प्रतिभा-मुक्त पंजाब (Talent Flees Punjab)

आजकल कालेजों में एडमिशन का समय है पर पंजाब में हर प्रिंसीपल चाहे वह इंजीनियरिंग कालेज का हो या डिग्री कालेज का, का मुंह लटका हुआ है और चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ नज़र आ रही हैं क्योंकि एडमिशन में भारी गिरावट है। भारी संख्या में छात्र-छात्राएं स्कूल पूरा करने के बाद विदेश विशेष तौर पर कैनेडा, जा रहे हैं। हालत यह बन गई है कि विद्यार्थियों की कमी को पूरा करने के लिए इंजीनियरिंग कालेज बीबीए, बी कॉम तथा बीसीए जैसे कोर्स शुरू कर रहे हैं। बहुत से कालेजों की हालत खस्ता हो रही है और कईयों को तो शायद बंद ही करना पड़े क्योंकि प्रवेश में आघात पहुंचाने वाली गिरावट है। वैसे तो देश भर से छात्र-छात्राएं विदेश जाने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन पंजाब में तो पलायन की बाढ़ आ गई है। प्रतिभा का इतना पलायन हो रहा है कि एक प्रतिष्ठित स्कूल की प्रिंसीपल ने मुझे बताया कि बारहवीं के उनके 20 टॉपर्स में से 18 बाहर, विशेष तौर पर कैनेडा, जा रहे हैं।

पंजाबियों में विदेश की ललक सदा से है। विदेश में बसे हुए पंजाबियों द्वारा भेजे पैसे से गांवों में बने बड़े-बड़े संगमरमर के मकानों को देख कर हर कोई अपने बच्चे को बाहर  ‘सैटल’  करना चाहता है लेकिन इस पलायन का स्वरूप भी बदल गया है। पहली लहर इंगलैंड और अमेरिका गई थी जिसमें अधिकतर लेबर क्लास थी। अब उनकी दूसरी पीढ़ी भी वहां जवान हो चुकी है। दूसरी लहर मध्यपूर्व विशेष तौर पर सऊदी अरब तथा दुबई गई थी। खाड़ी के देशों में अभी भी 60 लाख के करीब भारतवासी काम करते हैं जिनमें अधिकतर लेबर क्लास है। तीसरी लहर जो सारे देश से गई थी, प्रोफैशनलज़ की थी जो अमेरिका, कैनेडा तथा योरूप के देशों में बस गए थे जहां उन्हें उच्च पद मिले और इन्होंने उन देशों के विकास मेें बड़ा योगदान भी डाला। एक समय जरूर आया जब मनमोहन सिंह की पहली सरकार थी तो कुछ प्रोफैशनज़ ने वापिसी शुरू की थी इस आशा के साथ कि यहां स्थिति में परिवर्तन आ रहा है लेकिन बाद में रहन-सहन, खान-पीन आदि में दखल तथा यहां प्रदूषण के कारण यह घर वापिसी रुक गई। समझ आ गई कि मूलभूत बदलाव की भारत महान् में कोई संभावना नहीं।

अब यह चौथी लहर पंजाब से जा रही है जो पहली सभी लहरों से अलग है। स्कूल में बारहवीं पास कर बच्चे धड़ाधड़ विदेश भाग रहें हैं। कईयों की उम्र महज 19-20 साल है। कैनेडा के ब्रैम्पटन तथा सरे जैसे शहर पंजाबी छात्रों से भरे हुए हैं। और यह नहीं कि केवल सम्पन्न परिवारों से बच्चे वहां जा रहे हैं आर्थिक तौर पर कमज़ोर परिवार भी कर्जे लेकर अपने बच्चे को बाहर भेज रहे हैं। उन्हें आशा है कि वहां पढ़ाई के साथ नौकरी मिल जाएगी और पढ़ाई पूरी करने के बाद इन्हें पीआर अर्थात स्थाई नागरिकता मिल जाएगी और वह वहां बस जाएंगे। यह काम इतना आसान नहीं है लेकिन एक-दूसरे को देख कर बाहर भागने की होड़ है। जालंधर के वीजा सैक्शन में पिछले साल की तुलना में आवेदन में 40 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। पंजाब से कितने विद्यार्थी बाहर गए हैं? इस आंकड़े को लेकर कुछ भ्रम है। पंजाब के कई अखबार पिछले साल एक लाख स्टूडैंटस के बाहर जाने की बात कर रहें हैं। इनका भारी बहुमत कैनेडा गया है। 2018 के अंत तक यह संख्या 172,000 थी। पिछले एक साल में इंगलैंड में भारतीय स्टूडैंटस की संख्या में 40 प्रतिशत की वृद्धि हुई। यह भी अधिकतर पंजाब से गए हैं। अनुमान है कि हर वर्ष पंजाब से 27,000 से 30,000 करोड़ रुपया इस तरह बाहर जा रहा है। इससे जहां पंजाब में उच्च शिक्षा का ढांचा चरमरा गया है वहां प्रदेश की पहले से कमज़ोर आर्थिकता को और झटका पहुंचा है। एक छात्र औसतन 18 लाख रुपए खर्चता है।

लेकिन पंजाब और केन्द्रीय सरकार बेफिक्र है। शायद सोच रहे होंगे कि अगर एक-डेढ़ लाख युवा बार निकल ही गए तो यहां उतने ही कम संभालने पड़ेंगे लेकिन वह समझते नहीं कि आगे चल कर इसका कितना बुरा असर पड़ेगा। पंजाब में अभी भी कई गांव हैं जहां कोई नौजवान नहीं रहा। पंचायत चुनावों में जब यह मुहिम चली कि पढ़े-लिखे युवाओं को आगे लाया जाए तो कई गांव ऐसे भी थे जहां युवा थे ही नहीं, सब बाहर निकल गए थे। पीछे रह गए हैं बूढ़े मां-बाप या ताले लटके खाली मकान। एक गांव में तो सबसे  ‘युवा’ 62 साल के गुरमीत सिंह को सरपंच बनाया गया।

युवा भी क्या करे? नौकरियां है नहीं। पंजाब में कोई एमएनसी नहीं है। कोई बड़ा उद्योग नहीं है। मंडी गोबिंदगढ़ जैसे पुराने औद्योगिक केन्द्र अंतिम सांसें ले रहे हैं। खेती लाभदायक नहीं रही और खेत छोटे हो रहे हैं। सरकार ने भी भर्ती रोकी हुई है। पंजाब की गिनती उन प्रदेशों में नहीं जो तेजी से विकास कर रहें हैं। पढ़े-लिखे को भी महज़ 10-12 हजार रुपए की नौकरी मिलती है। डिग्री नौकरी की गारंट नहीं देती। सच्चाई है कि पंजाब अब ‘यूथ-डे्रन’ की तरफ बेबस देख रहा है। हो सकता है कि साल-दो साल में रिवर्स गियर लग जाए लेकिन इस वक्त तो यह बहुत बड़ी समस्या है। युवाओं में यह प्रभाव फैल गया है कि सरकार को उनकी चिंता नहीं। प्रदेश में फैले नशे के कारण भी कई लोग अपने बच्चों को बाहर निकाल रहें हैं। पंजाब के बाद हरियाणा तथा हिमाचल भी नशे में फंस गए हैं।

यह नहीं कि जो बाहर जा रहे हैं उनकी हालत अच्छी है। खर्चा बहुत है। लड़कियों के लिए इतना पैसा इकट्ठा करने विशेष समस्या है। अधिकतर छात्र छोटी बेसमैंट में तीन-तीन,चार-चार रहते हैं। उच्च शिक्षा कैनेडा में विशेष तौर पर धंधा बनता जा रहा है। कई  ‘यूनिवर्सिटी’ है जो केवल एक कमरे से चल रही है और केवल पांच-छ: छात्र हैं। कई कालेज हैं जो केवल पैसा कमाने के लिए ही स्थापित है। कईयों ने कमीशन बेसिस पर यहां एजंट रखे हुए हैं जो छात्रों को फुसला कर लाते हैं। हालत इतनी गंभीर बन चुकी है कि कैनेडा सरकार ने वीज़ा फ्राड के बारे चेतावनी दी है। अपना खर्चा निकालने के लिए कई छात्रों को 16-16 घंटे काम करना पड़ता है। एक छात्र ने लिखा है कि  “यहां जिंदगी बहुत कठिन है। भारत में बैठे युवा समझते हैं कि कैनेडा में आपका ठाठदार लाईफ स्टाईल हो जाएगा और आप बड़ी गाड़ी,ब्रैंडेड कपड़े और नए-नए गैजेट आसानी से खरीद सकोगे लेकिन यह हकीकत नहीं है। यहां बहुत मेहनत करनी पड़ती है ताकि खर्चा किसी तरह चलता रहे।”

अब नई समस्या खड़ी हो रही है। वहां के स्थानीय लोग पंजाबी छात्रों की बाढ़ से आतंकित हो रहे हैं और पाबंदी चाहते हैं। पहले से वहां बसे पंजाबी भी नई आमद का विरोध कर रहे हैं। ब्रैम्पटन के अभिनव पटेल ने कैनेडा के प्रधानमंत्री को पत्र लिख वहां आ रहे भारतीय छात्र विशेष तौर पर पंजाबियों के और प्रवेश का विरोध किया है। कई घरों के बाहर अब फटे लगे हैं कि छात्रों के रहने के लिए जगह नहीं है। पंजाबी छात्रों के बीच वहां भी गैंगवॉर के कारण कैनेडा सरकार पर दबाव बन रहा है कि इंटरनैशनल स्टूडैंट वीज़ा पर पाबंदी लगाई जाए और केवल डिग्री होल्डर को ही वीज़ा दिया जाए। कैनेडा में तो बाकायदा पंजाबी गैंग अपनी हिंसक तथा गैर कानूनी गतिविधियों में लगे हुए हैं जिनमें नशे का धंधा भी शामिल है। वहां के लोगों को यह चिंता भी खा रही है कि यह छात्र कम पैसे लेकर उनकी नौकरियां छीन लेंगे। अर्थात अत्याधिक संख्या में पंजाबी छात्र-छात्राओं की मौजूदगी के प्रति वहां असंतोष बढ़ रहा है और जिसे बैकलैश कहा जाता है, वह अब कुछ वर्ष की ही बात है।

कैनेडा के अप्रवासी मंत्री ने कहा है कि पिछले साल विदेशी स्टूडैंटस ने उनकी अर्थ व्यवस्था में 15 अरब डॉलर का योगदान डाला था लेकिन चिंता तो यह है कि अपने बच्चों के इस तरह शोषण के बारे हमारी केन्द्रीय तथा प्रवेश सरकार खामोश और निष्क्रिय क्यों है? इसे रोकने या व्यवस्थित करने का प्रयास क्यों नहीं किया जा रहा है? पंजाब सरकार विशेष तौर पर लापरवाह है। एक तरह उच्च शिक्षा का यहां भट्ठा बैठ रहा है जो दूसरी तरफ हमारे युवाओं की मजबूरी और लाचारी का विदेशी शोषण कर रहें हैं। पंजाब के सामने नया और विशाल आर्थिक, सामाजिक और शैक्षणिक संकट खड़ा है। प्रतिभा मुक्त पंजाब! आने वाले वर्षों में इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी।

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Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.