इमरान खान साहिब आजकल हमसे कुछ अधिक चिढ़े हुए हैं। भारत को चुभाने का वह कोई भी मौका जाने नहीं देते। वह एक दिवालिया सरकार के मुखिया हैं और धीरे-धीरे समझ आ रही है कि अगर पाकिस्तान ने डूबने से बचना है तो भारत के साथ व्यापार शुरू करना होगा जिसके लिए बेहतर संबंधों की जरूरत है। इसीलिए कभी कहते हैं कि ‘अगर भारत एक कदम आगे आएगा तो हम दो कदम आगे आएंगे’, ‘भारत के साथ संबंधों को लेकर मैं और सेना एक ही पेज पर हैं,’ आदि। लेकिन भारत की तरफ से सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं हो रही इसीलिए बहुत चिढ़चिढ़े हो गए हैं।
भारत पर फिर ज़हर उगलने का मौका उन्हें अभिनेता नसीरुद्दीन शाह की उस टिप्पणी से मिल गया जिसमें उन्होंने देश के वर्तमान माहौल में अपने बच्चों की सुरक्षा के बारे चिंता व्यक्त की थी। इमरान खान का कहना है कि भारत में अल्पसंख्यकों को बराबरी का हक नहीं, पर ‘नए पाकिस्तान’ में अल्पसंख्यकों के साथ समान नागरिक के रूप में व्यवहार किया जाएगा। इससे पहले इमरान खान भाजपा को पाक और मुस्लिम विरोधी बता ही चुके हैं। इमरान खान का जवाब नसीरुद्दीन शाह ने ही दे दिया कि हमें नसीहत मत दो हम अपना ख्याल रखना जानते हैं। विवादास्पद सांसद असफुद्दीन ओवैसी ने भी जवाब दिया कि इमरान खान पहले अपने देश की सुध लें।
2008-2012 के बीच पाकिस्तान के राष्ट्रपति के मीडिया सलाहकार रहे फराहनाज़ इसपहानी ने बताया है कि 1947 में बंटवारे के समय पाकिस्तान में 23 प्रतिशत अल्पसंख्यक थे, अब 3-4 प्रतिशत ही रह गए। इमरान खान साहिब यह सब कहां गए? इसका जवाब है कि या वह भाग गए या मारे गए या उनका धर्म परिवर्तन करवा उन्हें इस्लाम कबूलने पर मजबूर किया गया। 11 अगस्त, 1947 को पाकिस्तान की संविधान सभा को संबोधित करते हुए मुहम्मद अली जिन्नाह ने जरूर कहा था, “पाकिस्तान राष्ट्र में आप आजाद हो, आप अपने मंदिर या मस्जिद या किसी और दूसरे धर्म स्थान में जाने के लिए आजाद हो… आपका कोई भी धर्म या जात या बरादरी हो उसका सरकार के कामकाज के साथ कोई लेना-देना नहीं… हम सब नागरिक हैं और सरकार के सामने सब नागरिक बराबर हैं।“
आजादी के एक साल बाद जिन्नाह का देहांत हो गया लेकिन उन्होंने भी कैसे सोच लिया था कि मुसलमानों के नाम पर और उनके अधिकारों को लेकर बनाए गए पाकिस्तान में सब बराबर होंगे और वह एक धर्म निरपेक्ष देश होगा? जिन्नाह के इन्हीं विचारों को पढ़ कर लाल कृष्ण आडवाणी गद्गद् हो गए थे और जिन्नाह की तारीफ कर बैठे जिसकी उन्हें बड़ी कीमत चुकानी पड़ी। पाकिस्तान बाद में जैसे बन गया उसकी नींव तो बंटवारे के समय ही डाल दी गई थी पाकिस्तान का यही अंजाम होना था। पाकिस्तान के दूसरे वजीर-ए-आजम सर ख्वाजा नाज़ीमुद्दीन ने तो साफ कह दिया था, “मैं इस बात में विश्वास नहीं रखता कि मज़हब एक शख्स का अपना अंदरूनी मामला है। न ही मैं यह मानने को तैयार हूं कि एक इस्लामिक राष्ट्र में सभी नागरिकों को बराबर अधिकार है।“
इस नीति पर चलते हुए अल्पसंख्यकों को वहां दबाया जाता है। सरकारी नौकरियों में उन्हें जगह नहीं दी जाती। कर्जा देने या आवास जैसे मामलों में उनके साथ भेदभाव किया जाता है लेकिन इससे भी निंदाजनक है कि हिन्दुओं, सिखों, इसाईयों, बौद्ध और यहां तक कि अहमदियों पर लगातार हमले होते हैं। वहां मंदिर, गुरुद्वारे या चर्च तो नष्ट किए ही गए हैं, पाकिस्तान में तो अहमदिया मस्जिदों पर भी हमले हो चुके हैं। 2010 में पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग ने अधिकृत तौर पर कहा था कि अल्पसंख्यकों पर हमलों में कई सौ जानें जा चुकी हैं और हिन्दू महिलाओं का अपहरण कर उन्हें जबरी मुसलमान बनाया जाता है। पाकिस्तान मुस्लिम लीग के एक नेता ने कहा था कि हिन्दुओं तथा सिखों का अपहरण कर उन्हें मुसलमान बनाना अब पाकिस्तान में एक ‘बिसनेस’ बन चुका है। बताया गया है कि 2017 से ही खैबर-पख्तूनखवा प्रांत के हांगू जिले में सरकारी अधिकारी सिखों का धर्मांतरण करवाने में लगे हुए हैं।
निश्चित तौर पर हमें नसीहत देने वाले इमरान खान को इसकी जानकारी होगी क्योंकि उस वक्त इस प्रांत में उनकी पार्टी सरकार में शामिल थी। उन्होंने वहां अल्पसंख्यकों को मिटाने के प्रयास को रोका क्यों नहीं? वह तो अहमदियों को भी बराबरी नहीं दिलवा सके। उन्होंने अपनी आर्थिक सलाहकार कमेटी में एक विदेशी पाकिस्तानी आर्थिक विशेषज्ञ को रखा था पर वह अहमदिया था। कट्टरवादियों ने प्रदर्शन शुरू कर दिए और इमरान खान साहिब ने समर्पण करते हुए उसे हटा दिया। कादियां में अहमदिया समुदाय के लोगों का कहना है कि, “वहां हम तो अपने धर्म स्थान को मस्जिद भी नहीं कह सकते।“
क्रिसमस के दिन पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने सभी ‘ईसाई नागरिकों’ को बधाई दी जबकि भारत के प्रधानमंत्री ने ‘सभी’ को बधाई दी। यह मूल अंतर है दोनों देशों के बीच। पाकिस्तान में एक ही मज़हब प्रमुख है इमरान खान में यह हिम्मत नहीं है कि वह ‘सभी पाकिस्तानियों’ को क्रिसमस की बधाई दे सकें। पाकिस्तान एक ऐसा देश बन चुका है जहां केवल एक मज़हब का बोलबाला है बाकी सब मज़हब वाले या तो समर्पण कर रहे हैं या उन्हें खत्म कर दिया जाता है। भारत में तीन मुसलमान, दो दलित और एक सिख राष्ट्रपति हो चुके हैं। एक सिख दस साल हमारे प्रधानमंत्री रहे हैं। एक ईसाई महिला ने वर्षों कांग्रेस पार्टी की अध्यक्षता की है। ऐसी सहिष्णुता पाकिस्तान में तो कल्पना भी नहीं की जा सकती। उनका संविधान कहता है कि केवल मुसलमान ही राष्ट्रपति हो सकता है। वहां रोजाना लोगों को बताया जाता है कि वह एक इस्लामिक देश है। हिन्दू बहुसंख्यक भारत में हर मज़हब का त्यौहार उत्साह के साथ मनाया जाता है। जहां एक ही मज़हब को मान्यता दी जाए वहां यह संभव नहीं। करतारपुर साहिब गुरुद्वारे में भी इमरान खान ने अपने लोगों को समझाया कि जिस तरह आपके लिए मदीना का महत्व है उसी तरह सिखों के लिए करतारपुर साहिब का है।
अर्थात इमरान खान की अपनी सोच भी एकसूत्री है। वह भी इस्लाम से आगे नहीं बढ़ सकते। उनमें हिम्मत नहीं कि हिन्दुओं, सिखों, ईसाईयों तथा अहमदियों के उत्पीडऩ का विरोध कर सके और नसीहत इमरान खान हमें दे रहें हैं! इस सबसे पाकिस्तान का बहुत नुकसान हुआ है। सारी सोच जकड़ी गई है। क्या कारण है कि भारत में लोकतंत्र की जड़ें मज़बूत हैं और पाकिस्तान में नहीं? वह देश अब अपने से ही कुश्ती करता नज़र आता है। कभी पत्रकार मारे जाते हैं तो कभी नेता। हाल ही में एमक्यूएम के लोकप्रिय नेता अली रज़ा अबादी की हत्या कर दी गई। पेशावर जहां सबसे अधिक आतंकी हमले होते हैं से कॉलमनवीज़ मुहम्मद ताकी ने लिखा है, ”असली बात है कि पाकिस्तान में या आपको अभिव्यक्ति की आजादी मिल सकती है या जीने की आजादी….।“
1947 में पाकिस्तान ने अपनी तकदीर का फैसला कर लिया था। अब यह वह पाकिस्तान है जहां पाकिस्तानी ही मस्जिदों पर हमले कर रहे हैं। पेशावर के आर्मी स्कूल पर हमला करने वाले भी पाकिस्तानी ही थे जिसमें 150 बच्चे मारे गए। जो बीजा उसकी वह कटाई कर रहे हैं। यह वह पाकिस्तान है जहां हरेक दूसरे को शक से देखता है, जहां उदारता खत्म हो रही है और मज़हब के ठेकेदार और जेहादी हावी हो रहे हैं। उनके शायर सलमान हैदर ने एक नज़म लिखी है, “मैं भी काफिर, तूं भी काफिर” जिसमें पाकिस्तान के हालात साफ होते हैं। वह बताते हैं कि किस तरह उनके मुल्क में फूलों की खुशबू, शब्दों का जादू, तबला, ढोल, सुर, ताल, भंगड़ा, नाच, दादरा, ठुमरी, हीर, मेले, फैज, मंटो, सब ‘काफिर’ हैं। उनकी यह पंक्तियां उल्लेखनीय है, आशा है इमरान खान साहिब इन पर तवज्जो देंगे,
मंदिर में तो बुत होते हैं, मस्जिद में भी हाल बुरा है
कुछ मस्जिद के बाहर काफिर, कुछ मस्जिद के अंदर काफिर
मुस्लिम मुल्क में मुस्लिम भी काफिर, बाकी सब तो हैं ही काफिर!
“मैं भी काफिर, तूं भी काफिर” (We are all Kafirs),