यह स्वाभाविक है कि चुनाव की गर्मागर्मी में कुछ उम्मीदवार अपना नियंत्रण खो बैठें। ऐसा सब लोकतंत्र में होता है जहां खुले चुनाव होते हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति के पिछले चुनाव के दौरान डॉनल्ड ट्रंप ने अपनी प्रतिद्वंद्वी हिलेरी क्लिंटन को CROOKED HILLARY अर्थात ‘धूर्त हेलेरी’ कहा था जिसका जवाब हिलेरी क्लिंटन ने उन्हें CREEP अर्थात घृणित कह दिया था। विनसैंट चर्चिल ने अपनी एक विरोधी लेडी एस्टर को कहा था, “मैं चाहे इस वक्त शराबी हूं। सुबह तक यह उतर चुकी होगी पर तुम फिर भी बदसूरत रहोगी।” लेकिन यह सब हमारे चुनाव में जो घटिया बदत्तमीज़ वार्तालाप हो रहा है के सामने मामूली है। हिमाचल भाजपा अध्यक्ष सतपाल सिंह सत्ती ने राहुल गांधी को स्टेज से मां की गाली दोहरा दी। आजम खान ने जया प्रदा के ‘खाकी अंडरवियर’ का जिक्र किया। पिछले कुछ सप्ताह से हमारे कई नेता इस तरह बेलगाम हो गए हैं कि वह निर्ल्लजता की सभी हदें पार कर गए हैं।
नरेन्द्र मोदी, ललित मोदी तथा नीरव मोदी का जिक्र करते हुए कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी का सवाल था कि ‘सभी चोरों का नाम मोदी क्यों होता है?’ क्या सोच को घास चरने भेज दिया है? एक तरफ वह कहते हैं कि लड़ाई सिद्धांतों की है पर फिर उस निचले स्तर तक खुद गिर जाते हैं जिसका वह दूसरों पर आरोप लगाते रहते हैं। मोदी देश भर में फैले हुए हैं। इस एक वाक्य से उन्होेंने सारे समुदाय को बदनाम कर दिया। अशोक गहलोत का कहना है कि उनकी जाति के लिए रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति बनाया गया। क्या राष्ट्रपति को भी बक्शा नहीं जाएगा? क्या खुद कांग्रेस पार्टी जाति देख कर उम्मीदवार नहीं चुन रही?
लेकिन सबसे घटिया और शर्मनाक टिप्पणी साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने की है कि मुंबई पर 26/11 को हुए हमले में शहीद हेमंत करकरे की आतंकियों के हाथों मौत इसलिए हुई थी क्योंकि प्रज्ञा ने उन्हें श्राप देते हुए कहा था कि ‘तेरा सर्वनाश हो’ और ठीक सवा महीने के बाद ऐसा हो भी गया। हेमंत करकरे अशोक चक्र से सम्मानित हैं। 26 नवम्बर, 2008 की रात को शुरूआती हमले में तीन गोलियां लगने से करकरे शहीद हो गए थे पर प्रज्ञा उन्हें गाली निकाल रही है। एक तरफ भाजपा राष्ट्रवाद की बात करती है। शहीद को सम्मान देने की बात करती है तो दूसरी तरफ उनकी पार्टी की भोपाल से उम्मीदवार ही शहीद की घोर अवमानना कर रहीं है। अब चुनाव आयोग ने प्रज्ञा ठाकुर को नोटिस भेजा है। क्या आयोग को भी श्राप दिया जाएगा?
सवाल उठता है कि प्रज्ञा ठाकुर जैसों को भाजपा उम्मीदवार क्यों बनाती है? साक्षी महाराज कह चुके हैं कि ‘अयोध्या-काशी छोड़ो पर जामा मस्जिद तोड़ो’। जो उन्होंने कहा है इसका नतीजा भी उन्होंने सोचा है? क्या लोगों को आपस में लड़ाना है? गृहयुद्ध की हालत बनानी है? यह लोग क्यों नहीं समझते कि अगर स्थिति विस्फोटक हो गई तो नुकसान सबका होगा। श्रीलंका में जो हुआ है वह हमारे सामने है। इसलिए कहना चाहूंगा,
आईना तोड़ने वाले यह तूझे ध्यान रहे
अक्स बंट जाएगा तेरा भी कई हिस्सों में
विकास का मुद्दा कहां गया? केवल ध्रुवीकरण का प्रयास हो रहा है। सवाल तो यह भी है कि प्रज्ञा ठाकुर या साक्षी महाराज या गिरिराज या सत्तपाल सत्ती जैसों को आगे कर हिन्दुत्व की क्या सेवा हो रही है? अब मेनका गांधी जैसी उदार तथा सैक्यूलर नेता ने भी मुसलमानों को धमकी दे दी कि अगर वह उन्हें वोट नहीं देंगे तो जीतने पर वह उनका काम नहीं करेंगी। दूसरी तरफ मायावती तथा नवजोत सिंह सिद्धू जैसे लोग भी हैं जो कह रहे हैं कि मुसलमानों को एकजुट होकर भाजपा के खिलाफ वोट देना चाहिए। सारे चुनाव का रंग ही बदगुमां हो गया है। कोई पार्टी नहीं बची। कहा जा सकता है,
मेरे वतन की सियासत का हाल मत पूछ
घिरी हुई है तवायफ तमाशईयों में!
जब 13 दिसम्बर, 2001 में संसद भवन पर आतंकी हमला हुआ था तो प्रधानमंत्री वाजपेयी तथा सोनिया गांधी ने एक-दूसरे की खैरियत पूछी थी। आज वह शिष्टता किधर गई? हाल ही में चोट के बाद हस्पताल में दाखिल शशि थरूर का हाल पूछने जब रक्षामंत्री निर्मला सितारमन पहुंची तो यह बड़ी खबर बन गई जबकि यह सामान्य बात होनी चाहिए। ऐसी मिसालें कम और कम होती जा रही हैं। विरोधी को दुश्मन समझा जाता है। विचारधारा की कोई लड़ाई नहीं रही इसलिए भद्दी से भद्दी भाषा का इस्तेमाल हो रहा है। राजनीति का स्तर बिलकुल गिर गया जिसका असर देश और समाज पर पड़ता है। यथा राजा तथा प्रजा!
क्या हालत सुधरेंगे? बहुत कुछ तीन संस्थाओं पर निर्भर करता है। एक, न्यायपालिका। सुप्रीम कोर्ट तो अपनी जिम्मेवारी सही तरीके से निभा रहा है। उसका डंडा सबको सही रखता है। दूसरा, चुनाव आयोग। यहां बहुत गुंजायश है। सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद अवश्य कुछ नेताओं को कुछ घंटे के लिए चुनाव-प्रचार से रोका गया है लेकिन इसके बावजूद आज़म खान जैसे धारावाहिक अपराधी अभी भी दनदना रहे हैं। नरेन्द्र मोदी पर बनी फिल्म को बैन कर चुनाव आयोग वाहवाही बटोरने का प्रयास कर रहा है पर जरुरत तो है कि फिज़ा में जो जहर फैल रही है उस पर नियंत्रण किया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि आयोग दंतहीन नहीं है। आखिर बाल ठाकरे जैसे धाकड़ नेता को चुनाव आयोग ने छः साल के लिए प्रचार करने या चुनाव में हिस्सा लेने से बैन कर ही दिया था।
लेकिन सबसे बड़ी जिम्मेवारी प्रधानमंत्री पर जाती है। मुझे मालूम है कि नरेन्द्र मोदी के खिलाफ विपक्ष, विशेष तौर पर राहुल गांधी, अमर्यादित शब्दों का इस्तेमाल करते हैं। राहुल ने तो सुप्रीम कोर्ट का हवाला देकर प्रधानमंत्री के खिलाफ वह आरोप लगा दिए जो बड़ी अदालत ने कहे ही नहीं थे। अब फंस गए हैं और अपनी विश्वसनीयता पर खुद बड़ी चोट कर ली है। मोदी की शिकायतें हैं कि उनकी जात को लेकर भी उनका अपमान किया गया। इसका असर उन पर पड़ा लगता है क्योंकि उनका अपना प्रचार कर्कश और बेरहम है। उन्होंने भी विकास तथा अपनी उपलब्धियों के बारे बोलना बंद कर दिया है लेकिन वह केवल भाजपा के नेता ही नहीं वह देश के नेता हैं। वह सभी धर्मों, जातियों और वर्गों के प्रतिनिधि हैं। एक बुरी तरफ से विभाजित तथा अनिश्चित देश तरक्की नहीं कर सकता। हमारा लोकतंत्र तनाव में है इसे मुक्त करना है। उन्हें राहुल गांधी की बराबरी नहीं करनी उन्हें जवाहरलाल नेहरू बनना है। याद रखना चाहिए जो अटल बिहारी वाजपेयी ने संसद में कहा था, “सरकारें आएंगी-जाएंगी, पार्टियां बनेंगी-बिगड़ेंगी मगर यह देश रहना चाहिए, इस देश का लोकतंत्र रहना चाहिए।” देश को सही रास्ते पर रखना अ‘छे नेतृत्व की असली जिम्मेवारी है।
यह सबसे बदतमीज चुनाव बन चुका है जिसके बारे कहा जा सकता है कि यहां तो लफज़ भी नंगे हो गए, राजनीति गाली बनती जा रही है। पीवी नरसिन्हा राव ने कहा था कि राजनीति में रहने के लिए मोटी चमड़ी चाहिए। शायर ने भी कहा है कि सियासत तथा अदब की दोस्ती बेमेल है लेकिन देश को शांति चाहिए, भाईचारा चाहिए, राहत चाहिए। आज चारों तरफ गुबार ही गुबार नज़र आ रहा है जिसके बारे कहा जा सकता है,
जनून का दौर है किस-किस को जाए समझाने,
उधर भी अकल के दुश्मन इधर भी दीवाने!