
म्यांमार से भाग कर भारत में बसने का प्रयास कर रहे रोहिंग्या मुसलमानों के बारे भारत सरकार ने जो नीति अपनाई है वह देश हित में है और उससे असहमत नहीं हुआ जा सकता। सरकार का स्पष्ट कहना है कि यह शरणार्थी नहीं, अवैध प्रवासी हैं। हमें पहले अपने नागरिकों के बारे सोचना है। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में यह शपथ पत्र भी दिया है कि देश के अंदर 40,000 रोहिंग्या मुसलमान देश की सुरक्षा के लिए खतरा हैं।
सरकार के इस स्पष्ट स्टैंड पर कई लैफ्ट-लिबरल उबल रहे हैं। उनका कहना है कि सरकार का नज़रिया ‘नसली’ है। सरकार के इस तर्क को भी रद्द किया जा रहा है कि वह देश की सुरक्षा के लिए खतरा है। वकील प्रशांत भूषण तथा उनके जैसे लोग कह रहे हैं कि कोई प्रमाण नहीं कि रोहिंग्या मिलिटैंसी में संलिप्त है। उनके अनुसार सरकार का आरोप साम्प्रदायिक है जबकि इन लोगों का अपना नजरिया साम्प्रदायिक है। क्या हम इस समस्या के प्रति केवल इसलिए आंखें मूंद लें क्योंकि जो वर्ग शामिल हैं वह मुसलमान हैं? क्या यह लोग भविष्य में सही चाल-चलन की गारंटी दे सकते हैं?
सुरक्षा एजेंसियों की लापरवाही तो स्पष्ट है। रोहिंग्या मुसलमान कई वर्षों से घुसपैठ कर रहे हैं पर हमारी एजेंसियां चुपचाप देखती रहीं। लेकिन अगर अतीत में गलती की गई तो इसका यह अर्थ नहीं कि उस गलती को जारी रखा जाए। पहले ही बांग्लादेश से घुसपैठ के प्रति लापरवाही के कारण पश्चिम बंगाल के कुछ जिले तथा असम में जनसंख्या का अनुपात डोल रहा है।
भारत सरकार का कहना है कि यह लोग आईएसआई तथा इस्लामिक स्टेट के प्रभाव में हैं। वर्तमान हिंसा भी तब भडक़ी जब 25 अगस्त को रोहिंग्या उग्रवादी संगठन “अराकान रोहिंग्या सैलवेशन आर्मी” (ARSA) ने वहां 30 पुलिस चौकियां फूंक डाली तथा सेना के अड्डे पर हमला किया जिसके जवाब में म्यांमार की सेना ने उनके कई गांव जला डाले।
क्या हम निश्चित तौर पर कह सकते हैं कि भविष्य में यहां ARSA जैसा कोई संगठन सक्रिय नहीं होगा? क्या पाकिस्तान इस संगठन का इस्तेमाल हमारी पूर्वी सीमा पर तनाव पैदा करने के लिए नहीं कर सकता? शेख हसीना के राजनीतिक सलाहकार तौफीक इमाम का कहना है कि रोहिंग्या समस्या भारत, बांग्लादेश तथा म्यांमार की सुरक्षा से जुड़ी हुई है।
म्यांमार में रह चुके हमारे राजदूत गौतम मुखोध्याय ने इस समस्या के बारे लिखा है, “रखाइन प्रांत में हिंसा का चरित्र बदल रहा है, हाल की घटनाएं विदेशों में बसे हुए रोहिंग्या द्वारा उत्तेजित तथा सुनियोजित की गई है… यह भी प्रतीत होता है कि वहां स्थिति मिलिटैंसी या सम्भवतय: आतंकवादी दिशा ले सकती है। अब यह स्पष्ट हो गया है कि ARSA तथा HAY जिनका संबंध तालिबान से है को सऊदी अरब तथा पाकिस्तान स्थिति रोहिंग्या द्वारा आर्थिक मदद से खड़ा किया गया है।
क्या भारत इस हकीकत की अनदेखी कर सकता है? प्रकाश सिंह जैसे प्रसिद्ध पुलिस अफसर खतरे की चेतावनी दे रहे हैं। हमें इतिहास से सबक सीखना चाहिए। अतीत में बांग्लादेश से जो घुसपैठिए आते रहे उनके प्रति हमारी नीति ढुलमुल रही। इसके दुष्परिणाम सामने हैं। वैसे भी देश के संसाधन अपने नागरिकों के लिए है। हमारे अपने बहुत गरीब हैं। केवल INDIA FIRST ही नहीं INDIAN FIRST भी। यह देश न कोई धर्मशाला है न ही कोई डम्पिंग ग्राऊंड है जहां दुनिया भर का कूड़ा-करकट इकट्ठा किया जाए।
दशकों से योरुप में लाखों मुसलमान परिवार बसे हुए हैं। जब वह शुरू में आए तो बहुत शांतिप्रिय थे। कानून का पालन करते थे। आज उनकी युवा पीढ़ी बागी हो रही है। वह जेहादियों के प्रभाव में हैं और आम नागरिकों पर गाडिय़ां चढ़ा रही है। हमें ऐसी परिस्थिति से बचना है।
तसलीमा नसरीन ने शिकायत की है कि “मुस्लिम कट्टरपंथी देश जो रोहिंग्या को लेकर शोर मचाते हैं वह उन्हें शरण देने को तैयार नहीं।” उन्होंने इनमें पाकिस्तान का नाम भी लिया है। यह भी दिलचस्प है कि जो कट्टरवादी खुद तसलीमा नसरीन को स्थाई वीजा देने का विरोध कर रहे हैं वह इन रोहिंग्यों को यहां बसाने की जोरदार वकालत कर रहे हैं। सबसे ऊंची आवाज जम्मू-कश्मीर तथा बंगाल से आ रही है। 1947 में जम्मू-कश्मीर में आए शरणार्थियों को अभी भी वहां नागरिक अधिकार उपलब्ध नहीं है पर कश्मीरी नेताओं का रोहिंग्या के प्रति दर्द छलक रहा है। जहां देश के दूसरे इलाकों से लोगों के वहां बसने पर जोरदार विरोध है वहां रोहिंग्या के बसने का कोई विरोध नहीं हो रहा।
शिकायत की जा रही है कि अगर तिब्बती बौध तथा तमिल हिन्दू यहां आकर बस सकते हैं तो रोहिंग्या क्यों नहीं? तिब्बती बौध तथा तमिल हिन्दुओं के बारे कभी कोई शिकायत नहीं उठी कि उनके तार आतंकी संगठनों से जुड़े हैं। उनसे पहले यहूदी, पारसी सब यहां अच्छी तरह बस चुके हैं। समस्या उनके प्रति है जिनके तार जेहादियों से जुड़े हैं। नई दिल्ली में पकड़े गए अल कायदा के संदिग्ध आतंकवादी समीऊन रहमान ने माना कि उसका असली मकसद भारत में रह रहे रोहिंग्या की फौज बनाना था। हथियार अल कायदा से मिलने थे।
मैं मानता हूं कि रोहिंग्या की मानवीय समस्या है। चार लाख विस्थापित हो चुके हैं। वह गरीब हैं। कोई देश उन्हें लेना नहीं चाहता। बहुत बड़ी अंतर्राष्ट्रीय त्रासदी है। 50 मुस्लिम देश आगे आकर इन्हें अपने में शामिल क्यों नहीं करते? इन मुस्लिम देशों ने तो सीरिया के शरणार्थी भी लेने से इंकार कर दिया था। और यह रोहिंग्या मुसलमान हमारी जिम्मेवारी कैसे हो गए? वैसे भी पूर्वी सीमा की जनसांख्यिकी और बदलने की इजाजत नहीं होनी चाहिए।
यह म्यांमार की समस्या है हमारी नहीं। हम आर्थिक और दूसरी ऐसी मदद कर सकतें हैं और कर रहे हैं। अतिथि देवो भव: का विचार हर परिस्थिति में सही नहीं हो सकता। वैसे भी ‘अतिथि’ वह होता है जो वापिस चले जाएं। जो बसने के लिए आएं और जिनके कुछ लोगों के पाकिस्तान के आतंकी संगठनों के साथ संबंध हो उन्हें यहां बसाया नहीं जा सकता। जैश-ए-मुहम्मद के मसूद अजहर ने रोहिंग्या मुसलमानों के समर्थन में म्यांमार के खिलाफ जेहाद की धमकी दी ही है। पूर्व थलसेनाध्यक्ष जनरल बिक्रम सिंह ने भी चेतावनी दी है कि “एक देश जो उत्थान की तरफ है भारत,आईआईएस तथा आतंकवादी संगठनों के नापाक इरादों की उपेक्षा नहीं कर सकता…. हमारे नजरिए में राष्ट्रीय सुरक्षा हित की प्रमुखता रहनी चाहिए।”
लेकिन एक बड़ी समस्या और है। ममता बैनर्जी की दिशा और पश्चिम बंगाल का माहौल। कोलकाता में एक मौलवी चीख-चीख कर चिल्ला रहा था कि यह रोहिंग्या हमारे भाई हैं इन्हें यहां से निकाला नहीं जा सकता, हमारा कुरान सांझा है। उसकी धमकी थी कि यह बंगाल है, असम या गुजरात नहीं। सवाल तो यह उठता है कि उसे देश को धमकी देने की जुर्रत कैसे हो गई? इसका जवाब है कि वहां ममता बैनर्जी का शासन है जिन्होंने तुष्टिकरण को कला में परिवर्तित कर लिया है। हाल ही में हम देख कर हटे हैं कि मुहर्रम के दिन दुर्गा विसर्जन पर वहां की सरकार ने पाबंदी लगा दी थी। आखिर में कोलकाता उच्च्तम न्यायालय को दखल देकर विसर्जन की इज़ाजत दिलवानी पड़ी।
क्या हिन्दुओं के अधिकारों को रोक कर ही आप बड़े सैक्युलर नेता बनते हो? ऐसी नीति अपना कर खुद ममता ने दोनों समुदायों के बीच मोटी लकीर खींच ली है। लेकिन इससे अधिक चिंताजनक है कि वोट बैंक की नीति पर चलते हुए ममता की सरकार रोहिंग्या मामले में राष्ट्रीय हित से और समझौता तो नहीं करेगी?
रोहिंग्या मुसलमान हमारी जिम्मेवारी नहीं (Rohingya Muslims Not Our Responsibility),