जैसे आशंका थी फिल्म पद्मावती से उत्पन्न विवाद ने पहली बलि ले ली। जयपुर के नज़दीक नाहरगढ़ किले के बाहर लटका हुआ शव मिला है जिसके पास एक पत्थर पर लिखा हुआ था कि “हम सिर्फ पुतले ही नहीं लटकाते।“ जहां इतनी उकसाहट हो वहां कुछ भी हो सकता है। जो मामला संजय लीला भंसाली तथा दीपिका पादुकोण का गला काटने या नाक काटने से शुरू हुआ था वह नियंत्रण से बाहर हो रहा है। इधर-उधर गला-हाथ काटने की आम धमकियां दी जा रही हैं। राबड़ी देवी ने तो यहां तक कह दिया कि बिहार में लोग प्रधानमंत्री मोदी के हाथ काटने के लिए तैयार बैठे हैं। उनकी यह प्रतिक्रिया बिहार भाजपा अध्यक्ष नित्यानंद राय के इस कथन का जवाब था कि जो उंगली प्रधानमंत्री मोदी की तरफ उठेगी उसे काट दिया जाएगा। एक भाजपा नेता ने बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी को शूर्पणखा बनाने की धमकी दी है। सबसे निंदनीय लालू प्रसाद यादव के बड़े पुत्र तेज प्रताप की धमकी है कि वह प्रधानमंत्री मोदी की खाल उतरवा देगा।
यह हो क्या रहा है? यह कैसी नफरत की हवा चल रही है? क्या यह देश पागल हो गया है? किसी की हत्या के लिए 1 करोड़ रुपए तो किसी की हत्या के लिए 5 करोड़ रुपए तो किसी की हत्या के लिए 10 करोड़ रुपए की खुलेआम घोषणा की जा रही है। कानून कहां है? सडक़ पर खड़ा हो अगर कोई गला काटने की खुली धमकी दे और उसके खिलाफ कोई कार्रवाई न हो तो इसे जंगल राज ही कहा जाएगा। उस देश के बारे दुनिया क्या राय रखेगी जहां एक शख्स नैशनल टीवी पर आकर एक महिला की हत्या का आह्वान करता है और उसके खिलाफ शून्य कार्रवाई होती है? टीवी चैनल भी इन लोगों को प्रचार का मौका क्यों दे रहे हैं? सरकार खामोश है। केवल उपराष्ट्रपति वैंकेया नायडू ने कहा है कि हिंसक धमकियां लोकतंत्र में स्वीकार नहीं। पर माननीय, यहां तो यह स्वीकार की जा रही हैं। ऐसा आभास मिलता है कि सरकार ने अपनी जिम्मेवारी त्याग दी है नहीं तो किस की जुर्रत हो सकती कि प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री के पद पर बैठे लोगों का गला काटने की धमकी दे? अगर यह देश द्रोह नहीं तो और क्या है?
देश में असहिष्णुता फैल रही है क्योंकि शुरू में इन धमकियों को बंद नहीं करवाया गया। आज इकबाल के साथ कहा जा सकता है,
यह दस्तूरे जुबानबंदी है कैसा तेरी महफिल में
यहां तो बात करने को तरस्ती है जुबां मेरी!
मामला पद्मावती फिल्म से जुड़ा है जिसको लेकर राजपूत समुदाय में आक्रोश नज़र आता है। अभी फिल्म रिलीज़ नहीं हुई। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है और सरकार भी कह रही है कि सैंसर बोर्ड को उसका काम करने दो, लेकिन उससे पहले ही मामले में खूब उत्तेजना भर दी गई है। भाजपा के तीन मुख्यमंत्रियों ने इसके प्रदर्शन पर रोक लगाने की घोषणा की है। अगर सैंसर बोर्ड आपत्ति करे तो समझ आती है पर यहां तो पहले ही हिंसा शुरू हो गई।
बिना फिल्म देखे उस पर प्रतिबंध लगा भाजपा के तीन मुख्यमंत्री देश-विदेश को संदेश क्या देना चाहते हैं? कि भाजपा राज में अभिव्यक्ति की आजादी को गंभीर खतरा है? इन धमकियों के बारे केवल भाजपा ही नहीं कांग्रेस भी खामोश है। मैंने फिल्म नहीं देखी, पर दिलचस्प तो यह है कि जो विरोध कर रहे हैं उन्होंने भी नहीं देखी और न ही वह बता सकते हैं कि कहां इतिहास का उल्लंघन किया गया है जबकि जिन कुछ प्रमुख पत्रकारों ने फिल्म देखी है उनका कहना है कि यह फिल्म तो वास्तव में राजपूत गौरव की गाथा है। यह वीरांगना रानी पद्मावती की खूबसूरत कहानी है। वरिष्ठ पत्रकार वेद प्रताप वैदिक का लिखना था “यह फिल्म राजपूतों के गौरव तथा शौर्य की प्रतीक है। “ लगभग ऐसी ही बात भाजपा समर्थक पत्रकार आरनब गोस्वामी ने भी कही है कि यह फिल्म तो च्च् पद्मावती की महानता को श्रद्धांजलि है।ज्ज् फिर यह लोग भडक़ क्यों रहे हैं?
प्रधानमंत्री बार-बार न्यू इंडिया की बात कर रहे हैं लेकिन ‘न्यू इंडिया’ केवल आर्थिक सुधार से ही नहीं बनेगा। अगर हमने अमेरिका या जर्मनी या जापान की बराबरी करनी है तो लोगों की सोच या अभिव्यक्ति की आजादी पर इस तरह पहरा नहीं लगाना चाहिए। न ही हिन्दू उग्रवादी हैं। लेकिन कभी गाय रक्षा को लेकर तो कभी ताजमहल को लेकर या किसी ऐसे और मामले को लेकर हिंसा की खुली धमकियां दी जा रही हैं। यहां तो एक केन्द्रीय मंत्री कह चुकें है कि कैंसर पाप का फल है! यह कैसी पिछड़ी सोच है? हिन्दू समाज की यह लोग बहुत विकृत तस्वीर बाहर पेश करते हैं। हम तालीबान नहीं। कट्टरवादियों ने लडखड़़ाते पाकिस्तान का क्या हाल किया है यह हमारे सामने ही है। यह ज़हरीली हिंसक विचारधारा देश को तबाह कर देगी। जैसे कहा गया है,
मेरे आशियां का तो गम न कर कि वह जलता है तो जला करे,
लेकिन इन हवाओं को रोकिए यह सवाल चमन का है!
दिल्ली के दयाल सिंह कालेज (इवनिंग) का नाम बदल कर ‘वंदे मातरम महाविद्यालय’ रख दिया गया है। कालेज के चेयरमैन का कहना है कि वंदे मातरम कोई आम नाम नहीं, “यह राष्ट्रवाद को आह्वान है। “इस देश का यह दुर्भाग्य है कि यहां राष्ट्रवाद के ठेकेदार जगह-जगह कुकरमुत्ता की तरह उग रहे हैं। क्या यह शख्स हमें बताना चाहता हैं कि सरदार दयाल सिंह मजीठिया जिन्होंने पहले लाहौर में कालेज स्थापित किया जो बाद में करनाल तथा दिल्ली में भी खोला गया, जिन्होंने अंग्रेज़ों की हकूमत के समय ट्रिब्यून अखबार स्थापित किया और 1894 में पंजाब नैशनल जैसा बड़ा बैंक स्थापित किया, वह राष्ट्रवादी नहीं थे? उस दानवीर महापुरुष ने अंग्रेजों के वक्त अपनी सारी जायदाद शिक्षा को दान दे दी और आज उनके नाम को राष्ट्रवाद के नाम पर उखाडऩे की गंदी हरकत हो रही है।
दयाल सिंह मजीठिया जैसे लोग तो आने वाली पीढ़ियों के लिए मिसाल है। विडम्बना देखिए कि लाहौर में अभी भी दयाल सिंह कालेज मौजूद है। वहां रहे लैक्चरार गुलाम मुस्तफा के अनुसार वहां भी कुछ लोगों ने इसका नाम बदल कर ‘दाता साहिब कालेज’ रखने का प्रयास किया था लेकिन “रोशन ख्याल” अध्यापकों ने लड़ाई लड़ी और ऐसा नहीं होने दिया।
यह कितनी दुर्भाग्य की बात है कि इस्लामिक पाकिस्तान में तो दयाल सिंह कालेज तथा ट्रस्ट अभी भी मौजूद है पर सैक्यूलर तथा उदारवादी भारत अपनी खूबसूरत बहुरुपता को खत्म करने में लगा हुआ है। हमारे रोशन ख्याल वालों की बत्ती क्यों बुझ रही है? अफसोस आजकल फटाफट देश भक्त बनने की होड़ लगी हुई है। जो विरोध करेगा उस पर ’एंटी-नैशनल’ का तगमा जड़ दिया जाएगा।
अंत में: जालंधर में उद्योग तथा व्यापार विभाग द्वारा उद्योगपतियों के साथ जब चर्चा के दौरान प्रधानमंत्री मोदी का भाषण शुरू किया गया तो उद्यमियों ने तत्काल उठ कर इसे बंद करवा दिया। कुछ समय पहले तक यह सोचा भी नहीं जा सकता था कि नरेन्द्र मोदी का भाषण लोग सुनने से इंकार कर देंगे। इसका अर्थ क्या है? कहीं दर्द है और लोगों की शिकायतों का समाधान नहीं हो रहा है। विशेष तौर पर मिडल क्लास परेशान है।
उधर आम लोग भी शिकायत कर रहे हैं कि आधार कार्ड की अनिवार्यता के कारण उनके इंशोरेंस, प्रौविडंट फंड, म्यूचल फंड, पैंशन आदि को 1 जनवरी के बाद निकालना मुश्किल हो जाएगा। लोग निवेश करते हैं कि जब जरूरत होगी पैसा मिल जाएगा अब बीच आधार कार्ड की बाधा डाल दी गई है। लोगों की जिंदगी सुगम करने की जगह सरकार नई-नई रुकावट खड़ी करती जा रही है। मैंने जब आधार कार्ड बनाया तो पासपोर्ट को पहचान के तौर पर प्रस्तुत किया, अब पासपोर्ट को दुबारा बनाने के लिए आधार को प्रस्तुत करना पड़ा। न्यू इंडिया, जय हो!
इन हवाओं को रोकिए (Stop this poisonous air),