आज चुनाव परिणाम आ जाएंगे। जैसी चुनौतियां देश के आगे हैं हमें मज़बूत सरकार चाहिए। अर्थ व्यवस्था की हालत बहुत अ‘छी नहीं है मंदी के संकेत हैं। निर्यात गिर रहें हैं। अमेरिका तथा चीन के बीच ट्रेड वॉर शुरू हो चुकी है। अमेरिका तथा ईरान के बीच जो तनातनी है वह भी खतरनाक दिशा ले सकती है। खाड़ी क्षेत्र में लाखों भारतीय रहते हैं जो अरबों डॉलर देश को भेजते हैं। ऐसी नाजुक स्थिति में दिल्ली में कोई घपला सरकार घातक सिद्ध हो सकती है। पर यह अलग बात है। इस वक्त तो हम अपने इतिहास के सबसे बुरे चुनाव से गुज़र कर हटें हैं। यह एक बदतमीज़ और बेसुरा चुनाव था जहां सब नेता अपनी-अपनी मर्यादा की लक्ष्मण रेखा को लांघ गए थे। जिन बातों का आज के भारत से कोई ताल्लुक नहीं था को उछाला गया जिस पर शायर के यह शब्द याद आतें हैं,
नवाज, अहल-ए-सियासत की बात न पूछ
ये कब्र खोद कर मुर्दा तलाश करते हैं!
कोई गाली नहीं जिसका इस चुनाव में इस्तेमाल नहीं किया गया। ‘जल्लाद’, ‘हिटलर’, ‘चोर’, ‘दुर्योधन’, ‘पागल’, ‘गुंडा’ आदि संज्ञाए देश के प्रधानमंत्री के लिए इस्तेमाल की गई। वह असयंत महिला ममता बैनर्जी तो बदजुबानी की सभी हदें पार कर गईं। मोदी को जेल भेजने की बात तक कही। जब प्रधामंत्री ने तूफान फेनी के बारे बात करनी चाहिए तो यह घमंडी महिला फोन पर नहीं आई। राहुल गांधी कहते तो हैं कि उनके मन में नरेन्द्र मोदी के प्रति प्यार है लेकिन सारे देश में वह मोदी को ‘चोर-चोर’ कहते रहे जबकि इसका एक प्रमाण नहीं दिया। जब अखबार वालों ने उनसे उनके राफेल के बारे आरोप का प्रमाण मांगा तो राहुल ने मामला पी.चिदम्बरम तथा रणदीप सुर्जेवाला की तरफ खिसका दिया। नरेन्द्र मोदी ने भी अनावश्यक राजीव गांधी का मामला उछाल कर उन्हें ‘भ्रष्ट नंबर 1’ करार दिया। क्या जरूरत थी? हमारे संस्कार तो कहते हैं कि जो व्यक्ति नहीं रहा उसके बारे बुरा न कहा जाए और जो 30 वर्ष पहले हुआ उसमें अब किसे रुचि है?
नरेन्द्र मोदी भी इंसान हैं इसलिए रोज़ के झूठे आरोपों से परेशान लगते हैं पर वह देश के प्रधानमंत्री हैं। उनसे आशा है कि वह दंगल से उपर रहेंगे। प्रधानमंत्री का पद अपने साथ बहुत जिम्मेवारी लेकर आता है। उन्हें अपनी निजी शिकायतों को एक तरफ रख देश के सामने एक गरिमापूर्ण और गंभीर मिसाल कायम करनी होगी। पुराना किस्सा है। देश के पहले चुनाव के दौरान जवाहर लाल नेहरू पंजाब में थे। उन्हें बताया गया कि उनके बाद उनके धुर विरोधी जयप्रकाश नारायण वहां आ रहें हैं। जयप्रकाश नारायण की बखियां उधेड़ने की जगह देश के पहले प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में लोगों से कहा, “मैं जयप्रकाश जी से कई बातों में सहमत नहीं हूं लेकिन आप उन्हें सुने… वह एक शानदार व्यक्ति हैं… फिर अपना फैसला करें।”
यह स्टेटसमैनशिप है। जवाहर लाल नेहरू के यह कथन केवल उनकी शालीनता ही उनका आत्मविश्वास भी व्यक्त करते हैं। ऐसे लोग कहां गए? हमारी राजनीति में बहुत कुछ ऐसा है जो निम्न है, संकीर्ण है, बेमतलब है। सब कुछ शोर-शराबा है जिसमें जनता के मुद्दे लुप्त हो गए हैं। पंजाब केसरी दिल्ली के सुयोग्य संपादक अश्विनी कुमार ने सही लिखा है कि ‘चुनाव से बाहर होता मतदाता।’ 35 वर्ष की आयु के 65 प्रतिशत युवा वोटर है जिनका विकास, नौकरियों, अवसर आदि में रुचि है उनका इस दंगल से लेना-देना नहीं। मोदी सरकार का काम अच्छा है लेकिन प्रधानमंत्री भी विकास के मुद्दे से दूर रहे। पाकिस्तान एक दिवालिया पिछड़ा देश है जो अपने पतन के कगार पर खड़ा है लेकिन हमारे नेता पाकिस्तान-पाकिस्तान करते रहे। सैम पिट्रोडा ने 1984 के दंगों को यह कह कर रफा-दफा कर दिया कि ‘हुआ तो हुआ।’ इस कथन में अहंकार ही नहीं, क्रूरता भी छिपी हुई है।
लेकिन देश को सबसे बड़ा आघात तब पहुंचा जब भोपाल से भाजपा की उम्मीदवार प्रज्ञा ठाकुर ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के हत्यारे नत्थूराम गोडसे को ‘देश भक्त’ कह दिया। देश सन्न रह गया। इससे पहले प्रज्ञा ठाकुर, इन्हें मैं साध्वी नहीं कह सकता, ने मुंबई पर 26/11 के हमले में शहीद हुए हेमंत करकरे के बारे कहा था कि वह इसलिए मारे गए क्योंकि ‘मैंने उसे श्राप दिया था।’ पर राष्ट्रपिता को गाली देना तो बिलकुल अस्वीकार्य है। अगर आधुनिक भारत से बापू को निकाल दिया जाए तो हमारे पास बचता क्या है? जिस महात्मा के बारे एलबर्ट आईनस्टाईन ने कहा था, “आने वाली पीढ़ियों को मुश्किल से यह यकीन होगा कि हाड़-मास से बना ऐसा कोई व्यक्ति इस धरती पर चला था,” के हत्यारे को प्रज्ञा “देश भक्त था, है और रहेगा” कह रही है। दुनिया के हर बड़े शहर में गांधी की मूर्तियां लगाई गई हैं। मार्टिन लूथर किंग से लेकर बराक ओबामा तक असंख्य लोग उनसे प्रेरित हुए हैं। आजादी के बाद से ही दुनिया में भारत की ख्याति है कि इनके पास गांधी थे। हम अपनी गरीबी के बावजूद दुनिया के लिए शांति के प्रकाश स्तंभ थे क्योंकि यह गांधी की धरती है। प्रज्ञा के एक और साथी ने गांधी जी को राष्ट्रपिता कहने पर सवाल उठाया है। इस अज्ञानी को मालूम नहीं कि यह खिताब नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने दिया था। उन्हें ‘महात्मा’ सबसे पहले रविन्द्रनाथ टैगोर ने कहा था। क्या गांधी के साथ सुभाष और टैगोर को भी नकारना है? हमारे सारे स्वतंत्रता संग्राम पर प्रश्न चिन्ह लगाना है?
हर देश को इकट्ठा रखने के लिए कुछ प्रतीक होते हैं जिन्हें पावन माना जाता है। ठीक है कुछ लोगों को गांधी के विचारों से मतभेद हैं। ऐसा आभास मिलता है कि संघ परिवार में ऐसे बहुत से लोग हैं पर देश को आजादी गांधी के नेतृत्व में मिली थी। नेहरू और पटेल उनकी दो बाहें थीं। नेहरू-गांधी परिवार से मतभेद के कारण भाजपा जवाहर लाल नेहरू को बर्दाश्त नहीं कर रही और उनके योगदान को नकारा जा रहा है पर अब तो गांधी पर भी हमला हो रहा है। पहला सवाल तो यह ही है कि प्रज्ञा ठाकुर को टिकट ही क्यों दिया गया? वह ज़हरीली विचारधारा फैलाने की कोशिश कर रही है। प्रधानमंत्री मोदी का अवश्य कहना है कि वह दिल से प्रज्ञा ठाकुर को माफ नहीं कर सकते लेकिन अभी तक उनके खिलाफ कार्रवाई भी तो नहीं हुई। 10 दिन जवाब देने के लिए दिए गए हैं अर्थात आशा है कि तब तक मामला ठंडा पड़ जाएगा लेकिन उस पार्टी में जो देश को आगे ले जाना चाहती है, प्रज्ञा ठाकुर जैसे जहरीले कट्टरवाद की जगह नहीं होनी चाहिए।
पश्चिम बंगाल में हिंसा तथा प्रज्ञा ठाकुर जैसों के बोल हमें अनावश्यक विदेशी आलोचना का शिकार बना रहें हैं। ममता बैनर्जी समझती हैं कि वह हिंसा के द्वारा भाजपा के प्रसार को वहां रोक सकेगी लेकिन वह अपना अनुभव भूलती है जब कम्युनिस्टों की हिंसा उन्हें रोक नहीं सकी। पश्चिम बंगाल में जो हो रहा है उसके बारे वहां के महान सपूत रविन्द्रनाथ टैगोर के यह शब्द याद आते हैं, “मैं अपने देश की तरफ देखता हूं कि यहां उ‘च विकसित तथा विवेकशील लोग बर्बरता तथा अव्यवस्था की तरफ बढ़ रहे हैं।” अफसोस!
बहरहाल चुनाव खत्म हुआ। नए प्रधानमंत्री की बहुत जिम्मेवारी होगी कि चुनाव अभियान की कटुता को एक तरफ रख इन चुनावों ने जो जख्म दिए हैं उन पर मरहम लगाएं। लोकतंत्र की फिर से मुरम्मत करनी होगी। दुनिया की नजरें हम पर हैं। विदेशी प्रैस हमारे खिलाफ हो रहा है पर यह उनकी पुरानी आदत है। दशकों से वह हमारा फातहा पढ़ रहे हैं इन्हें गलत साबित करना हमारा काम है। घर के अंदर तंग नजरियां देश के बाहर हमारी छवि को प्रभावित करेगा। हमारी समृद्ध संस्कृति है, संस्कार हैं। दुनिया यह न समझ बैठे कि यह एक बदतमीज़ अशांत राष्ट्र है जहां प्रज्ञा ठाकुर जैसे भरे हुए हैं।
सबसे बदतमीज़ चुनाव (Most Abusive Election),