2019 अभी दूर है (Waiting For 2019)

भाजपा बम-बम है। लगभग एक महीना पहले नीरव मोदी और मेहुल चौकसी के बैंक घोटाले तथा राजस्थान, पश्चिम बंगाल तथा मध्यप्रदेश के उप चुनावों में पराजय के बाद पार्टी की हालत पतली नज़र आ रही थी पर कहा गया है कि राजनीति में तो एक सप्ताह भी बहुत समय होता है। इस एक-डेढ़ महीने में कार्ति चिदम्बरम जेल में है और उत्तर पूर्व के तीन राज्यों में भाजपा ने चौकाने वाली जीत दर्ज की है। विशेष तौर पर त्रिपुरा की जीत तो चमत्कार से कम नहीं।

चाहे मार्कसी पार्टी के पास मानिक सरकार में एक करिश्माई नेता हैं और वहां उसका मज़बूत संगठन भी है पर वह भाजपा के बढ़ते कदमों को रोक नहीं सके। 2013 में भाजपा को वहां मात्र 1.54 प्रतिशत वोट मिले थे जो इस बार बढ़ कर विशाल 43 प्रतिशत हो गए। कांग्रेस का वोट 45 प्रतिशत से घट कर 2 प्रतिशत ही रह गया। लेकिन यह अलग कहानी है। त्रिपुरा, मेघालय तथा नगालैंड के परिणाम यह भी बताते हैं कि देश किस तरह कामरेडों से ‘मुक्त’ हो रहा है। वैसे  एक दिन तो यह होना ही था। जिस तरह कामरेड विदेशी विचारधारा से चिपके रहे और उन्हें हिन्दू संस्कृति से चिड़ है, उसकी कीमत तो इन्हें चुकानी ही थी। यह विचारधारा रूस और चीन से उखड़ चुकी है। अब तो व्लादीमीर पुतिन भी औरथोडॉक्स चर्च में आशिर्वाद लेने पहुंच रहे हैं। लेकिन हमारे कामरेड नहीं बदले।

लेकिन असली कहानी भाजपा की बढ़त की है। वह वास्तव में राष्ट्रीय पार्टी बन गई है। 2014 में भाजपा के पास केवल 7 प्रदेश थे और कांग्रेस के पास 13 आज भाजपा के पास 21 हैं और कांग्रेस के पास 3.5, अर्थात पंजाब, कर्नाटक, मिज़ोरम तथा छोटा पुडेच्चेरी। इसका प्रभाव पश्चिम बंगाल तथा केरल पर पड़ेगा। कामरेडों के साथ संघ और भाजपा की पुरानी लड़ाई रही है। केरल मेें एक-दूसरे के कत्ल भी किए जा रहे हैं। यह लड़ाई अब भाजपा निर्णायक तौर पर जीतती नज़र आ रही है।

उत्तर-पूर्व के यह तीन प्रदेश लोकसभा में केवल 5 सांसद भेजते हैं। त्रिपुरा की तो जनसंख्या ही मात्र 30 लाख है। यह देश के एक कोने में भी स्थित है लेकिन उनके परिणाम की देश भर में गूंज रहेगी। जैसे आलोचक योगेन्द्र यादव ने भी कहा है, “यह तीन प्रदेश छोटे हैं और पूरे देश की मिसाल नहीं है लेकिन यह परिणाम भाजपा की सत्ता के लिए भूख, उसकी मजबूत चुनावी मशीनरी तथा कांग्रेस की नालायकी तथा आरामप्रस्ती भी प्रदर्शित करती है।”

नगालैंड तथा मेघालय जो दोनों ईसाई बहुसंख्या वाले प्रदेश हैं, में भाजपा का संतोषजनक प्रदर्शन बताता है कि अब वह केवल हिन्दी-भाषी क्षेत्र की पार्टी ही नहीं रही। कांग्रेस तथा वामदल केवल लोगों के पूर्वाग्रहों पर ही अपनी रोटियां सेंकते रहे जबकि भाजपा विकास और सुशासन का वायदा कर रही है। लेकिन इस जीत में भाजपा के लिए भी संदेश छिपा है। अगर उत्तर-पूर्व जो लोकसभा में 25 सीटें भेजता है, में पार्टी ने स्थाई अच्छा प्रदर्शन करना है तो स्थानीय लोगों की भावनाओं का आदर करना होगा। धर्म, भाषा, खान-पीन की आजादी से खिलवाड़ नहीं होना चाहिए। एक बात और। हमने उत्तर-पूर्व के लोगों से बहुत धक्का किया है। उनकी उपेक्षा की है जबकि वह बहुत प्रतिभाशाली लोग हैं जो देश के विकास में भारी योगदान डाल सकते हैं। अब समय है कि इस राष्ट्रीय शर्मिंदगी को मिटा दिया जाए।

भाजपा के लिए यह जीत आई भी बहुत ठीक समय पर है। नीरव मोदी तथा बैंकों के घोटाले से मोदी सरकार तथा भाजपा दोनों की चमक फीकी पड़ गई थी। विपक्ष के कदमों में तेजी आ गई थी। बैंकों को चकमा दे जिस इतमिनान से ऐसे बदमाश विदेश भाग रहे हैं उससे देश में बहुत बेचैनी है। न ही 2014 से पहले जो कुछ होता रहा उसे 2018 का बहाना ही बनाया जा सकता। चार साल व्यवस्था को सही करने के लिए पर्याप्त होने चाहिए। वित्त मंत्री अरुण जेतली ने खुद माना कि इन घोटालों से व्यापार आसान बनाने की मुहिम को झटका लगा है। झटका प्रधानमंत्री की अपनी छवि को भी लगा है, क्योंकि उन पर बहुत भरोसा था कि वह ऐेसे घोटाले नहीं होने देंगे।

हमारे सार्वजनिक बैंक अब बड़ा स्कैंडल बनते जा रहे हैं। सितम्बर के आखिर तक इनके एनपीए यानी ठप्प हुए खाते, 7.34 लाख करोड़ रुपए के थे। निश्चित तौर पर यह पिछले चार वर्ष मेें इकट्ठे नहीं हुए लेकिन पिछले चार वर्ष में इनमें वृद्धि आई है। दस हजार तो ‘विलफुल डिफाल्टर’अर्थात जो बैंकों का पैसा अदा कर सकते हैं लेकिन फिर भी ठेंगा दिखा रहे हैं। इनके बारे सरकार कुछ क्यों नहीं कर सकी? अब बैंक अधिकारियों को पकड़ा जा रहा है पर जरूरत तो मगरमच्छों को पकडऩे की है। सरकार तो ऐसे अपराधियों की सूची प्रकाशित करने को भी तैयार नहीं।

उस सरकार के लिए यह अच्छी खबर नहीं जो भ्रष्टाचार खत्म करने के वायदे से सत्ता में आई थी। अब अवश्य जो देश के भगौड़े हैं उन पर शिकंजा कसने के लिए कानून लाया जा रहा है लेकिन जो भाग ही चुके हैं उनकी सेहत पर तो असर नहीं। प्यास लगने पर कुआं खोदने की आदत कब जाएगी? सरकार को समझना चाहिए कि यह बैंक घोटाला एक बहुत बड़ा धब्बा है। उन्हें किसी भी तरह नीरव मोदी तथा मेहुल चौकसी जैसों को वापिस लाकर देश के कानून के आगे खड़ा करना चाहिए और साथ यह भी निश्चित करना है कि कोई और इस तरह हमारा उल्लू बना कर फुर्र न हो जाए। बैंकिंग’

व्यवस्था की तत्काल तथा स्थाई सुधार की जरूरत है। बार-बार हो रहे घोटालों से व्यवस्था से लोगों का विश्वास उठने की संभावना बन रही है।

कार्ति चिदम्बरम को गिरफ्तार कर लिया गया है। हो सकता है कि और कांग्रेस नेताओं या उनके संबंधियों की गिरफ्तारी हो जाए। यह भी हो सकता है कि जांच की ताप पूर्व वित्त मंत्री चिदम्बरम तक पहुंच जाए। लोगों को कांग्रेस के अतीत को याद दिलवाई जा रही है और प्रधानमंत्री अगले आम चुनाव के लिए फिर अपनी भ्रष्टाचार विरोधी छवि को मजबूत कर रहे हैं। वह लोगों को बताना चाहते हैं कि वह अभी भी भ्रष्टाचार के खिलाफ योद्धा हैं।

लेकिन सवाल तो यह है कि क्या जांच कर रही एजेंसियां कार्ति चिदम्बरम के खिलाफ वह प्रमाण जुटा सकेंगी जो अदालत को स्वीकार होंगे और अभियुक्त को सजा दिला सकेंगे? 2 जी के मामले जिसने कांग्रेस की पराजय में बहुत योगदान डाला था, में अभियोजन पक्ष अपना केस सिद्ध नहीं कर सका और जिन्हें खलनायक पेश किया गया था, ए राजा, कानीमोझी आदि, सब बरी हो गए। सीबीआई की विशेष अदालत ने कहा था कि इनके खिलाफ अपराधिकता का कोई मामला नहीं बनता।

क्या कार्ति चिदम्बरम के मामले में भी यही तो नहीं होगा? इसका राजनीतिक दोहन करने और कांग्रेस को खूब बदनाम करने के बाद मामला 2 जी की तरह रफा-दफा तो नहीं कर दिया जाएगा?

बहरहाल राजनीति ने दिलचस्प करवट ली है। लेकिन याद रखना चाहिए कि 2019 अभी दूर है। राजनीति कई और करवटें भी ले सकती है। भाजपा को बढ़िया कामयाबी मिली है लेकिन असली फैसला कर्नाटक, मध्यप्रदेश, राजस्थान तथा छत्तीसगढ़ के चुनाव करेंगे। उत्तर प्रदेश के फूलपुर तथा गोरखपुर उप चुनाव में बसपा द्वारा सपा को समर्थन से समीकरण बदलें हैं, परिणाम दिलचस्प रहेंगे। बुआ मायावती तथा अखिलेश यादव की दोस्ती क्या गुल खिलाएगी यह भी देखना दिलचस्प होगा। अफसोस कि एक बार फिर सिद्ध हो गया कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के पास मुकाबला करने का स्टैमिना नहीं है। वह त्रिपुरा गए ही नहीं और नगालैंड केवल एक भाषण देकर लौट आए। जब उत्तर-पूर्व से पार्टी के लिए निराशाजनक परिणाम आ रहे थे तो वह दूर इटली में अपनी नानी को गले लगाने चले गए थे। हेमंत बिसवास सरमा जो उत्तर-पूर्व में भाजपा के प्रसार के जरनैलों में से एक हैं, कभी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता थे। वह पार्टी इसलिए छोड़ गए थे क्योंकि उनसे बात करने की जगह राहुल गांधी अपने कुत्ते से खेलने में व्यस्त थे।

कांग्रेस के इस पार्ट टाईम नेता का मुकाबला अमित शाह जैसे दमदार तथा जोशीले नेता से है। याद रखना चाहिए कि भाजपा अध्यक्ष का कोई ‘दयालु’ रिश्तेदार इटली में नहीं रहता! गैर-भाजपा और गैर-कांग्रेस विपक्ष फिर इकट्ठा होने की कोशिश कर रहा है। पर क्या यह ट्रेलर हमने पहले नहीं देखा?

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Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.