जिस प्रकार उड़ान के दौरान वायुमंडल में विक्षोभ आ जाता है और विमान हचकोले खाने लगता है वही हाल आज-कल भारत-अमेरिका रिश्तों का है। यह रिश्ते बाराक ओबामा के समय तक सही उड़ रहे थे और हम खुद को अमेरिका के ’स्ट्रैटजिकल पार्टनर’ भी समझने लगे थे। इस कारण हमने रूस से रिश्ते बिगाड़ लिए और चीन के साथ डोकलाम में टकराव की नौबत आ गई थी लेकिन डॉनल्ड ट्रम्प’ के वहां राष्ट्रपति बनने के बाद रिश्तों में भारी अशांति आ गई है। भारत पर एक किताब की लेखिका और विशेषज्ञ एलीसा एयरस ने सही लिखा है, “आपसी रिश्तों में पिछले कुछ महीनों में नया तनाव आया है और यह जारी रहेगा… दोनों देशों के बीच सब कुछ ठीक-ठाक नहीं है।“
भारत सरकार को इसका आभास था इसीलिए प्रधानमंत्री मोदी ने फटाफट वुहान में चीन के राष्ट्रपति तथा सोची में रूस के राष्ट्रपति से मुलाकात कर अपना विकल्प खड़ा करना शुरू कर दिया क्योंकि कोई नहीं जानता कि अस्थिर और सनकी अमेरिकी राष्ट्रपति का अगला कदम क्या होगा? आखिर यह शख्स जी-7 बैठक के बाद मेज़बान कैनेडा के प्रधानमंत्री ट्रूडो को बईमान कह चुका है और अपने पुराने साथियों को हक्का-बक्का छोड़ वहां से चलता बना था।
भारत को नवीनतम झटका 2+2 वार्ता जिस दौरान भारत की विदेशमंत्री तथा रक्षामंत्री ने अमेरिका के विदेशमंत्री तथा रक्षामंत्री से वार्ता करनी थी को अमेरिका द्वारा रद्द करना है। अमेरिका का कहना है कि ऐसा ‘अपरिहार्य कारणों’ से करना पड़ रहा है लेकिन अगर देखा जाए कि यह वार्ता पहले भी रद्द हो चुकी है और वार्ता की अगली तारीख जारी नहीं की गई तो समझ में आता है कि मामला कुछ गड़बड़ है, ऑल इज़ नॉट वैल। 2+2 अब 3 बन रहें हैं। अमेरिका भारत की संवेदना के प्रति सामान्य शिष्टाचार भी दिखाता नजर नहीं आ रहा। जिस ‘विशेष रिश्ते’ की बात पहले होती रही वह गायब हो गया है। हम ‘मेजर डिफैंस पार्टनर‘ नाम के ही रह गए हैं। ऐसा आभास मिलता है कि डॉनल्ड ट्रम्प जो खुद को दुनिया के सबसे बड़े सौदेबाज समझते हैं भारत से भी पूछ रहे हैं कि बेहतर रिश्तों के लिए आप तत्काल क्या देने को तैयार हो?
हर रिश्ते से वह अमेरिका के लिए आर्थिक लाभ चाहते हैं। भारत से पहले चीन तथा यूरोपियन यूनियन देशों से आयात माल पर अमेरिका ने भारी भरकम टैक्स लगा दिया है। इन देशों ने भी अमेरिका से आयातित माल पर अपने-अपने कर बढ़ा दिए हैं इससे दुनिया में महंगाई का दौर शुरू होगा पर ऐसे ट्रम्प हैं। जिसे वह ‘अमेरिका फर्स्ट’ की नीति कहते हैं उसके सामने कोई उनका दोस्त या दुश्मन नहीं। वह वही करेंगे जिससे उनके लोग प्रसन्न हो और 2020 में दोबारा उन्हें वोट देने के लिए तैयार हो जाएं चाहे निश्चित नहीं कि दुनिया की व्यवस्था को उलटाने से अमेरिका के लोगों का क्या फायदा होगा?
भारत के साथ अमेरिका के वर्तमान टकराव के तीन कारण है। पहला व्यापार है। पहले हर्ले-डेविडसन बाईक जैसे मामूली मामले को लेकर तू-तू, मैं-मैं हुई थी। अमेरिका का कहना है कि व्यापार का संतुलन भारत की तरफ 24 अरब डॉलर है। इसकी शिकायत ट्रम्प कई बार सार्वजनिक भी कर चुके हैं। इसीलिए अमेरिका ने भारत से आने वाले स्टील तथा अल्मीनियम के माल पर तीखी ड्यूटी लगा दी है। भारत ने भी जवाब देते हुए अमेरिका से आयात होने वाली 29 चीजों पर ड्यूटी लगा दी। इस मामले पर आजकल आपसी ले-दे चल रही है।
लेकिन यह मसला ऐसा नहीं जो संबंधों को बिगाड़ सकता है। दोनों देश बढ़ी हुई ड्यूटी को झेल सकते हैं। बाकी दो मसले ऐसे हैं जिनको अगर नहीं संभाला गया तो संबंध बिगड़ भी सकते हैं। पहला मसला ईरान है। अमेरिका ईरान के साथ ओबामा सरकार द्वारा किए गए परमाणु समझौते से बाहर आ गया है। ईरान पर वादाखिलाफी का आरोप लगाते हुए अमेरिका ने न केवल उन पर प्रतिबंध लगा दिए हैं बल्कि यह भी घोषणा की है कि जो भी देश ईरान के साथ व्यापारिक संबंध रखेगा अमेरिका उसके खिलाफ भी प्रतिबंध लगाएगा। 4 नवम्बर तक यह रिश्ते खत्म करने का हुकम सुना दिया गया है।
यहां भारत फंसता है। ईरान के साथ न केवल हमारे प्राचीन संबंध हैं बल्कि भारत की तेल की जरूरत की पूर्ति में ईरान का तीसरा स्थान है। ईरान का तेल सस्ता भी पड़ता है। भारत ईरान के तेल की कमी सऊदी अरब या यूएई से पूरा कर सकता है लेकिन सवाल तो हमारी आर्थिक आजादी का है। नई दिल्ली में जिस गर्मजोशी से विदेशमंत्री सुषमा स्वराज ईरान के विदेशमंत्री जावेद जारिफ से मिली है उससे तो यह संदेश जाता है कि भारत इस रिश्ते की कीमत जानता है। भारत के लिए पड़ोसी ईरान के साथ रिश्ता महत्वपूर्ण है क्योंकि हम पाकिस्तान के पड़ोस में ईरान में चाबहार की बंदरगाह बना रहे हैं जिससे हमें अफगानिस्तान तथा केन्द्रीय ऐशिया के देशों के साथ सीधा रास्ता मिला जाएगा। इस तरह हम पाकिस्तान की भूगौलिक बाधा को पार कर सकेंगे। इस बंदरगाह पर हम 50 करोड़ डॉलर खर्च कर चुके हैं।
तीसरा विवाद का मुद्दा रूस है। अमेरिका ने ऐसा कानून बनाया है जो उन देशों पर प्रतिबंध लगाता है जो रूस से सैनिक सामान खरीदते हैं। यहां फिर भारत फंसता है क्योंकि हमारा अधिकतर सैनिक सामान रूस से आता है। हम विशेष तौर पर S-400 मिसाईल एयर डिफैंस सिस्टम उनसे खरीदना चाहते हैं। यहां भी मामला हमारी सामरिक आजादी का है। पूर्वी नौसेना कमान के पूर्व प्रमुख वाईस एडमिरल (रिटायर्ड) ए.के. सिंह ने सही कहा है, “केवल S-400 का सौदा ही नहीं बल्कि भारत की सामरिक स्वायत्तता दाव पर है। आशा है कि हमारा नेतृत्व यह समझेगा कि हम रूस से रिश्ता तोड़ नहीं सकते… कई तकनीकें ऐसी हैं जो केवल रूस हमें दे सकता है।“
अर्थात भारत की अमेरिका के रिश्तों में गहरा तनाव आने के बहुत आसार हैं। यह भी मालूम नहीं कि ट्रम्प आगे क्या करेंगे क्योंकि यह शख्स अभी तक अपने दो विदेशमंत्री, दो चीफ ऑफ स्टाफ तथा तीन राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बर्खास्त कर चुका है। ट्रम्प की नीतियों से न केवल भारत बल्कि चीन को भी सेक पहुंच रहा है। शी जिनपिंग खुद को अमेरिकी राष्ट्रपति के बराबर समझने लगे थे लेकिन अब वहां भी चिंता है कि ट्रम्प ने उन्हें जो सीधी चुनौती दी है उससे कैसे निपटा जाए? चीन की अर्थ व्यवस्था पहले ही धीमी चल रही है। उनके विशेषज्ञ अब कह रहे हैं कि उनके नेतृत्व ने वाशिंगटन में चीन विरोधी भावना को सही नहीं समझा और पूरी तैयारी से पहले अमेरिका के साथ विश्व नेतृत्व को लेकर टकराव करवा बैठे। चीन के एक अर्थ शास्त्री रेन जीपिंग ने लिखा है, “अमेरिका अपनी ताकतवर व्यवस्था के द्वारा चीन के उत्थान को रोकने की कोशिश करेगा।“
भारत के लिए यह बुरी खबर नहीं है। अभी से चीन का हमारे प्रति रवैया नरम हो रहा है और यह भी खबर है कि चीन ने अपने आर्थिक गलियारे OBOR से हाथ कुछ खींचना शुरू कर दिया है क्योंकि उन्हें अमेरिका के साथ पूरे ट्रेड-वॉर की आशंका है लेकिन यह उनकी समस्या है। हमें तो अपने व्यापारिक तथा सामरिक हित संभालते हुए ईरान तथा रूस जैसे देशों के साथ अपने रिश्ते सही रखने हैं। चाहे निक्की हेली यहां आकर अच्छी-अच्छी बातें कह गईं है पर हकीकत है कि डॉनल्ड ट्रम्प की नीति से कोई भी जख्मी हो सकता है। हमें यह चुनौती उस वक्त भी आई है जब रुपए में रिकार्ड गिरावट हुई है। लेकिन यह भी नहीं कि हमारे पास विकल्प नहीं है। भारत का बड़ा बाजार सौदेबाज ट्रम्प के लिए सदा ही आकर्षण रहेगा। पूर्व विदेश सचिव जी पार्थासारथी ने सही कहा है, “हमें अपने उन कदमों जो अमेरिका की नीति का समर्थन करते हैं के बदले मुआवजा लेना चाहिए। रक्षा सामान या नागरिक विमानों की बड़ी खरीद को वाशिंगटन द्वारा विशेष राजनीतिक, आर्थिक तथा सुरक्षा संबंधी कदमों से जोड़ा जाना चाहिए। यह भी निश्चित करना चाहिए कि भारत-रूस रक्षा संबंधों पर विपरीत असर न पड़े।“
यह काम आसान नहीं होगा क्योंकि यह अज्ञात है कि भारत-अमेरिकी रिश्तों का भविष्य क्या होगा? लेकिन पहले भी ऐसे चुनौतीपूर्ण मौके आ चुके हैं जिन पर हमने पार पा लिया था। हमें अमेरिका, चीन, रूस, ईरान, ईयू सबके साथ अपने रिश्ते संभालने हैं और अपना हित साधना है। कुशल कूटनीति का मकसद भी यही है।
भारत-अमेरिका : 2+2=3 (India-America: 2+2=3),