हवा कर रुख क्या है यह उस वकत ही साफ हो गया था जब चीन के महत्वकांक्षी बेलट एंड रोड प्रोजैक्ट के दूसरे शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए पाकिस्तान के वज़ीर-ए-आजम इमरान खान बीजिंग पहुंचे थे। उनकी आगवानी के लिए वहां कोई मंत्री या अधिकारी मौजूद नहीं था। इमरान भी यह देख कर परेशान नज़र आ रहे थे कि उनकी आगवानी के लिए चीन सरकार ने बीजिंग म्यूनिसिपिल कमेटी की उप सचिव ली फिंग को भेजा था। इमरान खान चीन को ‘लौह-मित्र’ कहते रहे लेकिन बीजिंग में उनका फीका स्वागत बता गया कि चीन पाकिस्तान के सारे बोझ उठाने को अब तैयार नहीं। बाद में जब सभी मेहमानों का चित्र लिया गया तो इमरान खान को दूसरी पंक्ति के एक किनारे में खड़ा किया गया।
चीन का संदेश साफ था कि ‘इनफ इज़ इनफ’, वह आतंकवाद के मामले में पाकिस्तान को और आश्रय देने के लिए तैयार नहीं और दस वर्ष के बाद चीन ने मसूद अजहर को अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी घोषित करने पर लगाई गई अपनी रोक को हटा लिया। हमने अमेरिका, ब्रिटेन तथा फ्रांस को साथ मिलाकर चीन पर जबरदस्त दबाव बनाया था जबकि पुराना मित्र रुस अधिकतर चीन की तरफ ही देखता रहा। यह बहुत बड़ी कूटनीतिक कामयाबी है लेकिन इसके लिए बहुत बड़ी अंतर्राष्ट्रीय कूटनीतिक गेम भी खेली गई।
चीन: आखिर चीन को अपना हठ छोडऩा पड़ा। वह समझ गया कि मसूद अजहर तथा पाकिस्तान के बचाव से उसकी अपनी साख खत्म हो रही है। एक देश जो खुद को सुपर पॉवर जतलाना चाहता है का बहुत बदसूरत चित्र पेश हो रहा था कि अंतर्राष्ट्रीय सहमति के विपरीत वह उस आदमी की रक्षा कर रहा है जो अनेक बड़ी आतंकी घटनाओं के लिए जिम्मेवार है। वह समझ गए कि मसूद अजहर के और बचाव की उन्हें भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। अमेरिका विशेष तौर पर उन्हें कटघरे में खड़ा कर देगा। चीन को यह भी घबराहट थी कि अगर मसूद अजहर के मामले में वह और पाकिस्तान झुके नहीं तो अंतर्राष्ट्रीय संस्था एफटीएएफ पाकिस्तान को अंतर्राष्ट्रीय आतंकी देश घोषित कर सकती है। ऐसी स्थिति में चीन का पाकिस्तान में अरबों डॉलर का निवेश खतरे में पड़ जाएगा इसलिए मसूद अजहर की कुर्बानी मामूली समझ गई।
बालाकोट हमला कर भारत ने भी साफ संकेत दे दिया कि हमारी नीति बदल गई है और धैर्य समाप्त हो गया है। भारत और पाकिस्तान में खुला टकराव चीन के हित में नहीं है क्योंकि तब उसका निवेश खतरे में पड़ जाएगा। चीन को अपने पश्चिम में झिजियांग प्रांत में आतंकवाद का सामना करना पड़ रहा है। चीन वहां जबरदस्त दमन कर रहा है। लाखों मुसलमानों को जेल में बंद कर दिया गया। रमज़ान मनाने की भी आजादी नहीं। संजय बारू ने लिखा है कि,”रैडिकल इस्लाम अपना सर उठा रहा है… श्रीलंका में, और अब चीन के उत्थान को उससे उतनी ही चुनौती है जितनी भारत को।” ऐसी हालत में चीन भारत के खिलाफ आतंकवाद के बारे अधिक देर मौन नहीं रह सकता था। आखिर उसे भारत का बड़ा बाजार भी चाहिए।
पाकिस्तान: यह देश बुरी तरह फंसा हुआ है। अर्थ व्यवस्था इतनी गिर चुकी है कि वहां मज़ाक का विषय भी बना है। इमरान खान द्वारा वित्तमंत्री बदले जाने पर पत्रकार मुबाशिर ज़ेयदी ने टिप्पणी की है कि वित्त तो है नहीं तो वित्तमंत्री की क्या जरूरत है? भारत के साथ खूनी बैर ने उनकी अर्थ व्यवस्था का नाश कर दिया। दुनिया भी उनकी शरारतें बर्दाश्त करने को और तैयार नहीं। मुंबई पर 26/11 के हमले के बाद हम पर अंतर्राष्ट्रीय दबाव था कि उग्र प्रतिक्रिया मत करो। पुलवामा तथा बालाकोट के बाद तो हमारी प्रतिक्रिया का किसी ने दिखावटी विरोध भी नहीं किया। सऊदी अरब तथा यूएई भी हमारे साथ थे। ईरान के साथ पाकिस्तान के पहले ही अत्यंत खराब रिश्ते हैं। तेहरान में खुद इमरान खान ने माना कि पाकिस्तान की धरती से ईरान पर आतंकी हमले होते रहे हैं।
भारत की अर्थ व्यवस्था तीन ट्रिलियन डॉलर के नजदीक पहुंच चुकी है जो पाकिस्तान की अर्थ व्यवस्था से दस गुना बड़ी है। विशेषज्ञ सी राजामोहन लिखते हैं कि,’भारत के साथ सामरिक बराबरी की सनक के कारण पाकिस्तान सामाजिक तथा आर्थिक विकास के मामले में बांग्लादेश से भी पीछे हो गया है।’ कई मामले में नेपाल भी उनसे आगे निकल चुका है। बालाकोट ने बता दिया कि पाकिस्तान की परमाणु धौंस भी उसके काम नहीं आई। उसके लगातार तथा अनवरत राष्ट्रीय पतन के कारण पाकिस्तान हमारे बराबर का देश नहीं रहा।
क्या पाकिस्तान बदलेगा? तीन-चार दशक की नीति एकदम बदलना आसान नहीं होगा लेकिन उनके पास विकल्प भी नहीं है। अगर उस देश ने डूबने से बचना है तो आतंकी छवि बदलनी होगी। यह वह देश है जहां न केवल मसूद अजहर तथा हाफिस सईद है पर जहां वर्षों ओसामा बिन लादेन तथा मुल्ला उमर ने पनाह ली हुई थी। उनका रुपया इतिहास में सबसे निचले स्तर पर है। विदेशों से पैसा नहीं आ रहा। अफगानिस्तान को व्यापार चाबहार से ईरान की मार्फत शुरू हो चुका है। शिपिंग कंपनियां कराची से दूर रह रही हैं। उनकी वायुसेना के पास केवल चार दिन का ईंधन है। अगर वह नहीं संभले तो पाकिस्तान वैश्विक अर्थ व्यवस्था से बाहर भी हो सकता है। हकीकत है कि अपनी बड़ी सेना के बावजूद पाकिस्तान बिखराव के नजदीक पहुंच चुका है। इससे बचने के लिए ही इमरान खान बार-बार हमारे साथ वार्ता की पेशकश कर रहें हैं।
भारत यह तो साफ है कि पलड़ा पूरी तरह से हमारी तरफ झुक चुका है। पाकिस्तान और हमारा अब कोई मुकाबला नहीं रहा इसलिए हैरानी है कि हमारे चुनाव में वह आज भी मुद्दा है। एक उभर रही महाशक्ति के नेता अपने में आत्म विश्वास की कमी प्रदर्शित कर रहें हैं। बार-बार नेता पाकिस्तान का जिक्र करतें हैं। अब वरुण गांधी ने सपा-बसपा गठबंधन के उम्मीदवारों को ‘पाकिस्तान के आदमी’ कह दिया है। कितना अफसोस है कि जवाहरलाल नेहरू, फिरोज गांधी तथा इंदिरा गांधी की इस अंगूर की बेल पर अब कद्दू लटकने शुरू हो गए हैं! मसूद अजहर को आतंकी घोषित करवाने में अमेरिका की बड़ी भूमिका रहीं है। अमेरिका दुनिया को यह भी बताना चाहता था कि चाहे चीन एक महाशक्ति बन चुका है लेकिन वह अमेरिका के बराबर नहीं है। चीन की चुनौती की हवा अमेरिका ने एक झटके से निकाल दी। हमारे लिए भी संदेश है कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हमें अभी भी अमेरिकी समर्थन की जरूरत है। इसकी कीमत व्यापार तथा ईरान में चुकानी पड़ सकती है।
आगे क्या? बहुत कुछ अब हम पर निर्भर करता है। मसूद अजहर से पहले हाफिस सईद को भी अंतर्राष्ट्रीय आतंकी घोषित किया जा चुका है लेकिन वह वहां खुला हमें धमकियां देता घूम रहा है केवल उसका संगठन अब हमलों की जिम्मेवारी नहीं ले गया। इसलिए इमरान खान की सरकार तथा उनकी सेना पर जबरदस्त दबाव बनाए रखने की जरूरत है। हमें कई बार ऊंघने की बुरी बिमारी है। उनको कमजोर रग उनकी अर्थ व्यवस्था है इसे और लगातार दबाने की जरूरत है ताकि वहां के लोग अपनी सरकार से कह उठे कि आतंकी कारखाना बंद करो। अगर वह ऐसा नहीं करते तो इस बात का इंतजाम होना चाहिए कि इसका खामियाज़ा एफटीएएफ में उन्हें भुगतना पड़े और उन्हें आतंकवादी देश घोषित किया जाए।
अब वहां से खबरें छपवाई जा रही हैं कि इमरान खान तथा जनरल बाजवा देश की छवि सुधारने के लिए बहुत प्रयास कर रहे हैं। डॉन अखबार में लेखक मोईद युसफ लिखते हैं, “ मैं समझता हूं कि पाक की नागरिक सरकार तथा सेना के अधिकारी समझ गए हैं कि भारत के साथ पुरानी नीति पर चलना घाटे का सौदा है। दोनों में फासला इतना बढ़ रहा है कि पाकिस्तान भारत की श्रेणी से बाहर हो रहा है… इसका अर्थ है कि व्यवहारिक समाधान ढूंढने के लिए सकारात्मक प्रयास होना चाहिए… जिसमें आतंकवाद का मामला भी शामिल हो। ”आशा है कि उनकी सरकार अपने लोगों के ऐसे सियाने सुझावों पर काम करेगी, नहीं तो आगे जो होगा वह तो दीवार पर लिखा ही हुआ है।
मसूद : चीन, पाकिस्तान और भारत (Masood: China, Pakistan and India),