यह लेख मैं मध्यपूर्व के दो देशों, यूएई तथा कुवैत की यात्रा के बाद लिख रहा हूं। दोनों ही देश उदार तथा तुलनात्मक खुले देश हैं। यहां मैं पहले भी यात्रा कर चुकां हूं और हर बार वहां की प्रगति को देखकर प्रभावित लौटा हूं। ठीक है उनके पास तेल है और जनसंख्या कम है इसलिए वह चमचमाते शहरों और प्रभावशाली इफ्रांस्ट्रक्चर पर खर्च कर सकते हैं पर मामला केवल पैसे का ही नहीं सोच का भी है। दुबई का अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा अब दुनिया में सबसे व्यस्त हवाई अड्डों में गिना जाता है। दुबई के पास अपना तेल नहीं है। कई बार आर्थिक संकट से जूझ रहे दुबई ने पड़ोसी अबूधाबी की मदद ली है लेकिन सबक सीखते हुए दुबई को पर्यटन, बिसनस तथा आर्थिक हब बना दिया गया जैसे पूर्व में सिंगापुर है और हांगकांग है। दुनिया के कई रईसों की यहां जयदाद है। एक जमाने में दुनिया के सबसे बदमाश लोग यहां पनाह लेेते थे लेकिन अब दुबई की छवि एक आधुनिक, विकासशील तथा उदार देश की है जहां खलनायकों के छुपने की जगह नहीं रही और जहां अगर आप कानून का पालन करते हो तो कोई तकलीफ आपको नहीं होगी। सरकार आपके कामकाज या निजी जीवन में दखल नहीं देती।
मध्यपूर्व के देशों की प्रगति में भारतवासियों का बड़ा योगदान है। चाहे यूएई हो या कुवैत, वहां भारतीयों की संख्या कुल जनसंख्या का लगभग 30 प्रतिशत है। प्रोफैशनलज़ से लेकर श्रमिकों तक की नौकरी के लिए भारतीयों को पसंद किया जाता है। इसका बड़ा कारण है कि विदेशों में भारतीय सबसे अनुशासनबद्ध जमात है। हमें अपने काम से और पैसे कमाने से मतलब रहता है किसी किस्म की दूसरी शरारत में हम संलिप्त नहीं हैं। अधिकतर इन देशों में पाकिस्तानियों का अब स्वागत नहीं किया जाता क्योंकि अधिकारियों को घबराहट है कि यह अपने साथ उग्रवादी विचारधारा को भी लेकर आते हैं।
कुवैत की कहानी भी अद्भूत है। यह वह देश है जिस पर अगस्त-1990 में सद्दाम हुसैन ने हमला किया और कब्जा कर लिया था। वह सात महीने वहां जमा रहा। आखिर में संयुक्त राष्ट्र की छतरी के नीचे अमेरिका के नेतृत्व में वहां हमला कर सद्दाम हुसैन की सेना को वहां से खदेड़ दिया गया लेकिन जाते-जाते वह 600 तेल कुओं को आग लगा गए थे। आज यह दुनिया के सबसे प्रगतिशील देशों में से एक है। इस देश के पास दुनिया का छठा सबसे बड़ा तेल भंडार है। विश्व बैंक के अनुसार कुवैत की प्रति व्यक्ति आय दुनिया में चौथे नंबर पर है। कुवैत की अपनी जनसंख्या केवल तेरह लाख है जबकि तेल से हर महीने 6 अरब डॉलर की कमाई होती है। अर्थात कमाई 6 अरब डॉलर की है जबकि कुवैती जनसंख्या जालंधर जैसे शहर जितनी है। वहां 4 लाख हिन्दू रहते हैं।
कुवैत की मुद्रा दीनार की कीमत दुनिया में सबसे अधिक है। भारत से गए लोगों के लिए यह कष्टदायक भी है क्योंकि एक दीनार के लिए 234 से अधिक रुपए देने पड़ते हैं लेकिन अगर आप वहां काम कर रहे हो और उनकी मुद्रा में वेतन मिलता है तो समस्या नहीं है। प्राचीन समय में यह देश नौका निर्माण का केन्द्र था तब से भारत के साथ व्यापार रहा है। अब यह रिश्ता बदल गया है और मजबूत हुआ है। मध्यपूर्व और खाड़ी देशों से लगभग एक दर्जन भारतीय शहरों को सीधी उड़ानें हैं। वहां काम कर रहे भारतीय जो पैसा घर भेजते हैं वह देश के वार्षिक बजट का बड़ा हिस्सा है। पाकिस्तान का यह भी रोना है कि विदेशों से जो पैसा भेजा जाता था उसमें लगातार गिरावट आ रही है। लेकिन तेल की गिरती कीमतों के कारण खाड़ी के देशों में भारतीयों की मांग भी कम हो रही है। सबसे अधिक भारतीय अभी भी यूएई जा रहे हैं जबकि सऊदी अरब में कमी आ रही है। कईयों को वापिस भेजा जा रहा है। वहां की सरकार निताकत योजना के अधीन नौकरियों के लिए अपने लोगों को प्रोत्साहित कर रही है लेकिन अभी उन्हें काम करने की अधिक आदत नहीं पड़ी।
इन देशों की अनुशासन व्यवस्था बहुत प्रभावित करती है। कानून सख्त है इसलिए अपराध बहुत कम है। कई लोग तो अपनी कार को लॉक नहीं करते क्योंकि किसी की हिम्मत नहीं कि कार को उठा ले जाए क्योंकि जीपीएस पर वह पकड़ा जाएगा। जगह इतनी सुरक्षित है कि शाम के वक्त अकेली महिलाएं घूमती नज़र आती हैं। कोई आपत्ति नहीं करता। कोई तंग नहीं करता। महिलाएं अब गाड़ी चलाती भी आम नज़र आती हैं। सऊदी अरब को छोड़ कर बाकी जगह वह दफ्तरों में काम करती हैं। केवल स्थानीय महिलाएं हिजाब से सर ढके रखती हैं विदेशियों के लिए कोई पाबंदी नहीं। शापिंग माल या बाजारों में महिलाएं आम अकेली खरीददारी करती नज़र आती हैं।
खाड़ी के देश समझ गए हैं कि उनका विदेशियों के बिना गुजारा नहीं है। एक, उनकी जनसंख्या कम है तो दूसरा उनके पास अभी वह प्रतिभा तथा दक्षता नहीं जो एक आधुनिक देश को चलाने के लिए चाहिए इसीलिए भारी संख्या में प्रवासियों को बुलाया जाता है। यह भी समझ आ गई है कि अगर बाहरी, विशेष तौर पर अमरीकी या यूरोपिए, लोगों को बुलाया जाएगा तो उन्हें अपने रहन-सहन के तरीके अपनाने की छूट भी देनी पड़ेगी। दुबई या अबूधाबी में निक्कर और बनियान मेें विदेशी महिलाओं को जॉग करते देखा जा सकता है। कुवैत या सऊदी अरब में तो अभी भी पाबंदी है लेकिन दुबई-अबूधाबी जैसे देशों में विदेशी लोग होटलों या अपने घरों में शराब पी सकते हैं। सऊदी अरब अपने कट्टरपन के लिए कुख्यात है। वहां तो विदेशी महिलाओं को भी बाहर निकलने से पहले बुर्का डालना पड़ता है इसके कारण बहुत कम प्रोफैशनल वहां जाना चाहते हैं। इसको समझते हुए सऊदी अरब अब 500 अरब डॉलर से सीमा पर एक नया शहर ‘नियोम’ बसाने की योजना बना रहा है जो च्च्न्यायिक प्रणाली स्वायत्तशासी होगी।ज्ज् कहने का मतलब है कि वहां सख्त सऊदी इस्लामी कानून लागू नहीं होगा।
यह देश किस तरह समय के साथ बदल रहे हैं यह दो और महत्वपूर्ण समाचारों से पता चलता है। हाल ही में पोप फ्रैंसिस अबूधाबी की यात्रा कर लौटे हैं जहां उन्होंने लगभग दो लाख लोगों को संबोधित किया। यह पहली बार है जब कैथोलिक चर्च के मुखिया ने इस्लाम की जन्मभूमि अरब में कदम रखा है। उन्हें निमंत्रण देकर यूएई के शासक शेख मुहम्मद बिन जायेद अल नहयन धार्मिक सहिष्णुता का संदेश दे रहे थे। अबूधाबी में अप्रैल में पहले मंदिर की नींव रखी जाएगी जिसके लिए शेख नहयन ने 13.5 एकड़ भूमि तोहफे में दी है। इस क्षेत्र में एक समय गैर मुस्लिमों को धार्मिक अधिकार नहीं थे लेकिन अब वहां चर्च, गुरुद्वारे तथा मंदिर बनाने की इज़ाजत है।
अबूधाबी ने हिन्दी को देश की तीसरी भाषा बना दिया है ताकि हिन्दी भाषी लोगों को अदालतों मेें तकलीफ न हो। यह कितना उदारवादी कदम है! सिंगापुर में अवश्य तमिल एक सरकारी भाषा है लेकिन अरब देशों के बारे तो यह सोचा भी नहीं जा सकता था कि वह इस तरह अपने दरवाज़े खोल देंगे। उदारवाद से उन्हें कुछ तकलीफ भी हो रही है। जैसे-जैसे समाज उदार बनता जाएगा जिन आजादियों पर अभी रोक है उन पर दबाव बढ़ना शुरू होगा। अभी से वहां हाथ मेें हाथ डाल कर जोड़ों को घूमते देखा जा सकता हैै जिसकी कुछ वर्ष पहले तक कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। सोशल मीडिया बहुत कुछ बदल रहा है।
इन देशों के उत्थान में हमारे लोगों का भी योगदान है लेकिन हमें उनसे कुछ सीखना भी चाहिए। उनकी व्यवस्था तथा उनका अनुशासन बहुत प्रभावशाली है। अबूधाबी ने तो हिन्दी को तीसरी अदालती भाषा बना दिया लेकिन भारत में कई सरकारें हैं जो हिन्दी के नाम से चिढ़ती हैं। हमारे देश में असहिष्णुता पहले से बढ़ी है हम झट एक-दूसरे को मार-काटने के लिए तैयार हो जाते हैं। हम अधिकारों को जानते हैं पर कर्त्तव्य के प्रति लापरवाह हैं। विदेशों में हमें सर्वश्रेष्ठ प्रवासी समुदाय समझा जाता है। हम वहां कानून का बारीकी से पालन करते हैं लेकिन जब स्वदेश लौटते हैं तो हमें क्या हो जाता है? अराजकता और अव्यवस्था हमारे हवाई अड्डों पर पैर रखते ही शुरू हो जाती है। हम फिर अपने पुराने देसी उद्दण्ड अवतार में क्यों लौट आते हैं?