पंजाब में अकाली दल तथा उसके नेतृत्व की स्थिति लगातार खराब होती जा रही है। अब तो फिर पुलिस घेरे में पार्टी रैलियां कर रही है पर पहले तो अकाली नेताओं ने लोगों के गुस्से के डर से घर से बाहर निकलना बंद कर दिया था। बरगाड़ी में श्री गुरु ग्रन्थ साहिब की बेअदबी के बाद धरने पर बहिबलकलां बैठे दो सिखों की पुलिस गोली में मौत से मामला और बिगड़ गया है। गोली चलाने का हुकम किसने दिया, किसने नहीं दिया यह विवाद बन गया है। सरदार प्रकाश सिंह बादल कहते हैं कि उन्होंने नहीं दिया लेकिन तब वह मुख्यमंत्री थे और उनके पुत्र सुखबीर बादल गृहमंत्री थे इसलिए लोगों की नजरों में वह गोली चलने की जिम्मेवारी से बच नहीं सकते।
श्री गुरु ग्रन्थ साहिब की इज्जत रखने की जिम्मेवारी तत्कालीन सरकार की थी। अकाली तो खुद को पंथ का ठेकेदार मानते रहें हैं। बार-बार ‘पंथ खतरे में है’ का नारा उठा कर फायदा उठाते रहें। सिख यह सोच भी नहीं सकते थे कि अकाली सरकार के नीचे ऐसा कुकृत्य हो सकता है और दोषी पकड़े नहीं जाएंगे। दिल्ली सिख गुरुद्वारा मैनेजमैंट कमेटी के अध्यक्ष मनजीत सिंह जी के का कहना है कि, “सवाल है कि प्रकाश सिंह बादल की संलिप्तता है कहां? क्योंकि जब गोली चली तब अकाली दल सत्ता में था इसजिए लोकराय हमारे खिलाफ है और उनका गुस्सा ठंडा नहीं हो रहा।” मनजीत सिंह जी के ने एक बात और कही है जो उल्लेखनीय है, उनका कहना है कि, “यह बेअदबी हमारा ब्लूस्टार है।“
खुद मनजीत सिंह जीके पर अमेरिका की यात्रा के दौरान कुछ खालिस्तानी तत्वों ने हमला किया था। अकालियों की हालत यह बन गई है कि कोई उनके एनआरआई विंग की कमान संभालने को तैयार नहीं जबकि पहले इसे इज्जत और प्रभाव बढ़ाने की सीड़ी समझा जाता था। पंजाब में भी पहली बार अकाली दल के अंदर से बादल तथा मजीठिया परिवारों के खिलाफ आवाज़ें उठ रही हैं। 11 वर्ष एसजीपीसी के अध्यक्ष रहे अवतार सिंह मक्कड़ ने अकाली दल तथा बादल सरकार पर सीधा निशाना साधा है। उनका सवाल था कि निहत्थे सिख श्रद्धालुओं पर गोली कैसे चलाई गई जबकि पहले सडक़ पर उतरे डेरा प्रेमियों पर गोली नहीं चलाई गई? सुखदेव सिंह भौर ने भी अकाली नेतृत्व से सवाल पूछे हैं। वरिष्ठ नेता सुखदेव सिंह ढींडसा जिन्हें प्रदर्शन का सामना करना पड़ा है ने कहा है कि गुरु गोबिंद सिंह जी का वेष धारण करने वाले गुरमीत राम रहीम को माफी देने वाले श्री अकाल तख्त के जत्थेदार को खुद इस्तीफा दे देना चाहिए था। अगर वह इस्तीफा नहीं देते तो एसजीपीसी को उनका इस्तीफा ले लेना चाहिए। जत्थेदार खुद घटनाक्रम पर मौन है। जत्थेदार तोता सिंह ने भी पार्टी के रवैये पर सवाल उठाए हैं। अकाली दल के सबसे वरिष्ठ सांसद रणजीत सिंह ब्रह्मपुरा जैसे लोग भी बादल पिता-पुत्र को जिम्मेवार ठहराने से गुरेज़ नहीं कर रहे।
उल्लेखनीय है कि कुछ देर पहले तक यह लोग खामोश रहे। जब गुरमीत राम रहीम के साथ सौदेबाजी के बाद उसे माफी देने का तमाशा रचा गया तो इनमें से किसी ने भी ऐसी आवाज़ बुलंद नहीं की। यह अब बोल रहे हैं क्योंकि समझ गए है कि राम रहीम को माफी से शुरू हुए घटनाक्रम से सिख बेहद खफा हैं। इसलिए फासला बना रहें हैं। सिख बहुत भावुक कौम है। इस वक्त उनके जहन में अकाली नेता विशेष तौर पर बादल परिवार के प्रति बहुत नकारात्मक भावना है इसीलिए पिछले विधानसभा चुनाव में भी पार्टी की हार हुई। रणजीत सिंह आयोग की रिपोर्ट बाहर आने के बाद गुस्सा सतह तक आ पहुंचा है।
98 वर्ष पुराने अकाली दल को ऐसी चुनौती का पहले सामना नहीं हुआ। पहली गलती गुरमीत राम रहीम को माफी देना था। जिस तरह जेबी जत्थेदार के द्वारा यह किया गया उससे सिखों में भारी गुस्सा है। बाद में इसे वापिस ले लिया गया पर नुकसान तो हो गया। जरूरी है कि एसजीपीसी का सुधार किया जाए ताकि यह आजाद रूप से काम कर सके।
अकाली दल की दूसरी समस्या है कि नई पीढ़ी के आने के बाद पार्टी का स्वरूप बदलना शुरू हो गया। यह पंथक पार्टी न रहते हुए 1996 में मोगा घोषणापत्र के बाद सब पंजाबियों की पार्टी बन गई। यही सही कदम था। 2007 के चुनाव में गैर सिखों को टिकट दी गई इससे पार्टी का फैलाव बढ़ा क्योंकि गैर सिख भी इस तरफ आकर्षित हुए लेकिन नुकसान यह हुआ कि पार्टी का आधार टकसाली अकाली, दूर होते गए। प्रकाश सिंह बादल के साथ तो उनका सम्पर्क था लेकिन सुखबीर सिंह मार्डन हैं उनके पास टकसालियों के लिए समय नहीं है। अब जबकि पार्टी गहरे संकट में घिर गई है पर पुराने नेता बाहर नहीं निकल रहे। आखिर में रैलियां करने के लिए प्रकाश सिंह बादल को निकाला गया और पहली रैली में ही उन्होंने खून गिरने की बात कह दी। बादल साहिब से सहानुभूति है। उनकी हालत भी कुछ-कुछ प्रताप सिंह कैरों के अंतिम दिनों जैसी बन रही है।
अकाली दल की दुर्गति का तीसरा बड़ा कारण इस पर एक परिवार का कब्ज़ा है। एक पार्टी जो कभी आंदोलन थी वह क परिवार तथा उसके रिश्तेदारों में आकर सिमट गई। इसका लोगों में रोष है। अकालियों की नई पीढ़ी अपने हिसाब से चलती है। सुखबीर बादल बारे एक अकाली नेता ने मुझे कहा था, “यह अच्छा अकाली प्रधान है जो फाईव स्टार होटल में ही ठहरता है?” नेतृत्व तथा समर्थकों में दूरी बढ़ी है। भ्रष्टाचार तथा ड्रग व्यापार के आरोपों के कारण भी लोग नाराज़ हैं। प्रभाव यह फैल गया है कि नेतृत्व को केवल अपनी कुर्सी की चिंता है आम सिखों की जरूरतों और जज़्बातों की नहीं।
अकाली दल की इस दुर्गति से कांग्रेस, सीताराम केसरी की भाषा में, बम बम है। मुख्यमंत्री अमरेन्द्र सिंह प्रकाश सिंह बादल को सीधा फायरिंग के लिए जिम्मेवार ठहरा रहे हैं और उनका कहना है कि बादल को सजा दिलवाने के लिए वह कोई कसर नहीं छोड़ेंगे लेकिन कांग्रेस को भी सावधान रहना चाहिए। कहीं यह न हो कि अकालियों को खुड्डे लाईन लगाते-लगाते वह सिख राजनीति जिन्हें पंजाब में ‘गर्म ख्याली’ कहा जाता है, के हवाले कर दें। पंजाब में इस बात को लेकर बहुत घबराहट है कि कांग्रेस फिर पंथक कार्ड खेलने की कोशिश कर रही है। विकास ठप्प है। पैसा ही नहीं है इसलिए लोगों का ध्यान सरकार की कमजोर कारगुजारी से हटा कर उग्र मामलों की तरफ ले जाया जा रहा है। लोग भूले नहीं कि एक कांग्रेस सरकार के समय ही भिंडरावाला को यहां खड़ा किया को उग्रवाद की आग में झोंक दिया गया जिसके प्रदेश और देश दोनों के लिए विनाशक परिणाम निकला।
अब फिर कांग्रेस बरगाड़ी कांड को उछालने में लगी हुई है। प्रधानमंत्री मोदी तथा गृहमंत्री राजनाथ सिंह अमरेन्द्र सिंह को सावधान कर चुके हैं कि पंजाब में खालिस्तानी समर्थक फिर शरारत करने की कोशिश कर रहे हैं। अगर माहौल खराब होगा तो पाकिस्तान भी दखल देने की कोशिश करेगा। जालंधर के मकसूदां थाने में बम विस्फोट हो चुके हैं। अकालियों के दस साल शांतमय रहे पर जब-जब कांग्रेस ने धर्म और राजनीति का यहां घालमेल किया है पंजाब ने इसकी बड़ी कीमत चुकाई है। वित्तीय हालत ऐसी है कि केन्द्र से एससी/एसटी छात्रों के लिए जो पैसा आता है उसे भी पंजाब सरकार चार साल से निगल रही है। सारा जोर बादल परिवार तथा अकाली दल को हाशिए पर धकेलने पर लगा है। कांग्रेस के नेता अकालियों से बडे़ अकाली बनना चाहते हैं।
लेकिन पंजाब अत्यंत संवेदनशील प्रांत है जहां लोगों ने बहुत संताप झेला है। इसलिए जहां यह अकाली दल के लिए अस्तित्व का संकट है वहां कांग्रेस के नेतृत्व की हरकतों को देखते हुए भी मुझे कहना है,
मुझे छोड़ दे मेरे हाल पर
तेरा क्या भरोसा है चारागर
यह तेरी नवाजिश मुख्तसर
मेरा दर्द और बढ़ा न दे।
अकाली दल का ब्लूस्टार (Akali Dals Blue Star),