11,400 करोड़ रुपए का बैंक डाका डालने वाले नीरव मोदी ने बता दिया है कि अब वह बकाया इसलिए नहीं चुका सकता क्योंकि ब्रैंड का धंधा चौपट कर दिया गया है। अर्थात जो ठग 2011 से लगातार देश के दूसरे सबसे बड़े बैंक पीएनबी को चूना लगाता आ रहा है ने अब आपको ठेंगा दिखा दिया है। बैंक जो मर्जी कर ले वह पैसे वापिस नहीं करेगा। सीनाजोरी ऐसी है कि विजय माल्या की तरह पैसे वापिस करने का खोखला वायदा भी नहीं है। स्पष्ट इंकार के रूप में उसने हमारी व्यवस्था पर थप्पड़ जड़ दिया है। जो मेरा करना है कर लो! उसका आत्म विश्वास भी खोखला नहीं आखिर वह एनआरआई बन चुका है। अब वह इतमिनान से अपना बाकी समय किसी मोहक विदेशी शहर में गुजारेगा। भारत सरकार की एजेंसियों को अपने से दूर रखने के लिए महंगे वकीलों के लिए उसके पास पैसा तो है, ही माल्या की तरह। वह यह भी जानता है कि अब शोर मचेगा पर कुछ देर के बाद खामोश पड़ जाएगा, माल्या की ही तरह।
इस बीच नया घोटाला रोटोमैक गु्रप के मालिक विक्रम कोठारी का है जिसने 7 बैंकों को 3695 करोड़ रुपए का चूना लगा दिया है। सौभाग्यवश अभी वह देश से भागा नहीं। नीरव मोदी के मामा महुल चौकसी के गीतांजलि जैम्स का अपना बड़ा घोटाला है। कंपनी के चैक बाऊंस होने के बावजूद उसे बैंक मज़े से और कर्जा देते रहे हैं। अब देश की व्यवस्था का मामा बनाने वाले मामा-भांजा विदेश में ऐश करेंगे।
और यह वह देश है जहां 15 साल से बैंकों का कर्ज़ा न देने के कारण 270,000 किसान आत्महत्या कर चुके हैं। हर साल 15000 के करीब किसान आत्महत्या करते हैं। उन्होंने औसतन एक लाख से दो लाख रुपए तक का कर्जा अदा करना था। इन गरीब किसानों ने तो मजबूरी में फंदा गले में डाल लिया लेकिन नीरव मोदी जैसे महा ठग तो मज़े में हैं। माल्या की तरह सुंर्दियों के साथ उसकी भी तस्वीरें हैं। और यह उस वक्त की हैं जब वह जानता था कि वह बैंकों का कर्जा वापिस देने की स्थिति में नहीं है। न जाने इस वक्त कितने और घोटाले हो रहे होंगे? और इसी वक्त कहीं न कहीं कोई किसान एक-दो लाख रुपए अदा न करने की मजबूरी में फंदा लगा रहा होगा।
सरकार ने बैंकों को बचाने के लिए 2.11 लाख करोड़ रुपए का पैकेज देने की घोषणा की हैै। इस बजट में 31 मार्च तक 20 सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को 88139 करोड़ रुपए दिया जाएगा ताकि वह कर्जा दे सकें और विकास को गति मिल सके। यह पैसा हमसे लेकर दिया जा रहा है। बैंकों की अक्षमता तथा एनपीए से निबटने के लिए सरकार ने यह रास्ता निकाला है। लेकिन यहां तो बैंक म्यूनिसिपल वॉटर टैंकर की तरह लीक कर रहे हैं। जो लोगों का पैसा है उसे नीरव मोदी जैसे खींच ले गए हैं। ज़हन में जायज़ सवाल उठता है कि हर्षद मेहता, केतन पारिख, नीरव मोदी, महुल चौकसी, ललित मोदी, विजय माल्या या विक्रम कोठारी जैसे और कितने और ठग हैं जो इस वक्त भ्रष्ट बैंकिंग व्यवस्था से मिल कर देश को लूट रहे हैं? यह लोग आम भारतवासी के गुनाहगार हैं क्योंकि जो पैसा आम आदमी के कल्याण पर लगना चाहिए उसे यह डकार गए हैं।
नीरव मोदी 2011-2018 के बीच बैंक को लूटता रहा। सात साल किसी को पता नहीं चला? बिना किसी गारंटी के गैर कानूनी ढंग से उसे लैटर ऑफ अंडरटेकिंग जारी किए गए। और यह भी एक-दो नहीं बल्कि 150, न आतंरिक और न ही बाहरी आडिट ही उसे पकड़ सका। न आरबीआई, न ही किसी विजिलैंस अफसर को खबर हुई। घोटाले का भंडाफोड़ उस वक्त हुआ जब लैटर जारी करने वाला अधिकारी रिटायर हो गया और नीरव मोदी के लोग बैंकों से और ऐसे लैटर ऑफ अंडरटेकिंग लेने पहुंचे। नए अधिकारी ने इस स्कैंडल के बारे जानकारी बाहर की। साफ है कि अगर वह अधिकारी दो-तीन साल और रिटायर न होता तो यह घोटाला मज़े से जारी रहता।
इसकी भनक पाते ही नीरव मोदी तथा उसका परिवार 1-6 जनवरी के बीच देश से भाग गया लेकिन इस देश की त्रासदी देखिए कि देश को लूट कर भागने वाला यह शख्स 23 जनवरी को डेवास में प्रधानमंत्री के साथ सीआईआई प्रतिनिधिमंडल की तस्वीर में शामिल था। इस संस्था के लोग कह रहे हैं कि नीरव उन लोगों की सूची में शामिल नहीं था जिनकी प्रधानमंत्री के साथ तस्वीर खींचवानी थी। फिर यह शख्स शामिल कैसे हो गया? क्या भारत के प्रधानमंत्री के साथ तस्वीर खींचवाना इतना आसान है? कोई भी ठग वहां पहुंच सकता है?
अब बताया जा रहा है कि नीरव प्रधानमंत्री के प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा नहीं था पर “किसी तरह घुस गया।“ अजब तर्क है। क्या भारत के पीएम के साथ बैठक में ‘घुसना’ इतना आसान है? यह भी दुख की बात है कि प्रधानमंत्री के कार्यालय ने व्हीस्लबलोअर की उस चिट्ठी पर कार्रवाई नहीं की जिसने नीरव मोदी-महुल चौकसी जोड़ी के घपले के बारे जानकारी दी गई थी। यह पत्र 2016 में लिखा गया था। स्पष्ट है कि अगर उस वक्त सही कार्रवाई की जाती तो आज यह फजीहत न सहनी पड़ती।
हमें बार-बार लूटा जा रहा है। हमारी व्यवस्था बिल्कुल बदहाल है। लोगों का व्यवस्था में विश्वास डोल रहा है। सार्वजनिक बैंकों के निजीकरण की मांग अभी से उठ रही है। अफसोस है कि प्रधानमंत्री मोदी भी निराश कर रहें हैं। आखिर उन्होंने वायदा किया था कि वह चौकीदार की तरह देश के पैसे पर पहरा देंगे पर हमारा चौकीदार ड्यूटी पर सोया पाया गया। उन्हें तो उस वक्त चौकस हो जाना चाहिए था जब भ्रष्ट बैंकिंग व्यवस्था ने उनकी नोटबंदी की योजना को ध्वस्त कर दिया था। बाहर लाईनें लगी थीं और पीछे से बैंक अधिकारी काले को सफेद कर रहे थे। इसीलिए सारा कालाधन बैंकों में वापिस आ गया जिसे फिर गैर कानूनी ढंग से निकालने की कोशिश हो रही है। बैंकों की लापरवाही तथा मिलीभगत आपराधिक है। आरबीआई की एक रिपोर्ट के अनुसार हर चार घंटे में एक बैंक कर्मचारी घपला करता है। इस सारे मामले में आरबीआई की असफलता भी घोर चिंता पैदा करती है। यह चौकीदार भी सोया नज़र आ रहा है।
अब कहा जा रहा है कि नीरव मोदी और महुल चौकसी को वापिस लाने के लिए एजेंसियां लगी हुई हैं। जब घोड़ा दौड़ ही गया तब तबेले को ताला लगाने का क्या फायदा? ढूंढते रह जाओगे! यह भी दावा है कि 5600 करोड़ रुपए की जायदाद जब्त की गई है। कौन इन पर विश्वास करेगा? हीरों की कीमत को आंकना मुश्किल होता है। गीतांजलि जैम्स के एक पूर्व अधिकारी ने दावा किया है कि कंपनी ने नकली हीरे के गहनें भी बेचे जो लैब में तैयार किए गए। क्या पता हमारी जांच एजेंसियों को ऐसे ही हीरे हाथ लगे हों?
इस बीच मामला राजनीतिक बन गया है। कांग्रेस पार्टी को बदला लेने का मौका मिल गया है। राहुल गांधी प्रधानमंत्री पर ताबड़तोड़ हमले कर रहे हैं लेकिन वह वॉरन एंडरसन या क्वाट्रोच्ची प्रकरण भूल गए लगते हैं। एंडरसन को तो सरकारी हवाई जहाज में भोपाल से भगाया गया था। और क्वाट्रोच्ची तो खासमखास सरकारी महमान था। उस वक्त की सरकार ने विदेशों में उसके बंद खातों को खुलवा दिया था ताकि वह मौज से अपने बाकी दिन व्यतीत कर सकें।
हकीकत है कि जो गली-सड़ी व्यवस्था अब हमें मिली हुई है इसकी नींव कांग्रेस के लम्बे शासन में डाली गई थी। भ्रष्टाचार को जो छूट दी गई उसकी गहराई कई गुना बढ़ गई। वर्तमान सरकार का दोष है कि उसने इस व्यवस्था को सख्ती से सही नहीं किया। कांग्रेस अगर भ्रष्टाचार करती रही तो भाजपा उसे बर्दाश्त कर रही है। दोनों दोषी हैं। नीरव मोदी प्रकरण का यही निचोड़ है। हमाम में सब नंगे हैं, पर इस वक्त वर्तमान सरकार जवाबदेह है। इसलिए आज लाचार और निस्तब्ध भारत का आम आदमी इस शोचनीय स्थिति को देख कर कराह सकता है,
बर्बाद गुलिस्तां करने को इक ही उल्लू काफी है,
हर शाख पर उल्लू बैठा है अंजामे गुलिस्तान क्या होगा?
हर शाख पर उल्लू बैठा है (The Shocking Failure of System),