रिश्तों की नींव हिल गई (Uncertainty in Indo-US Relations)

अमेरिका, भारत और पाकिस्तान के अनिश्चित रिश्तों के बारे अपनी किताब में चार अमेरिकी राष्ट्रपतियों के सलाहकार रहे ब्रूस रीडल लिखते हैं,  “इस क्षेत्र में अमेरिका अपने अधिकतर लक्ष्यों को प्राप्त करने में असफल रहा है। रुज़वैल्ट से लेकर ओबामा तक अधिकतर अमरीकी राष्ट्रपतियों ने पाया कि उपमहाद्वीप में आगे बढ़ना मुश्किल है… इतिहास साक्षी है कि अमेरिकी कदमों ने बुरी स्थिति को बदतर बना दिया था…।”

अगर अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रम्प ने यह किताब पढ़ी होती या अपने सलाहकारों की राय मानी होती तो इमरान खान के साथ अपनी बैठक में कश्मीर में अपनी मध्यस्थता की अनावश्यक पेशकश न कर बैठते। इमरान खान के लिए तो छींका फूटने वाली बात हो गई लेकिन अपनी इस लापरवाही से ट्रम्प भारत और अमेरिका के रिश्तों में वह अविश्वास पैदा कर गए हैं जिसकी गूंज बहुत देर और दूर तक सुनी जाएगी। विशेष तौर पर ट्रम्प का यह कहना है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान कश्मीर मामले को सुलझाने में उनकी मदद मांगी थी तो भारत पचा नहीं पा रहा। भारत ने इस बयान को बिलकुल खारिज कर दिया और विदेशमंत्री जयशंकर प्रसाद ने ट्रम्प को केवल  ‘झूठा’ ही नहीं कहा लेकिन यह स्पष्ट कर दिया कि अमेरिका के राष्ट्रपति सच्चाई बयान नहीं कर रहे। अमेरिका के प्रमुख अखबार ‘द वॉशिंगटन पोस्ट’ ने लिखा है कि  “ट्रम्प ने हद दर्जे की राजनयिक भूल की है।” अखबार ने यह भी लिखा है कि संबंधों में सुधार करने के पूर्व राष्ट्रपतियों के प्रयासों पर ट्रम्प ने पानी फेर दिया। पर पाकिस्तान का अखबार एक्सप्रैस ट्रिब्यून लिखता है कि यह पाकिस्तान के लिए प्रचार में भारी जीत है क्योंकि मोदी द्वारा पाकिस्तान को अलग-थलग करने का प्रयास असफल हो गया है। निष्पक्ष टिप्पणीकार जैसे माईकल कुगलमैन भी लिखते हैं कि  ‘ट्रम्प ने वह कहा जो पाकिस्तान सुनना चाहता था।’

यह सोचना भी गलत है कि अपनी वैचारिक सोच, पृष्ठभूमि तथा विशाल राजनीतिक तथा कूटनीतिक अनुभव को देखते हुए नरेन्द्र मोदी ट्रम्प जैसे असंतुलित और अशांत व्यक्ति को कश्मीर में मध्यस्थता का भार सौंपने के लिए तैयार हो गए थे। लेकिन सवाल तो यह उठता है कि इस वक्त ट्रम्प ने भारत और नरेन्द्र मोदी को नाराज क्यों कर लिया जिनकी जरूरत चीन के उदय का मुकाबला करने के लिए अमेरिका को न केवल ऐशिया बल्कि हिन्द महासागर-प्रशांत महासागर क्षेत्र में भी चाहिए? इसके कई स्पष्टीकरण दिए जा रहे हैं। प्रमुख तो यह है कि डॉनाल्ड ट्रम्प ऐसे व्यक्ति हैं जो बिना सोच-समझ कर लापरवाह बात कर जाते हैं और बाद में क्षति की भरपाई अधिकारियों को करनी पड़ती है। आखिर ट्रम्प वह व्यक्ति है जिन्होंने डींग मारी है कि वह अफगानिस्तान में युद्ध आसानी से जीत सकते हैं पर वह “1 करोड़ लोगों को मारना नही चाहते।” सवाल उठता है कि यह कैसा शख्स है जो एक देश तथा उसकी जनता का नामोनिशां मिटाने की इस लापरवाही भरे घमंड के साथ बात कर रहा है? लेकिन ऐसे ट्रम्प है। वह दोस्त तथा दुश्मन को बराबर लताड़ चुके हैं। एक प्रमुख अमेरिकी अखबार के अनुसार ट्रम्प रोजाना झूठ बोलते हैं और पिछले 800 दिनों में उन्होंने लगभग 10,000 बार झूठ बोला है।

उन्होंने ईरान के साथ किए गए परमाणु समझौते को इसलिए रद्द कर दिया क्योंकि यह समझौता उनके राजनीतिक विरोधी पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने किया था जिससे सारे खाड़ी क्षेत्र में तनाव पैदा हो गया है। अब हमारी बारी है। पहले ही व्यापार को लेकर काफी आपसी तनाव है। ट्रम्प के कारण ईरान के साथ हमारे रिश्ते बिगड़ गए हैं और वह चाहते हैं कि ऐसा ही चीन और रुस के साथ भी हो जाए। क्योंकि भारत ने इस मामले में झुकने से इंकार कर दिया इसलिए ट्रम्प चिढ़े हुए लगते हैं लेकिन असली कारण अफगानिस्तान है जहां से ट्रम्प नवम्बर 2020 में अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव से पहले अपने सैनिक निकालना चाहते हैं और वह जानते हैं कि पाकिस्तान के सहयोग के बिना यह नहीं हो सकता। इसीलिए पाकिस्तान को खुश करने के लिए बिना मांगे कश्मीर का मसला उछाल दिया।

पाकिस्तान के प्रति अमेरिका का रवैया बदल रहा है। पहले उन्हें दबाते रहे। उनकी सैनिक सहायता रोक दी। अब आईएमएफ द्वारा पाकिस्तान को 6 अरब डॉलर के ऋण पर आपत्ति न कर अमेरिका ने उस देश को राहत पहुंचाई है। इमरान खान को व्हाईट हाऊस बुला कर भी ट्रम्प यह संकेत दे रहे हैं कि अपना उल्लू सीधा करने के लिए वह अतीत को फिलहाल भूलने के लिए तैयार हैं। ईरान को ट्रम्प ने  ‘दुनिया का सबसे प्रमुख आतंकवाद संरक्षक देश’  करार देने वाले ट्रम्प ने उस पाकिस्तान जिसके प्रधानमंत्री स्वयं स्वीकार कर रहे हैं कि अभी भी वहां 30,000-40,000 आतंकी हैं, के बारे अब मुंह नहीं खोला।

ट्रम्प की नीतियों ने भारत तथा अमेरिका के रिश्तों की नींव हिला दी है। यह रिश्ते कभी भी समतल नहीं रहे पर कारगिल युद्ध के समय बिल क्लिंटन के दखल के बाद यह सुधरने लगे थे। जार्ज बुश के समय परमाणु समझौते से तस्वीर बिलकुल सकारात्मक हो गई थी। बराक ओबामा ने शुरू में कश्मीर में दखल देने की कोशिश की थी पर भारत के सख्त विरोध के बाद इस मामले में वह पीछे हट गए और भारत के साथ रिश्ते मजबूत करने का उन्होंने बहुत प्रयास किया। वह गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि भी बने जबकि ट्रम्प ने एक महीना लटकाने के बाद न्योता इंकार कर दिया था।

अमेरिका की प्रमुख पत्रिका  ‘फॉरन पॉलिसी’  ने लिखा है कि ट्रम्प ने  ‘अज्ञानता का परिचय दिया है और दशकों पुराने कश्मीर विवाद में घुस गए।’ यह बात तो सही है लेकिन हमारे लिए नई समस्या खड़ी कर गए हैं। उन्होंने सुप्त कश्मीर मुद्दे को जीवित कर दिया है। उनके इस कथन से देश के अंदर और बाहर, विशेष तौर पर पाकिस्तान में, जो लोग कश्मीर में गड़बड़ करते रहते हैं उन्हें प्रोत्साहन मिला है। कश्मीर में बैठे अलगाववादी जिनकी नापाक गतिविधियों पर बहुत मुश्किल से नियंत्रण किया गया है भी बहुत प्रसन्न हैं। कश्मीर का मुस्लिम नेतृत्व यह अभियान तेज करेगा कि अगर भारत तथा पाकिस्तान आपस में बैठ कर मामला हल नहीं कर सकते तो अमेरिका को दखल देना चाहिए। कश्मीर में हिंसा बढ़ सकती है।

भारत और अमेरिका के रिश्ते फ्रैक्चर हो गए हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भी आभास होगा कि व्यक्तिगत कूटनीति की भी सीमा होती है, विशेष तौर पर जब दूसरी तरफ ट्रम्प जैसा अस्थिर नेता हो। अगर हम झुकते हैं तो यह संदेश जाएगा कि हम अपने हितों की रक्षा नहीं कर सकते और नरेन्द्र मोदी की छवि प्रभावित होगी। यह नहीं कि हमारे पास विकल्प नहीं हैं। भूगोल में जहां हम स्थित हैं अमेरिका हमारी अनदेखी नहीं कर सकता। उन्हें हमारा बाजार चाहिए। हमें रक्षा सामान बेचना है और भारत-प्रशांत क्षेत्र में चीन की धौंस का सामना करना है। बेहतर होता कि ट्रम्प के झूठे दावे का जवाब प्रधानमंत्री मोदी खुद देते तो संदेश साफ जाता कि भारत के साथ शरारात नहीं हो सकती। जब तक ट्रम्प गद्दी में है अमेरिका के साथ किसी तरह की  ‘सामरिक सांझेदारी’  के बारे सोचना बंद कर देना चाहिए। हमारी बड़ी समस्या चीन है जो अमेरिका के टैक्नॉलोजी का लाभ उठा कर अपनी औद्योगिक, व्यापारिक तथा तकनीकी कायापल्ट कर सका। ट्रम्प के आने के बाद चीन का उत्थान रुका है।

इस प्रकरण का यह फायदा अवश्य होगा कि यह फॅँतासी खत्म हो जाएगी कि भारत और अमेरिका स्वभाविक मित्र हैं। दोनों के अपने-अपने हित हैं। यह मायने नहीं रखता कि भारत सबसे बड़ा लोकतंत्र है और अमेरिका सबसे ताकतवर लोकतंत्र। ट्रम्प किसी विचारधारा या जज़बे में विश्वास नहीं रखते। उन्हें इस वक्त पाकिस्तान की जरूरत है इसकी तपिश हम महसूस कर रहें हैं। कश्मीर में कठिन स्थिति को उन्होंने बदतर बना दिया।

VN:F [1.9.22_1171]
Rating: 10.0/10 (2 votes cast)
VN:F [1.9.22_1171]
Rating: +2 (from 2 votes)
रिश्तों की नींव हिल गई (Uncertainty in Indo-US Relations), 10.0 out of 10 based on 2 ratings
About Chander Mohan 739 Articles
Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.