
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा है और पाकिस्तान में करतारपुर साहिब गुरुद्वारा में हरसिमरत कौर बादल ने भी दोहराया कि अगर बर्लिन की दीवार गिर सकती है तो भारत और पाकिस्तान दोस्ती और शांति से क्यों नहीं रह सकते? दोनों ही गलतफहमी में हैं। भारत और पाकिस्तान के बीच कंक्रीट की दीवार नहीं है जैसे पहले दोनों बर्लिन के बीच थी। भारत और पाकिस्तान के बीच नफरत की दीवार है जिस पर पाकिस्तान लगातार पलस्तर करता आ रहा है। हर आतंकी हमले से यह दीवार मजबूत होती है। बर्लिन में यह दीवार 28 वर्ष रही थी। इसे द्वितीय विश्व युद्ध में विजेता देशों ने जर्मनी को सजा देने के लिए जबरदस्ती बनाया था। दोनों तरफ एक ही कौम के लोग रहते थे। खाना-पीना, जुबान,धर्म सब एक थे। मैं 1967 में पूर्वी बर्लिन और पूर्वी जर्मनी गया था और आज भी याद है कि किस तरह वहां लोग इस दीवार और इस कृत्रिम विभाजन को नापसंद करते थे। जब यह गिरी तो जश्न मनाया गया।
भारत और पाकिस्तान के बीच यह स्थिति नहीं है। यह सही है कि अंग्रेजों ने विभाजन की नींव तैयार की थी लेकिन देश का विभाजन जिन्नाह तथा उसकी मुस्लिम लीग की मांग का परिणाम था। 1947 के बाद दोनों देशों की दिशा बिलकुल अलग रही है। भारत एक उदारवारी, धर्म निरपेक्ष लोकतंत्र है जबकि पाकिस्तान एक जेहादी इस्लामी राज्य है। कोई सांझ नहीं। उसे दुनिया भर में खलनायक समझा जाता है। इसलिए करतारपुर साहिब गलियारा खोलने के मामले में सहमति का मतलब नहीं कि दोनों देश इकट्ठे होने वाले हैं या भारत की जनता देश पर हमलों की माफी देने के मूड में है। सही है कि हम महावीर, बुद्ध, नानक और गांधी का देश है लेकिन एक राष्ट्र की याददाश्त लम्बी होनी चाहिए। हर हरकत माफ करने या भूलने लायक नहीं है। पिछले महीने मुंबई पर हमले की बरसी थी जब कराची से दस आतंकवादी मुंबई आए और हमारे सबसे धधकते शहर पर हमला कर दिया। चार दिन के उत्पात के बाद जब हिंसा खत्म हुई तो 166 लोग मारे जा चुके थे। इनमें नौ आतंकी भी शामिल थे। बेमिसाल बहादुरी दिखाते हुए एएसआई तुकाराम आम्बले ने गोलियां खाते हुए भी अजमल कसाब को पकड़ लिया नहीं तो पाकिस्तान आदत के मुताबिक मुकर जाता कि आतंकी उनके बंदे हैं।
कई विशेषज्ञ पाकिस्तान को चेतावनी दे रहे हैं कि इस प्रकार का और हमला दोनों देशों के बीच युद्ध शुरू करवा सकता है। चार अमरीकी राष्ट्रपतियों के सलाहकार रहे ब्रूस रीडल का स्पष्ट कहना है कि “अगर इस आकार का हमला फिर होता है तो युद्ध होगा।“ भारतीय पत्रकारों के साथ बातचीत में नवजोत सिंह सिद्धू के “यार दिलदार” पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान का कहना था कि पुरानी गलतियों के लिए वह जिम्मेवार नहीं हैं और मुंबई हमले के मास्टरमाईंड हाफिज सईद और दाऊद इब्राहिम जैसे मसले उन्हें विरासत में मिले हैं। उनका यह भी कहना था कि पाक की जमीन की आतंकी गतिविधियों के लिए इज़ाजत नहीं दी जाएगी। इमरान खान की बात सही है कि उन्हें यह सब कुछ विरासत में मिला है पर कौन उन्हें अब उन हत्यारों के खिलाफ कार्रवाई करने से रोक रहा है जिन्होंने मुंबई पर हमला करवाया था? हाफिज सईद जिसने एक बार कहा था कि “आज मैं भारत के टुकड़े होने की घोषणा करता हूं। हम तब तक चैन से नहीं बैठेंगे जब तक सारे भारत का पाकिस्तान में विलय नहीं हो जाता” पाकिस्तान में खुला घूम रहा है। इस हमले के सात प्रमुख अपराधियों को पाकिस्तान ने अभी तक सजा नहीं दी गई।
अगर इमरान खान साहिब इन अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करता चाहते या नहीं कर पा रहे तो भारत उन्हें गंभीरता से क्यों ले? वह बार-बार कह रहे हैं कि अगर भारत एक कदम उठाएगा तो पाकिस्तान दो कदम उठाएगा पर उन्हें इसकी इज़ाजत भी है? वह बेचारे तो अपनी बेबसी जाहिर कर रहे हैं। सवाल यह भी है कि क्या पाकिस्तान की सेना इमरान खान के अधीन है या इमरान खान पाक सेना के अधीन है? इमरान खान की सरकार पहली ऐसी सरकार है जिसे पूरी तरह से सेना ने कायम करवाया है। उन्हें कामयाब करने के लिए नवाज शरीफ, उनकी बेटी तथा दामाद को जेल में डाला गया तथा उनके चुनाव लडऩे पर पाबंदी थी। जब इमरान के पास पर्याप्त सांसद नहीं थे तो उनका प्रबंध किया गया। इसलिए इमरान खान सेना की व्यवस्था को चुनौती देने की स्थिति में ही नहीं है इरादा कैसा भी हो। वह जानते हैं कि जिन्होंने सेना के नियंत्रण वाली व्यवस्था को चुनौती दी है उन्हें या तो जेल मिली या फांसी या गोली या बनवास।
इस बात की संभावना नहीं कि भारत के साथ रिश्ते बेहतर करने के लिए इमरान खान साहिब इस व्यवस्था से पंगा लेंगे। उनकी सीमा तो उसी वकत स्पष्ट हो गई थी जब करतारपुर गलियारा से संबंधित समागम में पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष जनरल बाजवा तथा खालिस्तानी गोपाल सिंह चावला मौजूद थे। एक तरफ इमरान खान कहते हैं कि पाकिस्तान की जमीन आतंकवाद के लिए इस्तेमाल की इज़ाजत नहीं दी जाएगी दूसरी तरफ उस खालिस्तानी चावला को पहली पंक्ति में बैठाया गया है जिसका ए के 47 पकड़े वीडियो उपलब्ध है जिसमें वह भारत को धमकियां दे रहा है। क्या चावला भी इमरान साहिब को विरासत में मिला है? भारत में इस बात की चिंता है कि करतारपुर साहिब गलियारे का इस्तेमाल खालिस्तानी प्रचार के लिए किया जाएगा। जनरल बाजवा की मौजूदगी भी भारत को यह संदेश है कि आखिर में वहां नियंत्रण सेना के हाथ में है और इमरान खान वही है जो आज तक रहें हैं, एक शो ब्वॉय।
करतारपुर गलियारा शुरू करना एक अच्छा प्रयास है। अगर यह बनता है तो दशकों पुरानी सिखों की मांग पूरी हो जाएगी लेकिन पाकिस्तान में खालिस्तानी तत्वों की मौजूदगी और उन्हें जो खुली इज़ाजत मिली हुई है उससे आशंकाएं उत्पन्न होती हैं और इस सही प्रयास की अंतिम सफलता को संदिग्ध बनाती है। इसीलिए पाकिस्तान सरकार का जोश ठंडा करने के लिए सुषमा स्वराज ने घोषणा कर दी कि भारत इस्लामाबाद में हो रहे सार्क सम्मेलन में हिस्सा नहीं लेगा। पाकिस्तान के प्रमुख पत्रकार नजम सेठी ने भी फ्राईडे टाईम्स में करतारपुर गलियारे के बारे लिखा है कि “इसे एक प्रकार से शांति प्रयास कहा जा रहा है…यह ऐसा कुछ नहीं है।“ नजम सेठी का मानना है कि यह प्रयास नीतिगत है ताकि भारत का वर्तमान बैर जो पाकिस्तान को अस्थिर कर रहा है और इमरान खान का शासन पर केन्द्रित होना कठिन कर रहा है, को कम किया जा सके।
अर्थात करतारपुर साहिब गलियारा उनके लिए ‘टैकटिकल’ है नीतिगत है। विकट परिस्थितियों से निकलने का बेदिल प्रयास है। इसका हमारी भावना से कुछ लेना-देना नहीं जैसा नवजोत सिंह सिद्धू जैसे कुछ नादान समझते हैं। अगर पाकिस्तान वास्तव में अच्छा माहौल पैदा करना चाहता तो अपने यहां खालिस्तानियों को जगह नहीं देता। खालिस्तान समर्थक ‘सिखस फॉर जस्टिस’ ने घोषणा की है कि देश से अलग करने के लिए रिफरैंडम 2020 के लिए करतारपुर साहिब में सम्मेलन रखा जाएगा। इस संस्था के एक प्रमुख नेता गुरपतवंत सिंह पन्नून का कहना है कि करतारपुर साहिब गलियारा ‘खालिस्तान के लिए पुल’ होगा और वह भारत से गए सिख श्रद्धालुओं को ‘शिक्षित’ करेंगे।
अगर बेहतर संबंध चाहिए तो भारत को उकसाने या चिढ़ाने से उन्हें बाज़ आना चाहिए पर ऐसा पाकिस्तान बन चुका है। अमेरिका में रहे पाकिस्तान के पूर्व राजदूत हुसैन हक्कानी ने लिखा है कि पाकिस्तान के दो वैचारिक स्तंभ है। एक है इस्लाम तो दूसरा भारत विरोध है। जब तक यह मानसिकता नहीं बदलती भारत तथा पाकिस्तान के बीच जो वॉल है वह टूट नहीं सकती। करतारपुर साहिब के गलियारे से नहीं बल्कि आतंकवाद को ठप्प कर ही पाकिस्तान भारत को वार्ता के लिए आकर्षित कर सकता है। न ही करतारपुर साहिब गलियारा कोई गुगली है जैसा उनके विदेश मंत्री ने कहा है या शतरंज की चाल है जैसा उनके राष्ट्रपति ने कहा है और न ही इससे भारत की विदेशनीति नेस्तानाबूद हुई है जैसा उनके बेवकूफ रेलमंत्री ने कहा है। पर ऐसा कह इन तीनों ने इस बकवास को नंगा कर दिया कि पाकिस्तान ऐसा मित्रभाव से कर रहा है।
यह बर्लिन वॉल से मज़बूत दीवार है (This is stronger than Berlin Wall),