ऐसी लहर मैंने पहली बार तब देखी थी जब 1977 में एमरजैंसी हटाए जाने के बाद लोगों ने ‘गाय और बछड़ा’ और बछड़ा जो उस समय कांग्रेस का चुनाव चिन्ह था और जिसका मतलब लोगों ने इंदिरा गांधी तथा संजय गांधी से लिया था, को पराजित किया था। यह दूसरी ऐसी लहर मैंने देखी है लेकिन इन दोनों लहरों में अंतर है। 1977 की लहर इंदिरा गांधी की ज्यादतियों के खिलाफ थी जबकि 2019 में यह जोश से भरी आशावादी लहर नरेन्द्र मोदी तथा भाजपा के पक्ष में है। लोगों ने पांच वर्ष नरेन्द्र मोदी का काम देखा है। कुछ कमजोरियां रही लेकिन आम राय है कि बंदा खरा है, ईमानदार है, मेहनती है और इरादा सही है। यह भी सच्चाई है कि यह जीत भाजपा की इतनी नहीं जितनी नरेन्द्र मोदी की है। ठीक है अमित शाह के नेतृत्व में संगठन ने बहुत बढ़िया काम किया है लेकिन संगठन भी ऐसा प्रदर्शन इसलिए दिखा सका क्योंकि आगे चेहरा नरेन्द्र मोदी का था। चुनाव अभियान के केन्द्र में नरेन्द्र मोदी थे। ऐसा आभास मिलता था कि सभी 543 सीटों पर खुद नरेन्द्र मोदी लड़ रहें हैं। नरेन्द्र मोदी इस चुनाव को प्रैसिडैंशल बनाने में सफल रहे और क्योंकि सामने घपला था इसलिए भी उन्हें यह शानदार जीत मिली।
इस चुनाव ने नरेन्द्र मोदी को इंदिरा गांधी के बराबर पहुंचा दिया। एक और चुनावी जीत और वह जवाहर लाल नेहरू के बराबर पहुंच जाएंगे। लगभग एक दर्जन प्रदेशों में भाजपा का मत 50 प्रतिशत से उपर चला गया जबकि डेढ़ दर्जन प्रदेश है जहां कांग्रेस शून्य को तोड़ नहीं सकी। विपक्ष की अस्तव्यस्ता देख लोगों ने एक करिश्माई व्यक्तित्व को पसंद किया है। उतर प्रदेश में सपा+बसपा आंकड़ा लगता तो अच्छा था पर राजनीति में सदैव 2+2, 4 नहीं होते। मुलायम सिंह यादव तथा लालू प्रसाद यादव परिवारों का हश्र बताता है कि मंडल आयोग से उत्पन्न राजनीति अंतिम सांस ले रही है। मायावती तथा ममता बैनर्जी की हसरतों पर भी पानी फिर गया है।
इस चुनाव के बाद जिसे मोदी ने ‘खान मार्केट गैंग’ कहा है, सदमें में है। उन्हें समझ नहीं आ रही कि यह हो कैसे गया है? टीवी चैनलों पर भी कई चेहरे अपनी दुख भरी दास्तां कह रहें हैं। इसका बड़ा कारण है कि अंग्रेजी बोलने तथा अंग्रेजी में सोचने वाला यह वर्ग देश और देश की जनता से कटा हुआ है। एक प्रकार कहा जा सकता है कि भारत ने इंडिया को पराजित कर दिया। यह भी संदेश है कि जो व्यवस्था 2014 से पहले देश को चलाती रही, इनमें राजनेता भी हैं, बड़े अफसर भी हैं, कई मीडिया मुगल भी हैं उन सबको ‘डायनेस्टी’ साथ इतिहास के कूड़ादान में फैंक दिया गया है। यह वह लोग हैं जो पिछले पांच वर्षों से नरेन्द्र मोदी को निशाना बना रहे थे। हौवा खड़ा किया गया कि अगर मोदी दोबारा आ गए तो लोकतंत्र तबाह हो जाएगा, तानाशाही आ जाएगी, संविधान खत्म हो जाएगा। इन सबका उत्तर नरेन्द्र मोदी ने संसद भवन के सैंट्रल हाल में संविधान के आगे नतमस्तक हो दे दिया।
कन्हैया कुमार को सर पर उठाया गया। पुलिस के पास ‘भारत तेरे टुकड़े-टुकड़े होंगे’ के जो वीडियो हैं उन पर सवाल उठाए गए। हो सकता है कि कैन्हया कुमार ने उस दिन यह नारा न लगाया हो लेकिन संसद पर हमले के अपराधी अफजल गुरु की फांसी के विरोध में कार्यक्रम उसकी अध्यक्षता में हुआ था। उसी ने उन लोगों को बुलाया था जिन्होंने नारे लगाए लेकिन लैफ्ट-लिबरलज़ ने उसे हीरो बना लिया। कम्युनिस्ट पार्टी ने बेगुसराए से उसे उम्मीदवार बना दिया। कुछ बी-ग्रेड फिल्म स्टार तथा लेफ्ट बुद्धिजीवी प्रचार के लिए भी पहुंचे पर लोगों ने 360,000 वोटों से रद्द कर दिया। वामदल खुद भी खत्म होने के कगार पर है केवल आधा दर्जन सीटें मिली हैं और पश्चिम बंगाल से एक भी सीट नहीं मिली। लैफ्ट देश की मुख्यधारा से कटा हुआ है और वह विदेशी विचारधारा थोपने की कोशिश करते रहे। अपने को पुनर्जीवित करने के लिए उनके पास कोई नए विचार नहीं और 2019 के जवान तथा महत्वाकांक्षी भारत के लिए उनका कोई आकर्षण नहीं।
यह देश की राजनीति तथा व्यवस्था में नेहरू युग का अंत है। जो अंग्रेजी बोलने वाला इलीट वर्ग है जो अपनी प्ररेणा पश्चिम तथा पश्चिमी मीडिया से लेता है के प्रभाव का अंत हो रहा है। इनके लिए न्यूयार्क टाईम्स या टाईम मैगज़ीन या गार्डियन जैसे अखबारों या पत्रिकाओं में भारत के खिलाफ लिखा एक लेख किसी प्रलय से कम नहीं। न्यूयार्क टाईम्स ने लिखा है कि ‘मोदी हिन्दू राष्ट्रवाद की राजनीति के ब्रैंड हैं’ लेकिन इस देश में इस वर्ग और न्यूयार्क टाईम्स की सुनता कौन है? यहां तो लोगों को वह नेता पसंद है जो कहता है कि ‘दुश्मन के घर में घुस कर मारा।’ पहली बार हिन्दुत्व तथा बलशाली राष्ट्रवाद एक व्यक्ति में इकट्ठे हो गए। पुलवामा के बाद बालाकोट हमले ने नरेन्द्र मोदी की छवि को और मज़बूत कर दिया और जो मूर्ख विपक्षी नेता इस हमले पर सवाल करते रहे उन्होंने मोदी का ही फायदा किया। नवजोत सिंह सिद्धू ने तो बहते हुए कह दिया कि कितने पेड़ गिराए थे? देश अभी भी धू-धू करते हुए जलते मुंबई के ताजमहल होटल की घटना को नहीं भूला जबकि पुलवामा के बाद मोदी ने अपने विमानों को दूर तक पाकिस्तान में घुसने की इज़ाजत दे दी।
राहुल गांधी गली-गली ‘चोर-चोर’ कहते घूमते रहे। मैंने पहले भी लिखा था कि बिना प्रमाण आरोप लगाना उलटा पड़ सकता है। अमेठी में राहुल की हार जनता की बहुत बड़ी नामंजूरी है। पार्टी अब अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है क्योंकि शिखर पर तनाव, बिखराव और टकराव है। ममता बैनर्जी शिष्टाचार की सभी सीमाएं लांघ गई और अपनी बदतमीज़ी के कारण उन्होंने अपने प्रदेश में बराबर राजनीतिक शक्ति खड़ी कर ली।
मैंने एक मित्र जो पंजाब में उच्च पुलिस अधिकारी रहे चुके हैं से पूछा कि आप क्या चाहेंगे कि नरेन्द्र मोदी किस बात को प्राथमिकता दे? मेरा विचार था कि वह जॉब्स कहेंगे या कृषि में सुधार कहेंगे या पाकिस्तान कहेंगे लेकिन उनका तपाक उतर था, राम मंदिर! जिन मुस्लिम तथा दूसरे नेताओं ने अभी तक ‘वहां’ राम मंदिर नहीं बनने दिया उन्होंने भाजपा के प्रसार में बहुत सहयोग दिया। कथित लिबरल उस वक्त भी चुप रहे जब कश्मीरी पंडितों को वहां से निकाला गया। किसी ने तब अवार्ड वापिसी नहीं की थी। सबरीमाला मंदिर के मामले में हिन्दुओं की भावना की उपेक्षा कर केरल की मार्कसी सरकार ने मंदिर में आस्था रखने वाले हिन्दुओं को खुद भाजपा के हवाले कर दिया। इस जीत में मोदी सरकार द्वारा लोक कल्याण की जो योजनाएं शुरू की गई हैं इनकी भी महत्वपूर्ण भूमिका है। 115 जिले जिन्हें नीति आयोग ने गरीब करार दिया है में भाजपा ने 60 प्रतिशत सीटें जीती हैं।
अब जैसे कहा जाता है, गेंद नरेन्द्र मोदी के पाले में है। लोगों के दिलों तथा दिमाग पर उनका पूरा कब्ज़ा है। लोगों को उनमेें उम्मीद नज़र आती है, भरोसा है। फिल्म गली ब्वॉय में मुराद (रणबीर सिंह) रात को मुंबई की सड़कों पर घूमते हुए लाल पेंट से दीवार पर लिखता है, ‘रोटी कपड़ा और मकान+इंटरनैट।’ इस पीढ़ी की बहुत आशाएं हैं इन्हें पूरा करना बड़ी चुनौती होगी। प्रधानमंत्री मोदी ने सही शुरूआत की है कि ‘सबका साथ, सबका विकास तथा सबका विश्वास।’ यह संदेश नीचे तक पहुंचना चाहिए। उनके कथनों में यह अहसास झलकता है कि देश की तरक्की के लिए देश के अंदर शांति, भाईचारा तथा सद्भावना चाहिए। नरेन्द्र मोदी को उनकी जोश भरी जीत पर हार्दिक शुभकामनाएं तथा बधाई! 2014 की उनकी जीत मनमोहन सिंह सरकार की गफलत से बनी थी जबकि 2019 की जीत के मालिक वह खुद हैं और आज जबकि मोदीजी की दूसरी सरकार शपथ ले रही है वह संतोष से कह सकते हैं कि,
अपना ज़माना आप बनाते हैं अहले दिल
हम वो नहीं जिन्हें ज़माना बना गया!