यह वह सहर तो नहीं! (A False Dawn?)

राष्ट्रीय बजरंग दल की तीन महिला कार्यकर्त्ताओं ने ताजमहल के अंदर आरती की है। उनका कहना है कि ताजमहल वास्तव में एक शिव मंदिर है जिस पर नमाज अता करने से यह अपवित्र हो गया है। कुछ लोग इसे गंगा जल से धोने की धमकी भी दे रहे हैं। राजस्थान में कांग्रेस के उम्मीदवार मानवेन्द्र सिंह का कहना है कि मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे राजस्थानी नहीं है क्योंकि वह यहां पैदा नहीं हुई इसलिए  ‘आऊटसाइडर’  अर्थात बाहरी है। अमृतसर में निरंकारी समागम पर हमले पर बादल परिवार की प्रतिक्रिया है कि  मुख्यमंत्री अमरेन्द्र सिंह ऐसा करवा कर पंजाब को पुराने काले दिनों में ले जा रहें हैं। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह का कहना है कि वह सरकारी दफ्तरों में संघ की शाखाएं लगवाएंगे और कोई उन्हें रोक नहीं सकता। शिवाजी महाराज के प्रदेश में महाराष्ट्र सरकार मराठों को समाजिक तथा शैषणिक तौर पर पिछड़ा घोषित कर रही है। आप के नेता एच.एस. फुलका का कहना था कि शायद अमृतसर के निरंकारी भवन पर हुआ हमला सेनाध्यक्ष जनरल रावत ने करवाया हो क्योंकि वह बार-बार कह रहे थे कि हमला हो सकता है। और हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का कहना था कि बलात्कार के अधिकतर मामलों में पीड़िता और बलात्कारी एक-दूसरे के जानकार होते हैं। वह लम्बे समय से एक-दूसरे को जानते हैं पर एक दिन जब झगड़ा होता है तो एफआईआर दर्ज करवा दी जाती है कि  “उसने मेरा रेप किया।“ उनका कहना है कि जांच में यह ‘फैक्ट’ सामने  आया है।

यह क्या पागलपन है? क्या हमारे नेतागण अपना मानसिक संतुलन खो बैठे हैं? निर्भया तो अपने बलात्कारियों को जानती तक नहीं थी। यहां तो छोटी-छोटी बच्चियों के साथ बलात्कार हो रहा है और हरियाणा के मुख्यमंत्री कह रहे हैं कि अधिकतर घटनाओं में यह आपस में जानने वालों के बीच होता है। हैरानी नहीं कि हरियाणा से बलात्कार की घटनाओं में वृद्धि के समाचार मिल रहे हैं। जब मुख्यमंत्री ही ऐसे गंभीर मामले में लापरवाह हो तो कौन इन्हें रोकेगा?

एचएस फुलका ने थल सेनाध्यक्ष पर की गई अपनी टिप्पणी पर कहा है कि उन्हें गलत समझा गया लेकिन इतना वरिष्ठ वकील सेनाध्यक्ष पर ऐसी घिनौनी टिप्पणी कर कैसे गया? यह अत्यंत घटिया और निंदनीय बयान है। यह बयान यह भी बताता है कि आप कैसे-कैसे तत्वों को प्रोत्साहन दे रहा है। और यह भी अत्यंत दुख की बात है कि प्रकाश सिंह बादल जैसे वरिष्ठ राजनेता, जो हमें यह भूलने नहीं देते कि वह पांच बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं, अमरेन्द्र सिंह पर निरंकारी समागम पर हमले करवाने का आरोप लगा रहे हैं। पंजाब को फिर गंभीर चुनौती का सामना करना पड़ रहा है दो महीने में दो बार आतंकवादी ग्रेनेड हमला कर चुके हैं। खालिस्तानी तत्व फिर तेज हो रहे हैं। कुछ संदिग्ध कश्मीरी भी यहां से पकड़े जा चुके हैं। दोनों में सांठ-गांठ हो सकती है। ऐसे गंभीर समय में हम अपने तुच्छ मतभेद भुला कर एकजुट नहीं हो सकते क्या?

जसवंत सिंह बहुत गंभीर और बुद्धिमान व्यक्ति हैं। दुख है कि अपने प्रख्यात पिता की विरासत संभाले हुए उनके पुत्र मानवेन्द्र सिंह दो बार राजस्थान की मुख्यमंत्री रह चुकी वसुंधरा राजे को  ‘बाहरी’  कह रहे हैं जबकि वह वहां विवाहित हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का कहना है कि कांग्रेस ने  ‘दलित’  अध्यक्ष सीताराम केसरी को हटा कर सोनिया गांधी को अध्यक्ष बना कर बहुत धक्का किया है। पहली बात, केसरी दलित नहीं थे वह बनिया थे। लेकिन सवाल तो यह है कि भाजपा के वरिष्ठ नेताओं को इस बात की चिंता क्यों है कि 20 वर्ष पहले कांग्रेस के नेता के साथ क्या सलूक किया गया? इससे वोटर का क्या भला होगा? ऐसा ही सवाल है कि अगर मध्यप्रदेश के सरकारी दफ्तरों में संघ की शाखाएं लगेंगी तो इससे क्या सरकार का कामकाज सुधर जाएगा? व्यापम जैसे घोटाले नहीं होंगे?

जिन तीन महिलाओं ने ताजमहल में आरती की है उनकी कार्रवाई फिजूल ही नहीं शर्मनाक और उत्तेजना पैदा करने वाली है। क्या हम इतिहास का शीर्षासन करना चाहते हैं? कुछ लोग आगरा का नाम बदल कर आगरावाल करना चाहते हैं। मुजफ्फरनगर को बदल कर लक्ष्मीनगर रखना चाहते हैं। अधिकतर भाजपा शासक प्रदेशों में शहरों, सडक़ों, रेलवे स्टेशनों का नाम बदलने की कोशिश हो रही है। कहा जा रहा है कि वह भारतीय संस्कृति का उद्धार करना चाहते हैं लेकिन यह लोग भारतीय संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता इसकी सहिष्णुता और उदारता को ही तबाह कर रहे हैं। क्या अब भारत में यह ही होता रहेगा? अतीत की ज्यादतियों का बदला वर्तमान में लेकर भविष्य को अनिश्चित क्यों बनाया जा रहा है? क्या ताजमहल के बाद लाल किले पर भी आरती की जाएगी? नाम तो लाल किला का भी बिगाड़ा जा सकता है।

क्या हमारी आज की सभी समस्याएं हल हो गई कि हम गढ़े मुर्दे उखाडऩे में लगे हैं? हमारा सारा सार्वजनिक वार्तालाप टकराव और मतभेदों के बारे हो रहा है। टीवी चैनल भी उन मामलों से उत्तेजना बढ़ा रहे हैं जो हमें बांटते हैं। पर लखनऊ से समाचार है कि उत्तर प्रदेश पुलिस में संदेशवाहक की 62 नौकरियों के लिए 93,000 आवेदन आए जिन में 3700 पीएचडी, 2800 पोस्ट ग्रैजूएट और 50,000 ग्रैजूएट थे जबकि न्यूनतम योग्यता केवल पांचवीं पास है। आवेदन देने वालों में एमबीए तथा बी टैक भी शामिल हैं। योगी जी जिन पर नाम बदलने की खुमारी छाई हुई है का इस तरफ ध्यान भी है कि उनके प्रदेश में लाखों पढ़े-लिखे बेरोजगार हैं? पीएचडी करने वाले की कितनी मजबूरी होगी कि वह मैसेंजर बनने को तैयार है? सरकार कुछ भी दावे करे बेरोजगारी की स्थिति चिंताजनक ही नहीं भयावह भी है।

ऐसी हालत केवल उत्तर प्रदेश की ही नहीं। राजस्थान सचिवालय में चपड़ासियों के 78 पदों के लिए जिन 13,000 उम्मीदवारों ने आवेदन दिया उनमें 129 इंजीनियर, 23 वकील तथा 1 चाटर्ड अकाऊंटेंट भी थे। मध्यप्रदेश में चपड़ासी के 58 पदों के लिए 60,000 आवेदन आए। पंजाब में जेल वार्डन के 267 पदों के लिए 57,000 आवेदन आए। हालत तो यह बन गई है कि सेना में भर्ती के समय कई बार उम्मीदवारों को नियंत्रण में रखने के लिए बल का प्रयोग करना पड़ता है।

जिन्हें नौकरी चाहिए वह भी क्या करे? उनकी मायूसी तथा तनाव समझ आता है पर देश में कब नौकरियों को लेकर सभ्य और सार्थक बहस हुई है? बहस तो केवल उन मामलों पर होती है जो बांटते हैं, नफरत फैलाते हैं। हिन्दोस्तानी को हिन्दोस्तानी से लड़ाते हैं। नेता खुशी से एक-दूसरे को गालियां निकाल रहें हैं। सरकार भी यह आभास दे रही है कि उसे वोटर को बताने के लिए कुछ और नहीं है इसलिए इधर-उधर ध्यान ले जा रहे हैं। वह जानते हैं कि इस बार वोटर जुमलों में फंसने से रहा लेकिन इससे देश की जवलन्त समस्याएं ओझल तो नहीं होंगी। हालत तो यह बन गई है कि देश की राजधानी दिल्ली ही दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी बन गई है लेकिन किसी को चिंता नहीं। न प्रधानमंत्री को, न मुख्यमंत्री को। किसी ने सही कहा है कि देश के सबसे अमीर लोगों को भी साफ हवा नसीब नहीं होती। स्कूल है जहां अध्यापक नहीं, डिस्पैंसरियां है जहां डाक्टर नहीं। हमारे बैंक अपनी जगह फंसे हुए हैं। देश में भारी संख्या में लोगों को भर पेट भोजन नहीं मिलता। महिलाओं के खिलाफ ज्यादतियां लगातार बढ़ती जा रही हैं। सीबीआई जैसी हमारी शीर्ष संस्था में गंभीर गृहयुद्ध चल रहा है जो कई और संस्थाओं की प्रतिष्ठा को लपेट में ले रहा है लेकिन देश के अंदर बहस तनाव पैदा करने वाले मुद्दों को लेकर हो रही है। लोगों की भावनाओं से खिलवाड़ कर अपना उल्लू सीधा करने का प्रयास हो रहा है। सत्तापक्ष भी यह कर रहा है और विपक्ष भी।

पांच राज्यों के चुनाव चल रहे हैं। छ: महीने में आम चुनाव भी हो जाएंगे लेकिन बदलेगा क्या? जिसे गवरनेस कहा जाता है उसमें तो तनिक सुधार नहीं हुआ। असली बदलाव लाने की जगह नाम बदल कर लोगों का ध्यान उनकी मूलभूत समस्याओं से हटाने की कोशिश हो रही है। जरूरत देश की भावनात्मक एकता को मजबूत करने तथा तापमान तथा तनाव कम करने की है लेकिन यह करेगा कौन? उलटा यहां तो नेता लोग बांटने में लगे हैं। हमने कांग्रेस देखी थी, अब भाजपा भी देख ली। आगे क्या?

फैज़ अहमद फैज़ के अलग संदर्भ में कही गई यह पंक्तियां याद आती हैं,

ये वो सहर तो नहीं जिसकी आरज़ू लेकर

चले थे यार कि मिल जाएगी कहीं न कहीं!

 

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Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.