शेक्सपीयर ने एक जगह लिखा है कि “सच्चे प्रेम का रास्ता कभी भी समतल नहीं रहा।“ अगर आज भारत और अमेरिका के रिश्तों पर नज़र दौड़ाएं तो कहा जा सकता है कि इन रिश्तों का रास्ता भी सहज नहीं है। विशेष तौर पर जब से डॉनल्ड ट्रम्प राष्ट्रपति बने हैं कहा ही नहीं जा सकता कि अगले क्षण क्या होने वाला है? उन पर तो यह मुहावरा बहुत जचता है कि पल में तोला पल में माशा! और यह केवल हमारे साथ ही नहीं हो रहा। कैनेडा, जापान, मैक्सिको, यूरेपियन यूनियन जैसे अमेरिका के मित्र सब ट्रम्प की सनक के शिकार हो चुके हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति तो ईरान को नेस्तोनाबूत करने की धमकी दे चुके हैं लेकिन कुछ ही दिनों के बाद ट्रम्प ने कह दिया कि अमेरिका युद्ध नहीं चाहता। इसे कहते हैं कि ‘कुछ न समझे खुदा करे कोई’ पालिसी! लेकिन वह कैसा शख्स है जो ईरान को मिटाने की धमकी दे रहा है? क्या ईरान मिटाया जा सकता है? और अगर अमेरिका और ईरान में युद्ध शुरू हो गया जो अमेरिका जीत तो जाएगा पर इसका दुनिया पर क्या प्रभाव पड़ेगा? खाड़ी के देश भारी मात्रा में तेल का उत्पादन करते हैं अगर वहां युद्ध शुरू हो गया तो विश्व तबाह हो जाएगा। अमेरिका भी अछूता नहीं रहेगा।
दुर्भाग्यवश अब ट्रम्प भारत के साथ रिश्तों में अस्थिरता खड़ी कर रहें हैं। इस वक्त चीन तथा पाकिस्तान से अधिक भारत को ट्रम्प से चुनौती मिल रही है। चुनौती केवल हमारी आर्थिकता को ही नहीं, चुनौती हमारी सामरिक स्वायत्तता को भी है क्योंकि जिस तरह का दबाव अमेरिका हम पर डाल रहा है उससे तो यह प्रभाव मिलता है कि वह चाहते हैं कि विदेश नीति में निर्णय लेने की ताकत ही हम से छिन जाए। अमेरिका नहीं चाहता कि हम ईरान से तेल खरीदें। चीन की विशाल आईटी कंपनी हुआवेई पर अमेरिका ने प्रतिबंध लगा दिया है। अमेरिका चाहता है कि भारत में 5-जी का बाज़ार हुआवेई के लिए न खोला जाए और न ही अमेरिका चाहता है कि रुस से भारत एस-400 एंटी-मिसाईल प्रणाली खरीदे जो भारत अपनी रक्षा के लिए अत्यावश्यक समझता है। अर्थात भारत ईरान, चीन और रुस तीनों देशों के साथ रिश्ते बिगाड़ कर बैठ जाए।
हाल ही में अमेरिका के विदेशमंत्री माईक पोंपियो भारत में थे। उनके साथ अपने संयुक्त पत्रकार सम्मेलन में विदेशमंत्री जयशंकर ने जो कहा वह महत्वपूर्ण है कि “हमारे अनेक देशों के साथ अनेक रिश्ते हैं। कईयों का बहुत महत्व है तो कईयों का इतिहास है। हम वह करेंगे जो हमारे राष्ट्रीय हित में होगा.. सामरिक सांझेदारी का अर्थ है कि हर देश दूसरे के राष्ट्रीय हित को समझे और उसकी कदर करे।“ लगातार बढ़ते अमेरिकी दबाव से तंग आकर विदेशमंत्री उनके आगे हमारे ‘राष्ट्रीय हित’ की लाल रेखा खींच रहे थे। भारत विशेष तौर पर इस बात से क्षुब्ध है कि दबाव डाल ईरान से तेल आयात बंद करवा दिया गया है। ईरान से हमारा 11 प्रतिशत तेल आता था जो सस्ता भी था। इसी के साथ अमेरिका को बता दिया गया कि रुस के साथ एस-400 खरीदने का सौदा रद्द होने वाला नहीं चाहे अमेरिका ने धमकी दी है कि वह तब प्रतिबंध लगा देगा।
डॉनल्ड ट्रम्प के राष्ट्रपति बनने का हमें फायदा यह हुआ कि उन्होंने चीन के उत्थान को रोक दिया है। चीन के साथ व्यापार युद्ध शुरू कर उन्होंने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुश्किलें बहुत बढ़ा दी हैं। पोंपियो ने भी कहा है कि चीन की अमेरिका के लिए चुनौती रुस और ईरान से बड़ी है। हमें भी चीन से चुनौती है लेकिन भारत और चीन अपना रिश्ता संभाल कर चल रहे हैं। चीन हमारा बड़ा पड़ोसी है हम उनसे दुश्मनी मोल नहीं ले सकते पर यह हमारे लिए मौका भी है कि चीन से हुआवेई को समर्थन देने के लिए सौदेबाजी की जाए कि चीन पाकिस्तान का अंधा समर्थन बंद कर दे। अमेरिका के प्रतिबंधों के बाद चीन को और बाजार चाहिए। भारत विकल्प हो सकता है।
पिछले साल अमेरिका ने भारतीय आयात पर शुल्क बढ़ा दिया था। अमेरिका ने भारत को सामान्य तरजीह व्यवस्था (जीएसपी) के तहत दी जा रही रियायतें भी खत्म कर दी थी। इस पर परेशान हो 8 बार टालने के बाद भारत ने भी अमेरिका से 29 आयात पर शुल्क बढ़ा दिया है। अमेरिका ने जब आपत्ति की तो भारत ने जवाब दिया कि भारत के लोग भी बेहतर जीवन की अपेक्षा करते हैं लेकिन इस पर ट्रम्प भडक़ उठे हैं और ओसाका में मोदी के साथ मुलाकात से दो घंटे पहले ट्वीट कर कह दिया कि यह अस्वीकार्य है। अर्थात चीन के बाद भारत के साथ अमेरिका के तल्ख व्यापार युद्ध की संभावना बन रही थी जिसकी परछाईं मोदी-ट्रम्प मुलाकात पर नजर आई।
उस मुलाकात के मेज़बान ट्रम्प थे और प्रोटोकॉल के अनुसार मेजबान पहले बोलता है लेकिन नरेन्द्र मोदी ने कहा कि वह पहले अपनी बात रखना चाहेंगे। स्पष्ट था कि दो घंटे पहले ट्रम्प का ट्वीट उन्हें परेशान कर रहा था। तब मोदी ने अपना एजंडा स्पष्ट कर दिया, ईरान, 5-जी, आपसी संबंध और सैनिक रिश्ते। सैनिक रिश्तों की बात उठा मोदी कुछ बातें स्पष्ट कर रहे थे। अगर आप हिन्द-प्रशांत महासागर में सामरिक सहयोग चाहते हो और अगर आप चाहते हो कि भारत आपसे सैनिक सामान खरीदता रहे तो आपको भी हमारी चिंताओं का ध्यान रखना होगा। बैठक में नरेन्द्र मोदी की बॉडी लैंग्वेज भी कह रही थी कि वह रिश्तों की दिशा और ट्रम्प के व्यवहार से घोर अप्रसन्न हैं। इस बार कोई जप्फी भी नहीं पड़ी। यह बात शायद ट्रम्प भी समझ गए और अचानक उनका सुर बदल गया। उन्होंने मोदी को ‘दोस्त’ कहा और कहा कि ‘भारत और अमेरिका अभी जितने करीब हैं उतने इतिहास में कभी नहीं रहे।‘
दोनों देशों के बीच तलखी भरा जो माहौल है उसमें ट्रम्प की बात पर कौन विश्वास करेगा? अमेरिका हमारा सामरिक साथ चाहता है लेकिन व्यापार के मामले में दबाना चाहता है। भारतीय व्यवसायियों को मिल रहे ॥ H1B वीज़ा पर भी तलवार लटका दी गई है। भारत समझता था कि अमेरिका का इस्तेमाल वह चीन के साथ संतुलन कायम करने के लिए कर सकेगा पर जैसे सामरिक विशेषज्ञ एश्ले जे टैलिस ने भी लिखा है, “ट्रम्प प्रशासन द्वारा भारत को निशाना बनाने से शंका और प्रबल होगी कि चीन के साथ संतुलन बनाने में अमेरिका कितना विश्वसनीय साथी हो सकता है।“ हमारी पहली प्राथमिकता अपनी आर्थिक तरक्की और अपने लोगों का विकास है। इस तरक्की के लिए हमें अच्छा बाहरी माहौल चाहिए लेकिन ट्रम्प द्वारा वैश्विक अस्थिरता का जो दौर शुरू किया है इसमें यह कठिन काम हो सकता है। एक साम्राज्यवादी ताकत की तरह बर्ताव करते हुए ट्रम्प एक नई व्यवस्था कायम करना चाहते हैं जिसके बारे किसी को जानकारी नहीं, शायद उन्हें भी नहीं। ट्रम्प के ज़हन में यह बात घर कर गई है कि कई देश अपने हित के लिए अमेरिका का इस्तेमाल करते रहे हैं वह इसे सही करना चाहते हैं। भारत भी इस सूची में शामिल लगता है।
यह नहीं कि हम विकल्पहीन हैं। ओसाका में जी-20 देशों की बैठक के दौरान नरेन्द्र मोदी एकमात्र नेता थे जिन्होंने एक तरफ जापान-भारत-अमेरिका के शीर्ष नेताओं की बैठक में हिस्सा लिया तो दूसरी बैठक रुस-चीन-भारत के शीर्ष नेताओं की बैठक में हिस्सा लिया। अर्थात दोनों गुटों को बता दिया कि हमें भी खेल खेलना आता है और विश्व की पांचवीं अर्थ व्यवस्था को दबाया नहीं जा सकता लेकिन इसके बावजूद यह तो स्पष्ट हो कि डॉनल्ड ट्रम्प का व्यक्तित्व ऐसा है कि यह मालूम नहीं कि कल वह क्या करेंगे। हमारे कूटनीतिज्ञों के लिए यह बड़ी चुनौती है कि वाशिंगटन से मिल रहे झटकों से देश को कैसे बचाया जाए और अमेरिका के साथ रिश्ते कैसे समतल रखें जाएं। यह आसान काम नहीं होगा।
भारत-अमेरिका: झटके खाता रिश्ता (Indo-America:Uncertain Friends),