
पाकिस्तान के अंदर से आजकल भारत के प्रति कुछ सकारात्मक आवाज़ें निकल रही हैं। वज़ीर-ए-आज़म इमरान खान ने भी कहा है कि मुंबई पर 26/11/2008 के हमले के मामले से निपटना पाकिस्तान के हित में है। उनका कहना था कि “हम भी चाहते हैं कि मुंबई पर बमबारी करने वालों के बारे कुछ किया जाए।“ इमरान खान साहिब यह “कुछ” कर सकेंगे या नहीं यह तो समय ही बताएगा, पर यह पहली बार है कि पाकिस्तान के शिखर पर किसी ने मुंबई के हमले में संलिप्तता स्वीकार की है और उसे आतंकी घटना बताया है। पाकिस्तान के पत्रकार हमीद मीर को आशा है कि नए साल में आतंक का अंत होगा और “दिल्ली से पेशावर, पेशावर से काबुल और काबुल से मास्को तक सडक़ व रेल का सम्पर्क खुल जाएगा।“ द डॉन अखबार के पत्रकार जावेद नकवी ने लिखा है कि इस बात की चर्चा हो रही है कि इस दुखद गतिरोध को समाप्त करने के लिए मनमोहन सिंह-परवेज मुशर्रफ फार्मूले को फिर जीवित किया जाए। जावेद नकवी ने पाकिस्तान की इस घोषणा का भी जिक्र किया है जिसमें उन्होंने कहा है कि अफगानिस्तान की समस्या के समाधान के लिए भारत का सहयोग भी चाहिए।
पाकिस्तान के एक और प्रमुख पत्रकार जो बहुत समय से भारत के साथ वार्ता की वकालत कर रहें हैं, खालिद अहमद, ने लिखा है कि यह समय है कि भारत को पाकिस्तान की पेशकश स्वीकार करनी चाहिए। पर उनका कहना है कि “भारत में मूड दंडात्मक है जबकि पाकिस्तान में यह सावधानीपूर्वक विनीत है।“ उनका मानना है कि पाकिस्तान ‘टाल्क’ और ‘ट्रेड’ चाहता है। खालेद अहमद ने यह दिलचस्प बात भी कही है कि पाकिस्तान के रवैये में इस परिवर्तन की पहल पाकिस्तान की सेना ने की है जो पाकिस्तान की विदेश तथा भारत नीति की संचालक है। वह लिखते हैं, “पाकिस्तान के लिए कुछ विकल्प विशेष तौर पर कश्मीर के मामले की वकालत,बंद हो रहे हैं लेकिन उन्हें समझ नहीं आ रही कि वह इस मामले में राजनीति प्रचार से कैसे छुटकारा पाएं।“ पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष जनरल बाजवा ने भी कहा है कि पाकिस्तान की सरकार बड़ी संजीदगी से भारत की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ा रही है। यह बात उन्होंने वहां नौसेना अकादमी की पासिंग आऊट परेड में कही। उल्लेखनीय है कि अभी तक पाकिस्तान के उच्च सेना अधिकारी भारत को ‘दुश्मन’ ही कहते रहें हैं।
तो क्या पाकिस्तान बदल रहा है? इसका जवाब ‘हां’ और ‘न’ दोनों है। पाकिस्तान के रवैये में जो कुछ परिवर्तन देखने को मिल रहा है उसके कई कारण है,
(1) आर्थिक : सबसे बड़ा कारण उनका फटेहाल है। वह देश दिवालिया होने के कगार पर है। डॉलर के मुकाबले पाकिस्तान का रुपया लगातार गिरता जा रहा है। घाटा लगातार बढ़ता जा रहा है। विदेशी व्यापार का भंडार जो 16.7 अरब डॉलर था वह लगातार गिर कर 14 अरब डॉलर के करीब हो गया है। हाल ही में एक भाषण के दौरान इमरान खान ने कहा कि “हम अफ्रीका को निर्यात करेंगे” तो प्रमुख पत्रकार आयशा सद्दीका ने लिखा कि “कोई वजीर-ए-आज़म से कोई पूछे तो सही कि हम निर्यात करेंगे क्या?” पाकिस्तान के पास तो केवल छ: दिन का तेल ही है।
इमरान खान ने समझा था कि उन्हें विदेशों से अरबों डॉलर मिल जाएंगे। विदेशों में बसे पाकिस्तान पैसा भेजेंगे और वह काला धन वापिस ले आएंगे जिससे उन्हें ‘भीख का कटोरा’ लेकर इधर-उधर जाने की जरूरत नहीं होगी। पाकिस्तान के पत्रकार नजम सेठी लिखते हैं कि इमरान खान अपने कल्पना लोक में ही थे कि हालात और खराब हो गए। तब जनरल बाजवा ने दखल दिया और इमरान खान अपनी अचकन पहन साऊदी अरब तथा चीन को रवाना हो गए।
(2) चीन: लेकिन इमरान खान को वह सफलता नहीं मिली जितनी उन्हें आशा थी। चीन जानता है कि पाकिस्तान में पनप रहे उग्रवाद का उसकी मुस्लिम आबादी पर बहुत बुरा असर हो रहा है इसलिए लगातार दिशा बदलने का दबाव डाल रहा है। चीन भी अपने आर्थिक गलियारे को लेकर फंसा हुआ है। वह जानता है कि पाकिस्तान में जो अरबों डॉलर वह खर्च कर रहा है उसकी सफलता तब ही संभव होगी जब भारत के साथ पाकिस्तान के संबंध बेहतर होंगे और भारत इसमें शामिल होगा।
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की प्रतिष्ठा और राजनीतिक भविष्य इस गलियारे की सफलता से जुड़े हुए हैं। पाकिस्तान में भी यह आवाज़ उठी है कि कहीं चीन नया ईस्ट इंडिया कंपनी न बन जाए इसलिए चीन पर निर्भरता कम करने के लिए भारत के साथ संबंध बेहतर करने चाहिए। इस गलियारे को लेकर इतना विवाद खड़ा हो गया कि चीनी अधिकारियों को कहना पड़ा कि पाकिस्तान की वर्तमान आर्थिक दुर्दशा के लिए हम जिम्मेवार नहीं। बलूचिस्तान के चीनी दूतावास पर हुए आतंकी हमले से चीन और सावधान हो गया कि कहीं लेने के देने न पड़ जाएं।
(3) अमेरिका: अमेरिका और विशेष तौर पर डॉनल्ड ट्रम्प का रवैया प्रतिकूल है। वैसे तो ट्रम्प के बारे निश्चित तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता लेकिन उनके आने के बाद पाकिस्तान को अमेरिका की आर्थिक सहायता बिलकुल बंद हो चुकी है। अमेरिका ने मुंबई पर हमले के गुनाहगारों पर 50 लाख डॉलर का ईनाम घोषित किया है चाहे इसके अधिक मायने नहीं है क्योंकि हाफिज सईद जैसे मास्टर माईंड अभी भी खुले फिर रहे हैं। अब फिर ट्रम्प ने कहा है कि पाकिस्तान ने ‘दुश्मन’ को पनाह दी हुई है।
(4) सेना : पाकिस्तान के रवैये में परिवर्तन का सबसे बड़ा संकेत उसकी सेना के रवैये में है। गिरती अर्थ व्यवस्था का असर सेना पर भी पड़ रहा है। पाकिस्तान चीन तथा रुस से विमान, टैंक, मिसाईल इत्यादि खरीदना चाहता है लेकिन जरनैलों को भी पता है कि आखिर में इसके पैसे देने पड़ेंगे। न्यूयार्क की मीडिया कंपनी ब्लूमबर्ग ने लिखा है कि भारत के साथ सुलह के जो समर्थक हैं उनमें जनरल बाजवा भी है। पाकिस्तान के वर्तमान तथा पूर्व अधिकारियों ने ब्लूमबर्ग को बताया है कि धीमी होती अर्थ व्यवस्था तथा चीन के दबाव के बाद भारत के साथ संबंध बेहतर करने के प्रयास हो रहे हैं। इस सारे घटनाक्रम में अफगानिस्तान की उभर रही स्थिति ने भी पाकिस्तान में सोच बदलने पर मजबूर कर दिया है। अगर अमेरिका अफगानिस्तान से निकल गया और तालिबान फिर हावी हो गया तो यह पाकिस्तान के लिए खतरनाक हो सकता है क्योंकि वह पाकिस्तान में जहादी तत्वों को बढ़ावा दे सकते हैं। नसीम ज़ेहरा ने कारगिल पर किताब लिखी है कि पाकिस्तान के जरनैलों ने किस प्रकार शर्मनाक पराजय को ‘विजय’ दिखाने की कोशिश की थी। कि पाकिस्तान में आज ऐसी किताब छप सकती है से ही पता चलता है कि कुछ बदल रहा है। उनकी हालत पर उनके शायर मुनीर नियाज़ी ने बढ़िया टिप्पणी की है,
कुज शहर दे लोक वी ज़ालम सन
कुज सानू वी मरन दा शोक सी!
क्या पाकिस्तान से बदलाव के जो संकेत मिल रहे हैं उन्हें हमें दबोचना चाहिए? यह तो मानना पड़ेगा कि बेहतर संबंध दोनों के हित में है। बहुत कुछ पाकिस्तान के रवैये पर निर्भर है कि क्या वह इस रास्ते पर स्थाई तौर पर चलना चाहते हैं या केवल वक्त निकालना ही चाहते हैं? भारत में रहे उनके पूर्व राजदूत अशरफ जहांगीर काज़ी ने लिखा है कि पाकिस्तान में यह आम राय है कि भारत को पाकिस्तान के साथ संबंध बेहतर करने में दिलचस्पी नहीं। उनकी बात शायद सही है। विश्व की पांचवीं बड़ी अर्थ व्यवस्था को झुकने या समझौता करने की जरूरत नहीं। जब तक पाकिस्तान कश्मीर तथा आतंकवाद के बारे अपना रवैया नहीं बदलता हम उन्हें नज़रअंदाज कर सकते हैं। जैसी उनकी हालत बन रही है वह एक दिन जरूर बंदा बनेंगे। हमें केवल सब्र रखना है।
क्या पाकिस्तान बंदा बनेगा? ,