उड़ता पंजाब, गिरता पंजाब (The Fall of Punjab)

फिल्म बनी थी ‘उड़ता पंजाब’। अब फिल्म बननी चाहिए ‘गिरता  पंजाब’। पंजाब जो कभी देश का नंबर 1 प्रांत था, नशा, अपराध, उग्रवाद, प्रशासनिक उदासीनता और राजनीतिक भ्रष्टाचार के कारण अब एक गिरता हुआ प्रांत है। 2013 और 2017 के बीच उत्तर प्रदेश तथा केरल के साथ पंजाब सबसे कम विकास करने वाला प्रदेश था। पंजाब की विकास की दर बिहार से भी कम है। पश्चिमी बंगाल के साथ पंजाब सबसे कर्जदार प्रदेश है। रोजगार है नहीं जिसके कारण बड़ी संख्या में युवा विदेश भागने का कानूनी और गैर कानूनी प्रयास करते रहते हैं।

इस वक्त एक अति गंभीर मामला सामने आया है जिससे प्रदेश के पर्यावरण को भारी क्षति पहुंची है। बटाला के कीड़ी अफगान स्थित शूगर मिल से लीक होकर 75,000 क्विंटल शीरा पंजाब की एकमात्र जीवित नदी ब्यास में मिल गया है जिससे भारी संख्या में जलजन्तु मारे गए हैं। सरकार को इसकी खबर तब मिली जब मरी हुई मच्छलियां पानी में बहती नजर आने लगी। पंजाब के सामने पर्यावरण का गंभीर संकट खड़ा हो गया है जिसके आने वाले वर्षों में बहुत दुष्परिणाम निकलेंगे।

समाचारों के अनुसार यह शूगर मिल शीरे का अवैध भंडार कर रही थी। कोई विभागीय मंजूरी नहीं ली गई। जिस टैंक में भंडारण किया गया वह ईंट का बना हुआ था जबकि यह स्टील का बना होना चाहिए था। जब वह फटा तो सारा शीरा ब्यास में घुस गया जिससे हजारों मच्छलियां मारी गईं और नदी की जैव-विविधता पूरी तरह से नष्ट हो गई। बहता हुआ प्रदूषित पानी हरीके की बर्ड सैंक्चयूरी तक पहुंच गया। इसका असर प्रवासी पक्षियों पर भी होगा।

विशेषज्ञ कह रहे हैं कि पानी में जहरीले तत्वों के कारण प्रजनन प्रभावित होगा अर्थात आगे चल कर मच्छलियां और भी कम होंगी। यह प्रभाव राजस्थान तक जाएगा जहां अभी से चिंता हो रही है। सरकार का कहना है कि दूषित पानी से निजात दिलवाने के लिए पौंग डैम से 2000 क्यूसिक पानी छोड़ा गया है पर मच्छली पालन के प्रसिद्ध विशेषज्ञ डा. एम.एस. जौहल के अनुसार इस घटना से पर्यावरण को इतना धक्का पहुंचा है कि स्थिति के सामान्य होने में पांच साल तक लग सकते हैं। वह कहते हैं कि  “मच्छली पानी की गुणवत्ता और स्वभाव बताती है। अगर मच्छलियों के साथ कुछ गड़बड़ है तो इसका अर्थ है कि सारे जलीय पर्यावरण में समस्या है।“ जहां तक पौंग डैम से जारी किए गए पानी का सवाल है डा. जौहल का कहना है कि यह अस्थाई कदम है क्योंकि इससे प्रदूषित पानी नीचे चला जाएगा और वहां भी नुकसान करेगा।

लेकिन त्रासदी केवल ब्यास की तबाही की ही नहीं। उसके बाद पंजाब सरकार की प्रतिक्रिया भी शर्मनाक रही। पहले प्रयास किया गया कि किसी तरह मामला दबा रहे फिर जब शोर मच गया तो शूगर मिल पर 5 करोड़ रुपए का जुर्माना लगा दिया लेकिन उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई जो मिल को चलाते हैं और जिनके आदेश पर शीरा इकट्ठा किया गया। न ही उन सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ कुछ कार्रवाई हुई जो वर्षों से आंखें मूंदे बैठे हैं। तमिलनाडु की सरकार ने तो तूतीकोरिन के स्टारलाइट कारखाने को स्थाई बंद करने का आदेश दे दिया। पंजाब में तो यह भी नहीं किया गया।

बड़े लोगों को किस तरह बचाया जा रहा है यह पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीपीसीबी) के आदेश से पता चलता है। आपराधिक मामला उन लोगों के खिलाफ दर्ज करने को कहा गया जो अपराध के समय वहां तैनात थे। अर्थात जो छोटे-मोटे कुछ कर्मचारी उस वक्त ड्यूटी पर थे उनके खिलाफ मामला दर्ज कर खानापूर्ति कर ली जाएगी। एक्साईज कमिश्नर का भी कहना है कि शीरा इकट्ठा करने की मिल के पास मंजूरी नहीं थी तो फिर जिम्मेवारी केवल उनकी कैसे थी जो उस वक्त काम देख रहे थे? उनकी नहीं जिन्होंने इसकी इजाजत दी? पर्यावरण मंत्री ओपी. सोनी भी दो मिडल स्तर के अधिकारी निलंबित कर मामला दाखिल दफ्तर कर दिया लेकिन उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जो वर्षों से इसकी इजाजत दे रहे हैं। एक्साईज विभाग ने शीरे के उत्पादन तथा नियंत्रण पर निगरानी क्यों नहीं रखी? उस मिल के पास शीरे का भंडार कैसे था जिसके पास इसका लाईसैंस ही नहीं था?

इस मामले में सन्नाटा है जबकि पहले से पंजाब के दूषित पर्यावरण को भारी धक्का पहुंचा है। जब प्रकाश सिंह बादल मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने माना था कि यहां न खाना, न पीना और न ही हवा सही है। पर न बादल और न ही अमरेन्द्र सिंह पर्यावरण के मामले को गंभीरता से ले रहे हैं। पानी हमारी सम्पत्ति है इसे बचाना बहुत जरूरी है। घग्गर के पानी के बारे ग्रामवासी बताते हैं कि यह इतना प्रदूषित है कि पीना तो कहां इससे हाथ धोने से त्वचा की बीमारी का डर रहता है।

अगर अब तक कुछ कार्रवाई हुई है तो यह आप के नेता सुखपाल सिंह खैहरा या संत सीचेवाल या ब्यास के आसपास रहने वाले लोगों के दबाव में हुई है। पंजाब की गली-सड़ी व्यवस्था समझती है कि यह मामला गंभीर नहीं जबकि यह आपराधिक साजिश से कम नहीं है।

संत सीचेवाल ने सवाल किया है कि “क्या आपने सतलुज में मच्छलियां मरते कभी सुना है? “ वह खुद इसका जवाब देते हैं,  “यह इसलिए कि उस नदी में तो मच्छलियां बहुत पहले से नष्ट हो चुकी हैं।“ यह हमारे जहरीले पानी की हालत है। हैरानी नहीं कि मालवा क्षेत्र में कैंसर की इतनी शिकायतें हैं। लेकिन सरकार उदासीन है। पर्यावरण प्राथमिकताओं में नहीं हैं। संत सीचेवाल कहते हैं,  “मच्छलियां मर गईं तो प्रदूषण याद आ गया। हम कब से कह रहे हैं कि जहरीले पानी से लोग मर रहे हैं।“ वह फिर सतलुज का उदाहरण देते हैं जहां कारखानों के प्रदूषण ने पानी में जीवन को समाप्त कर दिया।

कौन आएगा इस गिरते पंजाब को संभालने के लिए? मुख्यमंत्री अमरेन्द्र सिंह निराश कर रहे हैं। उन्होंने वायदा किया था कि चार सप्ताह में नशा समाप्त कर देंगे लेकिन एक साल गुजर जाने के बाद यह प्रभाव मिलता है कि वह बड़े दोषियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करना चाहते। अब फिर ब्यास के मामले में उनकी खामोशी बताती है कि वह शक्तिशाली लोगों को बचा रहे हैं। पहले अवैध रेत खनन के मामले को लटकाते रहे आखिर में लोकलाज ने उन्हें मजबूर कर दिया। जिस अमरेन्द्र सिंह ने कैनेडा के प्रधानमंत्री ट्रूडो को वहां उग्रवादियों को समर्थन देने के मामले में एक प्रकार से बेरंग वापिस भेज दिया था, जिसकी सरकार ने गैंगस्टरों का राज खत्म कर दिया वह प्रभावी अमरेन्द्र सिंह अब गायब हैं। अब उनका पुराना महाराजा वाला स्टाईल बाहर आ रहा है। वह कह ही चुके हैं कि यह उनका अंतिम चुनाव था इसलिए शायद समझते हैं कि अधिक कुछ करने की जरूरत नहीं लेकिन ऐसी प्रशासनिक गफ़लत तो पंजाब को और नीचे ले जाएगी। उल्लेखनीय है कि राष्ट्रमंडल खेलों में हरियाणा ने 22 पदक जीते जबकि पंजाब के हाथ केवल पांच आए। यह हमारे पतन की एक और मिसाल है।

कैप्टन अमरेन्द्र सिंह की कमजोर रफ्तार को देखते हुए मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू अधिक तेज़ हो गए हैं। कहा अगर ताकत मिली तो बिक्रमजीत सिंह मजीठिया को अंदर करेंगे। यह बात वह बहुत बार दोहरा चुके हैं। और भी ऐसी घोषणाएं वह करते रहते हैं लेकिन अधिकतर पूरी नहीं कर सके क्योंकि जैसा उन्होंने कहा है उनकी ताकत नहीं है। पर इस ‘ताकत’ का इस्तेमाल करते हुए उन्होंने अपनी पत्नी नवजोत कौर सिद्धू को वेयरहाऊस कार्पोरेशन का चेयरपर्सन बनवा दिया और अपने बेटे करण सिद्धू को सहायक एडवोकेट जनरल (एएजी) बनवा दिया। यह वही सिद्धू है जो अकाली सरकार को ‘जीजा-साला सरकार’ कहते नहीं थकते थे लेकिन खुद परिवारवाद में फंस गए।

अब अवश्य चारों तरफ की आलोचना के बाद उन्होंने घोषणा की है कि उनकी पत्नी और बेटा दोनों सरकारी नौकरी नहीं लेंगे लेकिन यह भी तो हकीकत है कि दोनों यह पद ग्रहण करने के लिए तैयार थे और सिद्धू ने कहा था कि दोनो क्वालिफाई करते हैं। मिर्जा गालिब का यह शेज्र याद आता है,

वह बंद करने आए थे तवायफों के कोठे

मगर सिक्कों की खनक देख कर खुद ही नाच बैठे!

 

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Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.