शेर जो निकला चूहा (The Lion Who Turned A Mouse)

सबको बुलंदियों का सलीका नहीं शमीम

वह सर पर चढ़ रहे थे कि दिल से उतर गए

अरविंद केजरीवाल। कितनी जल्दी पतन हुआ और कैसा पतन हुआ! उनके धारावाहिक माफीनामे से नेता और आम आदमी पार्टी की विश्वसनीयता चूर-चूर हो चुकी है। अब यह कटी पतंग बन चुकी है।

पाठक साक्षी है कि मैं अरविंद केजरीवाल का कभी भी प्रशंसक नहीं रहा मुझे सब कुछ फ्रेब, झूठ और दिखावा नजर आता था। वह पहले अन्ना हजारे के चेले बने और मंच पर हाथ जोड़ कर शिष्य की तरह बैठे रहते थे। कहा, हम देश बचाने आए हैं। यहां तक कह दिया कि मैं राजनीति में कभी नहीं जाऊंगा और बाहर रह कर देश बदलूंगा। फिर गुरु हजारे को दगा देकर राजनीति में आए और दिल्ली के मुख्यमंत्री बन बैठे। पंजाब के पूर्व मंत्री बिक्रमजीत सिंह मजीठिया, जिनके खिलाफ वह कारों की छतों पर चढ़ कर ड्रग तस्करी के आरोप लगाते रहे, से केजरीवचाल द्वारा माफी मांगने के बाद जनता के सामने असलियत साफ हो गई है कि यह व्यक्ति अपनी राजनीति के लिए कुछ भी कर सकता है। किसी को गाली निकाल सकता है और अपनी चमड़ी बचाने के लिए उसी के पैरों पर भी पड़ सकता है। संतोष है अरुण जेतली अभी मेहरबानी करने को तैयार नहीं चाहे बहुत नाक रगड़े जा रहे हैं।

याद रखिए पुराने केजरीवाल को, कितनी गर्जन थी? इतनी जुर्रत की देश के प्रधानमंत्री को ‘साईकोपैथ’ अर्थात मनोरोगी कह दिया। लेकिन वह तो नशीले दिन थे। कुछ लोग केजरीवाल तथा उनकी पार्टी को तीसरा विकल्प समझने लगे थे। निक्की सी दिल्ली पर अधिकार करने के बाद वह भी खुद को वह विकल्प समझने लगे थे जिसकी देश को तलाश है।

याद है गणतंत्र दिवस से ठीक पहले कोहरे भरी सर्दी में रेल भवन के बाहर फुटपाथ पर नीली फूलों वाली रज़ाई में उनका लेटना, पास खड़ी थी वह पुरानी वैगन आर। चारों तरफ घेरे हुए थे गनमैन। यह पहला संकेत था कि यह शख्स संतुलित नहीं है। दफ्तर के लिए मैट्रो पर रवाना हो गए। मीडिया उनके एक-एक कदम की तस्वीर ले रहा था। पीली पगड़ी डाल ‘इंकलाब जिंदाबाद’ के नारे लगाए। जो असली क्रांतिकारी थे उन्होंने पीली पगड़ी नहीं डाली थी। वह फांसी पर चढ़ गए लेकिन इन डालडा क्रांतिकारियों की तरह माफी नहीं मांगी। फिर चारों तरफ गालियां निकालने लगे। तीन दर्जन लोगों ने जब मानहानि के मुकद्दमें दर्ज कर दिए तो बुराईयों के शूरवीर घातक चूहे बन गए और थोक में माफी मांग रहे हैं। कहा जा सकता है कि

बहुत शोर सुनते थे पहलू में दिल का

जो चीरा तो इक कतरा-ए-खून निकला

अरविंद केजरीवाल के दयनीय समर्पण ने पंजाब में आप को जड़ से उखाड़ दिया है। एक प्रकार से अस्तित्व ही खत्म कर दिया है क्योंकि पार्टी को जो समर्थन मिला था उसका आधार ही नशा विरोधी अभियान था। विशेष तौर पर बिक्रमजीत सिंह मजीठिया को निशाना बनाया गया। ‘उड़ता पंजाब’ फिल्म को केजरीवाल पंजाब की सच्चाई बताते रहे। लाखों पोस्टर मजीठिया के खिलाफ छपवाए गए जिनमें कार्यकर्त्ताओं के फोन नंबर तक दिए गए। उन बेचारों ने समझा होगा कि जरूरत पडऩे पर जरनैल हमारा समर्थन देगा, लेकिन यहां तो जरनैल ही सरपट भाग उठा।

जिस पार्टी का प्रधान ही कबूल कर रहा है कि वह फ्राड है, झूठा है उस पार्टी को पंजाब में कौन बचाएगा? अभी तक पार्टी दोफाड़ नहीं हुई पर सुखपाल सिंह खैहरा तथा कंवर संधू ने स्वीकार किया है कि उन्होंने नई पार्टी खड़ी करने के विकल्प पर विचार किया था। शायद पंजाब में AAP को बचाने के लिए यही करना पड़ेगा कि  AAPP  ‘आपपं’ आम आदमी पार्टी पंजाब बनाई जाए।

आप की कोई विचारधारा नहीं। वह कांगे्रेस या भाजपा की तरह सामान्य पार्टी नहीं जो समय के साथ विकसित हुई है। मुद्दों के बारे स्पष्टता है ही नहीं। केवल जो है उसका विरोध किया गया। सब कुछ नकारात्मक था। उसकी जगह क्या बनना है इस पर कोई सोच नहीं। ‘मोहल्ला कलिनिक’ विचारधारा नहीं है। वह तो दूसरों की गलतियों का फायदा उठाते रहे। जब अपनी बारी आई तो कारतूस खाली निकला।

पंजाब में जड़ता इतनी थी कि पार्टी खालिस्तानी समर्थक तत्वों के साथ भी इश्कबाज़ी करने लग पड़े। अरविंद केजरीवाल से लेकर कैनेडा के प्रधानमंत्री ट्रूडो को गलतफहमी है कि पंजाब के सिख खालिस्तान समर्थक है। वह अकाली दल को चाहे नापसंद करे पर खालिस्तान का यहां मुद्दा नहीं है। विदेश में बैठे इनके समर्थकों को भी इसका चानन हो रहा है। लेकिन केजरीवाल साहिब उनके बल पर पंजाब में अपना किला गाडऩे पहुंच गए। विदेशों से संदिग्ध एनआरआई को बुलाया गया। ड्रग के मुद्दे के साथ ध्यान ‘सिख  पहचान’ तथा बाद में खालिस्तान की तरफ खुद ले गए। केजरीवाल एक पूर्व आतंकी के घर ठहरने पहुंच गए। बस यह एक गलत कदम था जिसके बाद जैसे कहा जाता है, मंजिल उन्हें ढूंढती रही। रही। जिस पार्टी ने अकाली दल का विकल्प बनना था उसका तत्काल ग्राफ गिर गया। सरकार अमरेन्द्र सिंह बना गए जिनका खालिस्तान तथा सिख उग्रवाद पर सदा ही काबिले तारीफ सख्त स्टैंड रहा है। और आप वाले ईवीएम को दोषी ठहराते रह गए।

पंजाब में आप अब अपने ही नेता के बनाए चक्रव्यूह में फंस चुकी है। पार्टी के नेता कभी अटानिमी की मांग करते हैं तो कभी अलग पार्टी बनाने की। भगवंत मान चीख-चिल्ला और इस्तीफा देने की धमकी देने के बाद खामोश बैठ गए हैं। सुखपाल सिंह खैहरा शून्य भरने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन उन्हें भी मालूम है कि लोग माफीनामे को माफ नहीं करेंगे। पंजाब वह प्रदेश है जहां लोगों को बागी पसंद है वह नहीं जो हथियार छोड़ भाग उठते हैं।

लेकिन पंजाब में ड्रग का मामला इस माफीनामे से खत्म नहीं हुआ। मुद्दा फिर गर्म हो चुका क्योंकि कैप्टन अमरेन्द्र सिंह भी चार सप्ताह में इसे खत्म करने के वायदे से सत्ता में आए थे। लेकिन छोटे-मोटे बेचने वालों या नशेडिय़ों के अलावा किसी मगरमच्छ को हाथ नहीं डाला गया। मामले को लेकर कांग्रेस अब असहज है। कैप्टन अमरेन्द्र सिंह की समस्या यह भी है कि उनके साथी नवजोत सिंह सिद्धू बिक्रमजीत सिंह मजीठिया के खिलाफ बहुत सक्रिय हो चुके हैं। वह अपनी सरकार को भी कटघरे में खड़े कर रहे हैं। इस बीच केजरीवाल ने अब हरियाणा की तरफ मुंह कर लिया है। अब वह हरियाणा में ‘चमत्कार’ लाएंगे। कह रहे हैं  “कसम अपनी जन्मभूमि की”, लेकिन पहली कसमों का खुद ने जो कबाड़ा किया उसके बाद कौन उन पर विश्वास करेगा? अरविंद जी, पहले पंजाबियों से तो माफी मांग लो।

यह केजरीवाल के नेतृत्व के अंत की शुरूआत है। लेकिन ऐसा अक्सर उनके साथ होता है जो अपने को बहुत चतुर समझते हैं। किस-किस के साथ उन्होंने दगा नहीं किया? अन्ना हजारे को भी छोड़ा नहीं गया जो बार-बार कह रहे हैं कि अरविंद को आगे लाना उनकी बड़ी भूल थी। फिर एक के बाद एक वह साथी एक तरफ कर दिए गए जो उनके बराबर थे, प्रशांत भूषण, धमवीर गांधी, योगेन्द्र यादव, सुच्चा सिंह छोटेपुर, मयंक गांधी जैसे अनेक लोग खुड्डे लाईन लगा दिए गए ताकि अकेले अरविंद केजरीवाल ही चमकते रहे, लेकिन इसका नुकसान भी तो होता है। अकेले में आदमी अहंकारी बन जाते हैं। जब गलती करते हो तो रोकने वाला नहीं रहता। फिर आप दर-दर माफी मांगते फिरते हो। जो शेर बनने जा रहा वह चूहा बन कर रह गया। अगर आरोप लगाए थे तो मर्द बन कर सामना करते पर वह तो दुम दमा कर भाग उठे, जिस पर कहा जा सकता है,

यूं तो दुनिया में कोई शख्स भी अनमोल नहीं

तुम बिके जितने पर उस दाम पर रोना आया।

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Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.