
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की शिकायत है कि सरदार वल्लभ भाई पटेल के नाम को इतिहास से मिटाने का प्रयास किया गया। प्रधानमंत्री की शिकायत गलत नहीं। जवाहरलाल नेहरू के बाद शास्त्री जी का कार्यकाल अल्पावधि रहा और शासन की बागडोर दशकों नेहरू-गांधी परिवार के हाथ रही इस कारण जिनके भी नेहरू के साथ मतभेद थे उन्होंने उनकी सम्मानीय जगह नहीं दी गई। पटेल, सुभाष बोस, सी. राजगोपालाचारी, अम्बेदकर, अबुल कलाम आजाद सबकी उपेक्षा सत्तारुढ़ ‘डायनेस्टी’ द्वारा की गई। इसका इससे बड़ा प्रमाण क्या हो सकता है कि जिस महान देशभक्त तथा प्रशासक ने 500 से अधिक रियासतों को इकट्ठा कर भारत संघ में विलय करवाया, पटेल, उन्हें भारत रत्न देर से 1991 में दिया गया। तब तक जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी सबको भारत रत्न दिया जा चुका था। कितना अन्याय है कि सरदार पटेल की बारी राजीव गांधी के बाद आई।
लेकिन इतिहास में सरदार पटेल की जगह गौरवमय रहेगी। पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने मई 1959 में कहा था, “कि आज सोचने या बात करने के लिए भारत है तो यह बहुत अधिक कुछ सरदार पटेल की राजनीति तथा दृढ़ शासन का परिणाम है।“ इतिहासकार राम चंद्र गुहा लिखते हैं, “आजादी के शुरूआती दिनों में नए राष्ट्र के मृत्युलेख बहुत लिखे जाते रहे कि भारत गणराज्य गृहयुद्ध में घिर जाएगा तथा इसके कई हिस्से हो जाएंगे…. लेकिन ऐसा नहीं हुआ। बड़ी चुनौती के बावजूद भारत बचा रहा (इसका कारण) हमारे राजनेताओं की पहली पीढ़ी थी, नेहरू, पटेल, अम्बेदकर, राजगोपालाचारी तथा उनके साथी।“
यह बात बिल्कुल सही है। अगर भारत पाकिस्तान नहीं बना तो इसलिए कि आजादी के समय हमें सबल और बुद्धिमान नेतृत्व मिला था। सरदार पटेल इनमें प्रमुख थे। दिलचस्प है कि पटेल को ‘सरदार’ का खिताब आम लोगों ने दिया था अंग्रेज तो इसको बिल्कुल पसंद नहीं करते थे। 1931 में अंग्रेज सरकार के गृहसचिव ने एक अफसर को इस बात को लेकर फटकार लगाई थी कि उसने पटेल को ‘सरदार’ कहा था।
किस तरह पटेल ने रियासतों को भारत संघ में मिलाया इसके बारे बहुत कुछ लिखा जा चुका है लेकिन अपने राजनीतिक जीवन में उन्होंने जो कुर्बानियां दीं इसकी अभी भी पूरी तरह से कदर नहीं की गई। इतिहास गवाह है कि शुरू में पटेल जवाहर लाल नेहरू से अधिक लोकप्रिय थे। संगठन में उनका विशेष दबदबा था। पटेल गांधी जी के नजदीक भी थे लेकिन अपना उत्तराधिकारी चुनते हुए गांधी ने नेहरू को चुना था। गांधी जी की क्या वजह थी?
गांधी-पटेल-नेहरू रिश्तों के बारे किशोरी लाल मशरुवाला ने बहुत स्टीक टिप्पणी की थी, “मैं गांधी-पटेल के रिश्तों को भाईयों का रिश्ता कहूंगा जिसमें गांधी बड़े भाई हैं। गांधी-नेहरू रिश्ता बाप-बेटे का है।“ इसका यह भी अर्थ था कि छोटा भाई राज्य-संरक्षक तो ही बन सकता है लेकिन उत्तराधिकारी तो बेटा ही होगा। ऐसा ही हुआ। गांधी ने महादेव के सामने स्वीकार किया कि मुझे अहसास है कि भगवान की मुझ पर बड़ी कृपा रही है कि उसने मुझे वल्लभ भाई जैसे असाधारण व्यक्ति का साथ दिया।“ लेकिन इसके बावजूद गांधी जी का झुकाव नेहरू की तरफ रहा जिसका मुख्य कारण था कि नेहरू की छवि उदारवादी थी। वह सभी वर्गों को स्वीकार्य थे और नौजवान थे। पटेल की सेहत अच्छी नहीं थी आजादी के तीन साल के बाद उनका देहांत भी हो गया। पटेल देश के मुसलमानों, युवा तथा वामपंथियों में कम लोकप्रिय थे। उन्होंने एक बार कहा भी था, “भारत के मुसलमानों को मैं कहना चाहता हूं…. कि आप दो घोड़ों की सवारी नहीं कर सकते। एक घोड़ा चुन लो, जो पाकिस्तान जाना चाहे वह वहां जा सकते हैं।“
पटेल और नेहरू में बहुत मतभेद थे पर एक बार फैसला हो गया कि नेहरू ही नेता होंगे तो पटेल ने बिना सवाल उठाए वफादारी निभाई। गांधी की हत्या के बाद दोनों और नजदीक आ गए। गांधी के शव के पास माऊंटबैटन ने दोनों को समझाया था कि ‘गांधी जी की अंतिम इच्छा थी कि आप दोनों एक साथ मिल कर काम करो।‘ दोनों ने सर हिलाया और भावुक हो एक-दूसरे को गले से लगा लिया। फरवरी 1948 में संविधान सभा को संबोधित करते हुए सरदार पटेल ने सार्वजनिक तौर पर नेहरू के प्रति अपनी वफादारी प्रकट की थी और पहली बार नेहरू को ‘मेरा नेता’ कहा था।
ऐसा चरित्र, देशभक्ति तथा निस्वार्थता कहां मिलेगी? सारी पार्टी उनके साथ थी लेकिन पटेल हर बार महात्मा के कहने पर पीछे हटते रहे।
यह नहीं कि आजादी के बाद दोनों में मतभेद नहीं थे। नेहरू कश्मीर को संभालना चाहते थे इसलिए पटेल एक तरफ हो गए। इस मामले में इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने दिलचस्प रहस्योघाटन किया है कि जहां नेहरू सदैव कश्मीर को भारत का हिस्सा चाहते थे पटेल एक समय कश्मीर के पाकिस्तान में विलय की इजाजत देने को तैयार थे। वह उस दिन पलट गए जब पाकिस्तान ने जूनागढ़ के विलय को स्वीकार कर लिया।
चीन तथा तिब्बत को लेकर भी भारी मतभेद थे। तिब्बत के बारे पटेल ने नेहरू को सावधान किया था, “मेरा आंकलन है कि जिस दिन कम्युनिस्टों के बाकी चीन में पैर जम गए वह इसकी स्वायत्त हस्ती खत्म कर देंगे।“ लेकिन नेहरू खुद को विदेश नीति के माहिर समझते थे इसलिए पटेल की सलाह की अनदेखी कर दी जिसकी कीमत हम आज तक चुका रहे हैं। पटेल का मानना था कि चीनी कम्युनिज्म उग्र राष्ट्रवाद का मुखौटा है। आज यह बात साबित भी हो रही है।
एक मतभेद का कारण राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ भी था। 30 जनवरी को गांधी जी की हत्या के बाद संघ पर प्रतिबंध लगा दिया गया। पटेल की जीवनी के लेखक राजमोहन गांधी के अनुसार नेहरू का मानना था कि संघ फासीवादी है, जबकि पटेल समझते थे कि यह संस्था देशभक्त है पर कई बार गुमराह हो जाती है। नेहरू के विचार अधिक उग्र थे। गांधी की हत्या के दो सप्ताह के बाद पंजाब के गवर्नर को नेहरू ने लिखा था, “इन लोगों के हाथ महात्मा गांधी के खून से सने हैं।“ लेकिन एक साल के बाद प्रतिबंध हटा लिया गया। स्पष्ट तौर पर कोई प्रमाण नहीं मिला।
प्रधानमंत्री मोदी ने शिकायत की है कि पटेल को भुला दिया गया पर यही प्रयास नेहरू की विरासत के साथ किया जा रहा है जो सही नहीं है। यह प्रयास सफल भी नहीं होगा। इतिहासकार सही लिखते हैं, अगर भारत की हस्ती बच गई तो यह उस वक्त के नेतृत्व के कारण थी। गांधी जी की आजादी के अगले साल हत्या हो गई। देश के अस्थिर होने का खतरा था। पटेल दिसम्बर 1950 में चल बसे। सी राजागोपालाचारी कोपभवन में चले गए और उन्होंने अपनी अलग ‘स्वतंत्र पार्टी ‘बना ली। देश को संभालने के लिए केवल जवाहर लाल रह गए।
यह सही है कि नेहरू ने चीन, तिब्बत तथा कश्मीर के बारे सही निर्णय नहीं लिए। समाजवाद को जरूरत से अधिक गले लगा लिया जिस कारण भारत अति गरीब देश रहा। लेकिन अगर नेहरू मजबूती से देश को न संभालते तो हमारा भी पाकिस्तान वाला हश्र होता। पटेल अगर साथ रहते तो हो सकता है कि नेहरू की गलतियां कम होती पर किसने गलती नहीं की? इंदिरा ने एमरजैंसी लगाई। राजीव के समय सिख विरोधी दंगे हुए। वाजपेयी के समय कंधार और कारगिल हुए, मनमोहन सिंह के समय रिकार्ड तोड़ भ्रष्टाचार हुआ है।
विभाजन की त्रासदी, जब लाखों बेघर थे और लाखों ही मारे गए के बीच नेहरू ने लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, बराबरी की संस्थाएं मजबूत की। वह भारत के लोकतंत्र के प्रमुख शिल्पकार थे। इस दौरान उन्होंने भाखड़ा डैम, बीएचईएल, एम्स, ओएनजीसी, बार्क, नैशनल डिफैंस अकादमी, कृषि विश्वविद्यालय जैसी संस्थाओं का निर्माण भी करवाया। यह तस्वीर आज भी मौजूद जब भाखड़ा डैम के उद्घाटन के समय देश के प्रधानमंत्री एक साधारण स्टूल पर बैठे लोगों से बात कर रहे हैं। आज के तामझाम से इसकी तुलना तो कीजिए!
सरकारें बदल जाती हैं पर इतिहास नहीं बदलता। हम इतिहास को मिटा भी नहीं सकते। इसलिए नेहरू की उपेक्षा करना या उनके नाम को कम आंकना उतना ही अनुचित है जितना सरदार पटेल के साथ ऐसा बर्ताव करना था। नेहरू और पटेल, न कि नेहरू या पटेल। दोनों ने आजाद भारत की नींव रखी थी। दोनों ने स्वयं के उपर राष्ट्र को रखा। जवाहर लाल नेहरू ने एक बार सही कहा था, “असहमति से अधिक हमारे बीच सहमति थी।“
नेहरू और पटेल (Nehru and Patel),