हमें कैसा भारत चाहिए? (What kind of India do we want?)

पुरानी बात है। वरिष्ठ पत्रकार सैयद नकवी एक बार पाकिस्तान गए थे। जब वह स्वदेश लौटे तो उनसे पूछा गया कि आपको पाकिस्तान कैसा लगा? उनका जवाब था,  “बिलकुल अच्छा नहीं लगा। वहां तो मुसलमान ही मुसलमान भरे हुए हैं। मुझे तो ब्राह्मण भी चाहिए, सिख भी चाहिए, इसाई भी चाहिए, दक्षिण भारतीय भी चाहिए।“ वास्तव में यही अनेकता हमारी ताकत है। सारे भारत को एक ही विचारधारा में बांधने का प्रयास कभी सफल नहीं होगा क्योंकि सदियों से भारत अनेक और बहुरूप रहा है। पारसी और यहूदियों से लेकर तिब्बतियों तक को भारत माता ने अपनी गोदी में जगह दी है आप चाहे कितनी भी तकलीफ में हो। इसका सबसे बड़ा कारण है कि बहुमत का हिन्दू धर्म उदार है, सहिष्णु है, सबको साथ लेकर चलने में विश्वास रखता है। इसीलिए कई बार जब कुछ लोग हिन्दू धर्म के ठेकेदार बन कर हम पर कट्टर या संकुचित विचारधारा लादने की कोशिश करते हैं तो तकलीफ होती है क्योंकि मैं समझता हूं कि यह मेरे देश और धर्म के विचारों और भावना का घोर अतिक्रमण है।

जब योगी आदित्यनाथ को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया तो एक दम माथा ठनका कि हम आगे की तरफ जाने की जगह पीछे मुड़ रहें हैं। गोरखपुर की मठ के महंत देश के सबसे बड़े प्रदेश को कैसे संभालेंगे? फिर सोचा कि नरेन्द्र मोदी और अमित शाह ने जरूर उनमें कुछ देखा होगा आखिर पांच बार वह सांसद रह चुकें हैं। उसके बाद समाचार निकला कि ऑक्सीजन के अभाव में गोरखपुर के हस्पताल में 325 बच्चे मारे गए और फिर खोजने पर पता चला कि इस हस्पताल में हर वर्ष हजारों बच्चे इसी तरह मारे जाते हैं। यह कैसे नेता हैं जो 1998 से लगातार सांसद चले आ रहे हैं पर अपने ही शहर के हस्पताल को सुधार नहीं सके?

बाद में मामला साफ हो गया कि योगीजी को प्रशासन में अधिक दिलचस्पी नहीं उनका इस्तेमाल बांटने के लिए किए जाना है और उन्होंने यह प्रयास किया भी। हाल ही के विधानसभा चुनावों में उनकी सभाएं तो प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से भी अधिक थी। कोशिश की गई कि तीन हिन्दी भाषी प्रदेशों में तथा तेलंगाना में वोट का योगी की मार्फत धु्रवीकरण किया जाए। योगी भी खूब गर्जे, ‘अली बनाम बजरंग बली’ , ‘हनुमान दलित हैं,’,  ‘अगर भाजपा सत्ता में आई तो हैदराबाद का नाम बदल कर भाग्यनगर कर दिया जाएगा’,  ‘ओवैसी को देश छोडऩा पड़ेगा’ इत्यादि। पर भाजपा सब जगह हार गई। ओवैसी के प्रदेश तेलंगाना में तो पार्टी का सूपड़ा ही साफ हो गया।

वोटर का संदेश क्या था? भाजपा का ध्रूवीकरण का प्रयास असफल रहा। असादुद्दीन ओवैसी के कई कथन आपत्तिजनक हैं लेकिन हमें हिन्दू ओवैसी भी नहीं चाहिए। अगर मध्यप्रदेश तथा राजस्थान में भाजपा की इज्जत बच गई तो यह योगी आदित्यनाथ के उग्रवाद के कारण नहीं बल्कि मोदी सरकार की नीतियों तथा स्थानीय सरकार के काम के कारण। अगर भाजपा ने फिर सत्ता में आना है तो यह मोदी सरकार के विकास कार्यों के बल पर ही हो सकता है योगी आदित्यनाथ के असंयमित तथा बेलगाम बोल से नहीं। अगर लोगों को वह इतने प्रिय होता तो अपने द्वारा खाली की गई गोरखपुर लोकसभा सीट हारते ना जिसे भाजपा के लिए सबसे सुरक्षित सीट समझा जाता था।

बुलंदशहर में ड्यूटी पर तैनात पुलिस इंसपैक्टर सुबोध कुमार सिंह की एक भीड़ ने गोली मार कर हत्या कर दी। भीड़ गोहत्या के मामले को लेकर भडक़ी हुई थी। कुछ अभियुक्त जो बजरंग दल के सदस्य है, भगौैड़ा है। पुलिस उन्हें पकडऩे में नाकाम है जबकि वह अपना वीडियो सोशल मीडिया पर डाल चुके है। हैरान और परेशान करने वाला तो मुख्यमंत्री का रवैया था। पहले उन्होंने पुलिस अधिकारी की हत्या को  ‘दुर्घटना’ कह दिया फिर इसे  ‘साजिश’ करार दिया। इंसपैक्टर के हत्यारों को पकडऩे की बजाए प्रशासन तथा पुलिस का सारा जोर ‘गौहत्या की साजिश’ पर लगा हुआ है।

कहीं भी मुख्यमंत्री ने इस बात पर चिंता व्यक्त नहीं की कि भीड़ की इतनी हिम्मत कैसे हो गई कि उसने पुलिस अधिकारी को गोली मार दी? अगर यह अराजक स्थिति नहीं तो और क्या है? जो सरकार अपने पुलिस अधिकारी की रक्षा नहीं कर सकती और बाद में उसके हत्यारों को पकड़ नहीं सकती उस पर लोग विश्वास क्यों करेंगे? कानून का पालन करवाना एक सभ्य और जिम्मेवार सरकार का पहला कर्त्तव्य होना चाहिए लेकिन यहां तो भीड़ समझती है कि संया भय कोतवाल डर काहे का! दुख है कि केन्द्रीय नेतृत्व इन्हें नियंत्रण में करने की कोशिश नहीं कर रहा जबकि योगी आदित्यनाथ जैसे लोग नरेन्द्र मोदी के विकास के एजेंडे को पलीता लगा रहे हैं।

80 के करीब पूर्व अफसरों ने खुला पत्र लिख उत्तर प्रदेश की हालत पर गंभीर चिंता व्यक्त की है। उन्होंने लिखा है कि देश के सबसे बड़े प्रदेश में च्च् शासन के मूल सिद्धांत, संवैधानिक मर्यादा और इंसानी समाजिक आचरण को भ्रष्ट कर दिया गया है। ज्ज् पर योगी आदित्यनाथ का कहना है कि उनकी सरकार अच्छा काम कर रही है। जहां कानून का पालन करवाने वाले ही खतरे में है वहां अच्छा क्या है? पूर्व प्रदेश सचिव श्याम सरन ने उत्तर प्रदेश की घटनाओं पर दुख प्रकट करते हुए कहा है कि योगी आदित्यनाथ का ऐजंडा धर्मांधता और कट्टरता का है। जब एक मुख्यमंत्री केवल नाम बदलने, लोगों को बांटने और अल्पसंख्यक नेताओं को निकालने पर केन्द्रित हो तो प्रभाव यह मिलता है कि वह लगातार टकराव चाहते हैं और ऐसा भारत नहीं चाहते जहां लोग चैन से रह सके जिसका भाजपा को नुकसान होगा क्योंकि लगातार टकराव से सबसे अधिक गरीब प्रभावित होते हैं। याद रखना चाहिए कि बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बाद हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा पिट गई थी। जिन्होंने मस्जिद गिराए जाने का समर्थन किया था वह भी बाद में हुई हिंसा और अराजकता से घबरा गए थे।

योगी आदित्यनाथ का कहना है कि हनुमान दलित थे। एक भाजपा नेता ने कह दिया कि वह मुसलमान थे। किसी ने कहा कि वह आदिवासी थे तो कोई कह रहा है कि वह जाट थे। यह क्या तमाशा है? क्या इन लोगों के भरोसे हिन्दू धर्म को छोड़ा जा सकता है जो दुनिया भर में इसे मज़ाक का विषय बना रहे हैं? दिल्ली तथा उत्तर प्रदेश की कई दलित संस्थाओं ने हनुमान मंदिरों पर अपना दावा पेश किया है। शिवपाल सिंह यादव की पार्टी के कार्यकर्त्ताओं ने तो वाराणसी के जिलाधीश के कार्यालय का घेराव कर मांग की है कि हनुमान की जाति का प्रमाणपत्र जारी किया जाए। क्या उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की सोच बस इतनी सी है? पहले वोट के लिए लोगों को बांटा गया अब इस कमबख्त वोट के लिए देवी-देवताओं का विभाजन होगा?

नफरत की राजनीति सदैव उलटी पड़ती है। बुलंदशहर की घटना से प्रभाव यह मिलता है कि उस प्रदेश में संविधान का सही पालन नहीं हो रहा जबकि प्रधानमंत्री मोदी कह चुकें हैं कि उनके लिए संविधान की किताब पवित्र  ग्रंथ है। सुबोध कुमार सिंह के शोकाकुल बेटों ने अपील की है कि यह खून-खराबा बंद करो नहीं तो कोई भी सुरक्षित नहीं रहेगा। यह लड़के हमारे नेताओं से अधिक संवेदनशील और समझदार हैं। उन्हें समझ है कि असली भारत सब का सांझा है। यहां सब चाहिए। चाहे उनके विचारों से मुझे गंभीर मतभेद हैं पर हमें ऐसा भारत चाहिए जहां असादुद्दीन ओवैसी की भी जगह हो और योगी आदित्यनाथ की भी। उनकी शिकायत गलत है पर नसीरुद्दीन शाह ‘गद्दार’ नहीं। ऐसी हालत नहीं बननी चाहिए कि विपरीत हिंसक प्रतिक्रिया के भय से अपनी बात कहने या विचार व्यक्त करने से लोग घबरा जाएं। रबीन्द्रनाथ टैगोर ने अपनी अमर कविता में लिखा था,  “जहां विवेक की निर्मल धारा अंध विश्वास के मरुस्थल की नकारात्मक रेत में खो न जाए”,  “जहां मन भय से मुक्त हो,” हमें ऐसा भारत चाहिए। नया साल मुबारिक!

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Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.