अपनी विवादास्पद भारत यात्रा के दौरान तत्कालीन पोप ने नई दिल्ली में घोषणा की थी कि “जिस तरह पहली सहस्त्राब्दी में क्रॉस को योरुप की भूमि में दृढ़ता से स्थापित किया गया, दूसरी में अमेरिका तथा अफ्रीका में किया गया, तीसरी ईसाई सहस्त्राब्दी इस बड़े और महत्वपूर्ण महाद्वीप में धार्मिक निष्ठा की बड़ी फसल की कटाई की गवाह बनेगी।“ यह घोषणा पोप ने नवम्बर 1999 में की थी। उसके बाद भी कैथलिक चर्च तथा उसके मिशनरी लगातार भारत और एशिया में ईसाईयत फैलाने तथा धर्म परिवर्तन करने का प्रयास करते रहे। पोप जॉन पॉल ने तो अपने लोगों से कहा था कि ‘एशिया में जाओ और इस महाद्वीप को जीसस (ईसा) के लिए जीत कर लाओ।‘ मदर टरेसा जिन्होंने बहुत समाज सेवा की थी ने भी कई इंटरव्यू में यह स्वीकार किया था कि यह सेवा वह केवल ईसाईयत को बढ़ाने के लिए कर रहीं हैं। एक इंटरव्यू में उन्होंने माना था, “मैं समाज सेविका नहीं हूं। मैं जीसस की सेवा में हूं और मेरा काम ईसाईयत को दुनिया में बढ़ाना और दुनिया को इसके घेरे में लाना है।“
लेकिन यह हो न सका। इस प्रयास में विभिन्न पोप, कैथेलिक चर्च तथा मदर टरेसा जैसे ‘समाज सेवी’ सब असफल रहे। अब तो उनका लक्ष्य और भी दूर होता जा रहा है। एक बड़ा कारण, विशेष तौर पर एशिया के बारे, यह है कि एशिया के भारत तथा चीन जैसे देशों के अपने धर्म तथा संस्कृति इतने समृद्ध और मज़बूत है कि कहीं और से आयात करने की जरूरत नहीं। जवाहर लाल नेहरू ने अपनी किताब ‘डिसकवरी ऑफ इंडिया’ में भारत की संस्कृति के बारे लिखा है, “मैं समझता हूं कि जिसके पास कई सौ पीढ़ियों को ढालने की क्षमता है उसके पास उर्जा तथा शक्ति का गहरा स्त्रोत होगा जिसके द्वारा हर युग में इस उर्जा को नवीन किया जाता रहा है।“
एशिया को बदलने के चर्च के प्रयास तथा उसकी असफलता पर सबसे तलख पर स्टीक टिप्पणी सिंगापुर के पहले प्रधानमंत्री ली कुआन यी ने की है। उनका कहना था कि आप चाहे कितनी कोशिश कर लो आप भारत तथा चीन जैसी प्राचीन सभ्यताओं को बदल नहीं सकते। यहां आपके लिए जगह नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि अगर गणेश की पूजा से हजारों सालों से लोगों को राहत मिलती है तो आप सवाल उठाने वाले कौन हो?
ईसाईयत के प्रसार में असफलता का एक और बड़ा कारण पश्चिम में कैथलिक चर्च की बदनामी है। जो समाचार अब लगातार बाहर आ रहे हैं उनसे तो यह आभास होता है कि इसमें बलात्कारी, व्याभाचारी और अपराधी भरे हुए हैं। जब पोप ने भारत में ईसाईयत के प्रसार का आह्वान किया था तब भी कहा गया कि वह पश्चिम में कैथलिक ईसाईयों की सिंकुड़ रही संख्या की भारत तथा एशिया में भरपाई करना चाहते हैं। पश्चिम जो चर्च की कर्मभूमि रही है, में तो हालत यह है कि लंडन, पेरिस, बर्लिन जैसे बड़े शहरों में चर्च बिक रहे हैं क्योंकि वहां इतनी कम उपस्थिति है कि रखरखाव का खर्चा नहीं चलता। कई तम्बोला खेलने के हाल, कई लाईब्रेरी तो कुछ बार या नाईट क्लब में परिवर्तित हो चुके हैं।
अपने देश में जालंधर क्षेत्र के पूर्व बिशप फ्रैंको मुलक्कल पर एक नन द्वारा तेरह बार बलात्कार के आरोप लगाने के लगभग तीन महीने के बाद उसे गिरफ्तार कर लिया गया है। इस सारे मामले में कैथलिक चर्च तथा केरल की कम्युनिस्ट सरकार का रवैया अति आपत्तिजनक रहा। शुरू में बिना जांच-पड़ताल के नन के आरोपों को साजिश बताया गया। बाद में लोगों के दबाव में फ्रैंकों को गिरफ्तार कर लिया गया पर पहले तो उसका पूरा बचाव किया गया। केरल का यह साईरो-मालाबार चर्च देश का सबसे समृद्ध तथा ताकतवर चर्च है लेकिन दुनिया का सुधार करने का दम भरने वाले यह कथित धार्मिक लोग अपनी पीड़ित नन जिन्हें च् ‘सिस्टर’ कहा जाता है की रक्षा के लिए एक कदम उठाने को तैयार नहीं था। बिशप पर कार्रवाई करने की जगह नन को बदनाम करने का प्रयास किया गया।
क्योंकि चर्च दूसरों के लिए बंद संस्था है इसलिए पता नहीं चलता कि इसके अंदर क्या हो रहा है। 1992 में सिस्टर अभय की हत्या के बाद चर्च भारत में सुर्खियों में आया था। सिस्टर मैरी चांदी तथा सिस्टर जैसमे ने आप बीती पर किताबें लिखीं। मैरी चांदी ने गर्भवती नन तथा पथभ्रष्ट ‘फादर्स’ के बारे बहुत कुछ बताया। जैसमे ने एक कॉनवैंट में बंद जिंदगी का पर्दाफाश किया और बताया कि किस तरह उसका शोषण हुआ था। दोनों की किताबें बहुत लोगों ने पढ़ी लेकिन चर्च की सेहत पर कोई असर नहीं हुआ। केरल महिला आयोग की पूर्व अध्यक्षा ने बताया कि जो नन समपर्ण के लिए तैयार नहीं उन पर इतना दबाव डाला जाता है कि कई बार उन्हें मनोरोग संबंधी इलाज करवाना पड़ता है।
पश्चिम में चर्च के अंदर लड़के-लड़कियों, पुरुष-महिलाओं के यौन शोषण के आरोपों की बाढ़ आ गई लगती है। हजारों मामले बाहर आ रहे हैं। मामला इतना संगीन बन गया कि आयरलैंड की अपनी यात्रा जिस दौरान उनके खिलाफ प्रदर्शन भी हुए, से पहले वर्तमान पोप फ्रैंसिस ने एक खुला पत्र लिखा कि “शर्म और प्रायश्चित के साथ हम स्वीकार करते हैं… कि इसके चलते कितनी सारी जिंदगियों को नुकसान पहुंचा।“ लेकिन पोप ने यह स्पष्ट नहीं किया कि किस बात की ‘शर्म’ और किस बात का ‘प्रायश्चित’ और न ही बताया कि चर्च के पदाधिकारी जिन पर आरोप लगे हैं उनके खिलाफ क्या कार्रवाई की गई? जिन पर आरोप लगे हैं वह केवल पादरी या बिशप ही नहीं बल्कि कारडिनल भी है। कई तो विभिन्न पोप के नजदीकी रहें हैं।
चर्च का संकट इतना गहरा और फैला हुआ है कि बचाव नहीं हो रहा। न्यूयार्क टाईम्स ने पिछले महीने यह रिपोर्ट प्रकाशित की कि अमेरिका में पैनेसिलवेनिया में पिछले 70 वर्षों में 300 से अधिक कैथलिक पादरियों ने 1000 से अधिक बच्चों का यौन शोषण किया था। रिपोर्ट के अनुसार हजारों ऐसे और मामले और हो सकते हैं जिनका रिकार्ड नहीं या जो लोग अब सामने नहीं आना चाहते। बीबीसी के अनुसार, “आस्ट्रेलिया के कस्बों से लेकर आयरलैंड के स्कूलों और अमेरिका के शहरों से कैथलिक चर्च में पिछले कुछ दशकों में बच्चों के यौन शोषण की शिकायतों की बाढ़ आ गई है। इस बीच इस पर पर्दा डालने का प्रयास भी चल रहा है। और शिकायतकर्त्ता कह रहें हैं कि वैटिकन ने उनसे हुई ज्यादतियों पर उचित कार्रवाई नहीं की।“
अमेरिका में 1980 के बाद चर्च के अंदर चल रहे यौन शोषण के मामलों पर चर्च को अभी तक 3.8 अरब डॉलर का मुआवजा देना पड़ा है। अमेरिका में यह शोषण इतना व्याप्त रहा है कि कई लॉ फर्म अभिभावकों से सम्पर्क कर पूछ रहीं है कि क्या ‘आपके बच्चे का यौन शोषण तो नहीं हुआ?‘ अधिकतर शिकार उस वक्त 8-12 वर्ष की आयु के थे। नैदरलैंडस में एक समाचार के अनुसार वहां के आधे पादरी बच्चों के यौन शोषण पर पर्दा डालने के अपराधी हैं। फ्रांस में हाल में एक पादरी पर चार भाईयों, सबसे छोटे की उम्र 3 वर्ष है, के यौन शोषण का आरोप लगा है। हर महाद्वीप, ऐशिया, अमेरिका, दक्षिण अमेरिका, आस्ट्रेलिया, योरुप से यह शर्मनाक समाचार निकल रहे हैं कि कैथलिक चर्च के अंदर दशकों से बच्चों का यौन शोषण होता रहा है और अधिकारियों ने पहले यह समाचार दबाने का प्रयास किया। जर्मनी के दो प्रमुख अखबारों ने यह समाचार दिया है कि 1946-2014 के बीच 1600 पादरियों ने 3677 नाबालिगों का यौन शोषण किया। जर्मन मीडिया के अनुसार छ: में से एक मामला रेप का है। रिपोर्ट बनाने वालों के अनुसार यह संख्या बढ़ भी सकती है।
चर्च के अंदर सब कुछ इस तरह गुप्त और रहस्यमय रखा जाता है कि इन भेडिय़ों को मौका मिल जाता है। इसके बारे कई किताबें लिखी जा चुकी हैं पर परनाला वहां का वहां है। परिणाम यह है कि एशिया में ‘बड़ी फसल’ क्या काटनी चर्च की अपनी पुरानी फसल ही तबाह हो रही है। पश्चिम के मीडिया में चर्च की DARK SIDE, अंधकारमय पहलू, की चर्चा हो रही है। हमारे यहां भी आसाराम बापू तथा गुरमीत राम रहीम जैसे कथित धार्मिक व्यक्तित्व हैं पर (1) उनका कोई बचाव नहीं करता और (2) हम दूसरों की ‘फसल’ काटने का प्रयास नहीं करते। कैथलिक चर्च इसलिए भी फंस गया क्योंकि वह दूसरों को उपदेश बहुत देते हैं। इसलिए समय आ गया कि उन्हें जीसस के ही यह शब्द याद करवाए जाएं, PHYSICIAN HEAL THYSELF, चिकित्सक अपना इलाज कर!
चर्च,पहले अपना इलाज कर! (Physician Heal Thyself!),