
तेलंगाना के वरांगला जिले से दहलाने वाला समाचार है कि 9 महीने की बच्ची से बलात्कार करने का प्रयास किया गया। जब वह रोने लगी तो 25 वर्ष के बलात्कारी ने उसका मुंह दबा कर उसकी हत्या कर दी। आरोपी पकड़ा गया लेकिन सवाल तो है कि हमारा समाज कैसे-कैसे वेहशी पैदा कर रहें हैं जो कुछ महीने की बच्ची पर भी यौन हमला करने को तैयार है? और यह पहला ऐसा मामला नहीं है। कई ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं जहां कुछ महीने या कुछ सालों की बच्ची बलात्कार का शिकार हो चुकी हैं। बलात्कार दुनिया भर में होते हैं यहां तक कि जिन देशों में वेश्यावृत्ति वैध है वहां भी होते हैं, लेकिन जैसी दरिंदगी तेलंगाना के इस समाचार से पता चलती है वह बाहर देखने को नहीं मिलती।
पंजाब में बठिंडा से समाचार है कि आठवीं कक्षा के 13 वर्ष के लड़के ने 4 वर्ष की नर्सरी की छात्रा के साथ बलात्कार किया। बच्ची बाहर खेल रही थी और यह 13 वर्ष का लडक़ा उसे फुसला कर अंदर ले गया और उससे जबरदस्ती की। 13 वर्ष की क्या आयु होती है? इस मासूम आयु में इस लड़के ने ऐसी हरकत कैसे कर दी? कहां से सीखा? अभी तो यह अव्यस्क है आगे चल कर वह कैसा कामुक दरिंदा बनेगा? मां-बाप ने उसे घर में क्या सिखाया? कठुआ के कुख्यात बलात्कार मामले में कुछ लोगों ने मिल कर बकरवाल समुदाय की 8 वर्षीय बच्ची को अगवा कर उसके साथ बलात्कार कर उसकी हत्या कर दी। और भी शर्मनाक है कि ऐसा एक मंदिर के कमरे में किया गया। यह लोग बकरवाल समुदाय को जम्मू से भगाना चाहते थे। मामला राजनीतिक रंगत ले गया और अफसोस की बात है कि भाजपा के कुछ नेताओं ने अपराधियों को समर्थन दिया। समर्थन के प्रदर्शन में तिरंगा लहराया गया। अब तो दोषियों को सजा मिल चुकी है पर यह कैसे लोग हैं जो बलात्कार को भी साम्प्रदायिक रंगत देने को तैयार है? बलात्कारी केवल बलात्कारी है उसकी राजनीतिक वफादारी कहीं भी हो और बच्ची केवल बच्ची है उसका धर्म चाहे कुछ भी हो। इस शर्मनाक कांड में तीन पुलिस कर्मी शामिल थे जिन्हें 5-5 साल की सजा सुनाई गई। तकलीफ और यह है कि समाज का एक वर्ग इतना गिर गया है कि उनकी सहानुभूति उस 8 वर्ष की लडक़ी के साथ नहीं थी बल्कि उनके साथ थी जिन्होंने उस पर अत्याचार किए थे।
इस मामले में पुलिस की संलिप्तता और अधिकतर मामलों में पुलिस की निष्क्रियता भी बढ़ते बलात्कारों का बड़ा कारण है। अगर पुलिस केस को सही तरीके से तैयार न करे तो अदालत भी कुछ नहीं कर सकती। नैशनल क्राईम रिकार्डस ब्यूरो के अनुसार बच्चों से बलात्कार के मामलों में केवल 28 प्रतिशत को ही सजा दी गई। इसका अर्थ है कि कानून बलात्कार की बढ़ती घटनाओं से निबटने में असफल रह रहा है। चाहे दिल्ली के निर्भया कांड के बाद कानून को सख्त किया गया पर इसका बलात्कार की घटनाओं पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा। अलीगढ़ से समाचार है कि एक 2 वर्ष की बच्ची का अंग-भंग शव एक कूड़े के ढेर से बरामद हुआ है। जो अपराधी पकड़े गए इनमें एक वह व्यक्ति भी है जो पहले अपनी बेटी से बलात्कार के आरोप में पकड़ा गया था और अब जमानत पर था। ऐसे जानवर को जमानत कैसे और क्यों मिल गई? जिस व्यक्ति का ऐसे अपराध करने का इतिहास है उसे दोबारा ऐसा करने के लिए खुला क्यों छोड़ दिया गया?
नैशनल क्राईम रिकार्डस ब्यूरो के अनुसार नाबालिगों के साथ अपराध जो 2012 में 8500 था 2016 में बढ़ कर 20,000 हो गया। इनमें 40 प्रतिशत वह बलात्कार थे जो 15 साल से कम आयु की लड़कियों के साथ किया गया। कानून यहां कमज़ोर रहा। देश में रोज़ाना 100 से उपर बलात्कार के मामले दर्ज हो रहे हैं। जो मामले लोकलाज के कारण बताए नहीं जाते वह अलग हैं। यह उल्लेखनीय है कि निर्भया मामले में सबसे क्रूर नाबालिग लडक़ा था। यह सब क्या दर्शाता है? कि हमारे सामाजिक मूल्यों में इतनी गिरावट हो रही है कि एक बड़ा वर्ग गंभीर रूप से बीमार है।
हम चाहे अपने को बहुत धार्मिक समाज समझे पर कहीं बहुत कमजोरी उजागर हो रही है। हमारे संस्कार खत्म हो रहे हैं। हमारे मूल्य खोखले हो रहे हैं। हमारे तो कई प्रमुख और कथित धार्मिक नेता जैसे आसा राम बापू भी बलात्कार के मामले में सज़ा भुगत रहे हैं। समाज में एक वर्ग ऐसा भी है जो बलात्कार को मामूली अपराध समझता है। बलात्कार की घटनाओं के बारे मुलायम सिंह यादव की निर्लज्ज टिप्पणी आज तक गूंज रही है कि ”लड़के हैं। लडक़ों से गलती हो जाती है।“ यह लड़के एक जिंदगी तबाह कर रहें हैं और यह नेता इसे मामूली गलती करार दे रहे हैं? कुछ शर्म नहीं रही? ऐेसे लोग तो बलात्कार की खुली इज़ाजत दे रहे हैं।
समाज में अपराध बढ़ता जा रहा है। नशे का खुला सेवन स्थिति को और विकराल बना रहा है। नवजात बच्चियों के साथ ऐसी नृशंसता तो कहीं भी देखने को नहीं मिलती। इसमें इंटरनैट और स्मार्ट फोन का भी बड़ा हाथ है जो वह दिखा रहें है जो हमारे समय में वर्जित थी। इससे उत्तेजना पैदा हो रही है। मां-बाप आधुनिक गैजट को रोकने में बेबस है लेकिन असली बात और है। असली बात है कि परिवार के अंदर सही शिक्षा नहीं दी जाती। लडक़ों को यह नही समझाया जाता कि उन्हें महिलाओं या लड़कियों के साथ वैसे बर्ताव करना है और उनकी कैसे इज्जत करनी है। और अगर देखा जाए तो कई परिवार के अंदर भी बच्चियों से ज्यादती होती है तो स्पष्ट होता है कि शर्म का हमारा प्याला छलक रहा है।
मनोवैज्ञानिक बताते हैं कि अधिकतर बलात्कारी रेप को अपनी मर्दानगी से जोड़ते हैं। एक महिला से जोर-जबरदस्ती कर वह अपनी ताकत का प्रदर्शन करते हैं। निर्भया कांड पर बनाई गई बीबीसी की दस्तावेज़ी फिल्म में हिस्सा लेने वाली मधुमिता पांडेय जिसने तिहार जेल में बंद बलात्कार के 122 अपराधियों से मुलाकात की थी का कहना है कि अधिकतर बलात्कारियों की महिलाओं के बारे बहुत तुच्छ राय थी और उन्हें कोई पछतावा नहीं था। जिस मुकेश सिंह ने वह बस चलाई थी जिसमे निर्भया से बलात्कार हुआ था का कहना था अगर उस लडक़ी ने उनका इस तरह प्रतिरोध न किया होता तो वह और उसके साथ उसकी इस तरह निर्दयता से पिटाई न करते।
अर्थात गलती लडक़ी की थी! प्रतिरोध करने की उसकी की जुर्रत कैसे हुई? ऐसे लोग महिलाओं को फैंकने योग्य चीज़ समझते हैं। इसी कारण जो उनका प्रतिरोध करता है उसके साथ वह विशेष निर्दयता प्रदर्शित करते हैं। आखिर उनकी मर्दानगी को चुनौती दी गई है। भारतीय मर्दों का एक वर्ग चाहे उसकी जात, धर्म, भाषा, प्रदेश कुछ भी हो का महिलाओं के प्रति रवैया घोर अत्याचारी है। उसका कामुक पुरुषत्व घातक बनता जा रहा है। कानून इन्हें रोक नहीं सका। कई परिवार परवाह नहीं करते। अमेरिका के अलबामा प्रांत में बच्चों का यौन शोषण करने वाले को नपुंसक बनाया जाएगा। वहां के गवर्नर ने ‘कैमिकल कैस्ट्रेशन’ अर्थात ‘रसायनिक नपुंसकता’ विधेयक पर हस्ताक्षर कर दिए हैं। कानून के अनुसार अपराधी को हिरासत से रिहा करने से पहले या पैरोल देने से पहले एक रिसायन दवा कर इंजैक्शन लगा दिया जाएगा जिससे वह नपुंसक बन जाएगा। अमेरिका के कुछ और प्रांतों में भी यह व्यवस्था है। दक्षिण कोरिया तथा इंडोनीशिया में भी बाल यौन शोषण के मामले में नपुंसक बनाने की सजा है। क्योंकि बाकी सब प्रयास यहां असफल हो चुके हैं, सजा से कोई डरता नहीं, तो क्या समय नहीं आ गया कि भारत में सभी बलात्कारों, केवल बच्चियों के साथ ही नहीं, की सजा अपराधी को नपुंसक बनाना कर दी जाए? मुझे अहसास है कि इसके कई नैतिक, सामाजिक तथा कानूनी पहलू हैं पर देखा जाए कि अगर उस अपराधी को यह सजा पहले दे दी जाती तो वह अलीगढ़ में दोबारा बलात्कार नहीं करता है। अगर सारा मामला मर्दानगी के प्रदर्शन का ही है तो क्या समय नहीं आ गया कि इस जहरीली मर्दानगी को ही छीन लिया जाए ताकि और नृशंसता का शिकार होने से बच जाएं।
रेप: क्या नपुंसक बनाना समाधान है? (Rape: Should Culprits Be Made Impotent?),