
टीवी के एक चैनल पर इस आलोचना कि कश्मीरी राजनेता वहां देश विरोधी तत्वों के सामने हिम्मत नहीं दिखाते, से भडक़ी कश्मीरी वकील शबनम लोन से सवाल किया, ‘आप बताईए कि आपने पाकिस्तान का क्या किया? अगर वह सैनिकों की हत्या करवा रहा है तो आपकी नीति क्या है? रोजाना सैनिक मारे जा रहे हैं, मिसाईल हमले हो रहे हैं पर आपकी नीति में अनुरुपता नहीं है।’
शबनम लोन के वालिद ए जी लोन की आतंकवादियों ने हत्या कर दी थी। जो सवाल उन्होंने उठाया है वह ही सवाल जम्मू में सुंजवां सैनिक अड्डे पर हुए हमले जिसमें फिर पांच सैनिक शहीद हो गए, के बाद सारा देश भी पूछ रहा है। हमारी पाकिस्तान नीति क्या है? हम उस अस्थिर, लगभग दिवालिया, देश को रोकने में नाकाम क्यों हैं? इस मामले में भी चुनाव के समय जो वायदे किए गए थे वह कहां गए?
पठानकोट, उड़ी, नगरोटा के बाद ऐसा ही हमला सुंजवां में हो गया। क्या हमने पहले हमलों से कुछ सबक नहीं सीखा? हमारी व्यवस्था इतना लचर क्यों है कि हमारे सैनिक कैंप भी असुरक्षित हैं, जबकि हम जानते हैं कि हमले होंगे। यह अब अघोषित युद्ध नहीं रहा। पाकिस्तान की तरफ से यह खुली और नंगी चुनौती है।
कुछ पत्रकारों ने लिखा है कि जिस क्षेत्र में आतंकी हमला हुआ है उस क्षेत्र में भारी संख्या में बांग्लादेशी तथा रोहिंग्या मुसलमान बस गए हैं। यह कैसे संभव हो गया? जम्मू पर तो भाजपा का नियंत्रण है। जम्मू-कश्मीर में धारा 370 लगी हुई है फिर अपने देश से 4000 किलोमीटर दूर रोहिंग्या वहां कैसे पहुंच गए? कश्मीरी पंडितों को तो कश्मीरी वहां बसने नहीं देते फिर विदेशियों पर इतनी मेहरबानी कैसे?
नए सिरे से मामले पर गौर करने और नई रणनीति बनाने की जरूरत है क्योंकि पाकिस्तान समझता है कि कश्मीर में अस्थिरता के कारण बांग्लादेश युद्ध का वह अब बदला ले सकता है। यह भी स्पष्ट है कि सर्जिकल स्ट्राईक का असर खत्म हो गया है। अगर उसका मकसद पाकिस्तान को आतंकवादियों का समर्थन करने से रोकना था, तो यह मकसद भी हासिल नहीं हुआ। इसका बड़ा कारण है कि सामान्य हथियारों में दोनों देशों में लगभग बराबरी है। कई विशेषज्ञ तो मानते हैं कि इस क्षेत्र में पाकिस्तान की ही श्रेष्ठता है। लेकिन यही विशेषज्ञ बताते हैं कि हमारे पास भी विकल्पों की कमी नहीं है। उनका सुझाव है कि हमें पाकिस्तान की ‘गहराई’ पर हमला करना चाहिए। यहां हम फायदे में हैं क्योंकि भारत बड़ा देश है जबकि पाकिस्तान के ‘स्ट्रैटजिक एसैट’ सीमा से मात्र 30 किलोमीटर की रेंज में है।
सरकार को समझ लेना चाहिए कि इस मामले में लोकराय उद्वलित और उत्तेजित है। जवाबी फायरिंग से वह रुकेंगे नहीं। मारे गए आतंकवादी उनके लिए सस्ता माल है। पाकिस्तान तब ही चीख उठेगा जब उसके सैनिक मारे जाएंगे जैसे सर्जिकल स्ट्राईक में हुआ था। रक्षामंत्री निर्मल सीतारमण का साफ कहना है कि पाकिस्तान में ही यह साजिश रची गई थी और उन्हें इस दुसाहस की कीमत चुकानी पड़ेगी। अगर यह स्थिति है कि वह देश हमारे सैनिक और उनके परिवारों पर हमले करवा रहा है तो क्या समय नहीं आ गया कि उनके साथ संबंधों पर पुनर्विचार किया जाए? व्यापार रोका जाए और उन सैनिक ठिकानों को नष्ट किया जाए जहां से आतंकवादी घुसपैठ करते हैं? सर्जिकल स्ट्राईक अब सामान्य होनी चाहिए।
यह भी जरूरी है कि महबूबा मुफ्ती और उनकी सरकार पर तीखी नज़र रखी जाए। मेरा इशारा शोपियां में सेना के मेजर आदित्य कुमार के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाने की कार्रवाई से है। यह घटना भी भारी उत्तेजना कर परिणाम है जैसे कोर कमांडर लै. जनरल जे.एस. संधू ने भी कहा है। सेना के काफिले पर हमला किया गया। ग्यारह ट्रक क्षतिग्रस्त हो गए। कई सैनिक गंभीर रूप से घायल हैं। भीड़ एक जेसीओ को घसीट रही है। हथियार छीनने का भी प्रयास किया गया। अगर उस वक्त फायरिंग न होती तो भीड़ उनको पीट-पीट कर मार देती। जिन्होंने हमला किया उनके खिलाफ कार्रवाई करने की जगह उलट मेजर आदित्य के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर दिया गया। याद रहे कि वहां एक भीड़ ने डीएसपी मुहम्मद अयूब पंडित की भी पीट-पीट कर हत्या कर दी थी।
जम्मू-कश्मीर में एफस्पा लागू है जिसके अंतर्गत सेना के अधिकारियों को ड्यूटी के दौरान किए गए एक्शन से कानूनी मुक्ति प्राप्त है। प्रदेश सरकार केन्द्र की अनुमति के बिना कोई ऐसी कार्रवाई नहीं कर सकती। यही कारण है कि सुप्रीम कोर्ट ने तत्काल रोक लगा दी। यह नहीं कि महबूबा मुफ्ती को यह मालूम नहीं, फिर वह कैसे कह रही है कि वह इस मामले को अंत तक लेकर जाएंगी?
इसका अर्थ है कि महबूबा फिर शरारत कर रही है। उन्होंने अपनी जनता के सामने सेना को अपराधी करार दिया है। उन्होंने हाल ही में 9000 पत्थरबाजों को रिहा कर दिया जिनमें से कई वापिस उसी हरकत में लौट आए हैं। एनआईए का कहना है कि पत्थरबाजी कानून और व्यवस्था का मामला नहीं, यह पाक प्रेरित उद्योग है। महबूबा फिर पाकिस्तान के साथ बातचीत की सिफारिश कर रहीं है। 70 वर्षों के प्रयास और अमन की आशा से क्या हासिल हुआ?
एफआईआर दर्ज करवा वह देश विरोधियों को मैत्री और सहयोग का संदेश भेज रही है। कहीं यह संदेश सीमा पार भी भेजा जा रहा है। मुफ्ती मुहम्मद सईद ने मुख्यमंत्री बनते ही पहले मौके पर ‘उस पार’ का शुक्रिया अदा किया था। पुरानी घटना याद आती है।
इस मामले में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व की कमजोरी तथा लाचारी समझ से बाहर है। महबूबा मुफ्ती ने कहा है कि मेजर आदित्य के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाने से पहले उन्होंने रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण से बात की थी। उनका इशारा था कि रक्षामंत्री ने इसका विरोध नहीं किया। क्या रक्षामंत्री देश को बताएंगी कि क्या बात हुई थी? उन्होंने जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री को ऐसे विनाशक कदम उठाने से रोका क्यों नहीं? आभास मिलता है कि नेतृत्व को भी मालूम नहीं कि आगे क्या करना है। महबूबा की सरकार नौजवानों को अधिक रैडिकल बना रही है लेकिन भाजपा कुछ विरोध करने के इलावा चुपचाप उनकी वज़ारत में शामिल है। इतनी भी धमकी नहीं दी कि अगर एफआईआर वापिस नहीं ली तो सरकार गिरा दी जाएगी। उनसे अधिक दम तो चंद्र बाबू नायडू में है।
जम्मू-कश्मीर की सरकार अपनी जिम्मेवारी किस नालायकी से निभा रही है वह श्रीनगर के अस्पताल से आतंकी नवीद के भागने से पता चलता है जिस कार्रवाई में दो पुलिस वाले भी मारे गए। नवीद लश्कर का कमांडर था और रिपोर्ट के अनुसार इस वारदात की तैयारी कई महीनों से चल रही थी। वहां समस्या है कि श्रीनगर जेल पर आतंकियों का नियंत्रण है। इस संदर्भ में पत्रकार राहुल पंडिता की रिपोर्ट अत्यन्त चिंताजनक है। वह बताते हैं कि श्रीनगर के सैंट्रल जेल पर हिजबुल कमांडर कासिम फाख्तू का राज है। वह लगातार वहां कैदियों की कलास लेता है और उन्हें भडक़ाता है। राहुल पंडिता का सनसनीखेज आरोप है कि “श्रीनगर के केन्द्रीय जेल का संचालन पाकिस्तान करता है। ” इंटरनैट, केबल टीवी आदि सब सुविधाएं वहां उपलब्ध है।
महबूबा सरकार श्रीनगर के जेल पर तो नियंत्रण नहीं कर सकी पर सेना पर निशाना लगा रहीं है। किसी भी देश में सेना की इस तरह अवमानना नहीं की जाती जैसी जम्मू-कश्मीर में हो रही है। मेजर आदित्य को इसलिए निशाना बनाया गया है क्योंकि इस बहादुर अफसर ने नवम्बर 2017 में फुतलीपोरा में मुठभेड़ में चार खतरनाक आतंकियों का काम तमाम किया था। इस गंभीर स्थिति के बीच संघ प्रमुख मोहन भागवत का बयान आया है कि पाकिस्तान का मुकाबला करने के लिए सेना को तो छ:-सात महीने लग सकते हैं संघ के कार्यकर्त्ता तीन दिन में तैयार हो जाएंगे। यह 2018 का सबसे फिज़ूल बयान रहेगा।
जवाब कैसे दिया जाए? (How Do We Retaliate ?),