पहले विश्वासमत पर बहस के दौरान और फिर कार्यकारिणी की बैठक के बाद कांग्रेस ने स्पष्ट कर दिया कि वह चुनावी लड़ाई नरेन्द्र मोदी बनाम राहुल गांधी बनाना चाहते हैं। वर्तमान तथा भावी साथियों सब को संदेश दिया गया कि जहां पार्टी प्रादेशिक स्तर पर गठबंधनों के लिए तैयार है वहां सरकार बनाने की स्थिति में केवल राहुल गांधी ही प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे। अर्थात ममता बैनर्जी, मायावती, शरद पवार या चंद्रबाबू नायडू जैसे नेताओं को बड़ी कुर्सी पर बैठाने की महत्वकांक्षा नहीं पालनी चाहिए। अगर नरेन्द्र मोदी हटेंगे तो राहुल गांधी ही वहां बैठने के लिए उपयुक्त नेता हैं, ऐसा कांग्रेस का संदेश है।
कांग्रेस देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी है। लगभग पूरे देश में वह फैली हुई है, ऐसा पार्टी के नेताओं का दावा है पर यह भी तो सच्चाई है कि इस वक्त यह सिंकुड़ कर केवल एक ही बड़े प्रदेश, पंजाब में सत्तारुढ़ है जबकि कर्नाटक में वह उस गठबंधन में है जहां के मुख्यमंत्री एचडी कुमारास्वामी लाल रुमाल में आंसू बहा रहें हैं।
और ममता बैनर्जी, मायावती तथा चंद्रबाबू नायडू का क्या होगा? वह तो अभी से देश को समझाने में लगे हैं कि मोदी बनाम राहुल मुकाबले के बारे सोचना भी खुद को गुमराह करना है। ममता बनर्जी जनवरी में दिल्ली में ‘महारैली’ की घोषणा कर चुकी है। एक इंटरव्यू में उन्होंने साफ कहा है कि “मैं खुद को पीएम बनने के उम्मीदवार से रद्द करने वाली कौन होती हूं?” उनकी पार्टी के सांसद कहते ही रहते हैं कि ममता से अधिक अनुभवी और कोई विपक्षी नेता नहीं है। चंद्रबाबू नायडू जिनकी पार्टी ने आंध्र प्रदेश की मांगों को लेकर अविश्वास प्रस्ताव पेश किया था राष्ट्रीय राजनीति में उनकी पार्टी तथा आंध्र प्रदेश की ‘भूमिका’ की बात कह चुके हैं। और सब जानते हैं कि मायावती की महत्वाकांक्षा देश की पहली दलित प्रधानमंत्री बनने की है। उन्होंने भी अभी से कांग्रेस को चेतावनी दे दी है कि तीन विधानसभा चुनावों में गठबंधन सीटों के बंटवारे पर निर्भर करता है।
लेकिन संसद में जब राहुल गांधी बोले तो उन्हें आंध्र प्रदेश की चिंता नहीं थी। बहुत देर पार्ट टाईम राजनीतिज्ञ रहने के बाद इस बार संसद में अपने तीखे भाषण के दौरान राहुल गांधी देश को संदेश भेज रहे थे कि अब वह मैदान-ए-जंग से भागेंगे नहीं। उन्होंने सीधा नरेन्द्र मोदी को निशाना बनाया। राहुल यह संदेश भी दे रहे थे कि विपक्ष के नेता की जगह पर उन्होंने कब्ज़ा का लिया है वह ही मोदी से टक्कर ले सकते हैं।
लेकिन बीच में मामला गड़बड़ हो गया। यह तो सब जानते थे कि अविश्वास प्रस्ताव पास नहीं होगा लेकिन सत्तापक्ष को 325 वोट मिलना और विपक्ष को मात्र 126 बताता है कि विपक्ष बिल्कुल इकट्ठा नहीं है। लगभग 90 विपक्षी सांसद मतदान से गायब रहे। फिर राहुल गांधी दूसरी तरफ जाकर जबरदस्ती नरेन्द्र मोदी के गले लगे। यह बहुत घटिया हरकत थी। पहले देश के प्रधानमंत्री को कहा ‘उठो’,’उठो’ फिर खुद उनसे चिपक गए। क्या किसी मर्यादा का ध्यान नहीं है? और वह तो जवाहर लाल नेहरू तथा फिरोज जहांगीर घांधी के वशंज हैं जिन्होंने सदैव संसद की मर्यादा का ध्यान रखा। संसद जप्फी-पप्पी की जगह नहीं है। लेकिन लगता है कि श्रीमान ने राजकुमार हिरानी से कुछ कोचिंग ली है। फिर वापिस जब सीट पर बैठे तो प्रिया वैरियर की तरह ज्योतिर्दित्य सिंधिया को आंख मार दी और आक्रामक भाषण देकर जो प्रभाव जमाया था उस पर खुद पानी फेर डालो।
मैंने एक बार लिखा था कि राहुल गांधी पप्पू नहीं रहे लेकिन संसद के अंदर जो ड्रामा उन्होंने किया उससे तो यह प्रभाव मिलता है कि जैसे पप्पूपन पूरा खत्म नहीं हुआ। उनके आंख मारने से यह आभास मिला कि उनके लिए देश के सामने गंभीर मुद्दे भी मज़ाक हैं। जो गुस्सा दिखाया वह नकली था। जप्फी भी एक विरोधी के साथ बेहतर संबंध बनाने का प्रयास नहीं थी। न ही यह राजनीतिक सौहार्द का प्रयास था यह तो मात्र स्टंट था। इससे उनका और भी नुकसान हुआ। जो लोग यह समझने लगे थे कि राहुल गांधी अब गंभीर नेता बन चुके हैं अपनी राय पर पुनर्विचार कर रहें हैं। आगे चुनाव है लेकिन भाषण के बाद अपनी नौटंकी से राहुल गांधी ने अपना ही गोल कर लिया।
इस जप्फी के साथ राहुल शायद यह प्रभाव देना चाहते थे कि वह प्यार और सहिष्णुता की राजनीति में विश्वास रखते हैं जबकि नरेन्द्र मोदी तथा भाजपा नफरत बांटने में लगे रहते हैं पर अपने भाषण में तो उन्होंने नरेन्द्र मोदी के प्रति अधिक ‘प्यार’ प्रदर्शित नहीं किया न ही नरेन्द्र मोदी उनके प्रेम जाल में फंसने वाले हैं। राहुल ने टवीट भी किया कि “प्रधानमंत्री नफरत, भय और गुस्से का इस्तेमाल करते हैं। हम यह सिद्ध करने जा रहे हैं कि सभी भारतवासियों के दिल में प्रेम तथा संवेदना के द्वारा ही राष्ट्र बनाया जा सकता है।“
अर्थात राहुल गांधी और कांग्रेस अब प्यार, सहिष्णुता, संवेदना आदि के मुद्दे को उछालना चाहते हैं। वह अपने तथा भाजपा/संघ के बीच यह अंतर देश को जतलाना चाहते हैं। यह कांग्रेस की चुनावी धुनी होगी। और इस मामले में भाजपा रक्षात्मक है क्योंकि देश भर से भीड़ द्वारा कानून और व्यवस्था हाथ में लेने तथा हिंसा करने की घटनाएं लगातार सामने आ रही हैं यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट ने भी इस पर तलख टिप्पणी की है। नवीनतम घटना अलवर से है जहां गाय तस्करी की शंका में रकबर खान को पीट-पीट कर मार डाला गया जबकि वह गाय पालता था। इन लोगों के भी परिवार हैं। बाल-बच्चे हैं। सपने हैं। और वह भारतीय हैं। इनके साथ ऐसा सलूक क्यों किया जाए? झारखंड में 80 वर्षीय सन्यासी स्वामी अग्निवेश को उनके विचारों के लिए पीट दिया गया। स्वामी जी आर्य समाजी कम और साम्यवादी अधिक हैं पर ऐसी आजादी इस देश में है। किसी के विचारों को लेकर उन पर हमला क्यों किया जाए और स्वामी जी तो गाय तस्करी नहीं कर रहे थे। एक केन्द्रीय मंत्री का कहना है कि नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता को देखते हुए विरोधी यह सब करवा रहे हैं। अगर यह बात सही है तो प्रधानमंत्री इनकी तीखी निंदा क्यों नहीं करते? उस मंत्री के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं हुई जिसने जमानत पर आए अपराधियों को माला पहनाई थी?
गृहमंत्री का कहना है कि कानून और व्यवस्था प्रदेशों का विषय है। यह बात सही है पर वह भाजपा शासित प्रदेशों की तो खिंचाई करा सकते हैं। अगर इस तरह की घटनाओं को नहीं रोका गया तो अराजकता बेलगाम हो जाएगी। हर तरह के असामाजिक तत्व हिंसा के माहौल का फायदा उठाएंगे। गोरक्षा के नाम पर अब कुछ भी किया जा सकता है। ऐसे अंसर शायद महसूस करते हैं कि सैय्यां भये कोतवाल तो डर काहे का, पर इससे कोतवाल की तो बदनामी हो रही है। एक सरकार का प्रमुख कर्त्तव्य है कि देश में शांति, भाईचारा, सहिष्णुता और सद्भाव का माहौल हो। भारत से उलटी तस्वीर मिल रही है। पूर्व विदेश सचिव श्याम सरन ने देश की ‘बिगड़ती छवि’ पर चिंता व्यक्त की है। जिसे ‘हैपीनॅस इन्डैक्स’ कहा जाता है उसमें हम काफी नीचे चले गए हैं। इसका एक और नुकसान हो रहा है जिस शिक्षित और युवा वर्ग ने पिछले चुनाव में भाजपा को समर्थन दिया था, वह विचलित हो रहा है।
राहुल गांधी ने राफेल विमान की फ्रांस से खरीद को लेकर भी आरोप लगाए हैं। उनका एक कथन तो गलत निकला कि दोनों देशों के बीच गोपनीय धारा नहीं है पर उनके दो और नुक्ते कि (1) कीमत 522 करोड़ रुपए से बढ़ कर 1600 करोड़ रुपए हो गई तथा (2) एचएएल को एक तरफ कर भारत में विमान बनाने का सौदा अनिल अंबानी की कंपनी को दिया गया जिसे इसका कोई अनुभव नहीं था, से लोगों में अब सवाल उठ रहे हैं। मुझे अहसास है कि सौदे में कोई मिडलमैन नहीं है और यह दोनों देशों के बीच हुआ था। वायुसेना प्रमुख बीएस धनोआ ने भी कहा है कि हमने बहुत अच्छी कीमत पर विमान खरीदे हैं लेकिन फिर भी सरकार को लोगों की आशंकाओं का समाधान करना चाहिए। उन्हें पारदर्शिता लानी चाहिए और लोगों को बताना चाहिए कि क्यों राफेल एक घोटाला नहीं है।
अब लड़ाई सीधी : मोदी बनाम राहुल? (The Big Fight: Modi Vs. Rahul),