
कर्नाटक में भाजपा की जीत ने एक बार फिर बता दिया कि पार्टी के लिए नरेन्द्र मोदी कितने ज़रूरी हैं। अप्रैल के आखिरी सप्ताह तथा मई के शुरू में लग रहा था कि भाजपा तथा कांग्रेस के बीच बराबर की दौड़ है और संतुलन देवेगौडा की जेडीएस के पास रहेगा पर जिस दिन से नरेन्द्र मोदी ने खुद को इस चुनाव अभियान में झोंका है उस दिन से पलड़ा भाजपा की तरफ झुकने लगा। अब तो अंग्रेजी के मीडिया वाले जो मोदी के कट्टर आलोचक हैं दबी जुबान में उनके ‘आकर्षण’ तथा ‘मैजिक’ की बात कह रहें हैं। सुर बिलकुल बदल गया है। कांग्रेस तथा जेडीएस के साथ आने से स्थिति नहीं बदलेगी कि जनादेश कांग्रेस के खिलाफ और भाजपा के पक्ष में गया है। उनका इकट्ठा आना अनुचित नहीं। यह राजनीति है। पर फैसला तो राजभवन में होगा कि किसे सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करना है।
2014 के बाद से भाजपा ने 21 प्रदेश जीत लिए हैं। जैसे-जैसे भाजपा का प्रसार हो रहा है कांग्रेस सिमटती जा रही है। अब केवल एक बड़ा प्रदेश पंजाब, पार्टी के पास रह गया है। मोदी को अमित शाह जैसा साथी मिला है जो साम-दाम-दंड-भेद सब में निपुण है। संदेश साफ है कि भाजपा का वर्तमान नेतृत्व चुनाव हारने के लिए मैदान में नहीं उतरता। उनकी राजनीति निर्दयी और निर्मोही है। बिलकुल निष्ठुर है। वह विरोधी को ध्वस्त करने की राजनीति के माहिर हैं। उन्हें मालूम है कि 2019 के चुनाव से पहले कर्नाटक को जीतना जरूरी है। इससे दक्षिण का द्वार उनके लिए खुल जाएगा और दूसरा, इससे कांग्रेस तथा उसके नेता राहुल गांधी का मनोबल गिरेगा।
अपनी इस राजनीति में वह सफल रहे हैं। इसके लिए उन्होंने येदियुरप्पा पर लगे आरोपों तथा बेल्लारी बंधुओं की बदनामी की भी परवाह नहीं की। बचाव यह था कि दूसरी तरफ भी कोई दूध से धुला नहीं। सिद्धरामैया की प्रतिष्ठा भी वैसी ही है। पर भाजपा ने अपना भ्रष्टाचार विरोधी मुद्दा खो दिया है।
सारी पार्टियां अब एक जैसी लगती हैं केवल भाजपा के पास नरेन्द्र मोदी है और कांग्रेस के पास राहुल गांधी। यह बड़ा फर्क है। राहुल गांधी ने बहुत मेहनत की। यहां तक कह दिया कि मैं पीएम बनने को तैयार हूं लेकिन उनकी स्थिति अब नाउम्मीद बनती जा रही है। कांग्रेस की साख को बड़ा धक्का पहुंचा है। पार्टी ने दो सालों के बाद सोनिया गांधी को भी मैदान में उतार दिया। दोनो मां-बेटे ने भी तीखा हमला किया लेकिन मोदी का मुकाबला नहीं कर सके।
बेहतर होगा कि राहुल अब प्रधानगी से हट जाएं और कांग्रेस इस खानदान के दायरे से बाहर अपना नेतृत्व ढूंढे। अगर कांग्रेस पार्टी कर्नाटक में अच्छा प्रदर्शन कर जाती तो आने वाले मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ के चुनावों में पार्टी के लिए उम्मीद बनती लेकिन देश की सबसे पुरानी पार्टी के लिए स्थिति निराशाजनक लग रही है। दिलचस्प यह है कि भाजपा का नेतृत्व अब भी राहुल-सोनिया को भाव देता है। राहुल की लगातार आलोचना कर तथा मोदी द्वारा भी उन्हें अपने बराबर नेता जतला कर प्रभाव यह मिलता है कि भाजपा का नेतृत्व उन्हें राजनीति तौर पर जीवित रख रहा है। किसी ने सही लिखा है कि भाजपा राहुल को कृत्रिम श्वास देती रहती है ताकि वह खत्म न हो जाए। क्या भाजपा के लिए भी राहुल जरूरी है?
राहुल गांधी आगे से परिपक्व हुए हैं लेकिन यह अति धीमी और कष्टदायक प्रक्रिया लगती है। राष्ट्रीय जनादेश उनकी पहुंच से बहुत दूर लगता है। इस पराजय से कांग्रेस के अंदर विकल्प तलाशने की आवाज उठेगी।
बाकी विपक्ष में पहले ही राहुल गांधी के लिए उत्साह नहीं है। अब कोई भी विपक्षी नेता राहुल को गंभीरता से नहीं लेगा। लेकिन बाकी विपक्ष के लिए भी स्थिति आसान नहीं लगती। वैसे तो अगले चुनाव में एक साल पड़ा है लेकिन उसकी रूप रेखा तो सामने ही है। देश में नरेन्द्र मोदी का वर्चस्व कायम है। कौन होगा विपक्ष का नरेन्द्र मोदी के सामने उम्मीदवार? या मोदी के सामने रंग-बिरंगा गठबंधन होगा, कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा?
जब एक चैनल पर मायावती से पूछा गया कि क्या वह अगले पीएम की उम्मीदवार है तो उन्होंने इंकार नहीं किया। ममता बैनर्जी पहले ही स्पष्ट कर चुकी है कि इस बार बंगाल की बारी है। लेकिन पंचायत चुनावों में वहां जो व्यापक हिंसा और गुंडागर्दी हुई है उससे उनकी चमक फीकी पड़ी है। ममता बैनर्जी तथा उनकी पार्टी के गुनाह केवल इसलिए नज़रदांज़ नहीं होने चाहिए कि वह कथित सैक्यूलर ब्रिगेड की नेता हैं। चुनाव में यह हिंसक धांधली माफ करने वाली नहीं थी। और अब तो नन्हें तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने देश भर के अखबारों तथा चैनलों में बड़े-बड़े विज्ञापन देकर अपनी राष्ट्रीय महत्वकांक्षा स्पष्ट कर दी है। शरद पवार भी लाईन में हैं और देवेगौडा के ज्योतिषी तो उन्हें बता ही चुके हैं कि वह एक बार फिर प्रधानमंत्री बनेंगे!
अर्थात विपक्ष में हालत ‘एक कुर्सी सौ तैयार’ वाली है लेकिन कर्नाटक का चुनाव परिणाम तो कहता है कि उपर ‘No Vacancy’ है।
मोदी की लोकप्रियता का कारण क्या है? बड़ा कारण है कि लोग समझते हैं कि वह देश बदलना चाहते हैं। उनके द्वारा शुरू की गई स्वच्छ भारत अभियान, स्टार्टअप इंडिया, खेलो इंडिया, पिछड़ों के लिए आवास, गैस, अंतिम गांव तक बिजली, डिजिटल इंडिया, तेज़ सडक़ निर्माण आदि यह ऐसी योजनाएं हैं जो देश को बदल रही हैं चाहे अभी पूरी सफलता नहीं मिली। नोटबंदी से अवश्य अर्थ व्यवस्था को धक्का लगा था पर लोग अब उससे उभर चुके हैं। कम से कम कोई मोदी के इरादे पर उंगली नहीं उठा रहा जबकि अभी तक ‘जनेऊधारी’ राहुल गांधी तथा उनकी पार्टी के पास कोई वैकल्पिक एजंडा नहीं। जिसे’ साफ्ट हिन्दुत्व’ कहा जाता है वह विकल्प नहीं हो सकता। बिखरे हुए विपक्ष के पास देश को देने के लिए बिलकुल भी कुछ नहीं है।
लेकिन इस चुनाव का दुखद पक्ष भी था। सबसे बड़ा दुख है कि पानी की तरह पैसा बहाया गया। कई जगह से करोड़ों रुपए बरामद किए गए। मुख्य चुनाव आयुक्त ने भी माना पैसा बांटना बड़ी चिंता की बात है। भाजपा के पास सबसे अधिक पैसा था लेकिन कांग्रेस भी मासूम नहीं थी और जेडीएस उस दुल्हन की तरह थी जो जाच रही थी कि कौन सा दूल्हा अधिक मालदार है! दो वर्ष पहले बेंगलुरू की यात्रा पर जब विधानसौधा परिसर के बाहर से हम गुजर रहे थे तो टैक्सी चालक बोल उठा, ‘इनकी कारें भी सफेद, इनके कपड़े भी सफेद पर इनका दिल काला।‘ उसकी बात यह चुनाव सिद्ध कर गए। चुनाव लडऩे वाले 2654 उम्मीदवारों में से 645 पर आपराधिक मामले चल रहे हैं। सबसे अधिक भाजपा के हैं।
इस चुनाव से विकास कोई मुद्दा नहीं था। न नरेन्द्र मोदी और न ही सिद्धारमैया ने विकास के नाम पर वोट मांगे। सिद्धारमैया ने लिंगायत कार्ड खेला जो उलटा पड़ा क्योंकि कांग्रेस पर आरोप लगा कि वह हिन्दुओं को बांट रही है। प्रधानमंत्री मोदी ने फील्ड मार्शल करियाप्पा तथा जनरल थमैय्या के नेहरू द्वारा कथित अपमान का मामला उठाया। बताना चाहते थे कि नेहरू ने कर्नाटक के दो बहादुर सपूतों का अपमान किया। इसी तरह उन्होंने कांग्रेस पार्टी द्वारा भगत सिंह की कथित उपेक्षा का मामला उठाया। दोनों ही मामलों में वह गलत निकले। जवाहर लाल नेहरू तो खुद भगत सिंह को लाहौर सैंट्रल जेल तथा बॉरस्टल जेल मिलने गए थे। नेहरू ने ही करियाप्पा को कमांडर-इन-चीफ बनाया और राजीव गांधी की सरकार ने उन्हें फील्ड मार्शल की उपाधि दी थी। जैसे पंजाब केसरी दिल्ली के सुयोग्य संपादक अश्विनी चोपड़ा ने भी अफसोस जाहिर किया है कि “हम इतिहास की कब्र खोद कर गढ़े मुर्दे निकाल कर उनका डीएनए टैस्ट करवाने के उतावले हो रहे हैं।“ हम इस पर दुख होता है क्योंकि अतीत कुरेदने की जरूरत नहीं है। जनता नरेन्द्र मोदी की वर्तमान कारगुजारी से संतुष्ट नज़र आ रही है।
क्योंकि मोदी ज़रूरी है (Why Modi is Imperative),