मिस्टर बच्चन का वैराग्य (Mr Bachchans Renunciation)

कोई भी कलाकार नहीं है। न केवल शाहरुख खान या आमीर खान, बल्कि अमिताभ बच्चन तो दिलीप कुमार और राजेश खन्ना आदि को भी लोकप्रियता में पीछे छोड़ गए हैं। बड़ा कारण है कि उनमें अभिव्यक्ति का वह जादू है जो बहुत कम लोगों के पास है। सरस्वती का पूरा आशीर्वाद है। याद आता है मार्च 2016 में ईडन गार्डन में विश्वकप भारत-पाक टी-20 मैच जब अपनी बेजोड़ आवाज़ में उन्होंने राष्ट्रीयगान गाकर सारे देश को रोमांचित कर दिया था।

गांधी परिवार के साथ रिश्ता टूटने पर उनका कहना था ”हमारा मुकाबला कहां है, वह राजा है हम रंक हैं।“ कौन उस व्यक्ति को च्रंकज् मानेगा जो पिछले 50 वर्षों से हम सब को अपनी अदाकारी तथा अपनी आवाज से सम्मोहित कर रहा है? हमारे सांस्कृति क्षेत्र में उनका आईकानिक स्तर है। जिस परिवार में वह जन्में और पले यह स्वाभाविक भी था कि हरिवंश तथा तेजी बच्चन का पुत्र इस तरह प्रतिभाशाली हो। ‘कुली’ के सैट पर उन्हें आई गंभीर चोट के बाद उनके पिताश्री हरिवंश राय बच्चन ने लिखा था “अमिताभ ने जो लोक स्वीकृति, लोकप्रियता प्राप्त की है, वह केवल फिल्मों के माध्यम से है। उनकी बीमारी ने दूसरी बात यह सिद्ध की कि अमिताभ अपने अभिनेता रूप से जनजीवन के कितने स्तरों को भेदते कितने गहरे जा पैठे हैं।“

अमिताभ बच्चन की यह जो ‘गहराई’ है यह सचमुच चौंका देने वाली है। अभिनय को जारी रखते हुए उन्होंने एक और फायदेमंद क्षेत्र में कदम रख लिया। आज छोटे-बड़े पर्दे पर वह तरह-तरह की चीजें बेच रहे हैं। कई ऐसी भी है जो उनकी प्रतिष्ठा से मेल नहीं खाती। अपनी स्पष्ट प्रतिभा का उन्होंने खूब व्यापारिक दोहन किया है। सरस्वती के साथ लक्ष्मी का आशीर्वाद भी प्राप्त कर लिया! वह खुद ही ब्रांड बन गए और इसमें उन्होंने अपने से आधी उम्र के अभिनेताओं को तगड़ी मात दी है।

अपने सिनेमाई आकर्षण का उन्होंने राजनीति में दोहन करने का प्रयास भी किया लेकिन दुर्भाग्यवश बहुत कामयाब नहीं हुए उलटा अनावश्यक बदनामी झेलनी पड़ी। राजीव गांधी के कहने पर इलाहाबाद से लोकसभा का चुनाव लड़ा लेकिन बोफोर्स की छाया उन पर पड़ गई। उन्होंने शिकायत भी की कि कई वर्ष उनके परिवार को अपमानित किया गया। उनसे तीखे सवाल पूछे गए और उन्हें देशद्रोही तक कहा गया। इससे परेशान होकर उन्होंने इंग्लैंड के एक अखबार के खिलाफ मानहानि का मुकद्दमा भी जीत लिया लेकिन साथ ही राजनीति को ‘मलकुंड’ घोषित करते हुए अलविदा कहने की घोषणा भी कर दी।

लेकिन यह आधी घोषणा थी। खुद चुनावों की राजनीति से दूर रहते हुए उन्होंने राजनीतिज्ञों का साथ नहीं छोड़ा और अपनी पत्नी जया को राज्यसभा का सदस्य बनवा दिया। इस ‘मलकुंड’ में जया बच्चन की यह तीसरी टर्म है।  जहां तक राजनेताओं से रिश्तों का सवाल है दोनों को एक-दूसरे की जरूरत है। आखिर बच्चन की अपनी लोकप्रियता है और आकर्षण है। कई नेताओं के तो वह बहुत घनिष्ठ रहे जिनमें अमर सिंह प्रमुख थे। कहते हैं कि जब अमिताभ बच्चन की कंपनी एबीसीएल कर्जे में डूब रही थी तब अमर सिंह ने बहुत मदद की थी। अमर सिंह के कारण वह मुलायम सिंह यादव के भी बहुत नजदीक आ गए। तब अमिताभ बच्चन का कहना था कि  “अगर अमर सिंह मेरी जिन्दगी में न आते तो मैं सडक़ पर होता। शायद टैक्सी चलाता होता।“

जहां अमिताभ बच्चन को सरस्वती का वरदान है वहां रिश्ते कायम रखने में वह इतने सौभाग्यशाली नहीं रहे। एक दिन अमर सिंह के साथ भी रिश्ता टूट गया। अमर सिंह का अब कहना है,  “मिस्टर बच्चन बागवान से उलट हैं…कम से कम भावनात्मक तौर पर वह बाग उजाड़ हैं”। और जरूरी नहीं कि अच्छा अदाकार अच्छा इंसान भी हो।

लेकिन अब तक अमिताभ बच्चन आगे बढ़ चुके हैं। हवा का रुख पहचानते हुए वह नरेन्द्र मोदी के करीब आ गए। गुजरात के ब्रैंड अम्बेसेडर बन गए। गांधी परिवार या मुलायम परिवार या अमर सिंह जैसों को वह अतीत के कूड़ादान में फैंक चुके थे। ग्रेट गैम्बलर आगे ही बढ़ता गया।

लेकिन कभी-कभी अतीत वर्तमान को घेर लेता है और भविष्य को प्रभावित करता है। अमिताभ बच्चन का दुर्भाग्य है कि अतीत में उठाए गए कुछ व्यापारिक कदम अब उन्हें परेशान कर रहे हैं और कई सवाल खड़े कर रहे हैं। पहले उनका नाम पनामा पेपर्स में आया और अब ताज़ा रहस्योद्घाटन पैराडाइज पेपर्स के बारे है कि उनके ऑफशोर कंपनियों में खाते थे। अर्थात उन कंपनियों में जो देश के बाहर संदिग्ध जगहों से अपने कारोबार करती है। दोनों सूचियों में विजय माल्या का नाम भी प्रमुख हैं।

सभी ऐसी कंपनियां बदमाश नहीं होती। बहुत लोग रिजर्व बैंक की अनुमति से यहां व्यापार करते हैं। पनामा पेपर्स का इतना शोर मचने के बाद अभी तक 792 करोड़ रुपए का कथित कालाधन ही बरामद हुआ है। न ही अभी तक यह प्रमाणित ही हुआ है कि अमिताभ बच्चन ने कुछ गलत ही किया है। बताया जाता है कि कौन बनेगा करोड़पति  के पहले सत्र के एक वर्ष बाद बच्चन ने बरमुडा की एक डिजिटल मीडिया कंपनी में पैसे लगाए थे। यह कंपनी 2005 में बंद हो गई।

लेकिन हैरान करने वाली मिस्टर बच्चन की प्रतिक्रिया थी। पैराडाइज पेपर्स में उनके नाम के बाहर आने से एक दिन पहले उन्होंने बहुत भावुक ब्लॉग लिखा, “मेरी  जिन्दगी में इस आयु तथा इस समय मैं शोहरत से शांति और मुक्ति चाहता हूं… चाहता हूं कि अपनी जिन्दगी के अंतिम कुछ यह साल अपने साथ और अपने अंदर गुजार सकूं।“

कितना भावुक बयान है! 75 वर्ष का यह महानायक अब अपने प्रशंसकों से कह रहा था कि बस, अब और नहीं। मैं और मेरी तन्हाई! हम चाहते हैं कि हमें अकेला छोड़ दिया जाए। मन उचाट हो गया। कोई भी इच्छा नहीं रही। मुझे शोहरत नहीं चाहिए। मुझे सुर्खियां नहीं चाहिए। अब लोगों की आकांक्षाओं का बोझ मैं और नहीं उठा सकता।

उनके इस बयान से दूसरों की तरह मैं भी बहुत प्रभावित हुआ था। सहानुभूति भी हुई। पर शाम को टीवी पर जब फिर उन्हें किसी की दाड़ी बनाते देखा तो तिलिस्म टूट गया। जो व्यक्ति वैराग्य की कामना कर रहा है वह बेधडक़ विज्ञापन कर रहा था जो उसके स्तर के उपयुक्त नहीं थे। दो दिन के बाद सजे-सजाए उन्हें कोलकाता में फिल्मोत्सव के उद्घाटन पर भी देखा गया। मुक्ति तो क्या चाहनी वह तो शोहरत और पैसे के पीछे भाग रहें हैं। यह बुरी बात नहीं है। अच्छी बात है कि इस आयु में भी वह सक्रिय हैं। हमारी पीढ़ी के लिए वह एक मिसाल हैं पर फिर यह तमाशा क्यों कि मुझे कुछ नहीं चाहिए, केवल चैन चाहिए।मैं और मेरी तन्हाई!

जिसे चैन चाहिए वह टीवी विज्ञापनों में आंखें मटकाता या हाथ-पैर मारता नज़र नहीं आता। 75 वर्ष की आयु में वह लाल या हरे जूते डाले नज़र नहीं आता। अमिताभ बच्चन कभी भी बैरागी नहीं रहे। उन्होंने जिन्दगी का खूब लुत्फ उठाया है। आज तक वह अपनी प्रतिभा को खूब बेच रहे हैं। यह बुरी बात नहीं पर फिर वैराग्य की इच्छा का यह नाटक क्यों? पैराडाइज पेपर्स से ध्यान हटाने के लिए नम्रता का मुखौटा ओड़ लोगों को बेवकूफ बनाने का प्रयास क्यों? जिसे इस उम्र में भी पैसा इकट्ठा करने का लालच है वह ऐसा विलाप कैसे कर सकता है? अगर आप वास्तव में चैन चाहते हैं तो घर बैठने का विकल्प आपके पास है। लोगों की भावना के साथ एक्टिंग नहीं होनी चाहिए।

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Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.