यह सवाल पहली बार नहीं उठा। पाकिस्तान को लेकर किसी भी भारतीय सरकार की नीति स्पष्ट नहीं रही। हम कभी आंखें दिखाते हैं तो कभी दोस्ताना पहल करते हैं। कारगिल के खलनायक परवेज़ मुशर्रफ को प्रधानमंत्री वाजपेयी ने आगरा बुलाया पर वह कश्मीर के इलावा और बात करने को तैयार नहीं था इसलिए उसे बेरंग वापिस भेज दिया गया। मोदी लाहौर में नवाज शरीफ को मिलने गए उसके बाद पठानकोट एयरबेस पर हमला हो गया। हाल ही में कुलभूषण जाधव की माता तथा पत्नी के साथ वहां घोर दुर्व्यवहार किया गया। हमारा मीडिया उत्तेजित होकर पाकिस्तान को गालियां निकाल रहा था। सुषमा स्वराज ने संसद में एक और बढ़िया भावनात्मक भाषण दे डाला पर बाद में पता चला कि इस शर्मनाक घटना के एक दिन बाद बैगकांक में भारत तथा पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) मिले थे। और पाकिस्तान के अनुसार बातचीत अच्छी रही।
पाकिस्तान के साथ बातचीत करना गलत बात नहीं आखिर भूगोल का मामला है लेकिन इन परिस्थितियों में जबकि जम्मू-कश्मीर में हमारे सैनिकों पर घुसपैठियों या आतंकवादियों के द्वारा लगातार हमले हो रहे हैं भारत सरकार को यह तो बताना चाहिए कि इस वक्त इस वार्ता की क्या मजबूरी थी? और क्या हासिल हुआ? गुजरात के चुनाव के दौरान भी पाकिस्तान को खूब उछाला गया लेकिन बाद में चुपचाप दोनों एनएसए बैगकांक में मिल लिए। हमारी पाक नीति से हम ही हक्के-बक्के नहीं वह भी हैं। इस एनएसए बैठक के बाद कराची का डॉन अखबार संपादकीय में लिखता है, “भारत की पाकिस्तान की नीति में अस्थिरता उल्लेखनीय है। मोदी सरकार आक्रामक तौर पर पाकिस्तान को बदनाम करने तथा घरेलू राजनीति के लिए पाक विरोधी बयानबाजी से लेकर कई बार अचानक कुछ सकारात्मक कदमों के संकेत देने तक झटके खाती है।“
पाकिस्तान के प्रति हमारी लाचारी स्पष्ट है। उनके साथ दोस्ती के प्रयास में हर प्रधानमंत्री ने अपने हाथ जलाए अब नरेन्द्र मोदी की बारी है। पाकिस्तान से हम कई गुना बड़े हैं। हमारी जीडीपी उनसे आठ गुना बड़ी है। आर्थिक, सैनिक हम ताकत में वह हमसे बहुत पीछे हैं लेकिन फिर भी इस दिवालिए देश ने हमारे नाक में दम किया हुआ है। हम उनके खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर आग उगलते हैं। उनके ‘कूटनीति अलगाव’ पर अपनी पीठ थपथपाते हैं। उनके खिलाफ सर्जिकल स्ट्राईक का सार्वजनिक श्रेय लेते हैं। धमकियां देते हैं कि एक की जगह दस सर काट लाएंगे। पर हमारे सैनिक तो मर रहे हैं। कश्मीर में पिछले साल 100 सुरक्षाकर्मी मारे गए। इतनी हानि तो कभी नहीं हुई। गृहमंत्री राजनाथ सिंह कह देते हैं कि शहीदों का बलिदान बेकार नहीं जाएगा, पर इसका मतलब क्या है? इस सरकार के इन साढ़े तीन सालों में इसकी पाकिस्तान नीति की उपलब्धि है क्या?
हम बहुत खुश हैं कि डॉनल्ड ट्रंप पाकिस्तान को लगातार मूर्ख, फरेबी, धोखेबाज कह धमका रहें हैं। उन्होंने पाकिस्तान को दी जाने वाली सहायता भी रोक दी है। लेकिन याद रखने की बात है कि (1) ट्रंप ने यह कदम हमारी शिकायत पर नहीं उठाया। वह अफगानिस्तान के हक्कानी नैटवर्क को पाकिस्तान से मिल रहे समर्थन तथा आश्रय से खफा हैं, (2) ट्रंप के लिए अमेरिका फर्स्ट है। अगर हम समझते हैं कि वह हमारी खातिर पाकिस्तान की बांह मरोड़ेंगे तो हम बहुत गलतफहमी में हैं, (3) अमेरिका अभी तक पाक प्रेरित आतंकवाद के पीछे असली ताकत अर्थात पाक सेना, पर वार करने को तैयार नहीं। (4) इससे पाक-चीन गठबंधन और मजबूत होगा। चीन और पाकिस्तान मिल कर हमें गंभीर सामरिक चुनौती दे सकते हैं। चीन और पाकिस्तान के बीच गलियारे की सुरक्षा के लिए और चीनी सैनिकों के पाक भूमि पर तैनात होने की संभावना है।
पाकिस्तान का कहना है कि वह खुद आतंकवाद का शिकार है। ब्रूस रीडल जो अमेरिका के चार राष्ट्रपतियों के सलाहकार रह चुके हैं ने लिखा है कि “पाकिस्तान एक ही समय में आतंकवाद का केन्द्र, आतंकवाद का शिकार तथा आतंकवाद का संरक्षक है।“ यह सही है कि वह खुद भी शिकार है लेकिन यह उनकी अपनी बेवकूफियों का परिणाम है। हमारी समस्या तो हमारे खिलाफ उनके द्वारा प्रेरित आतंकवाद है। मुंबई हमले के खलनायक हाफिज सईद के बारे उनकी नीति से पता चलता है कि पाकिस्तान की असली मंशा क्या है। हाफिज सर्इद जिसने कारगिल युद्ध के बाद घोषणा की थी कि “आज मैं भारत के टुकड़े होने घोषणा करता हूं, इनशाल्लाह। हम तब तक आराम से नहीं बैठेंगे जब तक कि सारा भारत पाकिस्तान में घुल नहीं जाता,” को अंतर्राष्ट्रीय दबाव के अनुसार कभी अंदर कर दिया जाता है तो कभी खुला छोड़ दिया जाता है भारत कितना भी चीख-चिल्लाता रहे। इस पर वरिष्ठ पाक पत्रकार आयशा सद्दीका ने टिप्पणी की है, “इन परिस्थितियों में सईद का कद बढ़ता जाएगा…. उससे तब निपटा जाएगा जब इस्लामाबाद चाहेगा, न कि जब वाशिंगटन या दिल्ली चाहेंगे।“ लंदन के किंग्स कालेज के विशेषज्ञ स्टीफन टैंकल ने भी लिखा है,” लश्कर से भारत को खतरा पहले से अधिक है। उसकी लगाम फिर ढीली कर दी गई लगती है।“ हमारी पाकिस्तान की नीति झूले की तरह उपर-नीचे जाती है। अमेरिका ने अपना उल्लू सीधा करना है। जब तक अमेरिका दबाव डाल अंतराष्ट्रीय वित्तीय संगठनों से पाकिस्तान की मदद बंद नहीं करवाता पाकिस्तान सीधा नहीं होगा। हमारी नीति स्पष्ट, भावना से उपर उठ कर होनी चाहिए। यह गंभीर मामला है इसे राजनीति में भी नहीं घसीटा जाना चाहिए। वास्तविकता यह है कि विभाजन के बाद से ही पाकिस्तान ने हमारे खिलाफ दुश्मनी पाल रखी है। हमारी सफलता उन्हें चुभती है। पाकिस्तान में रहे हमारे राजदूत टीसीए राघवन ने अपनी किताब, च्द पीपल नैकस्ट डोरज् में स्पष्ट बताया है कि पाकिस्तान कश्मीर, जूनागढ़ तथा हैदराबाद के भारत में विलय को 70 साल के बाद भी पचा नहीं सका। अभी भी वहां सवाल हो रहे हैं कि अगर कश्मीर का हिन्दू महाराजा भारत में विलय करवा सकता है तो जूनागढ़ के नवाब और हैदराबाद के निज़ाम को यह मौका क्यों नहीं दिया गया? 1971 में पाकिस्तान के विभाजन ने उनमें बदले की भावना को और प्रबल बना दिया है।
हमें ठंडी सोच चाहिए। हम असंतुलित और सनकी राष्ट्रपति ट्रंप की अमेरिका पर भरोसा नहीं कर सकते। पाकिस्तान चीन की गोद में बैठने को तैयार है। ग्वाडर में चीन नौसैनिक अड्डा बनाने जा रहा है। समझने की जरूरत है कि पाकिस्तान की सेना की कठोर दुश्मनी कुछ कम अधिक तो हो सकती है पर यह खत्म नहीं होगी क्योंकि यह पाकिस्तान की बुनियाद में है और पाकिस्तान की सेना के अपने प्रभाव और अस्तित्व का सवाल है। पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष जनरल बाजवा ने जरूर अपनी संसद के उपरी सदन को बताया है कि पाकिस्तान की सेना भारत के साथ वार्ता के हक में है। अगर यह स्थिति है तो हमारे सैनिकों पर हमले क्यों हो रहे हैं और कुलभूषण जाधव के परिवार के साथ बदसलूकी क्यों की गई?
इस बीच कश्मीर से सैनिकों, पुलिस वालों की शहीदियों के समाचार बहुत विचलित कर रहें हैं। पुलवामा में आतंकी हमले में सीआरपीएफ के पांच सैनिक मारे गए। जम्मू-कश्मीर पुलिस के उच्चाधिकारियों ने सीआरपीएफ के अधिकारियों को सूचित किया था कि वहां तत्काल हमला होने वाला है। जब सीआरपीएफ के अधिकारी कह रहे हैं कि पूर्व सूचना के कारण ही मिलिटैंट अंदर तक घुस नहीं पाए। पत्रकार सम्मेलन में सीआरपीएफ के स्पैशल डीजी एसएन श्रीवास्तव ने माना कि “हम जानते थे कि इस सीआरपीएफ कैंप पर हमले की संभावना थी। जिस रात हमला हुआ सारा कैंप अलर्ट था…. इसी के कारण मिलिटैंट एक-दो इमारतों तक ही सीमित रहे।“ पर सर, हमारे पांच आदमी तो मारे गए और यह तब हुआ जब हमले की पक्की पूर्व सूचना थी। चेन ऑफ कमांड में लापरवाही कहां हुई? निश्चित तौर पर किसी की तो जिम्मेवारी बनती है।
हमारी पाकिस्तान नीति क्या है? (What is our policy on Pakistan?),