शायर ने लिखा है, मुद्दत से थी आरज़ू सीधा करे कोई! मंगलवार को वह आरज़ू पूरी हो गई। जो हमने कारगिल के बाद नहीं किया, मुुंबई पर 26/11 के हमले के बाद नहीं किया वह अब हो गया। कारगिल के बाद वाजपेयी ने वायुसेना को नियंत्रण रेखा पार करने की इज़ाजत नहीं दी थी। मुंबई पर हमले के बाद मनमोहन सिंह की सरकार तो विलाप ही करती रही। यह प्रभाव दे दिया गया कि क्योंकि पाकिस्तान के पास परमाणु हथियार है इसलिए जवाब देना पाप होगा। पाकिस्तान की सेना भी समझ बैठी कि उनके परमाणु कवच के कारण भारत डर गया और जवाब नहीं देगा इसलिए वह इतमिनान से भारत भूमि पर आतंकी कार्रवाई जारी रख सकते हैं। मंगलवार को नरेन्द्र मोदी ने यह गलतफहमी खत्म कर दी। भुट्टो की भारत को 1000 जख्म देने की नीति का जवाब मिल गया, जख्म अब आपको भी खाने पड़ेंगे। और संदेश है कि अगर आप अपने आतंकी कैंप बंद नहीं करते तो हम कर देंगे।
हमला जैश-ए-मुहम्मद के बालाकोट में आतंकी अड्डों पर किया गया है पाकिस्तान की सेना पर नहीं लेकिन यह पाकिस्तान के अंदर दूर तक घुस कर किया गया। 1971 के बाद पहली बार हमारे जहाज़ों ने पाकिस्तान के आकाश के अंदर घुस कर कार्रवाई की है। दुनिया हमारी नीति का समर्थन करेगी क्योंकि कोई भी आतंकवाद का समर्थन नहीं करता। इमरान खान ने जवाबी कार्रवाई की धमकी दी थी लेकिन पाकिस्तान जवाब देगा कहां? क्या पाकिस्तान टकराव को और बढ़ाएगा? यह हो सकता है कि भारत के अंदर आतंकी हमले और बढ़ जाएं पर अगर इमरान खान वास्तव में शांति चाहते हैं तो उन्हें अपनी सेना तथा जेहादियों की लगाम कसनी चाहिए। उनकी वायुसेना ने पहले ट्वीट किया था, “आराम से सोईए, पाक वायुसेना जाग रही है “, लेकिन जब भारतीय वायुसेना के जहाजों की संख्या देखी तो वह हिले तक नहीं। हां, आतंकी कार्रवाई की आशंका है लेकिन इस वक्त तो देश का सर गर्व से ऊंचा है। अगर अब भी कोई कार्रवाई नहीं होती तो देश निराशा और विषाद में डूब जाता। जेहादी अभी नहीं रुकेंगे लेकिन पड़ोसी को समझ आ गई है कि इसकी कीमत अदा करनी पड़ेगी। यह संदेश भेज दिया गया है कि भारत आपके परमाणु ब्लैकमेल पर नहीं झुकेगा और हमारी प्रतिक्रिया तीव्र हो सकती है और हम तनाव बढ़ाने से नहीं घबराएंगे। यह हमारी रक्षा तथा विदेश नीति में निर्णायक क्षण है। पाकिस्तान के परमाणु ब्लैकमेल को हमने रद्द कर दिया है।
खबर है कि पाकिस्तान ने घोषणा की है कि उनके पंजाब की सरकार ने भावलपुर में मदरसातुल सबीर तथा जाम-ए-मस्जिद सुभानल्ला पर कब्जा कर दो प्रशासक वहां बैठा दिए हैं। दिलचस्प स्थिति है। उस सबूत जो उनका कहना था कि उनके पास नहीं है, पर उन्होंने उस मदरसे नैटवर्क पर नियंत्रण कर लिया जो उस आतंकी वारदात के लिए जिम्मेवार हैं जो उनका कहना था कि उसने किया नहीं। लेकिन यह दोमुहापन अब पाकिस्तान का ट्रेडमार्क बन चुका है। वाशिंगटन पोस्ट ने टिप्पणी की है, “अब भारत पर हुए पिछले आतंकी वारदातों को देखा जाए तो चाहे सबूत दिए भी जाएं पाकिस्तान उन पर कार्रवाई नहीं करेगा… अमेरिका तथा भारत द्वारा पाकिस्तान पर जवाबदेही थोपना या पाकिस्तान के स्वभाव पर नियंत्रण करने में असफलता से वह उग्रवादियों का समर्थन करने की नीति पर चलने के लिए प्रोत्साहित है। ”
भारत की नीति भी भडकऩे और जरूरत से अधिक सावधान रहने के बीच झूलती रहती हैै। यह अमनपसंद रवैया आजादी से है जब कश्मीर को पाकिस्तानी सैनिकों से पूरी तरह खाली करवाए बिना जवाहरलाल नेहरू मामला संयुक्त राष्ट्र में ले गए थे। लाल बहादुर शास्त्री ने 1965 की लड़ाई के बाद भारत ने सामरिक तौर पर महत्व रखने वाले हाजीपीर दर्रे को वापिस कर दिया था। इंदिरा गांधी ने अमेरिका के जबरदस्त विरोध के बावजूद 1971 की लड़ाई में पाकिस्तान के दो हिस्से करवा दिए थे पर शिमला में समझौता करते वक्त कश्मीर का स्थाई समाधान निकाले बिना उनके 90,000 सैनिक तथा पश्चिम में जीता उनका इलाका वापिस कर दिया था।
8 दिसम्बर, 1989 को देश के पहले मुस्लिम गृहमंत्री मुफ्ती मुहम्मद सईद की बेटी रुबिया का अपहरण कर लिया गया। मांग थी आतंकवादियों की रिहाई। केन्द्र की वीपी सिंह सरकार के हाथ-पैर फूल गए और मांगों के आगे समर्पण कर दिया और 5 आतंकी रिहा कर दिए गए। दिसम्बर 1999 में इंडियन एयरलाईन के विमान 814 का अपहरण कर उसे कंधार ले जाया गया। इसे अमृतसर रोका जा सकता था पर यहां भी वाजपेयी सरकार के हाथ-पैर फूल गए और तीन आतंकवादियों को रिहा कर दिया जिनमें मसूद अजहर है जिसने आगे चल कर पाकिस्तान में जैश-ए-मुहम्मद कायम किया। कहते हैं कि छोटे लोगों की गलती की चिंता नहीं क्योंकि इनका असर भी छोटा होता है चिंता बड़े लोगों की गलती की है क्योंकि इसके परिणाम भी बड़े होते हैं। उल्लेखनीय है कि दोनों बार जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला थे जिन्होंने इस समर्पण का डट कर विरोध किया था। उनका दिल्ली को संदेश था कि अगर सरकार ने समर्पण कर दिया तो बांध टूट जाएगा और तब कश्मीर में आतंकियों की कमी नहीं रहेगी।
इसी प्रकार गर्जने के बाद वाजपेयी सरकार ने संसद पर हुए हमले के बारे कुछ नहीं किया। फिर 20 नवम्बर, 2008 को मुंबई पर हमला हो गया। मनमोहन सिंह सरकार के राष्ट्रीय रक्षा सलाहकार शिव शंकर मेनन ने भारतीय विदेश नीति पर लिखी अपनी किताब च्चौयसेजज् में इस सवाल का जवाब दिया है कि मुंबई पर 26/11 के हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान पर हमला क्यों नहीं किया? वह लिखते हैं, “मैं खुद उस समय ऐसी जवाबी कार्रवाई के लिए दबाव डाल रहा था… पर सरकार के उच्च स्तर पर निर्णय लेने वालों का निष्कर्ष था कि पाकिस्तान पर हमला करने से अधिक फायदा हमला न करने में है।”
हम इसी फायदे-नुकसान में लगे रहे कि कालूचक , नगरोटा, उरी, पठानकोट के बाद अब पुलवामा हो गया। लेकिन अब नरेन्द्र मोदी ने पुरानी कमजोर नीति को पलट दिया और पाकिस्तान को बता दिया कि जख्म हम भी लगा सकते हैं। नरेन्द्र मोदी ने जोखिम भरा कदम उठाने की राजनीतिक इच्छा शक्ति दिखाई है। पाकिस्तान को भी समझ आ जाएगी कि भारत के पास कड़ा नेतृत्व है। इमरान खान साहिब, यह ‘नया इंडिया ‘ है!
लेकिन एक और कदम है जो हम उठा सकते हैं और जो हमारे अधिकार क्षेत्र में है और उठाना चाहिए। मेरा अभिप्राय धारा-370 को खत्म करने से है जिसका वायदा हर बार भाजपा करती आ रही है। इस धारा ने कश्मीर को देश के साथ जोड़ा नहीं जैसे कश्मीरी नेता चाहते हैं, बल्कि उलटा इसने कश्मीर को बाकी देश से अलग रखा है। इससे अलगाव बढ़ा है। धारा-370 ने कश्मीर तथा बाकी देश के बीच मज़बूत भावनात्मक दीवार खड़ी कर दी है। पहले वहां नरम अलगाववाद था, अब यह मज़बूत हो रहा है। इस धारा के रहते जम्मू-कश्मीर पर सूचना का अधिकार, शिक्षा का अधिकार, जीएसटी आदि लागू नहीं हो सकते। वहां की कोई महिला अगर देश के किसी दूसरे हिस्से में शादी करती है तो उसके जम्मू-कश्मीर में उसकी नागरिकता खत्म हो जाती है। बाकी देश के लोग कश्मीर में जायदाद खरीद नहीं सकते। दिलचस्प है कि कश्मीरी भारत के संविधान को पसंद नहीं करते पर यह चाहते हैं कि धारा-370 तथा 35्न में परिवर्तन किया जाए!
हमारी कोई भी सरकार इस धारा को खत्म नहीं कर सकी। जोखिम उठाने से सब डरते रहे क्योंकि कश्मीरी नेता कहते रहते हैं कि हालात खराब हो जाएंगे। अब फिर महबूबा मुफ्ती धमकी दे रही है। मेरा सवाल है कि कश्मीरी पंडितों को निकालने, पत्थरबाजी, पाकिस्तान तथा आईएसआईएस के झंडे लहराने तथा अब पुलवामा में आतंकी हमले से और अधिक खराब क्या होगा? अब कश्मीर की विशिष्ठता तथा अलग जनसंख्या का स्वरूप बनाए रखना देश के हित में नहीं है। अगर कश्मीर को अलग-थलग नहीं रखना जिसके अपने दुष्प्रभाव हैं और मुख्यधारा मेें शामिल करना है तो धारा-370 हटानी होगी। काम चैलेजिंग है लेकिन एक दिन तो करना है। मोदीजी, एक धक्का और लगाईए! यह श्रेय भी आपको जाना चाहिए।