है। अगर सब कुछ सही चलता तो भारतीय कंपनियों, प्रांतों तथा संस्थाओं को चीन से खतरे के बारे समझने में समय लगता। डोकलाम यह काम दो महीने में कर गया। भारत अब चीन के साथ आर्थिक सहयोग पर शंका की निगाह से देखने लगा है। डोकलाम से यह भी फायदा होगा कि दशकों से लटकता सैनिक नवीनीकरण तथा सीमा पर बेहतर इन्फ्रास्ट्रक्चर का काम भी अब तेजी से होगा। लेकिन चीन की वापिसी का बड़ा कारण और है।
चीन का मुकाबला न्यू इंडिया से हुआ था। यह वह भारत है जो आश्वस्त है। दिशा के बारे अनिश्चितता नहीं है। सेना सशक्त है। नेतृत्व तगड़ा है। पूर्ण राष्ट्रीय सहमति है। किसी ने भी कमजोरी नहीं दिखाई और चीन को पीछे हटना पड़ा।
‘न्यू इंडिया’ से निबटने के बारे चीन का आंकलन बिलकुल गड़बड़ा गया। यह वह इंडिया है जो न केवल अपने हित में बल्कि छोटे भूटान के हित के लिए भी टक्कर लेने को तैयार है। चीन ने समझा कि जिस तरह वह दक्षिण चीन सागर में जबरदस्ती निर्माण करता जा रहा है वैसे वह यहां भी कर सकेगा इसीलिए असामान्य तीखे शब्दों का इस्तेमाल किया गया। वह तो बदतमीज़ी की हद तक चले गए थे। चीन की प्राचीन सभ्यता के बारे बहुत कुछ कहा जाता है पर इस मामले में तो वह बिलकुल खोखले और बेअकल निकले।
दूसरी तरफ भारत सरकार ने स्थिति का पूरी तरह से धैर्य, दृढ़ता और कूटनीतिक शालीनता से मुकाबला किया। हमारी खामोशी तथा बढ़ी हुई सैनिक तैयारी से बता दिया गया कि हम चीन के मुताबिक खेल नहीं खेलेंगे। इससे दुनिया भर में भारत की प्रतिष्ठा बढ़ेगी कि यह परिपक्व लोकतंत्र और उभरती महाशक्ति है।
हमारी सेना ने बहुत बढ़िया प्रदर्शन किया। यह मालूम नहीं था कि कब दूसरी तरफ से फायरिंग शुरू हो जाएगी पर फिर भी संयम रखा लेकिन संदेश जरूर दे दिया कि हम पीछे हटने वाले नहीं।
लेकिन असली सफलता नेतृत्व की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बधाई के पात्र हैं कि इस संकट में उन्होंने बहुत मज़बूत नेतृत्व दिया। कोई हल्ला-गुल्ला नहीं। ऊंची आवाज़ नहीं। चीन की युद्ध की धमकी से वह विचलित नहीं हुए। चीन फूंकारता रहा लेकिन मोदी लक्ष्मण रेखा तय कर गए। उन्हें समझा दिया गया कि चाहे आपकी अर्थ व्यवस्था हमसे पांच गुना बड़ी है न्यू इंडिया पीछे हटने को तैयार नहीं। यह नया भारत है और नई लीडरशिप है जो किसी भी हालत में सम्पर्ण नहीं करेगी।
नरेंद्र मोदी मोदी ने स्पष्ट कर दिया कि ताकत से सीमा बदली नहीं जा सकती पर उन्होंने परिपक्वता दिखाते हुए टकराव को नियंत्रण से बाहर भी नहीं जाने दिया। इस टकराव के बीच कम से कम आधा दर्जन मंत्रियों ने बीजिंग की यात्रा की थी। सेनाओं की वापिसी के बाद भी मिठाईयां नहीं बांटी गई, लेकिन चीन को समझ गए कि फर्जी इतिहास के बल पर वह सीमा नहीं बदल सकते। डोकलाम का हल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहली अवधि का स्वर्णिम क्षण माना जाएगा।
लेकिन भारत और चीन के बीच इस क्षेत्र में तनातनी जारी रहेगी। 4000 किलोमीटर लम्बी सीमा है। चीन कहीं भी गड़बड़ कर सकता है। जैसे रक्षा विशेषज्ञ ब्रहमा चेलानी ने कहा है, “चीन डोकलाम का बदला ले सकता है और उसके लिए समय और जगह भी अपने हिसाब से तय करेगा।” पूर्व थलसेनाध्यक्ष वीपी मलिक ने कहा है कि हम उस जगह पहुुंच गए हैं जहां हमें गंभीरता से चीन के प्रति नीति, न केवल कूटनीतिक और आर्थिक, बल्कि सैनिक पर भी पुनर्विचार करना चाहिए। थलसेनाध्यक्ष बिपिन रावत ने भी सावधान किया है कि भविष्य में हमें दो मोर्चों पर लड़ाई लडऩी पड़ सकती है।
चीन की केवल भारत के साथ ही प्रतिद्वन्दता नहीं है बल्कि खुद शी जिनपिंग के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नरेंद्र मोदी चुनौती हैं जैसे माओ और चाऊ के लिए नेहरू थे। अमेरिका स्थित सैंटर फॉर स्ट्रैटिजिक एंड इंटरनैशनल स्टडीज़ के चीनी विशेषज्ञ बोनी एस ग्लेसर के अनुसार “शी जिनपिंग नरेंद्र मोदी को ऐसे नेता के रूप में देखते हैं जो भारतीय हित के लिए खड़े रहने को तत्पर हैं।” इस थिंकटैंक के अनुसार मोदी उन देशों के साथ संबंध बनाने के इच्छुक हैं जिन्हें चीन चुनौती समझता है। जापान के प्रधानमंत्री शिंजो अबे की भारत यात्रा को इसी संदर्भ में देखना चाहिए।
चीन अरुणाचल प्रदेश या लद्दाख में घुसपैठ कर सकता है इसीलिए हमें सावधान रहना है और अपनी कमजोरियां खत्म करनी है। याद रखना चाहिए कि यह वह देश है जो अधिक देर एक जगह स्थिर रहने को तैयार नहीं।
चीन और न्यू इंडिया (China and New India),