
प्रधानमंत्री निराश कर रहें हैं। गुजरात के चुनाव अभियान में वह शुरू तो विकास से हुए थे पर रास्ते में कहीं भटक गए और अब विपक्ष पर पाकिस्तान के साथ मिलकर साजिश का आरोप लगा रहें हैं। निश्चित तौर पर मणिशंकर अय्यर ने नरेन्द्र मोदी के बारे जो कहा वह नीच था। ऐसा आभास मिलता है कि अमित शाह से भी अधिक मणिशंकर अय्यर कांग्रेस मुक्त भारत चाहते हैं लेकिन उस मामले को इतना उछाल देना कि मणिशंकर अय्यर के घर किसी डिनर जहां पाकिस्तान के पूर्व विदेशमंत्री खुर्शीद महमूद कसूरी मौजूद थे, को गुजरात चुनाव में भाजपा के खिलाफ साजिश से जोडऩा तो अतिशयोक्ति की भी हद है।
चुनाव गुजरात का है पर बात पाकिस्तान की हो रही है। हाफिज सईद की हो रही है। कांग्रेस भी प्रधानमंत्री की लाहौर यात्रा जहां वह नवाज शरीफ के जन्मदिन तथा उनके परिवार में किसी शादी की बधाई देने गए थे, को उठा रही है। पाकिस्तान हमारे मामले में कैसे टपक पड़ा? यह तो एक प्रादेशिक चुनाव है। जिस डिनर का जिक्र किया गया उसमें न केवल पूर्व उपराष्ट्रपति हमीद अंसारी तथा पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह मौजूद थे, बल्कि पूर्व थल सेनाध्यक्ष दीपक कपूर, एक पूर्व विदेशमंत्री, दो पूर्व विदेश सचिव, चार पाकिस्तान में रहे हमारे पूर्व उच्चायुक्त भी मौजूद थे। जहां दस-बारह बड़े लोग इकट्ठे हो वह च्सीक्रेटज् कैसे हो गई? क्या प्रधानमंत्री इन सभी पर साजिश का आरोप लगा रहे हैं? उनकी देश भक्ति पर सवाल किया जा रहा है? अगर सचमुच ऐसी कोई बात है तो इनके खिलाफ तो देश द्रोह का मुकद्दमा चलना चाहिए था।
आज गुजरात चुनाव खत्म हो जाएगा पर इस दौरान कहे अपशब्द माहौल को दूषित कर गए हैं। और इस डिनर में वह लोग मौजूद थे जिन्होंने दशकों देश की सेवा की है। जो विरोधी हैं उसे देश विरोधी दिखाना जायज़ नहीं। सेना के पूर्व उच्चाधिकारी नाराज़ है कि पूर्व थलसेनाध्यक्ष को भी इस विवाद में घसीट लिया गया। मतभेद को अंतर्राष्ट्रीय साजिश नहीं बनाया जाना चाहिए। अगर भाजपा गुजरात जीत भी गई तब भी इन्होंने अपना गोल कर लिया है।
भारत और पाकिस्तान के नागरिकों के बीच अनौपचारिक संवाद रहता है। न केवल राजनेता बल्कि सांसद, यहां तक कि न्यायाधीश भी एक-दूसरे के आते-जाते रहते हैं। जो भारतीय पाकिस्तान जाते हैं उन्हें भी पाकिस्तानी घरों में निमंत्रण दिया जाता है। हमारे लोग तो उनकी मेहमान नवाज़ी से बहुत प्रभावित होकर आते हैं। क्या ऐसा सब अनौपचारिक मेल-मिलाप अब सरकार की अनुमति से होगा कि कहीं बाद में इसे ‘सीक्रेट’ या ‘साजिश’ न करार दिया जाए?
हैरानी यह भी है कि गुजरात वह प्रदेश है जहां भाजपा को आसानी से जीत जाना चाहिए क्योंकि नरेन्द्र मोदी ने वहां बहुत काम किया है और उनका वहां बहुत नाम है लेकिन कहीं कुछ गड़बड़ है इसलिए कभी अलाऊद्दीन खिलजी तो कभी मणिशंकर अय्यर जैसे चले हुए कारतूस को घसीटा जा रहा है। इसी का परिणाम है कि लोग अब राहुल गांधी को गंभीरता से लेने लग पड़े हैं। गुजरात चुनाव और भाजपा नेताओं के अमर्यादित बोल राहुल गांधी को नेता बना गए हैं। राहुल ने भी अपनी राजनीति बदल ली है। जिसके बारे उनकी मां ने उन्हें समझाया था कि यह ज़हर है, अर्थात राजनीति, उसमें वह परिपक्व हो रहे हैं। उनके विपरीत प्रधानमंत्री अधिक अनियंत्रित तथा उत्तेजना फैलाने वाले नजर आ रहे हैं।
कांग्रेस गुजरात में 22 वर्ष से बनवास में है। राहुल गांधी की पार्टी पिछले लोकसभा चुनाव में 44 सीटें ही हासिल कर पाई थी फिर इतनी परेशानी क्यों? प्रधानमंत्री मोदी केवल भाजपा के ही नहीं, देश के नेता भी हैं। उन्हें अपने उच्च पद की मर्यादा का ध्यान रखना चाहिए। इन साढ़े तीन वर्षों में देश में तनाव और अविश्वास बढ़ा है, नफरत बढ़ी है। हम उनकी तरफ देखते हैं पर वह निराश कर रहे हैं। देश गुजरात के चुनाव की जीत-हार से बहुत बड़ा है। भाजपा के नेतृत्व को यह भी याद रखना चाहिए कि 2014 का चुनाव उन्होंने केवल 31 प्रतिशत मत से जीता था। अर्थात आधार बढ़ाने की बहुत जरूरत है लेकिन जैसी राजनीति की जा रही है उससे आधार संकुचित हो रहा है। मेरे जैसे लोग जो कभी ‘भक्त’ की परिभाषा में आते थे, भी दंग हैं।
इस चुनाव अभियान के दौरान राहुल गांधी से सवाल किया गया कि वह बताएं कि उन्हें अयोध्या में राम मंदिर चाहिए या मस्जिद? अर्थात इस मसले को उठाने की पूरी तैयारी है। आगे लिखने से पहले में बता दूं कि मैं उन लोगों से हूं जो मानते हैं और चाहते हैं कि अयोध्या में मंदिर ‘वहीं’ बने। राम जन्मस्थल पर बाबर द्वारा मस्जिद बनाना हिन्दुओं को अपमानित करने के बराबर था। सदियों से हम यह अपमान ढोते आ रहे हैं कि हम अपने सबसे पूजनीय स्थल को भी बचा नहीं सके। जैसे लेखक वी.एस. नाईपॉल ने भी लिखा था, ”अयोध्या में उस जगह मस्जिद बनाना जिसे पराजित लोग अपना पवित्र स्थल मानते थे उन्हें अपमानित करने के लिए किया गया था। ”
मुस्लिम नेता जिन्होंने अडिय़ल रवैया अपनाया है ने निहायत बेवकूफी दिखाई है। अयोध्या की हिन्दुओं के दिल में वह ही जगह है जो मक्का की मुस्लमानों के लिए है। क्या यह बेहतर न होता कि मुसलमान खुद ही वहां से अपना दावा हटा लेते और सदा के लिए इस विवाद को दफना देते? एक लेख में मौलाना वहीदुद्दीन के नाती रामिश सिद्दीकी ने बहुत बढ़िया टिप्पणी की है, “जब देश निर्माण के लिए अरब देशों में मस्जिदों का स्थानांतरण संभव हो गया तो आपसी भाईचारे और शांति के लिए भारत में यह संभव क्यों नहीं हो सका?”
उनका सवाल बहुत जायज़ है कि मुस्लिम उलमाओं ने अयोध्या विवाद सुलझाने के लिए मस्जिद वहां से हटाने से इंकार क्यों कर दिया? अब भी वह डटे हुए जबकि जानते हैं कि वहां से मंदिर नहीं हटाया जा सकता। इलाहाबाद हाईकोर्ट के निर्देश पर पुरातत्व विभाग ने इस बात की पुष्टि की है कि अयोध्या में विवादित जगह राम मंदिर था। जिस टीम ने वहां खुदाई की थी उसमें डॉ. के.के. मुहम्मद भी शामिल थे जो अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के छात्र रहे थे। उनके अनुसार “यह एतिहासिक सत्य है कि बाबरी मस्जिद की जगह एक मंदिर था। 1978 में खुदाई में एक मंदिर मिला था। ज्ज् उन्होंने आगे लिखा है, च्च् बाबरी मस्जिद की जगह हमें एक नहीं 14 स्तंभ मिले थे। यह काफी स्पष्ट था कि मंदिर के अवशेष पर मस्जिद बनाई गई थी।“
बहरहाल मामला बड़ी अदालत में है पर मोहन भागवत ने पहले ही कह दिया है कि मंदिर वहीं बनेगा। शिया वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष वसीम रिज़वी कह चुके हैं कि राम जन्मभूमि स्थल पर ही राम मंदिर का निर्माण होना चाहिए और वहां मस्जिद बनाने की जरूरत नहीं। यह भावना है जिस से देश में साम्प्रदायिक तनाव खत्म होगा और भाईचारा कायम होगा पर कई मुस्लिम नेता इस का विरोध भी कर रहे हैं। 2019 के चुनाव को देखते हुए घबराहट है कि हमारे राजनेता मामले में उत्तेजना न भर दें। पर 25 साल में बहुत कुछ बदल गया। समय बदलने का इससे बड़ा प्रमाण क्या हो सकता है कि राम मंदिर आंदोलन के नेता लाल कृष्ण आडवाणी को ही बनवास दे दिया गया।
अयोध्या में राम मंदिर या तो अदालत के फैसले के बाद बने या आपसी सहमति से बने किसी प्रकार का जोर-जबर या दंगा-फसाद नहीं होना चाहिए लेकिन क्या हमारे राजनेता इसकी इजाजत देंगे? या फिर इस मुद्दे पर रोटियां सेंकना शुरू हो जाएंगे? आखिर गुजरात के चुनाव में इसकी शुरूआत हो चुकी है। यह एक पवित्र कार्य है इस पर नीच राजनीति नहीं होनी चाहिए। मर्यादा पुरुषोत्तम का मंदिर है पूरी मर्यादा से बनना चाहिए।
मर्यादा में रहना चाहिए (Please stay in Maryada),