मास्को में 50 साल बाद (In Moscow after 50 years)

मैं पहली बार मई 1967 में मास्को गया था। मेरी उम्र तब 21 साल की थी। मैं नई दिल्ली में यूएनआई में ट्रेनिंग ले रहा था कि उस वpresidentsir1क्त के जनरल मैनेजर और प्रतिष्ठित पत्रकार कुलदीप नैय्यर ने मुझे और प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए चैकोस्लोवाकिया की राजधानी प्राग भेजा था। पूर्वी जर्मनी (उस वक्त)तथा सोवियत यूनियन की यात्रा हमारे प्रशिक्षण का हिस्सा था। इसलिए इस जुलाई में जब वहां जाने का मौका मिला तो देखना चाहता था कि इन 50 वर्षों में क्या कुछ बदल गया?

बहुत कुछ बदल गया। शीत युद्ध समाप्त हो गया, चैकोस्लोवाकिया के दो हिस्से हो चुके हैं और सोवियत यूनियन का पतन हो गया। 25 दिसम्बर, 1991 को वहां कम्युनिस्ट शासन समाप्त हो गया और अगले ही दिन सोवियत यूनियन भी खत्म हो गया और उसका बड़ा हिस्सा फिर रूस बन गया।

जब दुनिया बदलने वाली यह घटना हुई तो सोवियत यूनियन के राष्ट्रपति मिखाईल गोर्बाचव थे जिन्हें नोबल सम्मान जरूर दिया गया पर इतिहास में उन्हें सोवियत यूनियन का अंतिम राष्ट्रपति माना जाएगा। जब मैं पहली बार वहां गया तो वहां लियोनिड ब्रैजनव का सख्त शासन था। वह 18 साल सत्ता में रहे। वह वक्त था जब सोवियत यूनियन अमेरिका का जबरदस्त मुकाबला कर रहा था। लेकिन वह पिछड़ता गया और आखिर में दिसम्बर, 1991 में स्वीकार कर लिया गया कि हम अमेरिका के बराबर नहीं।

आज वहां व्लाडीमीर पुतिन का शासन है। वह पिछले 17 वर्षों से वहां शासन कर रहे, कभी प्रधानमंत्री बन कर तो कभी राष्ट्रपति बन कर। लेकिन वह उस रूस के राष्ट्रपति है जिसकी अर्थ व्यवस्था कमज़ोर पड़ चुकी है। हमारी अर्थ व्यवस्था भी उनसे बड़ी है लेकिन उनकी जनसंख्या केवल 15 करोड़ है जबकि हमारी 125 करोड़ है। इस कारण आम रूसी नागरिक हमसे कहीं अधिक खुशहाल है।

जब पहले मैं वहां गया तो कम्युनिस्ट तानाशाही में बहुत सख्ती थी। देश सहमा हुआ महसूस हो रहा था। सख्त अनुशासन था। मास्को के बीच प्रसिद्ध लाल चौंक में लोगों को पुलिस की निगरानी में ही घूमने दिया जाता था। रौनक नहीं थी। लाल चौंक के एक तरफ कम्युनिस्ट विचारक तथा क्रांतिकारी नेता तथा पूर्व राष्ट्रपति व्लाडीमीर लैनिन का मकबरा है जहां 1924 को उनके देहांत के बाद से उनका शव संभाल कर रखा हुआ है। आज भी 50 साल पहले की तरह लोग उसे देखने जाते हैं पर तब नियंत्रण इतना था कि स्कूल के बच्चों की तरह निगरानी में ले जाया जाता था, आज खुली छूट है। वास्तव में आज पूरा लाल चौंक का क्षेत्र ही एक बड़ा टूरिस्ट स्थल नज़र आता है। 50 साल पहले ऐसी खुली आजादी के बारे तो सोचा भी नहीं जा सकता था।

सोवियत यूनियन से रूस बनते हुए उस देश ने अपनी विचारधारा भी बदल दी। वह कम्युनिस्ट से कैपटिलिस्ट अर्थात पूंजीवादी देश बन गया। क्रैमलिन दिखाने वाली हमारी गाईड ने भी माना कि उनके देश में अमीर तथा गरीब में फासला बढ़ रहा है। बताया जाता है कि जर्मनी के शहर फ्रैंकफर्ट के बाद सबसे अधिक मरसीडीज़ कारें मास्को में है।

रूस के पास बहुत तेल है जिस कारण रूसी नागरिकों का एक वर्ग जो सरकार के नजदीक है, बहुत अमीर बन गया है। बहुत अरबपति रूसी हैं। स्विस बैंकों में रखे गए धन के मामले में रूसी 19वें स्थान पर है जबकि भारतीय 88वें स्थान पर है। इसी से अंदाजा हो जाएगा कि वहां कितना पैसा है।

वहां छोटा-छोटा भ्रष्टाचार नहीं है जैसा हम स्थानीय स्तर पर यहां देखते हैं। वहां बड़ा भ्रष्टाचार है और पुतिन के नजदीकी लोगों पर लगातार आरोप लगाते रहते हैं। लेकिन इसे बर्दाश्त किया जाता है। लक्षमण रेखा एक ही है। आप पुतिन का विरोध नहीं कर सकते। अगर विरोध करेंगे तो सौभाग्यशाली होंगे अगर आपको किसी जेल के तहखाने में डाल दिया जाए, नहीं तो गोली या ज़हर आपका इंतजार करेंगे। यह भी समाचार है कि रूस की गुप्तचर एजेंसियां विदेशों में भी जाकर पुतिन विरोधियों का काम तमाम कर देती हैं। यह पुरानी सोवियत यूनियन के समय की नीति है कि विरोध को बर्दाश्त नहीं किया जाता और सख्ती से कुचला जाता है। लेकिन इसके बावजूद प्रदर्शन हो रहे हैं। जून में मास्को में युवाओं ने प्रदर्शन किया। मास्को के केन्द्र में बैठ कर वह राष्ट्रीय गान गाते रहे जब तक पुलिस उन्हें पकड़ कर नहीं ले गई। सोशल मीडिया के जमाने में विरोध को पूरी तरह दबाना भी आसान नहीं।

मास्को दुनिया के महान शहरों में से है। जैसे नई दिल्ली है, लंदन है, पेरिस है, बर्लिन है, वाशिंगटन है। सुनहरा इतिहास है। बहुत भव्य शहर है। लंदन तंग है जबकि मास्को बहुत फैला हुआ है। बहुत चौड़ी सड़कें हैं। उनकी तो मैंट्रो देखने वाली है। हर स्टेशन एक कलाकृति है जिसे किसी प्रसिद्ध रूसी कलाकारों ने बनाया है। मास्को की एक बड़ी उपलब्धि है। इसने हर हमलावर को पराजित किया चाहे वह नैपोलियन हो या हिटलर। नैपोलियन ने जून 1812 में 500,000 की सेना के साथ रूस पर हमला किया था। नवम्बर 1812 तक वह पराजित हो चुका था और मुश्किल से वापिस निकल पाया था। उसके 400,000 सैनिक मारे गए थे। हिटलर को भी रूस ने पराजित किया था। उसके लाखों सैनिक मारे गए थे।

आज रूस अमेरिका जैसी महाशक्ति नहीं रहा। चीन भी उनसे आगे निकल गया है। भारत भी निकल रहा है। देश को बदलते वक्त स्टेलिन के जमाने का नियंत्रण ढीला नहीं किया गया। जिस तरह जर्मनी तथा जापान जैसे देश रिसर्च तथा नवाचार से खुद को आगे रख रहे हैं वैसा रूस में नहीं है। सोचने की आजादी पर अब भी बंदिश है। आधुनिक बनने के बाद भी वह प्राचीन सभ्यता नजर आती है। जनसंख्या तेजी से बूढ़ी हो रही है। युवा कम नजर आते हैं। यह सारे योरुप की परेशानी भी है। आगे चल कर भी बहुत बड़ी समस्या बनेगी।

लेकिन जहां रूस की ताकत कम हुई है वहां उसका दुनिया में प्रभाव कम नहीं हुआ। पश्चिम के देश पुतिन को खलनायक प्रदर्शित करते हैं क्योंकि उन्होंने उक्रेन में दखल दी थी लेकिन पिछली अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव में दखल देकर रूस ने अपनी क्षमता प्रदर्शित कर दी। हिलेरी क्लिंटन बार-बार शिकायत कर रहीं है कि रूसी एजेंसियों ने डोनाल्ड ट्रंप के पक्ष में दखल दिया था। अगर यह आरोप सत्य है तो इसका यह भी मतलब है कि पुतिन के पास वह जानकारी है जिससे वह जरूरत पडऩे पर ट्रंप को भी नचा सकते हैं। अमेरिकी खुफिया एजेंसियों को घबराहट है कि कहीं रूस उनके राष्ट्रपति को ब्लैकमेल न कर दे। अर्थात मास्को का सत्ता का केन्द्र क्रैमलिन आज भी उसी तरह महत्व रखता है जैसे वाशिंगटन का व्हाइट हाऊस।

एक टूरिस्ट के तौर पर वहां कई मुश्किलें आती हैं। लोग रूसी भाषा ही बोलते और समझते हैं। शाकाहारी खाना भी समस्या है पर मास्को तथा सैंट पीटर्सबर्ग दोनों जगह हमें भारतीय रैस्टोरैंट मिल गए थे। मास्को के ताजमहल रैस्टोरैंट में पनीर नान तथा भिंडी खाने का अपना मज़ा था। सैंट पीटर्सबर्ग जो दो शताब्दी रूस की राजधानी रहा है और एक अत्यंत खूबसूरत शहर है, को हिटलर ने 872 दिन घेरे रखा जिस दौरान 6 लाख लोग मारे गए थे। चार हजार तो भूख से मारे गए लेकिन शहर ने समर्पण नहीं किया। इससे रूसियों की हिम्मत का पता चलता है। वहां भारी वर्षा के बीच हमें तंदूर रैस्टोरैंट मिल गया जहां काम कर रहा एक लडक़ा आंध्रप्रदेश से था जो वहां एमबीबीएस कर रहा था। एक और हिमाचल प्रदेश में हमीरपुर से था। वहां के ठंडे मौसम में परौंठे खाने का अपना आनंद था। पर वहां लोग सिगरेट बहुत पीते हैं। जमीन पर कागज का एक टुकड़ा नहीं मिलेगा पर हर जगह सिगरेट के टुकड़े मिलेंगे।

50 साल के बाद मास्को तथा सैंट पीटर्सबर्ग की यात्रा एक अनोखा अनुभव था। रूस अभी भी सैनिक सुपरपावर है। पहले धार्मिक पाबंदी थी पर अब लोग खुले चर्च जाते हैं। क्रैमलिन में शहीद स्मारक पर हमारी गाईड ने बताया कि यहां केवल नीली आंखों वाले तथा भूरे बालों वाले सैनिक ही तैनात होते हैं। अर्थात रूसी अपनी नसली प्राथमिकता स्पष्ट कर रहे हैं। गाईड का यह भी कहना था कि यहां उन लोगों को याद किया जाता है जो मदरलैंड अर्थात मातृभूमि के लिए शहीद हुए हैं। अफसोस है कि हमारे देश में अभी भी कई लोग ‘मातृभूमि’ कहने पर आपत्ति करते हैं। और यह भी अफसोस है कि हम राजधानी नई दिल्ली में अपना भव्य शहीद स्मारक नहीं बना सके।

VN:F [1.9.22_1171]
Rating: 10.0/10 (3 votes cast)
VN:F [1.9.22_1171]
Rating: +2 (from 2 votes)
मास्को में 50 साल बाद (In Moscow after 50 years), 10.0 out of 10 based on 3 ratings
About Chander Mohan 708 Articles
Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.