डॉलर के जाल में फंसे कबूतर (False Dollar Dreams)

पंजाब ग़मगीन है। जब से इराक में मारे गए 39 भारतीयों, जिनमें 27 पंजाबी हैं, के अंग-भंग शव लाए गए हैं तब से हर घर में इसकी चर्चा है क्योंकि यह त्रासदी सब को छूती है। जिसे पंजाब में ‘कबूतरबाजी’ अर्थात इंसानी तस्करी या गैर कानूनी ढंग से बाहर भेजना कहा जाता है, यह धंधा हजारों पंजाबी घरों को छूता है। बेरोजगारी, ड्रग्स तथा भ्रष्टाचार ने कभी देश के 1 नंबर रहे प्रांत का हुलिया बिगाड़ दिया है। खेती लाभकारी नहीं रही। सरकारी नौकरियां सीमित हैं तथा आरक्षण ने उन्हें और सीमित कर दिया जिस कारण जो बाहर निकल सकता है वह सही या गलत कोशिश कर रहा है। कई कामयाब हो भी जाते हैं पर कई इराक में मारे गए इन नौजवानों की तरह ताबूत में घर वापिस आते हैं। उनकी मजबूरी का यह अंजाम होता है। कईयों के अवशेष भी नहीं मिलते। कई दुनिया के कुख्यात जेलों में बंद हैं। कई नाजुक किश्तियों में समुद्र पार करने के प्रयास में समुद्र में समा चुके हैं जैसे दिसम्बर 1996 में दोआबा के 170 नौजवान मालटा के पास नौका डूब जाने के कारण डूब गए थे लेकिन इसके बावजूद यह इंसानी तस्करी रुकी नहीं। मालटा कांड के बाद पनामा के पास नौका डूबने से 20 पंजाबी नौजवान डूब गए। वह गैर कानूनी तरीके से अमेरिका में घुसने की कोशिश कर रहे थे।

पंजाब में गांवों में बड़ी-बड़ी संगमरमर की कोठियां उन प्रवासी पंजाबियों की हैं जो सफलतापूर्वक विदेश में बस चुके हैं। इससे जहां गांववासियों मे ईर्ष्या होती है वहां कई परिवार इन्हें पाने के लिए जोखिम उठाने को भी तैयार हो जाते हैं। यह जोखिम किस तरह का होता है यह इस घटना से पता चलता है कि होशियारपुर के दो भाई लंदन की उड़ान के समय विमान के पहिए के पास बचीं जगह में छिप गए। जब आठ घंटे के बाद विमान लंदन पहुंचा तो एक जमा हुआ मृत पाया गया और दूसरा अधमरा था।

ऐसी घटनाओं के बावजूद किसी भी तरह बाहर बसने की हताशा में खूब हाथ-पैर मारे जा रहे हैं। डॉलर की बुरी ललक है। राजनेता, धार्मिक लोग, सिंगर, संगीतकार, कलाकार, एथलीट आदि सब मोटा पैसा लेकर लोगों को विदेश ले जाकर छोड़ देते हैं, अपने हाल पर। इंसानी तस्करी के मामले में प्रसिद्ध सिंगर दलेर महंदी को दो साल की सजा दी जा चुकी है।

कई लोग यह बहाना बना कर कि भारत में उत्पीडऩ होता है बाहर निकलने की कोशिश करते हैं। रास्ता निकालने के लिए बाहर गे-मैरिज, अर्थात समलैंगिक शादी भी रचाई जाती है। बहन-भाई की फर्जी शादी भी दिखाई जाती है।  कई लड़के-लड़कियां स्कूल या कालेज के जायज़ टूअर पर बाहर जाकर लापता हो जाते हैं। 23 युवकों को रगबी की टीम का हिस्सा दिखाकर 30-30 लाख रुपया लेकर फ्रांस भेजा गया जबकि न वह रगबी खिलाड़ी है और न ही स्कूल के लड़के। अब 21 वहां फंसे हुए हैं क्योंकि उनकी वापिसी के टिकट एजंट ने रद्द करवा दिए हैं। आश्रय गुरुद्वारे में लिया हुआ है।

यह खुशकिस्मती है कि उनकी जानें तो बची हैं और एक न एक दिन वह लौट आएंगे लेकिन उन अभागे परिवारों की त्रासदी तो देखिए जिनके परिवारजनों के केवल पिंजर मौसुल से वापिस लाए गए हैं। एक व्यक्ति की पहचान तो उसके सिर के पिंजर के डीएनए टैस्ट से की गई।

स्वभाविक है कि यह परिवार तड़प रहे हैं। सब-कुछ बेच कर बेहतर भविष्य के लिए उन्होंने अपने लोग बाहर भेजे थे। गुस्सा भारत सरकार पर निकल रहा है। एक लड़के के पिता ने कहा है कि गुमराह करने की बजाय शव ही सलामत लौटा दिए जाते। क्या इस मामले में भारत सरकार लापरवाह रही है? क्या गुमराह किया गया? क्या घटनाक्रम को कुछ और बेहतर शकल दी जा सकती थी?

मामले को विदेश राज्यमंत्री जनरल वी.के. सिंह के इस बयान की इनके परिवारजनों को नौकरी देना कोई फुटबाल का खेल नहीं और न ही बिस्कुट बांटने जैसा है कि वह जेब में लिए घूमते हैं, ने और विवादास्पद बना दिया। उन्होंने यह भी कहा कि यह लोग गैर कानूनी तरीके से गए थे इसीलिए इनकी मदद नहीं की जा सकी। 2014 में 46 नर्सों को आईएस  के चंगुल से बचाया जा सका क्योंकि वह कानूनी तरीके से गई थीं।

फिर इस मामले में राजनीति शुरू हो गई। पंजाब के मंत्री तृप्त राजिंद्र सिंह बाजवा का कहना है कि इन मारे गए भारतीयों के साथ पंजाब ने नहीं केन्द्र ने धोखा किया है। अगर केन्द्र सही समय पर कार्रवाई करता तो हालात और होते।

अफसोस है कि हमारे नेता शवों पर भी रोटियां सेंकने से परहेज नहीं करते। जो त्रासदी हुई वह उस वक्त गृहयुद्ध से ग्रस्त इराक के मौसुल के आसपास हुई। इस क्षेत्र पर किसी का कब्ज़ा नहीं था। भारत सरकार को इनके बारे जानकारी नहीं थी क्योंकि वह अवैध तरीके से गए थे। न ही वह वहां फौज भेज सकती थी। इन लडक़ों का दूतावास के पास कोई रिकार्ड नहीं था। ठीक है जनरल सिंह बात को बेहतर शब्दों में रख सकते थे। वह जरनैल हैं राजनेताओं की तरह घुमा-फिरा कर बात नहीं कर सकते लेकिन बात उन्होंने गलत नहीं कही। एक राज्यमंत्री नौकरी की घोषणा नहीं कर सकता। और यह कह कर कि वह गैर कानूनी ढंग से वहां गए थे उन्होंने केवल हकीकत बयान की है ताकि भविष्य में जो यह रास्ता अपनाना चाहें वह सावधान हो जाएं।

भारत सरकार ने इन्हें तलाशने की पूरी-पूरी कोशिश की थी। कई विदेशी सरकारों से सम्पर्क किया। इन्हें मौसुल में ढूंढना असंभव सा था। जब तक पूरी तरह से जांच-पड़ताल नहीं हो जाती तब तक उन्हें मृत घोषित भी नहीं किया जा सकता था, जैसे विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने भी कहा कि वह ऐसा  ‘पाप’ नहीं कर सकती थी। अधिक से अधिक यह शिकायत हो सकती है कि संसद में घोषणा करने से पहली उनके परिवारजनों को सूचित किया जाना चाहिए था।

कड़वी हकीकत है कि अगर कोई इस त्रासदी के लिए जिम्मेवार है तो वह प्रदेश है जहां से यह लड़के गए थे। मानवीय तस्करी अरबों रुपए का धंधा बन चुका है। पंजाब में अब तो समृद्ध परिवार भी बच्चे बाहर भेज रहे हैं क्योंकि वह नहीं चाहते कि उनके बच्चे यहां ‘काका’ बन जाए। पंजाब में कई घरों के ऊपर बने एयर इंडिया के विमान तथा वाहनों पर कैनेडा या आस्ट्रेलिया या अमेरिका के झंडों के स्टिकर बताते हैं कि हमारे लोग पलायन के लिए कितने उतावले हैं। परिवारों की जिम्मेवारी बहुत है। इतना कुछ बर्बाद होने के बाद भी वह पूरी सावधानी तथा जांच-पड़ताल नहीं करते। परिणाम कई बार अति दुखद निकलते हैं।

पंजाब तथा दूसरी सरकारें इस तस्करी को रोकने में बुरी तरह से नाकाम रहीं है। यह संभव नहीं कि पुलिस को मालूम नहीं कि क्या हो रहा है और कौन कर रहा है। क्योंकि अरबों रुपए का धंधा बन चुका है इसलिए बहुत लोग इस दूषित गंगा में नहाने की कोशिश करते हैं। इन एजंटों पर सख्त लगाम नहीं लगाई जा रही जबकि नशे के साथ यह पंजाब की दूसरी बड़ी त्रासदी है। इन्हें हथकडिय़ां लगा कर परेड करवानी चाहिए। केस दर्ज होने पर निकलता कुछ नहीं। देखते हैं कि वर्तमान त्रासदी में जिम्मेवार एजंटों के खिलाफ क्या कार्रवाई होती है? इंसानी तस्करी के खिलाफ लड़ाई इराक या मैक्सिको या फ्रांस या पनामा या मलेशिया में नहीं लड़ी जानी, यह लड़ाई पंजाब के गांवों, कस्बों और शहरों में लड़ी जानी है।

पंजाब बड़ी सामाजिक और आर्थिक समस्या से ग्रस्त है। पंजाब अरबों डॉलर की इंसानी तस्करी का हब है। विदेशों में बसने के पंजाबियों के जोश का यह धोखेबाज एजंट खूब फायदा उठाते हैं। उन्हें कबूतर बना कर खतरनाक आकाश में उड़ाया जाता है। कई प्रशिक्षित नहीं होते इसलिए उनकी मजबूरी अधिक होती है। विदेश भेजने के लिए जिंदगियां खतरे में डाली जाती हैं। अफसोस है कि सरकार ड्रग्स समाप्त करने की तरह इस मामले में भी कमजोर साबित हो रही है। हजारों बदमाश यहां ऐसे हैं जो डॉलर ड्रीमस दिखा भोले-भाले परिवारों का शोषण कर रहे हें। कई बार यह डॉलर ड्रीम ताबूत में वापस आती हैं।

 

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Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.