कारवां और मंज़िल (Caravan and Destination)

चेहरा सब कुछ बता रहा था। जिसे  ‘बॉडी लैंगवेज’ कहा जाता है वह भी अत्यन्त ढीली थी। एक तरफ कार्यवाहक वित्तमंत्री पीयूष गोयल वोटर को भरमाने के लिए एक के बाद एक घोषणा कर रहे थे और भाजपा के सांसद मेज़ थपथपा कर  ‘मोदी’ , ‘मोदी’  के नारे लगा रहे थे तो दूसरी तरफ कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी लोकसभा में अपनी सीट पर सर पकड़े दुबके बैठे थे। चेहरा भावशून्य था कि जैसे नीरजजी से माफी मांगते हुए कह रहे हों,

और हम बैठे-बैठे बहार देखते रहे

कारवां गुज़र गया, गुबार देखतें रहे!

पिछले कुछ महीने राहुल तथा कांग्रेस पार्टी के लिए अच्छे रहें हैं। राहुल प्रमुख विपक्षी नेता बन कर उभरे हैं। इस दौड़ में उन्होंने ममता बैनर्जी तथा मायावती जैसों को पछाड़ दिया था। इंडिया टूडे-कारवी राष्ट्रीय सर्वेक्षण में भी बताया गया है कि लोकप्रियता की दौड़ में राहुल गांधी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ लगातार फासला कम करते जा रहे हैं। जो फासला जनवरी  2019 मे 55 प्रतिशत का था, वह दो साल बाद कम होकर 12 प्रतिशत रह गया है। कांग्रेस पार्टी राजस्थान, मध्यप्रदेश तथा छत्तीसगढ़ में सरकारें बना कर हटी हैं और कनार्टक में उसकी गठबंधन सरकार है।

राहुल गांधी के लिए सब कुछ अच्छा चल रहा था कि मोदी जी ने यह बजट बम फोड़ दिया जिससे अनुमानित 25 करोड़ लोगों को फायदा होगा। मोदी फिर पहल छीन कर ले गए। कांग्रेस के पास इस बजट की आलोचना के लिए कुछ नहीं है। अधिक से अधिक यह ही कहा जाएगा कि यह चुनावी बजट है। यह तो वह है ही और लोकतंत्र में यह कोई अपराध भी नहीं। जिसे पैसा मिलेगा या राहत मिलेगी उसे तो कोई तकलीफ नहीं कि ऐसा चुनावों से दो-अढ़ाई महीने पहले हो रहा है। हर बजट का इस्तेमाल हर सरकार अपने लोगों को प्रसन्न करने के लिए करती है। चिंता तब होती है जब राजनीतिक विवशता तथा आर्थिक समझदारी में टकराव हो। ऐसा नहीं हो रहा। विपक्ष भी यह शिकायत नहीं कर रहा। खुद राहुल गांधी चुनाव से पहले बड़ी-बड़ी घोषणाएं कर रहे हैं। सारे देश में किसानों का कर्जा माफ होगा न्यूनतम आमदनी की गारंटी दी जाएगी। इतना पैसा किधर से आएगा यह बताया नहीं जा रहा है। अर्थात दोनों ही यह खेल खेल रहे हैं।

सरकार ने मिडल क्लास, किसान तथा अव्यवस्थित श्रमिक की मदद के लिए बड़ी घोषणाएं की हैं। 5 लाख रुपए तक की टैक्स राहत दी है पर इससे उपर के सलैब में परिवर्तन नहीं किया। 3 करोड़ मिडल क्लास करदाता को खुश करने का प्रयास किया गया है जो नोटबंदी तथा जीएसटी से नाराज हैं। किसान को 6000 रुपए वार्षिक सीधा पैसा मिलेगा। कुल 75,000 करोड़ रुपए सीधे किसान के खाते में जाएगा लेकिन 6000 वार्षिक मामूली रकम है इसे कम से कम दोगुना करने की जरूरत है। वित्तमंत्री का कहना है कि अगली सरकार और कर प्रस्तावों पर नज़र दौड़ाएगी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का भी कहना है कि यह तो ट्रेलर है असली खुशहाली अगले चुनाव के बाद आएगी।

अर्थात सरकार ने फिर गाजर लटका दी है। वित्तमंत्री ने घोषणा की है कि  “10 साल में हम ऐसे भारत की रचना करेंगे जिसमें गरीबी, कुपोषण, गंदगी तथा निरक्षरता का नामोनिशां नहीं रहेगा।” मतलब अच्छे दिन दस साल पीछे खिसक गए हैं। सरकार ने “विजन- 2030” भी पेश किया है जिसमें भारत को बदलने का संकल्प दिया है। वादा है कि  “भारत एक आधुनिक, टैक्नॉलिजी से प्रेरित, ऊंचा विकास, बराबर तथा पारदर्शी समाज वाला देश होगा।“ याद करने की बात वह है जो नितिन गडकरी ने कही है कि जब वादे पूरे नहीं होते तो लोग पिटाई करते हैं! इस वक्त सरकार के सामने बड़ी चुनौती रोजगार की है। इस बड़ी चुनौती के बारे वित्तमंत्री ने कुछ विशेष योजना नहीं बताई लेकिन सरकार की अपनी रिपोर्ट जो लीक हो गई है बताती है कि 2017-18 में रिकार्ड बेरोजगारी रही है जो 45 वर्षों में सबसे अधिक है।  15-21 आयु के युवाओं में बेरोजगारी बाकियों से अधिक है।

सरकार बेरोजगारी के बारे रिपोर्ट को दबा कर बैठी है। नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत का कहना है कि  “अगर आप 7.2 प्रतिशत की दर से विकास कर रहे हैं तो आप यह नहीं कह सकते कि देश में रोजगार नहीं बढ़ा… समस्या है कि देश में अच्छी गुणवत्ता की नौकरियां नहीं बढ़ रही।“ यह बात सही है कि यहां अच्छी नौकरी पैदा नहीं हो रही। उत्तर प्रदेश में संदेशवाहक जिसके लिए न्यूनतम योग्यता पांचवीं पास है की सरकारी नौकरी के लिए 3700 पीएचडी ने अवेदन दिया था। रोजगार के मामले में काफी कुछ गड़बड़ है।  मैं अर्थशास्त्री नहीं हूं लेकिन मेरी समझ में भी नहीं आता कि अगर असल में हमारी विकास की दर 7.2 प्रतिशत है और हम दुनिया की सबसे तेज़ प्रगति करने वाली अर्थव्यवस्था हैं तो फिर हमारी बेरोजगारी की दर ऊंची 6.1 प्रतिशत क्यों है? क्या हम ‘जॉबलैस ग्रोथ’ अर्थात ऐसा विकास जो नौकरियां पैदा नहीं करता, की तरफ जा रहे हैं जहां देश तरक्की तो कर रहा है लेकिन फल चंद बड़े औद्योगिक तथा व्यापारिक घरानों को ही मिल रहा है?

सरकार समझती है कि लोगों के हाथ में अधिक पैसा आने से मांग बढ़ेगी, जिससे नौकरियां बढ़ेंगी, राजस्व बढ़ेगा और देश का अधिक विकास होगा। यह सही है लेकिन सवाल तो है कि अभी तक रोजगार के मोर्चे में पर्याप्त विकास क्यों नहीं हुआ? मानना पड़ेगा कि इस सरकार ने काम किया है। बजट से पहले 22 करोड़ लोगों को प्रधानमंत्री की विभिन्न योजनाओं जैसे प्रधानमंत्री आवास योजना, उज्जवला  तथा मुद्रा से फायदा हुआ है। इस सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार का कोई मामला नहीं। राहुल गांधी राफेल को बहुत उछाल रहे हैं लेकिन अगर घपला हुआ है तो पैसा गया कहां? जब तक वह पैसे के निशान साबित नहीं कर देते राहुल गांधी के आरोप में दम नहीं होगा। सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण दे कर भी सरकार ने माहौल बदलने की कोशिश की है। विश्व में भारत सबसे अधिक हाईवे बनाने वाला देश बन चुका है। अपने अशांत समर्थकों को शांत करने के लिए सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में यह आवेदन दिया है कि अयोध्या में 67 एकड़ गैर विवादित भूमि उसके मालिकों को लौटा दी जाए पर अभी राम मंदिर का निर्माण शुरू होने की कोई संभावना नहीं। मोहन भागवत भी तिथि पीछे डालते जा रहे हैं और कह रहें हैं कि धैर्य रखें। राम मंदिर से वोट नहीं मिलेंगे। वोट किसान तथा बेरोजगार की पीड़ा कम करने से मिलेंगे। इसके लिए अभी और काम करना है। गरीबी कम करनी है तो 10 प्रतिशत की विकास दर चाहिए। अर्थात चाहे कारवां गुज़र रहा है पर अभी मंजिल दूर है। रास्ते में कई रुकावटें आ सकती हैं, उतार-चढ़ाव होंगे।

आदत के अनुसार बंगाल में ममता बैनर्जी ने फिर संकट पैदा कर दिया है। फिर केन्द्र के साथ टकराव की स्थिति है। लेकिन ऐसी ममता है। वह नहीं चाहती कि शारदा घोटाले की जांच आगे बढ़े। वह यह भी चाहती है कि वह विपक्ष का वीपी सिंह बन जाए लेकिन भारी घपला तो हुआ है। लाखों गरीबों का करोड़ों रुपया डूब गया और डुबोने वाले उनकी पार्टी के नजदीकी थे और ममता यह प्रभाव दे रही है कि वह इसकी जांच नहीं चाहती। लेकिन दिलचस्प राहुल गांधी की प्रतिक्रिया है। उनका कहना है कि वह ममता के साथ कंधे से कंधा मिला कर खड़े हैं। इन्हीं राहुल गांधी ने 2016 में इसी मामले का जिक्र करते हुए कहा था,  “ममताजी ने भ्रष्टाचार खत्म करने का वादा किया था लेकिन जब उनके ठीक सामने भ्रष्टाचार हुआ तो उन्होंने कुछ कदम नहीं उठाया… वह उनकी रक्षा कर रहीं है जिन्होंने बंगाल लूटा है।“

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Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.