निराले देश में बेतुकी बहस (Irrelevant Discussion in Wonderful Country)

अटल बिहारी वाजपेयी ने एक बार कहा था कि  ‘यह अद्भूत निराला देश है। आप यहां एक पत्थर को भी तिलक लगा कर उसे पूज सकते हैं।‘

यह हमारी ताकत है। यहां एक निर्धारित धार्मिक व्यवहार नहीं है हमारा धर्म यह आजादी देता है। पर सार्वजनिक क्षेत्र से धर्म को अलग रखा गया है। सरकारी कामकाज और चुनावों में धर्म के इस्तेमाल पर प्रतिबंध है। लेकिन ऐसा ही आजकल हो रहा है।

मामला गुजरात के चुनाव से संबंधित है और मुद्दा राहुल गांधी का धर्म है। जबसे सोमनाथ मंदिर में किसी ने राहुल गांधी का नाम गैर-हिन्दुओं के लिए रखे गए एंट्री रजिस्टर में दर्ज करवा दिया तब से उनके धर्म तथा आस्था को लेकर सवाल किए जा रहे हैं।

राहुल गांधी के दादा फिरोज़ जहांगीर गांधी गुजराती पारसी थे। वह खुद को घांडी अर्थात ‘Ghandi’ लिखते थे, ‘Gandi’ नहीं। बाद में गांधी जी के प्रभाव में उन्होंने गांधी लिखना शुरू कर दिया। अर्थात् राहुल गांधी का खानदान पारसी है। भारत में पारिवारिक पहचान पैतृक पृष्ठभूमि के अनुसार मानी जाती है पर यहां पैतृक परिवार को अस्वीकार कर दिया गया है। राहुल गांधी अब कहते हैं कि वह हिन्दू हैं, ‘शिवभक्त’ हैं। कुछ कांग्रेसी तो उन्हें ब्राह्मण भी कहने लगे हैं। उनकी माता सोनिया गांधी कैथोलिक ईसाई है पर पिता राजीव गांधी की अत्येष्टि हिन्दू रीति-रिवाज के अनुसार हुई थी।

कांग्रेस के नए अध्यक्ष का धर्म क्या है यह महत्व नहीं रखता लेकिन सोमनाथ मंदिर के रजिस्टर से उठे विवाद से खुद को रक्षात्मक महसूस करती कांग्रेस पार्टी राहुल को हिन्दू बताने में उलझती जा रही है। पारसी पृष्ठभूमि वाले राहुल गांधी को ‘जनेऊधारी हिन्दू’ बताया जा रहा है। देश के लिए यह एक रहस्योदघाटन से कम नहीं क्योंकि पहले उन्हें कभी इस रूप में नहीं देखा। उन्होंने अपनी फटी कमीज़ में से हाथ तो निकाल लिया था पर जनेऊ नहीं दिखाया था!

वैसे यह जरूरी भी नहीं और सारा माजरा ही बेतुका है। कांग्रेस भाजपा की नकल करते हुए ‘सॉफ्ट हिन्दुत्व’ की राह पर चल रही है लेकिन पार्टी को समझना चाहिए कि वह भाजपा का मुकाबला नहीं कर सकती। दुख की बात है कि गुजरात में बहस गलत तरफ चली गई है। बहस लोगों से जुड़े मामलों पर होनी चाहिए थी पर राहुल को असली-नकली हिन्दू दिखाने का ज़ोर लग रहा है। दूसरी तरफ कांग्रेस कह रही है कि अमित शाह जैन हैं हिन्दू नहीं और कपिल सिब्बल का कहना है कि प्रधानमंत्री मोदी असली हिन्दू नहीं हैं। इस सारे विवाद में विकास का मुद्दा तुच्छ बन गया है। प्रधानमंत्री मोदी भी गुजरात में उस ‘गुजरात माडल’ की बात नहीं करते जिसका प्रचार कर वह दिल्ली की सत्ता में आए थे।

राहुल गांधी तथा उनकी पार्टी के लिए भी सबक है कि जो आप नहीं हैं वह बनने का प्रयास कई बार उलटा पड़ता है। खुद को ‘जनेऊधारी हिन्दू’  साबित करने का प्रयास हम भारतवासियों की बुद्धि का उपहास है। 132 वर्ष पुरानी कांग्रेस की बागडोर अब राहुल के हाथ आने वाली है। उनकी एकमात्र विशेषता यह है कि उनका जन्म इस परिवार में हुआ है। मनमोहन सिंह उन्हें पार्टी के डार्लिंग बता रहे हैं तो प्रधानमंत्री मोदी ‘औरंगज़ेब राज’ की चुटकी ले रहे हैं। दोनों की बात बेतुकी है। देखने की बात यह है कि कांग्रेस का सूखा खत्म होता है या नहीं?

इस बीच आम आदमी पार्टी पांच वर्ष पूरे कर गई। अन्ना आंदोलन की प्राडैक्ट ‘आप’ मनमोहन सिंह सरकार के भ्रष्टाचार तथा सोनिया गांधी परिवार की मनमानी के खिलाफ राष्ट्रीय अभिव्यक्ति थी। उनका वादा था कि वह अलग किस्म की राजनीति करेंगे लेकिन आज कहा जा सकता है कि:

वे एक बूंद जो फैलाव में समुद्र थी

उलझ कर रह गई मिट्टी के चंद ज़र्रों में

अन्ना हजारे इसे अराजनीतिक रखना चाहते थे पर अरविंद केजरीवाल की महत्वाकांक्षा के कारण इसका स्वरूप बदल दिया गया। जो पार्टी वालनटीयर ने खड़ी की थी वह एक आदमी के इर्द-गिर्द सिमट गई। जो असहमत थे, प्रशांत भूषण, योगेन्द्र यादव, मयंक गांधी, धर्मवीर गांधी आदि सबको एक-एक बार बाहर कर दिया गया और खुद केजरीवाल सुप्रीमो बन बैठे। कथित आंदोलन खत्म हो गया। कुमार विश्वास ने स्थापना दिवस पर सही कहा कि दूसरी पार्टियों की तरह आप में भी चेहरे की राजनीति होने लगी है। देखते हैं कि कुमार विश्वास भी कब तक वहां बने रहते हैं?

पंजाब में विधानसभा चुनाव में पार्टी 23 प्रतिशत वोट और 20 सीटें लेकर मुख्य विपक्षी पार्टी बन गई है। लेकिन उल्लेखनीय है कि पंजाब में आप खुदमुख्तार है। न दिल्ली उनकी मदद करता है न वह दिल्ली की सुनते हैं। लेकिन एक पुरानी विनाशक दिशा यहां भी जारी है। आप अभी भी यहां विदेशों में बसे सिख उग्रवादियों का पक्ष ले रही है। पंजाब में हिन्दू नेताओं की हत्या में संलिप्त ब्रिटिश नागरिक जगतार सिंह जौहल की गिरफ्तारी पर पंजाब आप को आपत्ति है। उग्रवादियों के साथ उनके लव अफेयर के कारण वह विधानसभा चुनाव में पिट गए थे लेकिन कुछ नहीं सीखा। विदेशों में खालिस्तानी तत्व हल्ला मचाते रहते हैं और आप उनके साथ सुर मिलाती रहती है।

सरकारी लापरवाही तथा निजी लोभ के कारण देश में हैल्थ सर्विस खुद वैंटीलेटर पर लगती है। हाल ही में जिस तरह गुरुग्राम के फोर्टिस हस्पताल में डेंगू मरीज़ बच्ची जिसकी मौत हो गई थी के मां-बाप को १६ लाख रुपए का बिल थमा दिया गया के मामले से देश उबरा ही नहीं था कि एक और सुपर स्पैशैलिटी मैक्स हस्पताल का मामला बाहर आया है जहां एक जीवित बच्चे को मृत घोषित कर प्लास्टिक के पैकेट में वस्तु की तरह पैक कर परिजनों को सौंप दिया गया।

यह केवल यह दो मामले नहीं हैं। बड़े हस्पतालों में जो मरीज़ जाता है वह कराहता हुआ लौटता है। बिल बढ़ाए जाते हैं। कई जगह डाक्टरों को आप्रेशन के ‘टॉरगेट’ दिए जाते हैं, जरूरत हो या न हो। जो कभी सेवा थी वह शोषण बन गई है, जो कभी श्रद्धा थी वह बैलेंस सीट का मामला बन गया है। हैल्थकेयर बिजनेस बन चुका है। बड़े-बड़े अस्पताल अब फाईव स्टार बन गए हैं। जब ऐसे खर्चे होंगे तो उन्हें पूरा भी करना पड़ेगा इसलिए जबरदस्ती लोगों का इलाज लटकाया जाता है। सभी निजी हस्पताल ऐसे नहीं हैं लेकिन बहुत से हैं जहां बिल बनाने के लिए मरीज़ को डिसचार्ज नहीं किया जाता।

कई हस्पताल और लैब डाक्टरों को उन्हें रैफर करने का कमिशन देते हैं। एक चैनल की रिपोर्ट के अनुसार बैंगलुरु की एक लैब ने करोड़ों रुपए ऐसे कमिशन में दिए हैं। स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने दोषियों के खिलाफ कार्रवाई का वायदा किया है। देखते हैं कि यह वायदा पूरा होता है या फाईल दब जाती है पर नड्डा जी को भी समझना चाहिए कि वह उस भ्रष्ट, लापरवाह तथा अक्षम स्वास्थ्य व्यवस्था पर आसन हैं जिस पर किसी को भरोसा नहीं। लोग समझते हैं क्योंकि नेता लोग एम्स जैसे हस्पताल में मुफ्त इलाज करवा लेते हैं या विदेश चले जाते हैं इसलिए आम लोगों की सेहत की इन्हें परवाह नहीं है।

एक तरफ गोरखपुर जैसे सरकारी अस्पताल है जहां बच्चे लगातार मर रहे हैं तो दूसरी तरफ फोर्टिस तथा मैक्स जैसे हस्पताल हैं जो शोषण तथा लालच के पर्यायवाची बन चुके हैं। मैक्स ने तो क्रूरता की हद पार कर दी। सरकारी सेवा फटेहाल है। सरकारी हस्पताल में मरीज़ भेड़-बकरियों की तरह भरे हुए हैं। पिछले बजट में जीडीपी का १.९ प्रतिशत स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च किया गया जबकि विशेषज्ञ २.५ प्रतिशत खर्च की मांग करते हैं। इस बीच वित्त मंत्री से निवेदन है कि हस्पताल-डाक्टर-लैब का जो यह नापाक गठबंधन है उस पर उन्हें प्रहार करना चाहिए। यह भी अरबों रुपए की ‘पैरेलॅल इकानिमी’ है।

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Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.